RE: Raj sharma stories चूतो का मेला
मैंने फिर उस से कुछ नहीं कहा बस तबियत से चार रोटी टांक दी और पिस्ता की दो चार पुप्पिया ली और घर आ गया , गनीमत थी सब लोग सोये पड़े थे तो मैंने चुपके से दरवाजे को अन्दर से कुण्डी लगायी और अपनी खाट पकड़ ली , कुछ तो चूत मारने की थकान थी कुछ रोटियों का असर तो नींद आ गयी जबरदस्त वाली ना कोई सपना आया ना कुछ और बस सो रहा तह मैं गहरी नींद में की किसी ने हिला कर जगा दिया , आँखों को मसलते हुए मैंने देखा की चाचा सामने खड़े है
मैं- सोने दो न क्यों परेशान कर रहे हो
वो- उठा तो सही ,
मैंने- नींद भारी आँखों से घडी पर नजर डाली सुबह के साढ़े चार हो रहे थे, अब उस बख्त क्या दिक्कत हो गयी जो जगा दिया
चाचा- मुझे काम से जाना है जरा सहर छोड़ आ बस अड्डे तक
मेरा तो दिमाग ही घूम गया सुबह सुबह गांड क्यों नहीं मार लेते मेरी , अब कौन जायेगा इनको छोड़ने पर मरता क्या ना करता तो खटारा स्कूटर को मारी किक और चाचा को लेकर शहर की तरफ बढ़ चला , अब सुबह सुबह कहा धरना देंगे ये, बड़े ही दुखी मन से उनको छोड़ के आया मैं घर में सन्नाटा पसरा पड़ा था मैं चाची को बताने गया तो देखा की वो सोयी पड़ी है उनकी साडी चुचियो पर से सरक गयी थी ब्लाउज में मस्त ऊपर नीचे होती उनकी गोल मटोल छातिया मेरे मन को भटकाने लगी पर चाची थी अपनी कर भी क्या सकते थे पर मन ना मन तो दो चार मिनट लिया नजारा लंड गरम होने लगा तो निकल लिया वहा से
मेरी तो नींद हुई ख़राब अब क्या करू सोचा की बिमला के पास पहूँच जाऊ पर इतनी सुबह सुबह किवाड़ पिटूँगा तो कोई और भी जाग सकता फिर क्या कहूँगा तो ये प्लान भी किया कैंसिल, सोचा की पिस्ता के पास पहूँच जाऊ उसको जगा दू एक बार इर से चूत मार लूँगा पर दिन निकलने वाला भी था काफ़ी समस्या थी तो इर बस अपनी खाट ही पकड़ ली और आँखे मीच ली थोड़ी देर के लिए , सुबह सुबह को जो मीठा सा लटका आता है ना नींद का एक बार आँख लग जाये तो फिर 9 बजे से पहले आँख नहीं खुलनी
और वो ही हुआ मेरे साथ, मैं जगा तो पिताजी ऑफिस जा चुके थे मम्मी मंदिर गयी हुई थी घर पर मैं और चाची ही थे , मैंने उन्हें देखा ऐसा लगता था की वो जैसे अभी अभी नहा कर ही निकली है बदन पर जो पतली सी साडी लपेटी थी उन्होंने उसमे से उनका बहुत बदन दिख रहा था गीले जिस्म से साडी बिलकुल चिपकी पड़ी थी उनको देखने का मेरा नजरिया एक दम से बदल आया उस दिन , चाची ने भी समझ लिया की मैं उनको ताड़ रहा हूँ तो वो जल्दी से अपने कमरे में चली गयी मैं भी घर से बाहर निकला और दूकान की तरफ चल पड़ा इस उम्मीद में की पिस्ता के ही दर्शन कर लूँगा रस्ते में
पर उम्मीद से क्या होता है कुछ भी नहीं ,नहीं हुए दर्शन अब दिन का टेम तो डायरेक्ट रिस्क भी ना ले सकू मैं ऐसे ही दुकान पर टाइम पास कर रहा था की तभी वहा पर मंजू आई कुछ सामान लेने के लिए, मंजू मेरी हमउमर ही थी पर मुझसे एक क्लास छोटी थी, हम लोग वैसे तो एक ही मोहल्ले में रहते थे पर कभी उस से इतना कुछ बोल चाल हुआ नहीं था मेरा, कभी कभार के सिवाय ,दिखने में भी ठीक ठाक सी ही थी वो ना ज्यादा सुन्दर ना ज्यादा डाउन में थी , मंजू जब झुककर सब्जी उठा रही थी तो उसकी चुन्नी सरक गयी ढीले सूट में से उसके नटखट गेंदे मुझे दिख गयी तो मेरी नजर वहा पर रुक गयी मंजू भी भांप गयी की मैं क्या देख रहा हूँ
उसने अपने आंचल को काबू में किया और मंद मंद सी मुस्कुरा पड़ी तो मैं भी हस दिया उसने अपना सामान लिया और चल पड़ी, थोड़ी दूर जाने के बाद उसने पलट कर एक नजर फिर से देखा और आगे को बढ़ गयी मेरा तो दिमाग ही खराब हो गया एक बोतल कोका कोला की गटकने के बाद मैं घर गया तो मम्मी ने कहा की जाके रतिया काका की दूकान से पशुओ के लिए एक बोरी खल की ले आ और एक पीपा तेल का ले आईयो , आजकल मुझे घर के कामो में कोई दिलचस्पी रह नहीं गयी थी पर अपनी भी मजबुरिया थी तो साइकिल उठा कर पहूँच गया काका की दुकान पर
खल की बोरी लादी , काका को तेल की कही तो वो बोले-“बेटा , दूकान में जो तेल है न उसकी काफ़ी लोगी ने शिकायत दी है की उसमे झाग ज्यादा आता है तो हम इस तेल को बेच नहीं रहे है , तू एक काम कर घर जा वहा पर कुछ नए पीपे है ताजा माल मंगवाया है तो घर से ले ले अब तुझे ख़राब तेल तो दे नहीं सकता ना ”
मैं- जी काका ,जैसा आप कहे
वो- बेटा, घर पे तेरी काकी होगी तो उनसे कह दियो की आज दोपहर का खाना ना भेजे मैं जरा शहर को जाऊंगा
मैं- जी, कह दूंगा
गर्मी में बोरी को ढोना किसी सजा से कम नहीं था मैंने बोरी को प्लाट में रखा और फिर काका के घर पहूँच गया दो तीन आवाज दी तो मंजू निकल कर आई
मैं- काकी है क्या
वो- नहीं है , कही गयी है क्या काम है
मैं- वो काका ने कहा की घर से तेल का पीपा ले लेना
वो- अन्दर आ जाओ
मंजू को जी भर के देखा और फिर मैं उसके पीछे पीछे घर के अन्दर चला गया , उसने मुझे बैठने को कहा और रसोई में चली गयी, तुरंत ही वो पानी लेकर आई और गिलास मुझे देते हुए बोली- कौन से तेल का पीपा लेना है
मैं- मतलब
वो- अरे मतलब, सरसों का या फिर सोयाबीन का
मैं- जो तुम्हारी मर्ज़ी हो दे दो, मैं तो लेने पर हूँ
मंजू ने बड़ी गहरी नजरो से देखा मुझे और बोली- क्या कहा तुमने
मैं- अरे, मेरा मतलब सरसों के तेल का पीपा दे दो
वो आओ मेरे साथ , मैं और मंजू घर के पीछे वाले हिस्से में आ गए यहाँ पर उन्होंने गोदाम टाइप बनाया हुआ था मंजू बोली –“नया तेल ना उधर ऊपर की तरफ है रुको मैं उतार कर देती हूँ ”
उस कमरे में चारो तरफ बोरिया राखी हुई थी और एक साइड में ऊपर की तरफ तेल के काफ़ी पाइप रखे हुए थे कमरे में मिली-जुली गंध फैली थी तेल के कारण फर्श भी थोडा सा चिकना सा हुआ पड़ा था मैंने कहा – तुम रहने दो मैं उतार लेता हूँ
मंजू- अरे मैं उतार देती हूँ , मेरा तो रोज का काम है
वैसे तो वहा पर सीढ़ी भी राखी थी पर मंजू बोरियो पर चढ़ पर पीपा उतारने लगी उसकी कोशिश में मेरा ध्यान तेल से ज्यादा उसकी कुर्ती जो ऊपर हो गयी थी तो मैं उसकी गांड के साइज़ पर ज्यादा ध्यान लगा रहा था , तेल का पंद्रह किलो का पीपा मंजू की नाजुक कलाई ऊपर से बोरी पर बैलेंस गड़बड़ाया हुआ, मंजू का ध्यान थोडा सा आउट हुआ और बस हो गया पीपा हाथ से छुट गया और धडाम से आ गिरा फर्श पर वाह रे छोरी ! चारो तरफ तेल फ़ैल गया ऊपर से मंजू भी फिसली बोरी से मैं उसको पकड़ने आगे को भगा उसको थोडा सा थाम सा लिया था पर इधर तेल पर मेरा पैर फिसला और ऊपर से वो आ गिरी मुझ पर
पैर जो फिसला मेरा तो फिसलता ही चला गया मंजू को जो थोडा सा थाम रखा था मैंने उसको लिए लिए ही मैं नीचे बोरियो से जा टकराया मैं उसके नीचे वो मेरे ऊपर तेल में सने हुए, पीठ में शायद चोट सी लग गयी थी पर उस से ज्यादा सुकून इस बात का था की मंजू मेरे ऊपर थी उसके संतरे जैसी चूचिया मेरे सीने पर अपना बोझ डाले पड़ी थी मैंने उठने की कोशिश में मंजू के कुलहो को कस के मसल दिया
“आह” उसने एक सिसकी सी ली , मैंने उसको अपने ऊपर से साइड में किया और उठने लगा पर वह रे तेल क्या खूब साथ दे रहा था तू मेरा उठने की कोशिश में फिर से फिसल गया इस बार मंजू के हाथ की जगह उसका बोबा मेरे हाथ में आ गया , गजब ही हो गया मेरी टाइट पकड़ उसे बोबा बुरी तरह भींच गया “aahhhhhhhhhhhhhhhhhhhhhhhhh ” चिल्लाई एक दम से मंजू, तो घबरा कर मैंने उसको छोड़ दिया और वो फिर से मेरे ऊपर आ गिरी इस बार मैंने कोई कोशिश नहीं की उसको हटाने की मुझे तो मजा ही आ रहा था
मेरे मन में पता नहीं क्या आया मैं उसकी गांड को धीरे धीरे सहलाने लगा , मेरे हाथ को अपनी गांड की दरार में महसूस करके मंजू का तन बदन कांप गया , वो बोली- अब छोड़ो भी मुझे उठने दो
मंजू उठी मैं भी बोरी का सहारा लेकर उठा , उसकी सलवार पूरी तरह तेल से गीली हो गयी थी मस्त लग रही थी वो , मेरे कपडे भी ख़राब हो गए थे
मैं- सीढ़ी से ना उतार सकती थी क्या, मैंने कहा था मैं ले लेता हूँ देख क्या हो गया
वो- क्या हो गया , पीपा तो तुमसे भी गिर सकता था ना
मैं- हां पर मेरे कपडे तो खराब हो गए है ना अब मैं घर कैसे जाऊंगा , लोग देखेंगे तो हसेंगे
वो- तो तुम्हे किसने कहा था हीरो बन् ने को
मैं- एक तो तेरे हाड टूटने से बचा लिए और ये बोलती हो
वो- अच्छा बाबा
मैं- मुझे तो पीपा दे मैं जाता हूँ
वो- तू अभी जा, मैं इधर की सफाई करके तुम्हारे घर दे आउंगी तेल
मैं- ना मैं तो लेके ही जाऊंगा, घर पे मुझे डांट पड़ेगी
तो- फिर इतंजार कर
मैं- क्यों करू इंतज़ार , मुझे क्या और काम नहीं है
वो- होंगे काम तो मैं क्या करू देख इधर चारो तरफ कितनी फिसलन हो गयी है पहले इसको साफ़ करुँगी फिर तेल दूंगी
मैं- अभी दे मुझे तो
वो- क्या कहा
मैं- अभी दे तेल मुझे
वो – ना देती क्या कर लेगा
मैं- तेरे बापू को कह दूंगा
वो जा कहदे
मैं- मंजू टाइम ख़राब ना कर देख कितनी बदबू आ रही है मुझसे, तू पीपा निकाल मैं नहाऊंगा जाते ही
वो- कहा न मैं पंहूँचा दूंगी
मैं- मैं ने कहा की लेके जाऊंगा
वो- कैसे ले लेगा
मैं- अच्छी तरह ले लूँगा
वो- लेके दिखा
मैं- क्या लेके दिखाऊ
जब मंजू को मेरी बात का मतलब समझ आया तो वो बुरी तरह से शर्मा गयी उसकी नजरे नीची हो गयी मुझे हँसी आ गयी , लड़की बुरी तरह से झेंप गयी थी मैंने उसको ज्यादा तंग करना उचीत नहीं समझा और कहा ठीक है तू पंहूँचा देना पर एक शर्त है मेरी तू आना चार बजे
वो- ठीक है
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