Raj sharma stories चूतो का मेला
12-29-2018, 02:35 PM,
#60
RE: Raj sharma stories चूतो का मेला
मैं वहा से फिर घर आ गया और बाथरूम में घुस गया कपडे धोने में नहाने में काफ़ी देर लग गयी तीन बार साबुन लगाई पर तेल की बॉस न गयी शरीर , नहा कर मैंने अपने बदन पर बस एक तौलिया लपेटा और अपने कमरे में आ गया मैंने देखा चाची मेरे कमरे में थी और वो एल्बम देख रही थी जिसमे मेरी, जोधपुर वाली तस्वीरे थी, ये कहा हाथ लग गयी इनके 

मैं- चाची, ऐसे किसी के पर्सनल सामान को नहीं देखना चाहिए 

चाची- आज कल कुछ ज्यादा ही पर्सनल नहीं हो गए हो तुम , वैसे तस्वीरे अच्छी है 

मैं- चाची उनको वापिस दे दो और जाओ यहाँ से 

वो- क्यों जाऊ, मैं भी तो देखू की बेटा जोधपुर में क्या गुल खिला के आया है 

मैं- आपको तो बस बात का पतंगड़ बनाना आता है 

वो- बदतमीज होते जा रहे हो दिन दिन तुम 

मैं- आप मेरी तस्वीरे दो मुझे अभी के अभी

वो- ना देती क्या कर लेगा 

मै- छीन लूँगा 

वो- छीन के दिखा

मैं उनके पास गया और तस्वीरे लेने लगा जोर आज्माईश पर उतार आई चाची जी मुझे डर था की कही वो उन तस्वीरों को मम्मी को न दिखा दे फिर ना कोई जवाब दिया जाता और रंगाई होनी थी वो अलग तो इसी कशमकश में मेरा तोलिया साला धोखा दे गया और वो खुल गया मैं हो गया नंगा चाची ने लजब मुझे नंगा देखा , मेरे हवा में झूलते हुए लंड को देखा तो उनका मुह खुला का खुला रह गया , आपाधापी में मुझे समझ नहीं आया करू तो क्या करू , अब 

मैंने खुद को संभाला और जल्दी से तौलिये को फिर से लपेटा शर्म बहुत आ रही थी चाची कमरे से जाने लगी दरवाजे पर पहूँच कर उन्होंने मुझे बहुत गहरी नजर से देखा और फिर बाहर को चली गयी
सबकुछ इतना जल्दी हो गया था की कुछ समझ ही ना आया खैर, अब मैं आया तैयार होकर तो चाची बोली- मैं जीजी के पास प्लाट में जा रही हूँ, शाम को ही आउंगी, घर का ध्यान रखना और घर पर ही रहना 
बोलकर वो चली गयी मैं टीवी देखने लगा , घर पर को था नहीं तो मन में खुराफात आने लगी मैं बिमला के घर गया तो वहा पर ताला लगा था अब ये साली कहा गयी, दिमाग खराब सा हो गया तो वापिस आ के सो गया अब जैसा मैं वैसे ही मेरे सपने , मुझे ऐसा सपना आ रहा था की जैसे मैं पिस्ता की ले रहा हूँ बस मेरा छुटने को ही हो रहा था की किसी ने मुझे जगा दिया तो मेरे मुह से निकल गया – “बस पिस्ता दो मिनट की बात है , रुक जरा ”

“क्या बात है जरा मुझे भी तो पता चले ”

मेरी आँख एक दम से खुल गयी, नींद छूमंतर हो गयी , मैंने देखा सामने मंजू खड़ी थी ,

मैं- क्या बात हो गयी 

वो- तुम ही कह रहे थे, पिस्ता दो मिनट की बात है 

मैं- मैं ऐसा क्यों कहूँगा , भला

वो- वो तो तुम जानो 

मैंने खुद की हालात पे गौर किया शरीर पसीने पसीने हो रहा था मैंने छत की तरफ देखा तो पंखा बंद पड़ा था बिजली नहीं थी ,

मैं- मंजू जरा फ्रिज सी थोडा पानी लाइयो 

वो पानी लेकर आई पानी पीकर मैंने पुछा – तुम कब आई 

वो- जब तुम पिस्ता की बात कर रहे थे 

मैं- कब कर रहा था 

वो- नींद में उसका सपना देख रहे थे तुम 

मैं- नाही नहीं 

वो- और नहीं तो क्या , वैसे तुम भी उसके सपने देखते हो पता नहीं था 

मैं- फ़ालतू की बात न कर ये बता तू यहाँ कैसे आई 

वो- तुमने ही तो बुलाया था

मैं- कब 

वो- बड़े भुल्लाक्कड़ हो तुम, सुबह तुमने ही तो कहा था की चार बजे आना , देख मैं आ गयी 

मैं- याद आया तेल कहा है 

वो- कभी तेल के सिवाय भी इधर उधर देख लिया करो और भी है कुछ हसीं ज़माने में 

मैं- हाँ वैसे तुम भी मस्त खूबसूरत हो 

वो- अच्छा , आने के काकी को कहूँगी 

मैं- कह दी, अब तेरे लिए क्या मैं सच भी न बोलू 

वो- पीपा संभाल अपना मैं तो चली 

मैं- ऐसे कैसे चली थोड़ी देर रुक जा घर पे कोई नहीं है 

वो- कोई नहीं है तभी तो ना रुक रही 

मैं- सबकुछ छोड़ ये बता, कहा रहती है तू आजकल दिखती नहीं 

वो- मैं तो इधर ही रहती हूँ , तुम्हारी नज़ारे औरो से हेट तो मैं दिखूंगी ना 

मैं- क्या कुछ भी बोलती रहती है 

वो- सची तो बोली, उधर तो तुम नीनू से चिपके रहते हो और यहाँ पिस्ता पिस्ता करते हो तो बताओ हमारी तरफ कब ध्यान जायेगा तुम्हारा 

मैं- क्या पिस्ता पिस्ता कर रही हो मेरा उस से क्या लेना देना 

वो- आच्छा , सपने में वो आये तुम्हारे और तुम कहो क्या लेना देना 

मैं- कल को तू सपने में आ गयी तो तुमसे भी लेना देना हो जायेगा इसका मतलब 

वो- तुम्हारे सपने तुम जानो मुझे क्या मैं चलती हूँ देर हो रही है 

मैं- कहा जाएगी जो देर हो रही है घर ही तो जाना है थोड़ी देर रुक जाएगी तो कौन सा आफत आ जाएगी 

वो- एक लड़के एक लड़की का ऐसे अकेले में रुकना गुनाह होता है 

मैं- तुम कहो तो ये गुनाह मैं अपने सर ले लू 

वो- ना, इतनी मेहरबानी की जरुरत नहीं है 

मैं- तो तुम कर दो मेहरबानी 

वो- कैसे 

मैं- ऐसे, कहकर मैंने मंजू को पकड लिया और सीधा उसको किस कर दिया मंजू के लाल होंठ कैद हो गए मेरी कैद में ,झुंझला कर उसने मुझे परे किया और गुस्से से बोली- आने दे काकी तो तेरी तो सारी मस्ती निकलवा दूंगी, दो बात क्या कर ली हंस कर तू तो सर चढ़ गया , अब देख तेरा क्या हाल करवाउंगी , तू तो गया मैं तुझे क्या समझती थी तू क्या निकला जा रही हूँ तेरी मम्मी के पास 

मैं- मंजू सुन तो सही , सुन तो सही 

पर वो कहा सुने, गुस्से में पैर पटकते हुए वो गयी वहा से मैंने अपना माथा पीट लिया आज तो गांड पक्का टूटने ही वाली थी , सारी आशिकी गांड में घुस गयी मेरी तो, अब हम क्या करे पटाने चले थे नयी चूत गांड मरवाने की नोबत आ गयी , मंजू के चक्कर में हाल बुरा होना था अब किया क्या जाये काफ़ी देर हो गयी सोचते सोचते शकल चूहे जैसी हो गयी , शाम हो गयी मैं वैसे ही टेंशन में बैठा रहा मम्मी घर आई पर उन्होंने कोई रिएक्शन न दिया नार्मल सी ही लग रही थी इधर मैं सावधान था रात हो गयी उन्होंने मुझसे कुछ नहीं पुछा तो मुझे लगा की मंजू ने शिकायत की की नहीं 


उसकी असमंजस में रात बीत गयी , अगली सुबह पहूँच गए शहर पढने को, नीनू आज ये नहीं थी मैं क्लास में जा रहा था की मुझे मंजू दिखी तो मैं दोड़ कर उसके पास गया और बोला- मंजू बात करनी है 

वो- दूर हो जा मुझसे मुझे ना करनी कोई बात वात

मैं- एक बार मेरी बात सुन तो ले फिर नाराज हो लेना 

वो- हट जा मेरी क्लास का टाइम हो रहा है, तमाशा मत कर मंजू चली गयी पूरा दिन मेरा मन नहीं लगा फिर दोपहर बाद मैं घर आया भूख भी लग रही थी पर रोटिया भा भी नहीं रही थी, अजीब परिस्तिथि थी ये भी दिमाग ख़राब वो अलग कुछ सोच कर मैंने एक लैटर लिखा जिसमे बार बार मंजू से माफ़ी मांगी थी और शाम को उसके घर की तरफ चल पड़ा , वो बारने में झाड़ू लगा रही थी मैंने गली में इधर उधर देखा कोई ना था मैंने धीरे से वो पर्ची मंजू की तरफ फैंक दी 


मंजू ने घूरते हुए मेरी तरफ देखा और फिर उस पर्ची को झट से उठा कर अपनी कुर्ती में डाल लिया मैं वहा से कट लिया और अपने खेत की तरफ बढ़ गया दिमाग में उधेड़बुन लिए खेत में कौन सा चैन मिला अपने को वहा जाकर ढेर सारी खरपतवार को साफ़ किया जो सब्जिया लगाई थी उनको ठीक से देखा की कोई दिक्कत तो ना हो रही जब घर के लिए चला तो अँधेरा सा होने लगा था मैं जानबूझ कर मंजू के घर की तरफ से निकला पर वो ना दिखी तो घर को हो लिए
घर आते है ऐसे लगता था की जैसे सारे जहाँ की मुसीबते मुझ पर ही टूट पड़ी हो , आज फिर घर में दाल बनी थी मेरा तो दिमाग ही दाल हो गया था हफ्ते में ४-५ बार यही बेस्वाद खाना खाना पड़ता था और शिकायत कर नहीं सकते , बेमन से रोटिया तोड़ने के बाद मैं चाची के कमरे में गया और बोला- मेरा एल्बम मुझे वापिस दे दो 

चाची- ले जा, वर्ना तुझे नींद नहीं आएगी 

मैं वापिस होने लगा तो वो बोली- इधर आ 

मैं उनके पास गया तो वो एल्बम में मेरी और नीनू की राजस्थानी ड्रेस वाली फोटो को देख पर बोली- ये तस्वीर अच्छी है , इसको फ्रेम करवा के अपने कमरे में लगवा लेना 

मैंने चाची को इस तरह से देखा जैसे की उनके सर पर सींग निकल आये हो 

वो- तुम्हारी दोस्त है 

मैं- मेरे साथ पढ़ती है 

वो-हां , तो दोस्त है तुम्हारी 

मैं- नहीं बस साथ पढ़ती है 

वो- बेटा, तुम झूठ क्यों बोलते हो आजकल 

मै- हां, मेरी दोस्त है 

वो- अच्छी बात है , तो छुपाते क्यों हो 

मैं- बस ऐसे ही 

वो-डरते हो 

मैं- डरना तो पड़ता ही है 

वो- तो फिर दोस्ती कैसी जो छुपानी पड़ते है 

मैं- आज आपको हो क्या गया है 

वो- बस तुम्हे कुछ समझाने की कोशिश कर रही हूँ 

मैं- क्या 

वो- ज़माने का दस्तूर , देखो बेटा हम नहीं चाहते की हमारी औलाद हमसे कुछ छुपाये, जानती हूँ तुम्हारी उम्र विद्रोही है, खून में उबाल है पर साथ ही तुम्हारे ऊपर कुछ जिम्मेदारिया है , इस घर की कुछ आस है तुमसे पर इसका मतलब ये नहीं है की तुम अपनी इन छोटी छोटी बातो को भी हमसे छुपाओ, 

मैं- आप सही कह रही है पर एक लड़की और एक लड़के की दोस्ती को कोई नहीं समझता 

वो- अगर तुम सही हो तो छुपाने की कभी जरुरत नहीं पड़ेगी , जाओ आराम करो 

मैं अपने कमरे में आ गया और उनकी कही बातो को समझने की कोशिश करने लगा पर हमारा छोटा सा दिल तमाम ज़माने की परेशानियों से घिरा कहा उनकी गहरी बात को समझ पता अगले दिन इतवार था तो खूब देर तक सोने का इरादा करके बिस्तर को पकड़ लिया पर नींद साली दगा कर गयी , लाख जतन किया करवटे बदले कभी इस तरफ कभी उस तरफ पर वोही बेचैनी जो कही खो सी गयी थी दुबारा मुझ पर हावी होने लगी थी मैं कमरे से बाहर आया और छत पर बैठ गया रात की ख़ामोशी बेताब थी मुझसे बात करने को पर मेरे पास शब्द नहीं थे, रति की याद बड़ी जोर से आने लगी मुझे 
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