RE: Raj sharma stories चूतो का मेला
मेरे पास और कोई चारा भी नहीं था तो मैं जाके सो गया मन में उलझने थी , माथे पर परेशानियों की शिकन थी दर्द भी अपना था पीड़ा भी अपनी थी कहते भी तो किस से कहते हमाम में सब नंगे जो थे आँखों को मींच लिया था देर सवेर नींद आ ही जानी थी, सुबह आँख खुली ओ देखा चाची कमरे में थी नहीं मेरी नजर घडी पर पड़ी थो टाइम ज्यादा हो रहा था मैं तुरंत भगा नीचे को , नहाने धोने का भी टाइम न था तो बस मुह को ही धोकर बालो को भिगोकर मैं दोड़ पड़ा शहर को , आज मुझे मेरे सारे पीरियड्स अटेंड करने थे
नीनू आज भी ना आई थी , अब उसको क्या हुआ कहा बिजी हो राखी है वो दिमाग ही खराब करके रखा है उसने तो, पूरा दिन मेरा बस पढाई में ही बीता , फिर मैं लाइब्रेरी गया कुछ किताबे चाहिए थी मुझे लाइब्रेरी के पास एक पेड़ के नीचे ही मुझे मंजू बैठी मिल गयी , हाथो में ढेर सारी किताबे उठाये मैं उसके पास गया , उसने मुझे देखा और बोली- “तुम पढ़ते भी हो ”
मैं- ना मैं तो यहाँ बस टाइम पास करने को आता हूँ, वैसे तुम यहाँ कर क्या रही हो , तुम्हारी क्लास तो दोपहर से पहले ही खतम हो जाती है
वो- मेरा आई कार्ड, गम हो गया था , तो दूसरा बनवाने की एप्लीकेशन दी है बीस दिन हो गए बाबूजी चक्कर कटवा रहा है आज आना कल आना
मैं- तो पहले बोलना था ना , आ मेरे साथ
मैं मंजू को लेकर बाबूजी के पास गया और पुछा- की इसका कार्ड क्यों न बना रहे आप
वो- तू के इसका वकील है, टाइम नहीं है , फुर्सत में आना
मैं- सर, कितने दिन से ये चक्कर काट रही है कार्ड तो आज ही बनाओगे आप
वो- धमकी देता है मुझे
मैं- जो भी समझ लो कार्ड अभी बनेगा
वो- नहीं देता क्या कर लेगा
मैं- ना, बनता तो लिख के दे दो ,
वो- जा अपना काम कर
मैं- बाबूजी, ये लड़की बहुत परेशां है कार्ड के बिना , और फिर आपको देर भी कितनी लगनी है दो मिनट का ही तो काम है
वो- कहा न टाइम नहीं है बाद में आना
मैं- बाद में कब
वो- बाद में चल निकल यहाँ से
मेरा दिमाग खराब हो गया वैसे मुझे गुस्सा बहुत कम आता था पर उस दिन कण्ट्रोल नहीं हुआ
मैं- बस बहुत बाबूजी बाबूजी कह लिया कार्ड अभी बना के दे वर्ना ठीक न रहेगी
वो- धमकी देता है , चल अभी ले चलता हूँ प्रिंसिपल के पास
मैंने साले की गुद्दी पकड़ ली और बोला- बहन के लंड, बाबूजी तू लेके चलेगा, भोसड़ी के मैं ले चलता हूँ तुजे साले, मैंने उसको रख के दिया एक उसकी आँखे घूम गयी , दो तीन खीच के दिए साले को और घसीट ते हुए लेके गया प्रिंसिपल के पास, स्टूडेंट्स जमा होने लगे, और भी स्टाफ मेम्बेर्स आ गए और पूछने लगे की क्या हुआ क्या हुआ
मैं- सर, ये बाबूजी इस स्टूडेंट का कार्ड नहीं बना के दे रहा और इसके साथ अश्लील हरकत करने की कोशिश कर रहा था
ये बात सुनते ही स्टूडेंट्स का पारा गरम हो गया और नारे बाज़ी करने लगे , कुछ लड़के बाबूजी को मारने को चढ़ गए, प्रिंसिपल भागते हुए आये और मामले को शांत करने का प्रयास करने लगे , मैंने मंजू को कह दिया की तू बोल दियो की बाबूजी ने तेरा हाथ पकड़ लिया अकेल्रे में
बाबूजी के सिट्टी –पिट्टी गम हो गयी प्रिंसिपल ने सबको अपने ऑफिस में बुलाया और मामले को रफा दफा करने का प्रयास करने लगे
मैं- नहीं सर ,अ अप पुलिस को बुलाओ इस बाबूजी को डालो जेल में
बात इज्ज़त की थी , प्रिंसिपल ने दुसरे बाबूजी को बुलाया और मंजू के कार्ड को तुरंत बनाने को कहा और उस घटिया बाबु को ससपेंड करने की और विभागीय जांच की बात कही , अपने को क्या लेना देना था मंजू का कार्ड बन गया अपना काम हो गया था तो आगे कुछ भी हो क्या फरक पड़ना था , करीब घंटे भर बाद मैं और मंजू घर चलने को थे , मैं साइकिल पर किताबो का घट्ठाद लाद रहा था , मंजू बोली- उसने कब मेरा हाथ पकड़ा था वैसे
मैं- तेरा कार्ड बन गया ना मोज कर
वो- हां , पर बदनामी तो हुई न कल को सब सोचेंगे की क्या पता ये लड़की हो ही ऐसी , कार्ड तो देर सवेर बन ही जाता
मैं- साला कोई भी तेरी तरफ ऊँगली भी कर दे न तो मेरे पास आ जाना तेरे को कहा ना मोज कर
वो- हो गयी मेरी मौज तो , दिमाग खराब हो गया है मेरा तो
मैं- घर चलते है वैसे ही आज बहुत लेट हो गया है
हम लोग साइकिल को घसीट ते हुए गाँव की तरफ चल पड़े, अक्सर हम कच्चे रस्ते से आते- जाते थे ताकि थोडा टाइम बच जाये पर आज साला दिन ही खराब था , ऊपर से थोड़ी देर बाद मंजू की साइकिल हो गयी पंक्चर , हुई मुसीबत , अब साला वापिस जाये पंक्चर लगवाने को तो और देर लग जानी थी तो मैं भी उसके साथ पैदल पैदल हो लिया गाँव की तरफ अजीब सी फीलिंग हो रही थी
मैं उस से बात करते हुए- मंजू एक बात कहनी थी
वो- तो कह दो
मैं- वो उस दिन मेरे घर पे जो हुआ, माफ़ कर देना मुझे
वो- तुम मेरी जगह होते तो माफ़ कर देते
मैं चुप रहा
वो- चल ठीक है मुह मत लटकाओ
मैं- तुमने उस लैटर का जवाब नहीं दिया
वो- क्या जवाब देना था
मैं- कुछ तो दे देती
वो- तुम्हारे सामने हूँ, तो अभी जवाब दे देती हूँ, लैटर की क्या जरुरत है
मैं- ना, तुम लैटर में ही दे देना
वो- क्यों, सामने हिम्मत नहीं होती है क्या, उस दिन तो हवस जाग रही थी
मैं- अब जाने भी दे उस बात को
वो- क्या जवाब दू, तुमको तुमने माफ़ी मांगी थी मैंने माफ़ किया बात ख़तम
मैं- बस ऐसे ही
वो- तो तुम क्या चाहते हो मुझसे , दोस्ती करना चाहते हो
मैं- तुम्हे क्या लगता है
वो- मेरे लगने ना लगने से क्या होता है आजकल सब को हर लड़की से बस एक ही ऊम्मीद होती है
मैं- क्या उम्मीद
वो- अब इतने भी नासमझ भी नहीं हो तुम देखो ये बाते है तो बहुत कुछ है और नहीं तो कुछ भी नहीं है , तुम्हारे और मेरे चाहने से क्या होता है कुछ भी नहीं , एक लड़की और एक लड़का जब बात चीत शुरू करते है तो बहुत परेशानिया होती है , चाहे कुछ भी भावनाए हो पर किसी को पता चल जाये तो फिर मुसीबत हो जाती है कोई समझता ही नहीं है , दोस्ती करो फिर प्यार हो जाता है फिर और परेशानिया हो जाती है साथ रहने को जी करे पर बंदिशे इतनी होती है की आदमी उलझ कर ही रह जाता है, खुद की नजरो में गिर जाए, घरवालो की नजरो में गिर जाये तुम बताओ तो क्या किया जाये
मैं- पर, मंजू मैंने तो कुछ कहा ही नहीं ऐसा
वो- जब तुमने मुझे किस किया था तो तुमने अपने इरादे बता दिए थे पर मंजू इतनी सस्ती नहीं है की कोई भी उसको इस्तेमाल कर जाये, हँसी- मजाक अपनी जगह होता है हर लड़की ऐसे ही किसी के नीचे नहीं लेट जाती
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