Raj sharma stories चूतो का मेला
12-29-2018, 02:35 PM,
#66
RE: Raj sharma stories चूतो का मेला
मैं भी अपनी किताबे देखने लगा पर मेरा मन बार बार चाचा और बिमला की तरफ जा रहा था मैंने सोचा की क्या मुझे चाची को बता देना चाहिए , पर जब बात खुलेगी तो बिमला मुझे भी लपेट सकती थी क्योंकि मैं भी तो उस से आशिकी मार चूका था ,मैं हर बार सोचता था की माँ चुदाय दुनिया दारी मैं क्यों टेंशन लू पर घूम फिर कर बात वाही आ कर अटक जाती थी 


उधेड़बुन में समय बीत गया मंजुबाला भी आ गयी और बोली- चल अब एक हफ्ते की तो टेंशन हटी 

मैं- क्या हुआ 

वो- तुझे ना पता के 

- क्या 

वो- कल से वार्षिक- उत्सव शुरू हो रहा है तो काफ़ी कार्यक्रम होंगे एक हफ्ते पढाई तो होगी ना तो मैं तो आने से रही 

मैं- मैं भी ना आऊंगा 

मैं- मंजू तूने जवाब ना दिया 

वो- किस बात का 

मैं- वो जो उस दिन ............ 

वो- अच्छा अच्छा, तो देख बड़ी विकट समस्या है की तुम्हे क्या जवाब दू, 

मैं- समस्या क्या होनी है या तो हां या न बस इतनी तो बात है 

वो- इतनी बात होती तो बता ही देती तेरे से 

मैं- तो कैसी बात है 

वो- देख तू मुझे अच्छा तो लगता है पर तू विश्वास लायक नहीं है 

मैं- कैसे 

वो- तेरा पहले से ही पिस्ता से चक्कर चल रहाहै और तू मुझे भी फ़साना चाहता है क्या पता और कोई लड़की भी सेट हो तेरे से बता फिर कैसे फीलिंग आएगी 

मैं- तू के कसम बनावेगी मने 

वो- ना जी ना, पर थम तो मेरे से लुगाई सुख की उम्मीद लगाये हो 

मैं- तो मन कर दे ख़तम कर बात को तू अपने रस्ते मैं अपने रस्ते 

वो- यार बात ख़तम भी तो न हो रही, जब जब अकेली होऊ हूँ तो तेरा ख्याल आता है 

मैं- तो हां कर दे 

वो- कर दूंगी, पर तू वादा कर तू मेरे सिवा किसी और लड़की को न देखेगा, खासकर उस पिस्ता को 

मैं- मैंने तो सुना था की दोस्ती में शर्ते नहीं होती 

वो- मेरे से दोस्ती करनी है तो मेरी बात मान ले 

मैं- तो मेरा जवाब सुन , की ठीक है मुझे तुझसे और सबसे उस चीज़ की आस है पर कही ना कही मेरे अन्दर ज़मीर भी है , तुझ से दोस्ती के लिए मैं पिस्ता को छोड़ दू, वो न हो पायेगा वो लाख ख़राब है हज़ार ऐब है उसमे पर दोस्त है वो मेरी , और जो सच्ची दोस्ती होती है ना वो कभी रिश्तो को तोलती नही है , मंजू बेशक मैं लम्पट टाइप हूँ पर दिल बहुत साफ़ है सोने सा खरा तेरा शुक्रिया जो तूने मुझे इस असमंजस से निकाल दिया 

मैंने अपनी साइकिल उठाई और घर आ गया आते ही मैंने कपडे बदले और जंगल में चला गया सीधा आज लकडिया काटनी थी मुझे मेरे साथ चाची भी आई हुई थी मैं फटाफट से लकडियो को मचका रहा था वो इकठ्ठा कर रही थी दो जने होने से थोडा टाइम की बचत हो जानी थी और तो क्या था चाची ने आज हलकी नीली साड़ी पहनी हुई थी एक दम पटाखा लग रही थी मैं पेड़ पर चढ़ा हुआ था वो नीचे थी तो उनकी चूचियो का भरपूर दर्शन हो रहा था मुझे मेरा लंड बार बार परेशान कर रहा था मुझे 


चाची- थोड़ी फ़ालतू लकडिया काट लेटे है कुछ साइकिल पर ले चलेंगे और कुछ मैं सर पर 

मैं- जैसी आपकी मर्ज़ी 

मैं तेजी से लकड़ी काट रहा था शाम हो गयी थी वैसे ही अभी करीब आधा पोना घंटा और लग ही जाना था मैं जो डाली काट रहा था वो थोड़ी भारी सी थी मैंने चाची से कहा की आप थोडा दूर हो जाओ पता नहीं किस तरफ को गिरेगी , वो हट गयी और नीचे से छड़ियो को सलीके से लगाने लगी वो एक भारी लकड़ी को उठा रही थी की पास से एक दम से एक खरगोश निकल भगा चाची एक दम से थोडा सा डर गयी और उनका बैलेंस बिगड़ गया वो छड़ियो पर गिर गयी 


“”आह, रे मरी रे आह रे “

वो चिल्लाई तो मेरा ध्यान उन पर गया मैं तेजी से नीचे उतरा और भगा उनकी तरफ चाची पीठ के बल छड़ियो पर गिरी पड़ी थी उनकी कोहनी कांटो से बुरी तरह चिल गयी थी, बदन में काफ़ी जगह कांटे चुभ गए थे आँखों से उनकी आंसू टपकने लगी मैंने जल्दी स उनको उठाया उनके पैर के तलवे में एक बड़ा सा काँटा पार हो गया था मैंने तुरंत उसको निकाला चाची की सुबकिया चालू होने लगी थी मैंने उनके काफ़ी कांटे निकाले पेट पर भी झार्रात लगी थी वो खड़ी थी 


मैं उनके टांगो को देखने लगा जहा जहा कांटे थे निकालने लगा कमबख्त उस छड़ी में कांटे भी बहुत थे मेरे हाथ धीरे धीरे से ऊपर आते जा रहे थे उनकी मांसल जांघो को हलके से सहला रहा था मैं काँटों को ढूंढ रहा था इसी कोशिश में मेरे हाथ उनके कुलहो पर पहूँच गए थे, अब सिचुएशन कोई भी हो हम पर किसका जोर , मैं उनकी गांड को दबाने लगा तो चाची सिसक पड़ी, वहा पर भी चार पांच कांटे थे मैंने वो भी निकाले एक को खीच रहा था तो चाची को तेज दर्द हुआ , कांटे की नोक गांड में धंसी पड़ी थी “आह, आराम से ”


काँटों के बहाने से मैंने दो तीन बार और उनकी गांड को मसला मेरा लंड तो खड़ा ही रहता था एक बार और प्यार से मैंने गांड पर हाथ फेरा और फिर बोला- हो गया , और कही है तो बताओ 


चाची ने अपने पैर को बढ़ाया पर उसमे से खून निकल रहा था उनको बहुत दर्द हो रहा था मैंने थोड़ी सी मिटटी वहा पर लगायी ताकि खून बंद हो जाये, ये देसी कीकर के कांटे भी बहुत तकलीफ पहूँचाते है , चाची वाही जमीं पर बैठ गयी मैं समझ गया की वो चल तो ना पाएंगी मैंने सोचा पहले इनको घर छोड़ के आऊंगा फिर लकड़ी ले जाऊंगा , मैंने उनको जैसे तैसे करके साइकिल पे बिठाया और घर को चल पड़ा गाँव के अड्डे पर ही चाची के पाँव में पट्टी करवाई और दवाई भी ली
चाची को घर छोड़ कर मैं वापिस आया अब लकडिया ज्यादा थी तो मुझे तीन चक्कर लगाने पड़े इन सब में थकन बहुत हो गयी मुझे पर काम तो करना ही पड़े, ना करे तो किसको कहे, घर आया तो मम्मी चाची के पास ही बैठी थी मैंने कहा अब ठीक हो तो वो बोली- हां, थोडा दर्द हो रहा है 

मैं- दवाई ले लो ठीक हो जायेगा 

चाची को दर्द में कराहते हुए देख कर मेरे गले से रोटी ना उतरी उस शाम , चाचा ने चाची को डांटा की थोडा ध्यान से काम करना चाहिए, आजकल उनके रवैये में बहुत परिवर्तन हो गया था , मुझे उनकी बात सुनकर गुस्सा आया जिसे मैंने बहुत मुस्किल से रोका , मैं और मम्मी चाची के कमरे में बैठे थे तो मम्मी बोले तेरे चाचा तो खेत में गए तू मेरा बिस्तर इधर ही कर दे मैं सो जाती हूँ तेरी चाची के पास रात को इसे मेरी जरुरत पड़ेगी 


मैं- आप तकलीफ ना करो मेरा कमरा भी तो इधर ही है मैं खाट इधर बिछा लूँगा वैसे भी मुझे कुछ नोट्स बनाने है तो सोना तो है नहीं 

मम्मी थोड़ी देर बाद नीचे चली गयी , मैं सोचने लगा की परायी चूत के चक्कर में इंसान कितना बदल जाता है थोड़े दिन पहले चाची कितनी प्राण प्यारी लगती थी चाची उनको और बिमला तो सुन्दरता में चाची के आगे कही नहीं ठहरती थी पर चूत का चक्कर ही ऐसा होता है, क्या करे दवाई के असर से चाचि की आँख लग गयी मैं उनके चेहरे को देखने लगा वैसे थी वो माल एक नंबर का मेरा लंड खड़ा होने लगा उनके बारे में सोच ते सोचते पर मैंने अपने दिल से इन बुरे ख्यालो को दूर किया 
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