Raj sharma stories चूतो का मेला
12-29-2018, 02:37 PM,
#74
RE: Raj sharma stories चूतो का मेला
पर मेरी बात सुके वो कही ना कही गंभीर हो गयी थी मैं तो अहेशा एक अनसुलझी पहेली में उलझा रहता था अपनों में मैं बेगाना रहता था , सब कुछ था मेरा पास पर फिर भी मेरे सीने में जो एक तूफ़ान धधकता रहता था , मेरी धडकनों में जो जोश था वो हर दम मुझसे कुछ ना कुछ कहता रहता था पर मैं उन इशारों को कभी समझ नहीं पाता था , मेरी धड़कने जिस से गुफ्तुफु करना चाहती थी वो इंसान मेरे पास नहीं था मैं कही टुकडो में जी रहा था वो कही जी रही थी, पता नहीं ऐसा क्यों होता था मेरे साथ जिस की भी मुझे चाह होती थी वो मिलता नहीं था , बस मैं था और मेरे दिल में सुलगते हुए मेरे अरमान थे, उन अरमानो का धुआ याद बनकर असमान में बादलो का रूप ले रहा था पर ये बादल कभी मोहब्बत की बारिश में मुझे भिगोते भी तो नहीं थे 


करीब घंटे भर का इंतज़ार करने के बाद मैं चुपके से उठा और बहार आया, चाची के कमरे का लट्टू अब भी जल रहा था मतलब वो जाग रही थी , मैं जनता था की वो मुझसे हज़ार सवाल पूछेंगी जब उन्हें पता चलेगा की एक बार फिर से रात को मैं गहर से लापता था पर मैं भी अपने आप में उलझा था पिस्ता से मिलना भी तो बहुत जरुरी था मुझे , वो बस मेरे जिस्म की आग ही नहीं बुझाती थी बल्कि मुझसे जुडी हुई थी दिल का एक हिस्सा उसके लिए रिज़र्व था घर से निकल कर मैं चला सूनी गलियों में किसी चोर की तरह अँधेरे को चीरता हुआ खेत की तरफ 

मैं अपने खेत पर गया पर कुएँ पर लगा था ताला, मतलब चाचा होगा बिमला के घर मने उस तरफ ज्यादा ध्यान दिया नहीं और अपने खेत को पार करके पिस्ता के खेत की तरफ चला , जल्दी ही वो मुझे दिख गयी पानी दे रही थी वो सलवार को घुटनों तक ऊपर किये हुए, उसकी गोरी पिंडलिया बड़ी मस्त लग रही थी , उसके मांसल जिस्म पर टाइट फिटिंग का सूट एक दम मस्त लग रहा था चुन्नी को सर पर किसी पगड़ी की तरह बाँधा हुआ था उसने , उसने मुझे अपनी तरफ आने का इशारा किया मैं दोड़ ते हुए गया और पिस्ता को अपनी बाहों में भर लिया और बिना कुछ कहे उसको किस करने लगा 

मेरे उस चुम्बन में वना का कोई नामो निशाँ नहीं था बस वो एक ऐसी भावना था जिसे या वो समझती थी या मैं समझता था , थोड़ी देर बाद मैंने उसके शरबती होंठो से खुद को अलग किया और बोला- कितना टाइम लगाया तूने, मैं तो सोचा की वाही बस गयी है तू 

वो- अब मैं तेरी तरह ठाली तो हूँ नहीं, तुझे पता है मेरी माँ कितना शक करती मुझे अकेली छोडती ही नहीं तो क्या करती मेरा जी जानता है कितनी मुस्किल से आई हूँ बस तेरे लिए 

मैं- मैं भी तो पल पल तेरे लिए तदपा हूँ यार, हर पल मैं जो जी रहा हूँ मुझे ही पता है जब तू मुझे नहीं दिखती तो कसम से बहुत अजीब सा लगता है 

पिस्ता ने मेरा हाथ थाम लिया
पिस्ता में मेरा हाथ थाम लिया अपने हाथ में आँखे आँखों से टकराई, ऐसे लगा की जैसे दिल के सितार के सारे तारो को किसी मधुर तान ने छेड़ दिया हो, एक ठंडी हवा का झोंका मेरे बदन से टकराता हुआ मुझे कुछ यु छुकर निकल गया की उसकी कंपकपी को आज भी महसूस करता हूँ मैं, वो मुझे देखे मैं उसे देखू चांदनी रात में खेत की गीली मिटटी पर हम दोनों धीरे धीरे से सुलगने लगे थे मेरी आँख से एक बूँद आंसू की निकल कर गिर पड़ी जिसे उस अँधेरे माहौल में भी पिस्ता की कजरारी आँखों ने देख लिया था 

वो- क्या बात है कुछ परेशान लगते हो 

मैं- नहीं ऐसी कोई बात नहीं

वो- अब मुझसे भी छुपाओगे तुम 

मैं- यार, कभी कभी ऐसा लगता है की जैसे थक सा गया हूँ मैं, हर पल कुछ ना होते हुए भी ऐसा लगता है की जैसे मेरा सब कुछ छीन लिया हो किसी ने, पल पल हर पल खुद को अकेलेपन की इन्तहा तक अकेला महसूस करता हूँ मैं, पता नहीं मेरे मन में ऐसी कौन सी बात है जिसके बोझ से हर पल दबा रहता हूँ मैं, कभी अकेले में गुनगुनाने का मन करता है कभी जोर जोर से दहाड़े मार के रोने का मन करता है तू ही बता करू तो क्या करू 

वो- देख, हर चीज़ को ना अपने ऊपर मत लिया कर, जो होता है होने दे तेरे कुछ चाहने ना चाहने से कोई फरक नहीं पड़ना , हर इंसान का जिंदगी को देखने का अपना नजरिया होता है कोई जहा खाए वो मरे तू मस्ती से जी जिंदगी बहुत लम्बी है अभी से थक जाओगे तो कैसे पार पड़ेगी, मेरे राजा जी 


मैं- तो क्या करू 

वो- करना है है मुझसे बाते करो, थोडा प्यार करो वो हसने लगी 

मैं- तो चल फिर कुएँ पे 

वो – ऐसे ना चलूंगी गोद में उठा के ले चल 

मैंने पिस्ता को उठा लिया और ले चला कुएँ पर बने कमरे की तरफ आज फिर से हम दोनों अपनी हसरतो को परवान चढाने वाले थे , मैंने सलवार के ऊपर से ही उसकी चूत को सहलाना शुर किया तो पिस्ता बोली- आह कस के मसल इसको बहुत दिन से प्यासी पड़ी हूँ , आज इसकी सारी खुजली मिटानी है 

पिस्ता ने अपनी कच्छी और सलवार उतार कर साइड पे पटक दी और दिवार का सहारा लेकर अपनी मोटी गांड मेरी तरफ करके खड़ी हो गयी , मैं अपने कपडे उतारते हुए पिस्ता की गांड को देखने लगा 

uffffffffffffffff कितनी प्यारी लग रही थी वो नंगा होते ही मैं उस से चिपक गया और पाने लंड को पिस्ता की गांड पर रगड़ने लगा पिस्ता ने मेरा हाथ अपनी छाती पर रख दिया और उसको दबाने लगी, आज पूरी तरह से चुदने को वो सुलग रही थी मैं उसके बोबो को दबा कर उनमे हवा भरने लगा 


पिस्ता ने मेरे लंड के अगले हिस्से को अपनी मुट्ठी में लिया और उस पर अपनी उन्लियो से छेड़खानी करने लगी, मुझे मजा आने के साथ गुदगुदी भी होने लगी, पिस्ता ने अपनी आँखे बंद कर ली और मेरी मुट्ठी मारने लगी मैं भी हौले हौले से सिसकने लगा था मैंने अपना हाथ उसकी जांघो के बीच से लिया और उसकी चूत को दबाने लगा पिस्ता हूँस्न के बोझ से दबी पड़ी थी तो चूत हद से ज्यादा गीली हो गयी थी कामुकता धीरे धीरे अपना नशा चला रही थी हम पर मैं अब उसकी गांड की दरार को सहलाते हुए उसकी गांड के छेद पर आ गया था काम रस में सनी अपनी ऊँगली को मैं उसकी गांड के छेद पर रगड़ने लगा तो पिस्ता आहे भरने लगी 


uffffffffffffffff कितनी गरम हो रही थी ये लड़की मैंने अपनी ऊँगली उसकी गांड में घुसना चालू किया तो पिस्ता अपने चुतड टाइट करने लगी पर मैंने जोर लगाते हुए थोड़ी सी ऊँगली अन्दर घुसा ही दी पिस्ता दर्द से उछल पड़ी और मेरी तरफ घूम गयी तभी मैंने उसके होंठो को चूम लिया और लग्भग आधी ऊँगली उसकी गांड में डाल दी पिस्ता दर्द से उछलने लगी मलाई दार होंठो को चूसते चूसते मैं उसकी गांड से छेड़खानी करने लगा था पिस्ता का पूरा चेहरा लाल सुर्ख हो गया था , मेरा लिंग उसकी जांघो से रगड खा रहा था मस्ती में चूर पिस्ता ने उसको अपनी चूत की घाटी पर रगड़ना शुरू कर दिया 


गरम चूत की जानी पहचानी रगड पाकर लंड का सुपाडा खुश हो गया पिस्ता तेजी से मेरे सुपाडे को चूत की तरफ धकेलने लगी उसकी हर सांस मेरे मुह में घुल रही थी एक तो आज रात उमस भरी थी ऊपर से पिस्ता की गरम जवानी ने इस कमरे में आग लगा रक्खी थी, आज फिर हमे इस आग में जलकर वासना के दरिया को पार करना था , फिर से पिस्ता के लेराते जोबन का स्वाद चखना था मुझे ,अबकी बार उसने जैसे ही मेरे लिंग को अपनी चूत पर रगडा मैंने थोडा सा जोर लगाया और मेरा लंड चूत में घुसने लगा पिस्ता की जांघे अपने आप खुलने लगी उसने अपना एक हाथ मेरे कंधे पर रख दिया 


पिस्ता के एक छेद में लंड था दुसरे में मेरी ऊँगली उसकी आँखे कामभावना से बोझिल हो चुकी थी ऊपर से वो काफ़ी दिन में चुद रही तो वैसे ही शरीर में फीलिंग कुछ ज्यादा थी मैं और वो खड़े खड़े चुदाई कर रहे थे पिस्ता की चूत के दोनों छेद खीच रहे थे उसकी गांड में खासकर दर्द हो रहा था 

“आह, निकाल लो ना ऊँगली दुखता है , दर्द हो raaahhhhhhh आआअ aaahhhhhhhhhhhhh ”
पर मैंने उसको अनसुना कर दिया पिस्ता कौन सी कम थी जोर आजमाइश करने लगी वो उसने मेरे कंधे पर जोर से काट लिया और मुझसे अलग हो गयी , 

मैं- क्या हुआ 

वो- क्या सोच रखा है तुमने 

मैं- कुछ नहीं बीच में बकवास मत कर जो कहना है बाद में आ पास आ जरा 

पिस्ता पास में पड़ी खाट पर पसर गयी और टांगो को चौड़ा कर लिया और मेरी तरफ आँख मारी , मैंने अपने चिकने लंड पर और थूक लगाया और खाट पर चढ़ गया पिस्ता की जांघो को अपनी जांघो पर चढ़ाया और अपने लंड को गीली चूत की रस से भीगी पंखुडियो पर रगड़ने लगा पिस्ता के बदन में जो ज्वाला भड़क रही थी वो उसकी चूत से गाढे रस के रूप में बह रही थी , मैंने अपने हाथो से खाट की बाई को पकड़ लिया और पिस्ता की चूत पर फिर से धक्को की बोछार करने लगा 

पिस्ता मेरे सीने को अपने हाथो से सहलाने लगी उसकी इस हरकत से मेरे शरीर में और भी उत्तेजना बढ़ने लगी मेरे लंड में और ज्यादा तनाव आने लगा , पिस्ता चुदते हुए अपने होंठो पर जीभ फेरने लगी अब मैंने उसकी फूली हुई छातियो को कस कस के दबाते हुए चुदाई की रफ़्तार तेज कर दी पिस्ता और मेरे संयुक्त रूप से लगाये गए धक्को से पुरानी खाट बुरी तरह से चरमराने लगी थी , चुदाई का आलम बहुत जबरदस्त था लंड बड़ी शान से उसकी चूत के छेद को बार बार फैलता , हुआ अन्दर बाहर हो रहा था 
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