RE: Raj sharma stories चूतो का मेला
“”हरामखोरो ,नीचो ये क्या हो रहा है “
जैसे ही ये आवाज हमारे कानो में पड़ी फट के हाथ में आ गयी, मैं मंजू को सोफे पर घोड़ी बनाये हुए था दरवाजे पर चाची श्री खड़ी थी, रंगे हाथ पकडे गया था मैं आज समझ ही गम हो गयी मैं उतरा मंजू के ऊपर से आज तो माजना ही पिट गया था बीच बाजार में अब कुछ नहो सकता था
“गन्दी, औलादों ये सब नीच हरकते, करते हुए शर्म नहीं आई , चिल्लाई वो
दरअसल वो घर पर ही थी ऊपर पर मुझसे चूक हो गयी थी मैंने समझ लिया था की वो घर पर है नहीं तो प्लान बना लिया था , अब बिमला वाली बात से चाची वैसे ही किलसी पड़ी थी , मंजू ने फ़ौरन अपनी सलवार सम्हाई और सूट को पहन ने लगी मैं भी अपने कच्छे को ढूंढ ने लगा पर वो साला पता नहीं किस साइड गिर गया था तो और फजीहत हो गयी
चाची – आज तो ऐसा हाल करुँगी की सारी जवानी निकल जाएगी मंजू बोली- मैं तो मर गयी आज
मुझे कुछ ना सूझे मंजू ने तो जैसे तैसे अपने कपडे उलझा लिए थे मैं नंगा करू तो क्या करू मैं बेड की चादर उठा ही रहा था की तभी पीठ पर एक लट्ठ आ पड़ा, भील गया मैं तो एक में ही एक पड़ा मंजू पर मंजू भागी दरवाजे की तरफ तो एक और टिका चाची चिल्लाते हुए बोली- तेरी तो खबर तेरी माँ लेगी आ रही हूँ तेरे घर मंजू बिना कुछ सुने भागी बहार को
मैं अब कहा जाऊ दे दाना दान ७-8 लट्ठ टिक गए शरीर पर चादर निकली हाथ से वो अलग आज तो लुट गए रे हम तो , मैं बचने के लिए भागने लगा वो सीढियों पर वो मेरे पीछे आई मैं सीढिय चढ़ ही रहा था की तभी मेरे पाँव पर लट्ठ पड़ा और मेरा बैलेंस बिगड़ गया
अब हमारी जो सीढिया थी ना उन पर ग्रिल न लगवाई हुई थी हालाँकि उसके लिए लोहे के खुस्से छोड़े हुए थे मैं नीचे लगा गिरने तो वो खुस्सा मेरी बगल में फास गया और काट ता हुआ नीचे तक आ गया दर्द से मैं चीखा बुरी तरह , आँखों के आगे जैसे अँधेरा सा छा गया मेरे , गिरते हुए बस कुछ याद नहीं आया फिर मुझे बस इतना जरुर महसूस हुआ की किसी चीज़ से मेरा सर टकराया हो आँखे मुंदती चली गयी दर्द के आलम में मैं डूबता चला गया क्या हुआ कुछ पता नहीं फिर
आँख खुली तो दर्द की लहर ने मेरे होश में आने पर स्वागत किया, धुंधलाते हुए मेरी आँखे खुली तो दखा की मम्मी, चाची, बिमला, पिताजी सब लोग मेरे पास ही बैठे हुए है मैंने उठने की कोशिश की तो मम्मी ने मुझे लेटे ही रहने को कहा मुझे बहुत दर्द हो रहा था
मैं- कहा हूँ
पिताजी- हस्पताल में
मैं- आह, दर्द हो रहा है
मम्मी- ठीक हो जाओगे
परिस्तिथि का भान किया तो देखा मेरे सर पर पट्टी बंधी है और साइड में भी मैं जरा सा हिल्ला तो बदन दर्द से कांप गया , अब ये क्या हुआ मैं सोचने लगा तो पूरी बात समझ में आई, तो पता चला की काफ़ी देर में होश आया था सर पर गहरी चोट लगी थी और बगल में गहरा घाव था ,
डॉक्टर ने आके कुछ सुई लगायी दवाई दी और चला गया थोड़ी देर बाद माँ- पिताजी भी बहार चले गए, बिमला भी घर जाने का कह गयी बचे मैं और चाची , मैंने देखा उनकी आँखों में आंसू थे, उन्होंने मेरे हाथ को अपने हाथ में लिया और रोने लगी , हालंकि मुझे बहुत दर्द हो रहा था पर वो दर्द जो उनकी गीली आँखों में था उसके अन्दर दर्द ज्यादा था
काफ़ी देर तक उनकी आँखों से आंसू झरते रहे,
मैं- मैं ठीक हूँ अब, थोडा सा मुस्कुरा दिया
वो- मुझे माफ़ करना बेटा, सब मेरी वजह से हुआ है
- कुछ नहीं हुआ आपकी वजह से मेरी ही गलती थी
वो- बेटे, मुझे कठोर नहीं होना चाहिए था
मैं- छोड़ो जो हुआ घर कब जाना होगा
वो- जब ठीक हो जाओगे
चाची ने मुझे जूस का गिलास दिया मैंने थोडा बहुत गटका कमजोरी की वजह से नींद आ गयी , जब मैं उठा तो शायद रात का वक़्त था , बल्ब जल रहा था मुझे सुसु आई थी चाची पास में रखे स्टूल पर ही सोयी पड़ी थी मेरी हरकत से वो जाग गयी ,
वो-क्या हुआ
मैं- सुसु आई है मम्मी को बुला दो
वो- मम्मी अभी सोयी है तुम यही कर लो
मैं- यहाँ नहीं कर पाउँगा
वो- रुको जरा,
उन्होंने बेड के नीचे से एक डिब्बा सा निकाला और बोली- अभी तुम्हारी हालात बेड से उतरने की नहीं है इस में कर लो मैं बहार फेक दूंगी
मैं- पर आपके सामने कैसे कर पाउँगा
चाची- मेरे सामने जब इतना कर चुके हो तो सुसु में क्या दिक्कत है
उन्होंने मेरे पायजामे को सरकाया और मेरे लंड को अपने हाथ में लेकर डिब्बे की तरफ करते हुए बोली- चलो जल्दी से करलो
अब अपनी भी मज़बूरी थी मूतना भी जरुरी था ऊपर से उनके नरम हाथो के सपर्श से लंड गरम होने लगा उन्होंने भी उसमे उत्तेजना महसूस की पर कुछ कहा नहीं जल्दी ही मैंने मूत लिया उन्होंने लंड को पायजामे में डाल दिया और डिब्बे को लेकर बहार चली गयी , थोड़ी देर बाद वो आई
मैं- माफ़ करना चाची, आपको मेरी वजह से तकलीफ हुई
वो- शर्मिंदा तो मैं हूँ, मेरी वजह से तुम्हारी ये हालात हुई
मैं कुछ नहीं बोला
वो- बेटे, हम सब तुम्हारी भलाई चाहते है तुम जो भी कर रहे हो उसके लिए अभी टाइम है एब बार तुम्हारी पढाई पूरी हो जाये फिर तुम्हारी शादी कर देंगे , तुम्हे ऐसे किस के साथ भी मुह मारने की जरुरत नहीं है , मैं जानती हूँ ये जो भी बात हम कर रहे है बहुत ही असामान्य है पर तुम जवानी की दहलीज पर फिसल रहे हो पहले अपनी भाभी के साथ फिर मोहल्ले की लड़की के साथ, हमे नहीं पता की हमारी परवरिश में क्या कमी रह गयी जो तुम ऐसे हो गए
मैं बस सुनता रहा , मैं जानता था की मेरी ख़ामोशी ही मेरी कमजोरी है पर ख़ामोशी जरुरी थी , वो भी जब हालत बिलकुल ठीक नहीं थी पूरा बदन दर्द से दोहरा हुआ पड़ा था दर्द निवारक दवाई होने के बावजूद भी दर्द को सहना मुश्किल हो रहा था , वो एक हफ्ता बड़ा ही खोफ्नाक सा था चाची को आत्मग्लानी सी हो रही थी तो वो थोड़ी कटी कटी सी रहती थी मेरे जो भी काम थे पानी- पेशाब की वो ही करवाती थी जैसे की वो प्रायश्चित करना चाहती हो पर मुझे चिंता उनकी ना थी ना अपनी थी घर पर चाचा रहते थे और बच्चो का बहाना करके बिमला तो उनकी पूरी मौज आई हुई थी
उनको हमसे क्या लेना देना था उनकी चुदाई तो बदस्तूर जारी थी दाना दन करके, इस बीच पिताजी जिन्हें मैं हमेशा खडूस समझता था उनका एक अलग पहलु भी जाना मैंने, एक कठोर पिता के सीने में भी मासूम दिल होता है जाना मैंने, पिताजी उस एक हफ्ते में जैसे टूट ही गए थे, उनके चेहरे पर एक मुर्झाहत सी आ गयी थी बहुत देर तक वो मेरे पास बैठ ते थे पर कुछ बोलते नहीं थे, बस मेरे बालो पर हाथ फेर देते, एक बाप की विवशता को महसूस किया मैंने ,
मम्मी तो रो कर सुबक कर फिर भी अपने दुःख को जता दिया करती थी पर पिताजी की चश्मे में छुपी आँखों में आये पानी को बस मैं महसोस कर पता था , दो करीब दस कठोर दिन हस्पताल में निकाल कर मैं घर आ गया चल फिर तो मैं लेता था पर कमजोरी थी ही, घर आने के बाद भी ज्यादातर समय बिस्तर पर ही कटता था , इधर मैं परेशान था उधर चाचा और चाची के बीच कुछ भी ठीक नहीं लग रहा था , लगभग उनमे हर रोज ही झगडा होता था किसी ना किसी बात को लेकर
इधर मैं कशमकश में था की चाची को बता दू या नहीं , हलाकि आज नहीं तो कल उन्हें पता चल ही जाना था पर उनका रिएक्शन क्या होगा वो सोच कर मैं उलझा पड़ा था कलेश तो होना तय था ही देखो कितने दिन टलता है
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