Raj sharma stories चूतो का मेला
12-29-2018, 02:38 PM,
#84
RE: Raj sharma stories चूतो का मेला
मैं नहाने के लिए बाथरूम में घुस गया पूरा दिन सफ़र किया था तो थकान से बुरा हाल था नहाके चैन मिला मुझे रात घिर आई थी खाना वाना खाके मैं और चाची छत पर बैठे थे बाते कर रहे थे 

मैं- चाची , काफ़ी दिन हो गए कल मेरे साथ चलो घर 

वो- तू समझता क्यों नहीं , अब कुछ भी पहले जैसा नहीं रहा 

मैं- सब ठीक हो जायगा, आज बुरा समय है तो अच्छा भी आएगा 

वो- मैं वहा कैसे रहूंगी, रोज मुझे तेरे चाचा की बेवफाई मिलेगी 

मैं- तो आप भी बेवफा हो जाना , आप भी अपने तरीके से उनसे बदला लेना वहा रह कर उनको जलाओ उनको दिखाओ की आप उनके बिना भी जी सकते हो आप उनके लिए दुःख की चादर क्यों ओढ़ते हो जब उनको आपकी फ़िक्र नहीं है तो आप भी मत करो , पर घर में और भी लोग है जिनको आपकी जरुरत है , एक चाचा से ही तो आपका नाता नहीं है मम्मी है , मैं हूँ मुझे कुछ नहीं पता मुझे मेरा खुशहाल घर वापिस चाहिए 

वो- मुझे सोचने दे 

मैं- सोचना घर चल के ही आपके बिना सूना सूना घर मुझे अच्छा नहीं लगता है मुझे कुछ नहीं सुनना बस आपको चलना ही होगा मेरे साथ , जो भी मसले है वो घर चलके ही सुलझाएंगे 

रात बहुत हो गयी थी पर हमारी बाते बदस्तूर जारी थी , चाची उठी और सीढियों के दरवाजे की कुण्डी लगा आई और बोली- मेरे पास ही सो जाओ तुम 

हम दोनों एक फोल्डिंग पर लेट गए और बाते करने लगे चाची ने मेरा हाथ अपने हाथ में ले लिया और बोली- तुझे क्या लगता है मुझमे ऐसी क्या कमी है जो तेरे चाचा पराई लुगाई की तरफ चले गए 

मैं- अब मैं क्या जानू, 

वो- क्या बिमला में मुझसे ज्यादा मादकता है 

- ये आप कैसी बाते करने लगे हो

वो- तू मेरा दोस्त है ना तो तू ही बता 

मैं- चाची हर मर्द को दुसरे की लुगाई अपने वाली से ज्यादा सुन्दर और माल दिखती है तो बस वो ही बात है 
वो- तूने भी किया था ना बिमला के साथ 

मैं- क्या किया था 

वो- भोला मत बन, हमारे बीच सब कुछ खुल चूका है शर्म तो कभी की खो गयी है तो बता ही दे 

मैं- हा, किया था 

वो- कैसा लगा 

मैं- अच्छा लगता है सबको 

चाची ने अपनी उंगलिया मेरी उंगलिया में फसा ली और थोडा सा मेरी तरफ सरक गयी कुछ देर रुक के बोली- तुझे कौन ज्यादा अच्छा लगता है बिमला या मैं 

मैं- ये कैसी बात हुई, आप अच्छी लगती हो 

चाची- मैं ऐसे नहीं पूछ रही , उस नजर से बता 

मैं- किस नजर से 

वो- उस भूख की नजर से , जिस से हर मर्द एक औरत को देख ता है 

मैं- चाची आपका दिमाग तो ठीक है ना मैं आपको उस नजर से कैसे देख सकता हूँ 

चाची- जब तेरा चाचा अपनी बहूँ के साथ सो सकता है तो तू भी उनका ही खून है तू मेरे साथ नहीं सो सकता क्या 

चाची ने मेरा हाथ अपनी छाती पर रख दिया और बोली- देख दबा कर इन्हें बिमला से तो बड़े है 

मैंने अपना हाथ हटा लिया और बोला- शर्मिंदा कर रही हो चाची 

चाची मेरे हाथ से अपने बोबे को मसलवाने लगी , मेरे बदन में भी सुरसुराहट होने लगी पर मैं उलझ गया था वो ये कैसा व्यवहार कर रही थी, 

चाची- देख मेरे होंठो को क्या ये कम रसीले है बिमला से 

मैं- आपका दिमाग तो ठीक है ना, क्या कर रहे हो ये 

वो अब अपनी साडी को जांघो तक उठाते हुए – देख मेरे यौवन को और बता क्या कमी है मुज्मे 

मैं- कुछ कमी नहीं है सब बस टाइम टाइम की बात है 

वो- मेरे चेहरे के करीब आते हुए, तो फिर क्यों तेरा चाचा उसके पल्लू में जाके बैठ गया , देखा था ना तूने कैसे बिमला उसकी गोदी में उछल रही थी 

मैं चुप रहा आखिर मेरे पास था भी तो नहीं कुछ कहने को बस मैं उनके दर्द को अपने दिल के किसी कोने में महसूस कर सकता था , कुछ बाते ऐसी थी की मैं चाहकर भी उनको सुलझा सकता नहीं था रात पता नहीं कितनी बीत गयी थी पर उस फोल्डिंग पर हम दोनों हालात से जूझ रहे थे, अब तक तो मैं बस बचपने में बिना फिकर के जी रहा था पर मेरी इस गलती ने पुरे घर को हिला कर रख दिया था 

मैं- चाची, मुझे माफ़ करना ये जो हुआ मेरी वजह से हुआ 

मैंने अपना सर चाची की गोद में रख दिया वो प्यार से मेरे बालो को सहलाने लगे, बड़े दिनों बाद सुकून सा मिला ऐसा लगा की जैसे बरसो धुप में झुलसने के बाद चीत पर एक तेज बारिश की बौछार आ पड़ी हो , ऐसा मुझे बस रति की बाहों में ही फील हुआ था , मेरे अकेलेपन को जैसे मंजिल मिल गयी हो आहिस्ता आहिस्ता मेरी आँखे बंद होने लगी नींद ने अपनी बाहों में थाम लिया मुझे

सुबह मेरी आँख खुली तो मैंने देखा की छत पर धुप खिली हुई है मेरा पूरा बदन पसीने से चिपचिप कर रहा है जम्हाई लेते हुए मैं उठा बिस्तर समेटा और कमरे में आया तो देखा की चाची अपने गीले बालो को झटक रही थी शायद शैम्पू किया था कमरे में एक अलग सी खुसबू फैली हुई थी, उन्होंने मुझे देखा एक गहरी मुस्कान के साथ और बोली-“उठ गए तुम,”

मैं-जी, थोडा लेट हो गया 

वो- कोई बात नहीं वैसे भी तुम जल्दी कहा उठते हो , फ्रेश हो जाओ मैं बस तैयार होक नास्ता लगाती हूँ तुम्हारे लिए 

चाची ने एक हलकी सी पारदर्शी मैक्सी पहनी हुई थी , उनका गुलाबी रूप बड़ा कयामत लग रहा था उसमे, मुझे पता नहीं चला की कब मेरा लंड तन गया , चाची के चेहरे पर पानी की बूंदे ऐसे लग रही थी की जैसे सुबह सुबह किसी ताजे खिलते गुलाब पर ओस की बूंदे बिखरी पड़ी हो , 

वो- ऐसे घूर कर क्या देख रहे हो 

मैं- आप बहुत सुन्दर हो 

वो- हां, तभी अरमान मचल रहे है उन्होंने मेरी पेंट की तरफ इशारा करते हुए कहा 

कसम से , शर्म से गड गया मैं तो 

मैं थोडा सा उनकी और बाधा और उनकी जुल्फों की खुसबू को सूंघते हुए बोला- आज पता चला की खूबसूरती असल में होती है क्या 

वो- चाची पे लाइन मार रहे हो 

मैं उनके थोडा और पास जाते हुए- नहीं बस अपनी दोस्त की थोड़ी सी तारीफ़ कर रहां था 

मैं चाची के पीछे हो गया और उनके दोनों कंधो पर हाथ रखते हुए बोला- चाची, इस दोस्त से थोड़ी गुस्ताखी कर लू क्या

चाची अपनी गांड को मेरे अगले हिस्से पर घिसते हुए- क्या गुस्ताखी करोगी 

मैंने अपने दोनों हाथ उनके पेट पर रख दिए और बोला- गुस्ताखी क्या बता के होती है , बस हो जाया करती है 

चाची की सुराहीदार गर्दन पर पड़ी पानी की बूंदों को चाटने से मैं खुद को रोक नहीं पाया मेरी लिजलिजी जीभ का अहसास पाते ही चाची सिसक उठी और मेरे से दूर हो गयी 

वो- “क्यार कर रहे हो”

मै- अपनी दोस्त से थोडा प्यार 

वो- थोडा थोडा करके बहुत कुछ करने लगे हो आजकल , चलो अब जाओ मुझे तैयार होने दो फिर साथ ही नाश्ता करते है 

कभी कभी तो मन करता था की चाची को चोद ही दू, पर ये कैसा रिश्ता पनप रहा था उनके साथ आजकल मेरा मेरा रब्ब मुझे किस रह पर चलने को कह रहा था मैं खुद नहीं जानता था बस मेरा दिल था और बेकाबू धड़कने थी जो एक इशारा कर रही थी मुझे, ये और बात थी की इशारे कभी मैं समझ पता था नहीं 


जल्दी से नहा धोकर मैं तैयार होक नीचे पहूँच गया जहा गर्म गर्म परांठो के साथ चाची मेरा इंतज़ार कर रही थी नानी कही दिख रही थी नहीं तो हम लोगो ने अपना नाश्ता किया पर मेरा ध्यान परांठो से ज्यादा चाची के बार बार लाल हो रहे चेहरे पर था , नाश्ते के बाद वो रसोई में चली गयी मैं बैठक में बैठ गया की तभी नानी भी आ गयी 

मैं- नानी, आप कहो ना चाची को की मेरे साथ वापिस घर जाये 

वो- बेटा, जवाई जी आ जाते तो बात और थी , सुनीता का भाई आजकल में आ जायेगा फिर देखो क्या होता है, हम तो चैन से रह रहे थे की औलाद खुश है अपनी अपनी ग्राहस्ती में , पर न जाने किसकी नजर लग गयी मेरी बच्ची को , तू आया तो थोड़ी से खिली है वर्ना महिना होने को आया हम तो तरस गए इसके चेहरे पर ख़ुशी देख ने को 

मैं- नानी जी, घर पर भी सबका ऐसा ही हाल है , चाची के बिना कुछ भी अच्छा लगता नहीं है मैं हाथ जोड़ता हूँ आप इनको समझाओ 

नानी कुछ नहीं बोली 

चाची का भाई आने वाला था मतलब की बात और बिगडनी थी बड़ा मुश्किल टाइम था पर जोर भी तो नहीं चलता था अपना क्या किया जाये 

नानी को आज घुटनों के डॉक्टर को दिखाना था तो वो नाना के साथ शहर चली गयी घर पर हम लोग ही थे 

मै- चाची चलो ना 

वो- अब मैं कैसे समझाऊ तुझे 

मैं- क्या वो घर एक मिनट में पराया हो गया 

वो- देख, तुझसे झूठ बोलना नहीं चाहती मैं, मैंने तलाक लेने का सोचा है 

मैं- ले लो, पर रहो तो घर पर ही आप मेरे कमरे में रह लेना आपको चाचा ऊँगली भी कर दे तो मैं गारंटी देता हूँ 

चाची- मेरे बुद्धू बेटे, तू समझता क्यों नहीं 

मैंने चाची को अपने पास बिठा लिया और बोला- अगर आप मेरे साथ नहीं चली तो आपकी कसम उस घर में पैर नहीं रखूँगा 

वो- काश, इतना प्यार तेरा चाचा भी करता मुझे 

- चाची, प्लीज् चलो, हमे आपकी जरुरत है 

वो- ये मुमकिन नहीं 

मैं- तो क्या बस उस घर से आपका कोई साथ नहीं था , मानता हूँ की आपके साथ गलत हुआ है पर इसमें हम सब का क्या दोष, आपके ना रहने से चाचा को तो छुट मिल जाएगी किसी के साथ भी रंग रेलिया मना सकता है किसी की जिंदगी पर क्या फरक पड़ेगा इधर आप अपने आप में घुट घुट कर जीओगे , एक आदमी की गलती की सजा पुरे कुनबे को देना क्या उचीत है ,

चाची खामोश रही काफ़ी देर फिर बोली- तुझे क्या लगता है की ये सब मेरे लिया आसन है 

मैं- मैं आपके दिल का हाल समझता हूँ पर हम भी तो आपके अपने ही है 

वो- मेरे पांवो में बेडिया मत डालो 

मैं- और जो आपने मेरे मन में उमंग जगा दी है 

वो- क्या कहा तूने 

मैं- कुछ नहीं 

वो- देख मैं उस घर में नहीं जा सकती इसको छोड़ के तू कुछ भी कहेगा मैं करुँगी 

मैं- मैं कौन होता हूँ कुछ कहने वाला, 

वो- नाराज हो गया क्या 

मैं- नाराज होने वाली बात तो करती हो , दोस्त बोलती हो बस मानती नहीं हो 

वो- ऐसा क्यों कहते हो भला 

मैं- सही तो कहता हूँ , अपना समझती थो इतनी मनुहार नहीं करवाती 

- अच्छा चलो कोई और बात करो 

मैं- मुझे बात ही नहीं करनी 

वो- चल ये बता, मंजू से फिर मिला के नहीं 

मैं- आपने मिलने लायक छोड़ा ही कहा 

वो- क्या हुआ 

मैं- मंजू अब बात भी नहीं करती 

वो- क्या नहीं करती 

मैं- वो उस दिन आपने हमे पकड़ जो लिया था 

वो- अच्छा, जी तो क्या आप लोगो को ऐसे काम छुप के नहीं करना चाहिए थे 

मैं- अब मुझे क्या पता था की आप हो घर पर 

वो- वैसे तुम कब बड़े हो गए हमे पता ही नहीं चला पुरे छुपे रुस्तम हो बिमला, मंजू दोनों पे हाथ साफ कर दिया 

मैं- हाथ साफ़ नहीं क्या उन दोनों की भी मर्ज़ी थी 

वो- तो मैं क्या करती ऐसे तुम दोनों को नंगे होकर करते देख कर किसी भी घर वाले को गुस्सा तो आना ही था 

- क्या करते देख कर 

वो- बेशरम, तुझे पता तो है 

मैं- नहीं, आप बताओ 

वो- जाने भी दे 

मैं- बताओ ना 

वो- चुदाई 

जैसे ही चाची ने चुदाई कहा उनके गोरे गाल शर्म से बुरी तरह लाल हो गए आँखे नीचे हो गयी चेहरे पर हया का रंग देखते ही बनता था 

मैं- आप दो चार मिनट लेट आती तो बस काम हो ही जाना था 

वो- अच्छा जी, चलो छोड़ो इन बातो को अब तुम आराम करो मुझे कुछ काम करने है मिलती हूँ थोड़ी देर बाद में टाइम पास करने को कुछ था नहीं तो मैं सो गया
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RE: Raj sharma stories चूतो का मेला - by sexstories - 12-29-2018, 02:38 PM

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