Raj sharma stories चूतो का मेला
12-29-2018, 02:39 PM,
#87
RE: Raj sharma stories चूतो का मेला
मैं- चाची, आप सही कहती हो जब से आप घर आई आपने ही मेरी देख रेख की है कब मुझे भूख लगी कब प्यास लगी हर चीज़ का आपने ध्यान रखा और मेरा रब गवाह है की मैंने भी आपको कभी माँ से नीचे का दर्जा नहीं दिया पर उसके साथ साथ आप मेरी दोस्त है और अपने दोस्त का इस मुश्किल घडी में मैं हाथ नहीं छोड़ सकता 

वो- पर बेटे, इस रिश्ते का हाल भी बिमला और तेरे चाचा जैसा ही है , दोस्ती ठीक है पर अपनी माँ को कैसे प्रेमिका बना पाओगे तुम , क्या ये पाप नहीं होगा 

मैं- आपने भी मुझे औरो की तरह समझा नहीं, क्या बस जिस्म की प्यास ही सब कुछ होती है नहीं , कुछ रिश्ते ऐसे होते है की उनको कोई नाम नहीं दे सकते पर उनकी अहमियत नाम वाले रिश्तो से बहुत ज्यादा होती है , आपका और मेरा रिश्ता भी ऐसा ही है जैसे चंदा और चकोर का , जैसे प्यासी धरती और बरसते बादल का, अब आप ही बताओ कैसे छोड़ूगा आप को , आप चाहे इसे मेरी प्यास समझो, मेरी हवस जानो या जो आप को लगे वो समझो पर सच ये है की जहा आप हो वहा मैं हूँ, अगर आप नहीं आई तो आपकी कसम खाके कहता हूँ की उस घर में मैं कभी पैर नहीं रखूँगा 

चाची- ये क्या कह दिया तूने , घर नहीं जायेगा तो कहा जायेगा 

मैं- जहा आप रहोगे वही रह लूँगा, दो रोटी ही तो चाहिए आप दे देना 

चाची- तू सच में बड़ा हो गया है रे 

मैं- तो अपना लो न मुझे और उस घर को भी 

वो- मुझे सोचने दे कुछ 

चाची और मैं इमोशनल हो गए थे उनकी आँखों में पानी बस घटा बनकर बरसने ही लगा था 

वो- पर उस घर में मेरा जी लगेगा नहीं 

मैं- भरोसा रखो इतनी खुशिया डाल दूंगा आपके आँचल में की समेट नहीं पाओगे 

वो- तू समझता क्यों नहीं मेरी मुस्किल 

मैं- आप मेरे प्रेम को क्यों नहीं समझती 

वो- प्रेम और मुझसे 

मैं- क्यों नहीं हो सकता आप से 

वो- इतनी देर से क्या समझा रही थी तुझे मैं 

मैं- मुझे कुछ नहीं पता बस इतना पता है की बस थक गया हूँ मैं परेशान हूँ बहुत अपना लो मुझे अपनी बाहों में सहारा दे दो ना 

चाची की आँखे हलकी सी डबडबा आई कुछ आंसू झर आये वो मेरे सीने से लग गयी मैंने उनको बाहो में भर लिया उन्होंने अपने चेहरे को ऊपर किया और मेरी आँखों में देखने लगी , मैंने बिना कुछ कहे हौले से अपने सूखे लबो को उनके गीले लबो पर रख दिया उनके होठ मेरे होठो से जुड़ते चले गए ये उनका और मेरा पहला चुम्बन था पर ये सब कुछ अलग सा था , इसमें कोई वासना नहीं थी, कोई हवास नहीं थी, बस कुछ था तो एक भरोसा , कुछ था तो एक आस 

धीमे धीमे मैंने उनके होंठो को अपने मुह में भर लिया था इस किस में जो त्रीवता थी ऐसी मैंने पहले कभी महसूस नहीं की थी अपनी तेज हो गयी साँसों को संभालते हुए चाची मुझसे अलग हुई, और अपनी छाती पर हाथ रख कर सांस लेने लगी मैं वाही खड़ा रहा , वो चांदनी रात गवाह थी उस रिश्ते की जो अभी अभी जुड़ा था जिसका कोई नाम नहीं था पर वजूद बहुत बड़ा था 


कुछ देर तक हम लोग ऐसे ही एक दुसरे को निहार ते रहे शर्म हया से उनके चेहरे पर एक नूर सा आ गया था मैंने फिर से उनको अपनी बाहों में भर लिया और चूमने लगा चाची मेरी बाहों में मचलने लगी ऐसे मीठे होठ मैंने कभी भी नहीं चखे थे पहले जैसे किसी ने चासनी ही मेरे मुह में घोल दी हो उनका थूक मैं गटकने लगा पर तभी उन्होंने मुझे अपने से अलग कर दिया

मैं कुछ नहीं बोला बिस्तर पर जाकर लेट गया थोड़ी देर बाद वो भी मेरे पास लेट गयी मैं उनके मुलायम पेट पर हाथ फिराने लगा अपनी ऊँगली उनकी नाभि में डालने लगा तो वो बोली- शैतानी मत करो चुप चाप सो जाओ आराम से 

मैं कुछ कहने ही वाला था की तभी लाइट चली गयी तो नाना- नानी भी ऊपर आ गए फिर कुछ बात कर नहीं पाया चाची से मैं , अब नाना नानी भी थे तो बस झक मारके सोना ही था रात थी कट ही गयी किसी तरह से सुबह हुई काफ़ी दिनों बाद मैंने चाची को फिर से पहले की तरह मुस्कुराते हुए देखा मैं बात करना चाहता था उनसे पर नाना नानी के रहते मौका कुछ मिल रहा नहीं था अब किया क्या जाये ऐसे ही उधेड़बुन में दोपहर हो गयी तो मैंने चाची से कहा की मैं नदी में नहाना चाहता हूँ तो व् बोली- चलते है फिर और हम वापिस बाग़ की तरफ हो लिए 


वक़्त बड़ी तेजी से करवट बदलता हुआ मुझे उस राह पर ले चल पड़ा था जिसकी कभी मैंने कल्पना भी नहीं की थी ऐसे लगता था की जैसे पता नहीं कितने जन्मो से मैं चाची से जुडा हुआ हूँ , अगर थोड़ी देर भी उनको ना देखता तो लगता की जैसे कुछ छुट रहा हो, बाते करते हुए खट्टी मिट्ठी हम लोग बगीचे में पहूँच गए पर कल की अपेक्षा आज यहाँ पर बस एक दो औरते ही काम कर रही थी , पूछने पर पता चला की आज आम की खेप आसपास की शेहरो में भेजी गयी है थोडा वक़्त उधर गुजार कर मैं और चाची एक लम्बा चक्कर लगा कर नदी की तरफ हो लिए 

दिल में नदी में नहाने को लेकर अजीब सा कोतुहल सा छाया हुआ था नहर में तो काफ़ी बार नहाया था पर हमारे गाँव में नदी थी नहीं तो मौका मिला नहीं था कभी ऐसा , जल्दी ही हम नदी के उस साइड पे पहूँच गए इधर एक तरफ जंगल शुरू हो रहा था तो दूसरी तरफ पहाड़ थे, फिर थोडा सा साइड में बाग़ का पिछला हिस्सा था ,इस तरफ पेड़ ज्यादा होने की वजह से धुप पूरी आ नहीं रही थी तो ठण्ड भी थी और उजाला भी कम कम ही था , पर नजारा बड़ा ही मस्त था मेरा तो मन ही मोह लिया उस नज़ारे ने शांत पानी में सूरज की छाया क्या खूब फब रही थी 


चाची एक पेड़ की छाया में बैठ गयी और बोली- जाओ नहा लो पर थोडा ध्यान रखना नदी की गहराई कुछ जगह पर उम्मीद से ज्यादा भी हो सकती है 

मैं- क्या इस नदी में मगरमच्छ या और जानवर भी है 

वो- ना कभी सुना तो नहीं , पर मछलिया तो होंगी 

मैं-चलो कोई नहीं 

मैंने जल्दी से अपने कपडे उतारे और छपाक से पानी में कूद गया , ठन्डे पानी में जो गोता खाया मजा ही आ गया काफ़ी एर तक मैं नहाता ही रहा फिर मेरी नजर चाची पर गयी तो मैंने इशारे से उनको भी पानी के अन्दर आने को बोला पर उन्होंने हाथ हिला कर मना कर दिया , तो मैं पानी से निकला सफ़ेद रंग के कच्छे में मेरा कला लंड बड़ा खतरनाक दिख रहा था और पता नहीं क्यों थोडा सा फूल भी गया था मैं चाची के पास गया और बोला 

मैं- चाची, आप भी आजाओ ना मजा आएगा 

वो- ना रे, मेरा मन नहीं है और वैसे भी इधर खुले में मैं कैसे नहा सकती हूँ 

मैं- खुला कहा है चाची, वैसे भी अभी इधर सुनसान में कौन आएगा भरी दोपहर में 

वो- तू समझा कर मैं ऐसे नहीं नहा सकती 

- ठीक है अगर आप नहीं आ रही तो मैं भी नहीं जा रहा पानी में मैं मुह फुला कर बैठ गया 

चाची- आजकल बहुत जिद्दी हो गया है तु, लगता है तेरे कान खीचने पड़ेंगे 

मैं- कान खीच लेना पर चलो न मेरे साथ नदी में 

चाची- अच्छा, बाबा ठीक है मैं भी आती हूँ पर मैं तो दुसरे कपडे लाई ही नहीं तो नहाके क्या पहनूंगी 
मैं-यही कपडे पहन लेना 

वो- पर ये तो गीले हो जायेंगे 

मैं- तो बिना कपड़ो के नहाने आ जाओ इधर कौन है वैसे भी मेरे सिवा 

वो- बड़ा बदमाश हो गया है तू आजकल शर्म नहीं आयेगी तुझे अपनी चाची को बिना कपड़ो के देखते हुए 
मैं- चाची को देखूंगा तो शर्म आयेगी पर दोस्त को तो देख सकता हूँ ना 

वो- तेरी दोस्ती एक दिन मेरी जान लेके छोड़ेगी 

उनके पास आते हुए- आपकी जान में ही तो मेरी जान है बस अब बाते न करो जल्दी से चलो पानी में 
वो- तू चल मैं थोड़ी देर में आती हूँ 

चाची ने पास में रखा तौलिया उठाया और उसी पेड़ के पीछे चली गयी 

मैं वापिस पानी में आ गया , थोड़ी देर बाद जब चाची शर्माती हुई सी पेड़ के पीछे से निकली तो क्या बताऊ पानी के अंदर मेरा लंड कब झटके खाने लगा पता ही नहीं चला मेरी नजरे बस उन पर ही जम गयी चाची ने अपने बदन पर वो छोटा सा तौलिया ही लपेटा हुआ था जो बस नाममात्र को ही उनके यौवन को छुपा पा रहा था चाची ने उसे अपने उभारो से लेकर कुलहो तक किसी तरह से लपेट रखा था , बाकि तो सब कुछ खुल्ला पड़ा था उनकी जांघे पूरी की पूरी धुप में चमक रही थी , चाची शर्मो हया से लाल हुई धीरे धीरे अपने कदमो को मेरी और बढ़ा रही थी उनकी हिलती चूचिया जैसे मुझे निमंत्रण दे रही थी की आज इसी नदी किनारे जी भर कर मसल डालू उनको 


खरबूजे सी बड़ी बड़ी चूचिया जो उस तौलिये की कैद को तोड़ने को बेसब्र हो रही थी, मेरा लंड पानी में आग लगाने को मचलने लगा बुरी तरह से चाची आकर किनारे पर खड़ी हो गयी और मेरी और देखने लगी , मैंने उन्हें अन्दर आने का इशारा किया उन्होंने अपना पाँव आगे को बढ़ाया पानी की मस्तानी लहरों ने जैसे ही उनके पांवो को चूमा चाची उस ठन्डे चुम्बन से हलकी सी कांप गयी , अपनी पायल को खनकाती हुई वो पानी में उतरने लगी वो मेरी और आने लगी 

जल्दी ही हम दोनों एक दुसरे के सामने कंधे तक पानी में डूबे हुए खड़े थे
नदी का पानी बहुत शांत था ऊपर से पर आग लगी हुई थी ये बस मैं ही जानता था , मेरा दिल बड़ी जोरो से धडकने लगा था मैं अपनी अंजुली में पानी लिया और चाची के चेहरे पर डालने लगा वो बोली- “क्या करते हो ”

मैं- चाची अब आपके साथ ही अठखेलिया करूँगा ना 

वो भी मेरी तरफ पानी बिखेरने लगी कुछ देर तक ऐसे ही चलता रहा फिर मैं साबुन ले आया और पास की चट्टान पर बैठ के साबुन लगाने लगा मैंने गौर किया की चाची की निगाहें बार बार मेरे लंड पर ही जा रही थी चूँकि मैंने सफ़ेद कच्छा पहना हुआ था तो गीला होने से अन्दर का सामन पूरी तरह से दिख रहा था रगड़ रगड कर साबुन लगाने के बाद मैंने कहा चाची आप भी साबुन लगा लो तो वो भी चट्टान पर आ गयी मैं पानी में डुबकी लगाने लगा 

चाची ने जो तौलिया लपेटा हुआ था वो पूरी तरह से भीगा हुआ उनसे लिपटा पड़ा था चाची के चुचक साफ़ साफ़ नुमाया हो रहे थे, मैंने पानी में ही अपने लंड को कच्छे से बाहर निकाल लिया और धीरे धीरे से अपना हाथ उस पर फिराने लगा , चाची चट्टान पर अपनी एडिया घिसने लगी तो उनके पैर थोड़े से खुल गए और उनकी हलके हलके बालो से भरी गहरे गुलाबी रंग की योनी मुझे दिखने लगी, मेरा हाल बुरा होने लगा, गला सूखने लगा मेरी मुट्ठी में कैद मेरा लंड और गरम होकर खूंखार तरीके से लहराने लगा मेरा दिल तो कर रहा था की चाची की चूत में घुसा ही दू इसको 


मेरी निगाह जैसे उनकी योनी पर जब सी गयी थी अब चाची ने अपने हाथो पर साबुन लगाना शुरू किया फिर अपने पेट पर उनके मखमली पेट पर नरम साबुन फिसल रहा था अब उन्होंने अपने घुटनों को थोडा सा मोड़ा और साबुन लगाने लगी मेरे लिए तो और मौज हो गयी अब मैं उनकी योनी को और अच्छे से निहार सकता था ,कभी कभी आँखों को भी सुख देना चाहिए ना, फिर चाची ने अपनी बगलों पर साबुन लगाना शुरू किया उनकी बगलों में हलके हलके से बाल थे मैं वो देख कर रोमांचीत होने लगा मेरे मन का प्रत्येक तार झन झन करने लगा था 


अब चाची ने अपने गीले बालो को साबुन लगाना शुरू किया मेरा हाथ पानी की अन्दर लंड पर तेजी से चल रहा था की तभी चाची भी पानी में उतर गयी और गोता लगाने लगी , इस बार जैसे ही चाची ने डुबकी लगाई तौलिया खुल गया और इस से पहले की वो संभलती वो बहाव में बह गया मैंने मन ही मन ऊपर वाले का शुक्रिया अदा किया 

चाची- हाय रे, अब मैं पानी से बहार कैसे निकलूंगी 

मैं- चाची, टेंशन मत लो वैसे भी इधर अपन दोनों तो है ही इसी बहाने से मैं आपके दीदार कर लूँगा 

चाची- तुझे तो बस बहाना चाहिए, आखिर तुझे मुझमे क्या दीखता है ऐसा 

मैं- कभी मेरी नजर से खुद को देखो जान जाओगी 

वो मेरे पास आई और बोली- ऐसी किस नजर से देखता है मुझे तू 

मैं-बस नजर है अपनी अपनी 

वो- चल बहुत देर हो गयी है फटाफट से नाहाले फिर घर भी तो चलना है 

मैं- चाची अभी कैसे नहा लू , अभी तो आपने ठीक से साबुन भी नहीं लगाई है 

वो- लगा तो ली , 

मैं- कहो तो मैं लगा दू आपको साबुन 

वो- तू क्या क्या सोचता रहता है , आजकल तेरी डिमांड कुछ ज्यादा ही बढ़ने लगी है 

पर मैंने चाची की बात को अनसुना कर दिया और उनको घुमा दिया अब उनकी पीठ मेरी तरफ थी मैंने अपने हाथ में साबुन लिया और पानी के अन्दर से ही उसको चाची के पेट पर रगड़ने लगा उत्तेजना से मेरे हाथ बुरी तरह से कांप रहे थे जब मैंने अपनी ऊँगली उनकी नाभि में घुसाईं तो चाची सिसक सी उठी और थोडा सा पीछे को हुई और तभी मेरा तन तनया हुआ लंड उनके मुलायम कुलहो से जा टकराया चाची जल्दी से आगे हुई तो मैंने उनकी कमर को पकड़ा और वापिस से उनको खुद से सटा दिया

चाची- ये मेरे पीछे क्या चुभ रहा है 

मैं- पता नहीं आप ही देख लो ना 

मेरा लंड उनकी गांड की दरार पर लगातार रगड़ खा रहा था पर चाची सबकुछ जानते हुए भी अंजान बन रही थी मैंने अब अपने हाथ को ऊपर की तरफ किया और चाची के उभारो पर रख दिया और हल्का सा दबा दिया , चाची ने एक मीठी सी आह भरी और अपनी गर्दन मेरी तरफ घुमाते हुए बोली-“आह, बहुत गुसाखिया करने लगे हो तुम आजकल, ये शरारते ठीक नहीं है तुम्हारी ”

मैं उनके बोबो को मसलते हुए-ओफ्फ, अब क्या अपनी दोस्त पर इतना हक़ भी नहीं है मेरा 

चाची अपने मोटे मोटे चुतड को मेरे लंड पर घिसते हुए बोली- ये दोस्ती महंगी पड़ने वाली है मुझे 

मैं- shhhhhhhhhhhhhhhhhhhhs चाची , कुछ मत बोलो बस मुझे महसूस करने दो 

नदी के बहते पानी में हमारे दो जवान गरम जिस्म अपनी आग में झुलस रहे थे दिल रह रह कर मचल रहा था मैं हौले हौले से चाची की दोनों छातियो को दबा रहा था दोनों छाती पूरी तरफ से फूल कर गुब्बारा हो गई थी मैं काफ़ी देर से अपने लंड को उनकी गांड पर घिस रहा था तो चाची ने अपनी टाँगे थोड़ी सी खोली और मेरे लंड को अपनी जांघो के बीच में दबा लिया उनकी गरम जांघो की गरमी से ही मैं तो होश भूलने लगा , 

मैं- कैसा लग रहा है 

वो- उम्फ्ह, ठीक लग रहा है 

मैंने अब थोडा सा और आगे को बढ़ने को सोचा और चाची की चूत पर हाथ रख दिया और चूत को सहलाने लगा तो चाची ने मेरा हाथ पकड़ लिया और बोली- कुछ तो बाकी रहने दे, अभी कुछ गैरत बाकी है मुझमे 

मैं- चाची, करने दो न मुझे प्यार, मैंने वादा जो किया है आपको हर ख़ुशी देने का 

चाची- पर मुझमे अभी भी कुछ संकोच है , मुझे थोडा समय चाहिए सबकुछ इतना जल्दी हो रहा है की मुझे लगता है बस यही पर रुक जाना चाहिए 

मैं अपने दुसरे हाथ से उनकी कोमल चूची को मसलते हुए- ठीक है चाची पर मुझे एक किस करना है है 

वो- ठीक है 

वो मेरी तरफ घूमी और अपने चेहरे को मेरे मुह पर झुकाने लगी तो मैंने उनको रोक दिया और बोला- यहाँ नहीं 

तो वो बोली- फिर कहा 

मैं- नीचे वाली जगह पर 

मेरी ये बात सुनते ही चाची बुरी तरह से शर्मा गयी, उनका पूरा मुह लाल हो गया पानी में होने के बावजूद भी उनके माथे से पसीने की बूंदे चूने लगी , 

वो- ये तू क्या बोल रहा है 

मैं उनकी आँखों में आँखे डालता हुआ- चाची, मेरा बहुत मन है उसको देखने का प्लीज बस एक चुम्बन करने दो वहा पर , 

वो कुछ नहीं बोली चुपचाप खड़ी रही तो मैंने उनको खीचा और चट्टान की तरफ ले आया इधर पानी कम था थो चाची कमर तक नंगी दिख रही थी मैंने देखा की मेरे हाथो की रगड़ से उनके बोबो पर लाल निशाँ हो गए थे 

चाची- ये तेरी उलजलूल हरकते 

मैंने अपनी ऊँगली उनके होंठो पर रख दी और उनको पानी से बाहर निकाल दिया वो अब पूर्ण रूप से नंगी मेरी आँखों के सामने खड़ी थी उन्होंने एक हाथ अपनी योनी पर रख लिया और छुपाने की कोशिश करने लगा इधर मैं भी पानी से बाहर निकल आया चाची की नजर मेरे खड़े लंड पर पड़ी जो चूत के लिए बड़ा लालायित हो रहा था 

मैं- ऐसे क्या देख रही हो 

ये सुनकर चाची झेप गयी 
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RE: Raj sharma stories चूतो का मेला - by sexstories - 12-29-2018, 02:39 PM

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