Raj sharma stories चूतो का मेला
12-29-2018, 02:39 PM,
#88
RE: Raj sharma stories चूतो का मेला
मैंने उनको चट्टान पर बिठा दिया और उनकी जांघो को चौड़ा कर दिया कामरस में डूबा हुआ उनका योनी प्रदेश मेरी आँखों के सामने खुल्ला पड़ा था मैंने अपने होठो पर जीभ फेरी और अपने सर को चाची की जांघो के मध्य घुसा दिया मेरी गरम साँसों को अपनी योनी पर महसूस करते ही चाची के बदन में हलचल मचने लगी, uffffffffffffffff क्या खुशबु आ रही थी उनकी योनी में से वो जो हलकी सी गुलाबी रंगत थी ना कसम से मन मोह गयी थी मेरा मैं अपनी नाक चूत की दरार पर रगड़ने लगा तो चाची के चुतड हिलने लगे 
मैंने उनकी दोनों जांघो को अपने हाथो से थामा और अब अपनी जीभ को बह़ार निकाल कर चाची की

बस मैं चाची की योनी को छूने ही वाला था की तभी ........

तभी मेरे कानो में गायो की आवाज आई, शायद कोई चरवाहा पशुओ को पानी पिलाने नदी की तरफ आ रहा था चाची भी भांप गयी थी वो नंगी ही उस पेड़ की तारफ भागी जहा उनके कपडे रखे थे मैं भी दोड़ लिया , 

चाची उस पेड़ के पीछे जल्दी से सलवार पहनते हुए बोली-“ देखा मैंने पहले ही कहा था की कोई ना कोई आ निकलेगा पर तुम तो सुनते ही कहा हो मेरी ”

जल्दबाजी में चाची अपनी ब्रा और कच्छी पहननी भूल गयी थी तो वो मैंने उठा कर अपनी जेब में रख ली अब गीले बदन पर कपडे और अन्दर कुछ नहीं पहना तो चाची और भी मस्त लगने लगी मैंने उनकी गांड को मसल दिया तो वो मुझे घूरने लगी फिर हमने एक चक्कर लगाया और बाग़ में घुस गए 

चाची-आज तो बच गयी वर्ना नंगी हालात में कोई न कोई देख लेता 

मैं- आप खामखा फिकर कर रहे हो कुछ नहीं होता 

वो- सबको तुम्हारी तरह समझा है क्या मत भूलो मेरा गाँव है 

मैं- मुझे तो इतना याद है की आप मेरी हो इसके सिवा कुछ और याद करने की मुझे जरुरत नहीं 
बाग़ का ये हिस्सा थोडा सा अजीब सा था इधर आम का एक भी पेड़ नहीं था बल्कि सफेदे के, नीम के पेड़ लगे हुए थे शायद इस हिस्से को लकडियो के लिए छोड़ा गया होगा, मैं और चाची वही थोड़ी देर के लिए बैठ गए 

मैं- चाची , जो काम नदी में ना हुआ इधर कर लू क्या 

वो- पागल हुआ है क्या 

मैं- बस एक किस की ही तो बात है 

वो- समझा कर 

मैं- बस एक किस 

वो- चल होंठो पर कर ले 

मैं- ना नीचे ही करूँगा 

वो- तू जान लेकर रहेगा मेरी 

मैं- चाची देखो इधर कितने घने पेड़ है सुनसान पड़ा है ऐसे लगता है जैसे मुद्दतो से कोई नहीं आया इधर मान भी जाओ ना 

चाची- कहा ना नहीं देख वैसे भी देर बहुत हो गयी है मेरे भैया भी आज आनेवाले है तो अभी घर चलते है 
अब मैं क्या कर सकता था तो मन मार कर घर आ आना पड़ा , फिर दोपहर का खाना खाकर मैं सो गया तो फिर शाम को ही उठा , मैंने देखा की मामाजी आ गए थे घर में थोडा टेंशन का माहौल सा था और होना भी चाहिए था एक भाई को फिकर जो थी अपनी बहन की , मैं बस उन लोगो की बाते सुनता रहा अपना मुह चुप रखना ही उचीत समझा मैंने मामाजी ने फ़ोन पर एक लम्बी बात की पिताजी के साथ मैंने अपने कान खड़े कर रखे थे मुझे इतना अंदाजा तो हो गया था की कल मामाजी और चाची गाँव चलेगे , 


रात के खाने के बाद मामाजी ने भी अपना बिस्तर हमारे साथ छत पर ही लगा लिया मैंने सोचा था की रात को क्या पता चाची को पेलने का मौका मिलेगा पर मामाजी ने सब गुड-गोबर कर दिया था , अब हर चीज़ पर अपना बस भी तो कहा चलता था मैंने चाची को कहा की मामा को बोल दो नीचे सो जाये पर वो बोली की मैं कैसे कह सकती हूँ तो बस पूरी रात मेरा दिमाग ख़राब सा ही रहा सुबह हुई चाची ने मुझे चाय देते हुए बता दिया था की आज हम लोग गाँव चलेंगे मेरे मन में ख़ुशी थी की चाची वापिस घर चल रही है पर दुःख भी था की कही वहा जाकर बात बिगड़ न जाये मामाजी और नाना जी भी चल रहे थे साथ जो , 



तो करीब दस बजे हम सब लोग मामा जी की कार में हमारे गाँव के लिए निकल पड़े मामाजी और नाना आगे बैठे थे मैं और चाची पीछे, मैं नजरे बचा कर उनसे छेड़खानी कर रहा था वो अपनी आँखे तरेर कर मुझे मना कर रही थी, ऐसे ही हम शाम तक घर पहूँच गए , मम्मी तो चाची को देख कर ही खुश हो गयी दौड़ कर गले मिली उनसे पिताजी उस टाइम घर पर ही थे, मामाजी भी शांत स्वाभाव से ही बात चीत कर रहे थे मम्मी चाची को अन्दर ले गयी बाकि हम सब लोग बैठक में बैठ गए , पिताजी ने चाचा को भी बुलवा लिया 


अब तक तो बात घर में ही थी अगर बाहर फैलती तो परिवार की समाज में नाक काटनी तय थी, दूसरा नाना जी चाहते थे की जो हुआ सो हुआ पर अगर जवाई जी माफ़ी मांगे और भविष्य में कोई गलती ना करे तो बात बन सकती थी पर चाचा पर तो पराई नार का जूनून चढ़ा हुआ था ,गरमा गर्मी होने लगी , तो टेंशन के मारे मेरी धड़कने बढ़ने लगी, अब क्या किया जाये चाचा ने तो साफ़ कह दिया था की सुनीता रहे तो रहे और ना रहे तो मत रहे 


पर तभी मम्मी ने स्टैंड लिया वो बोली- सुनीता मेरी बेटी की तरह है वो इस घर में ही रहेगी देवर जी का रास्ता अलग पर सुनीता हमारे साथ रहेगी , इस घर में उसका भी उतना ही हिस्सा है जितना की मेरा है 
तो पिताजी ने कहा की कुछ दिन सुनीता को यही रहने दो , फिर उसकी जो मर्ज़ी होगी, जो उसका फैसला होगा हमे मान्य होगा मामाजी ने भी कहा ठीक है जो सुनीता की मर्ज़ी वो ही हमारी मर्ज़ी बिमला के ससुर भी आ गए थे बेचारे बहुत ही परेशान थे, शर्मिंदा थे अब नजरे मिलाये भी तो कैसे खैर रात हुई खाना वना खाने के बाद पिताजी मामा और नाना के साथ गहन चर्चा में डूबे थे मम्मी रसोई ने व्यस्त थी मैं अपने कमरे में आया तो देखा की चाची वही पर बैठी थी 

चाची- आज से मैं इधर ही रहूंगी 

मैं- जैसी आपकी मर्ज़ी, पूरा घर ही आपका है जहा जी करे वहा रहो 

चाची- क्या बाते हो रही है नीचे 

मैं- सबको आपके फैसले का इंतज़ार है 

वो- फैसला तो हो गया हैं ना, जब उन्होंने ठुकरा दिया तो अब क्या 

मैं- ऐसी तैसी करवाए वो , क्या जिंदगी उसके पीछे ही चलेगी, अपने बारे में सोचो घर में और भी लोग है उनके बारे में सोचो 

वो- तू मेरी बात को समझ 

मैं- चाची, अगर आप इस घर को छोड़ के गए तो मैं भी सदा के लिए यहाँ से दूर चला जाऊंगा आपको रुकना ही होगा मेरी खातिर , आपको मेरी कसम है 

चाची की आँखों में कुछ आंसू थे उन्होंने मुझे अपने सीने से लगा लिया और बोली- ठीक है बस तेरे लिए मैं यही रहूंगी वो रात बस ख्यालो में ही कट गयी अगले दिन पिताजी ने चाचा को स्पस्ट रूप से समझा दिया की चाची को घर में कोई परीशानी नहीं होनी चाहिए, अब चाचा चाहे लाख नालायक था पर भाई के आगे जुबान नहीं खुलती थी उसकी , मामा और नाना अपने घर चले गए मुझे कही ना कही ऐसा लगने लगा था की जैसे पिताजी अन्दर अन्दर टूट से रहे हो मैंने उनसे बात करने का फैसला किया 

मैं पिताजी के कमरे में गया तो देखा वो कोई किताब पढ़ रहे थे उन्होंने मुझे देखा और बैठने को कहा 

पिताजी- कोई काम था , पैसे वैसे चाहिए 

मैं- आपसे बात करने का मन हो रहा था 

वो- हां, बताओ क्या बात है 

मैं- मुझे लगा की आप कुछ परेशान से दीखते है 

वो- अरे, नहीं वो ऑफिस के काम का बोझ है तो थोड़ी थकान हो जाती है बस तू ये छोड़ और बता पढाई कैसी चल रही है 

मैं-पिताजी आपका ही बेटा हूँ सब समझता हूँ मैं, घर के हालात की वजह से परेशान है ना आप 

पिताजी- तू क्यों फिकर करता है तेरा काम है पढना उसी पे ध्यान दे

मैं- पहले मैं हमेशा सोचता था की जो पापा लोग होते है ना वो बहुत खडूस टाइप के होते है जो बस औलाद को हर समय परेशान करते है पर पिताजी, आज मैं जान गया हूँ की जो बाप होता है न , वो अपने कंधो पर कितना बोझ लाद कर चलता है , पिताजी आप किसी से कुछ कहते नहीं पर जो कसक है उसे भली भांति महसूस कर गया हूँ मैं हम सब को खुश रखने के लिए आप कितने जतन करते हो, 

पिताजी- आज तुझे क्या हुआ है कैसी बाते कर रहा है 

मैं- बस एक पिता को समझने की कोशिश कर रहा हूँ 

पिताजी- इस बात को तू नहीं समझेगा अभी , तेरे खेलने के दिन है बस वही कर चल अब जा और तेरी मम्मी को एक चाय के लिए बोल देना 

मैं कमरे से निकला पर मैंने कनखियों से पिताजी को अपनी आँखों को पोंछते हुए देख लिया था
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RE: Raj sharma stories चूतो का मेला - by sexstories - 12-29-2018, 02:39 PM

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