RE: Raj sharma stories चूतो का मेला
चाय का बोलके मैं घर से बाहर निकला तो गली में मुझे मंजू मिल गयी
मैं – मंजू आज इधर कैसे
वो- बस ऐसे ही
मैं- कितने दिन हुए मंजू मेरा काम कब करेगी
वो- भाड़ में जाए तेरा काम, उस दिन तो मरवा ही दिया था तूने शुकर है तेरी चाची ने किसी को कहा नहीं वर्ना मैं तो मर ही गयी थी
मैं- मंजू ,अब हर बार थोड़े ना पकडे जायेंगे फिर तेरे सिवा मेरा कौन सहारा है दे देना एक बार
मंजू- देख अभी तो मुश्किल है
मैं- तेरे लिए कुछ मुश्किल नहीं और फिर थोड़ी देर तो लगनी है
मंजू- पर जगह भी तो चाहिए ना , अब ऐसे रोड पर तो लेट नहीं सकती ना
मैं- अब जगह का कहा से जुगाड़ करू मैं
वो- तभी तो बोल रही हूँ मुश्किल है
मैं- तेरे घर
वो- मेरी माँ है
मैं- यार मंजू, तू कर ना कुछ जुगाड़ तेरे बिना देख कितना बुरा हाल हो रहा है मेरा
मंजू- तो मैं कहा मना कर रही हूँ तुझे देने को पर तू मेरी भी मुश्किल समझ
मैं- एक काम हो सकता है
वो- क्या
मैं- देख वो जो सामने छप्पर है न उधर कोई आता जाता नहीं
वो- ना मैं रिस्क न लुंगी
मैं- मान जा ना
वो- ना उस दिन ही चाची ने पकड़ लिया था मेरी तो जान अटक गयी थी
मैं- अब हर बार थोड़ी न पकडे जायेंगे वैसे भी कोई नहीं आने वाला मैं जाता हूँ उधर तू मोका देख के आ जइयो
मंजू- इस से तो अच्छा यही पर ले ले मेरी
मैं हँसा और छप्पर की तरफ सरक लिया
छप्पर तो क्या था पहले पुराने ज़माने का कच्चा मकान था अब वो लोग और कही रहने लगे थे तो ये बेचारा समय की मार झेल रहा था , अन्दर जाके मैं एक अँधेरे कोने में खड़ा हो गया थोड़ी देर बाद मंजू भी आ गयी मैंने बिना देर किये मंजू को अपनी बाहों में भर लिया
मंजू-देख मरवा मत दियो और जल्दी से कर ले
मैं- बस तू साथ दे अभी काम हो जायेगा
मैं तो काफ़ी दिन से चुदाई के लिए मरे जा रहा था मंजू की गोल मटोल गांड को दबाते हुए मैं उसके होठ चूसने लगा जल्दी ही उसकी सलवार उसके पांवो में पड़ी थी
मंजू- नंगी ना होउंगी
मैं- मत हो बस सलवार उतार
मंजू – तू तो बाहर निकाल
मैंने तुरंत अपने लंड को बाहर निकाल लिया मंजू उसको अपने हाथ से हिलाने लगी मैं उसके होठो को पीने लगा मंजू भी चुदासी लड़की थी , तो जल्दी ही गरम होने लगी उसने अपनी एक टांग को उठाया और मेरे लंड को अपनी चूत के छेद पर रगड़ने लगी , अब इतने दिनों बाद लंड ने चूत की महक ली थी तो वो फुफकारने लगा मैंने अपने दोनों हाथो से मंजू के चुत्तड को थामा हुआ था मंजू मेरे होठो को ऐसे चूस रही थी जैसे आज बस लास्ट टाइम है उसका नीचे लगातार रगड़ने से मेरा लंड उसकी चूत के पानी से गीला हो चूका था हम दोनों को अब एक चुदाई की सख्त चुदाई की जरुरत थी
मैंने अब देर करना उचीत नहीं समझा और अपना लंड के सुपाडे पर काफी थूक मला और खड़े खड़े ही मंजू की चूत में झटका मार दिया मंजू ने अपनी आँखों को बंद कर लिया और अपने बदन को मेरी हवाले कर दिया , जैसे जैसे उसकी चूत में लंड सरकता जा रहा था मंजू के चेहरे पर करार आता जा रहा था , मंजू ने अपनी कुर्ती को ऊपर करके अपने बोबो को बाहर निकाल दिया था , उसके ३२ साइज़ के बोबो को देख कर मेरा मन ललचाने लगा तो मैंने अपने मुह को उसकी छातियो पर झुका दिया और बोबो को चूसते हुए उसको चोदने लगा
मंजू के बदन में गर्मी एक दम से बढ़ गयी मेरी बाहों में झूलते हुए चुदाई का पूरा मजा लेने लगी वो
आः अआह्ह थोडा जोर से करो वो बोली
मैंने मंजू की चूत से लंड को निकाल लिया और उसको घुटनों पे हाथ रखवा के झुका दिया , मुझे उसकी गोल गांड बहुत पसंद थी , उसकी गांड देखते ही मैं मचल जाता था मैंने उसके कुलहो को फैलाया और अपना मुह उसकी जांघो में दे दिया , मंजू की छोटी सी चूत से बहते उस खट्टे, खारी पानी को जैसे ही मैंने चखा मजा ही आ गया मंजू के पैर कांपने लगे, एक तो गर्मी बहुत थी वहा पर पसीना पड़ रहा था तो मिलाजुला स्वाद मेरे मुह में घुलने लगा
मंजू – “ओफ्फ्फ्फ़ , इतना टाइम नहीं नहीं मेरे पास अभी तो जल्दी से कर ले टाइम निकाल के जी भर के दूंगी तुझे ”
मैं- ओह जानेमन, टाइम गया तेल लेने, इतनी करारी चूत को कैसे चखे बिना छोड़ दू
वो- मान भी जा ना
मैं- अब दे रही है तो ख़ुशी से दे ना, या फिर रहने दे ऐसे जल्दबाजी में मुझसे ना ली जाएगी
मंजू- इमोशनल मत कर कमीने अच्छा पर ज्यादा देर मत चुसियो , अब मुझसे रहा नहीं जा रहा है
मैं मुस्कुराया और मंजू की कुलहो को फैला कर उसकी चूत को चाटने लगा मंजू ने खुद को और नीचे को झुका लिया जिस से उसके चुतड ऊपर को उठ गए और मुझे आसानी होने लगी मंजू अपने दोनों हाथ घुटनों पर रखे अपनी गांड को हिला हिला कर मुझे चूत का स्वाद चखा रही थी , उसकी मखमली चूत को मैं अपने दांतों से काट ता तो वो वो धीमी धीमी आवाज में सी सी कर रही थी पर वक़्त का भान मुझे भी था और उसे भी थोड़ी देर बाद मैं अपना मुह उसकी योनी पर से हटा लिया
मैंने अब मंजू को पास की दिवार से सटा दिया और खड़े खड़े ही उसको चोदने लगा एक बार जो लंड चूत में गया मंजू अपना आपा खोने लगी पसीने में चूर हमारे चरीर चुदाई की ताल पर थिरकने लगे थे मैं उसके गालो को चूमने लगा पर छप्पर की कच्ची दिवार उसकी गांड पर रगड़ हो रही थी तो मंजू उधर से हट गयी
मैं- क्या हुआ
वो- चुतड लाल हो गये है
मैं- तो कैसे चुदेगी
- तू घास पे लेट जा मैं ऊपर चढू गी ,
मैं- तू लेट जा न
वो- ना घास चुभेगी
मैं- कोई ना
तो मैं लेट गया और मंजुबाला अब चढ़ गयी मेरे ऊपर घच से मेरे लंड पर बैठ कर उसको गटक गयी वो मैंने उसके चूतडो को थाम लिया मंजू जोर जोर से सांस लेते हुए मेरे लंड पर कूदने लगी, उसने अपने बदन को मुझ पर झुका दिया तो मैंने उसके बोबे को मुह में ले लिया अब लड़की की चूत में लंड हो और बोबा मुह में तो फिर जो गर्मी चढ़ती है उसको की सब कुछ भूल जाती है वो
मंजू अब तेजी से ऊपर नीचे हो रही थी , रही सही कसर मैं नीचे से धक्के लगा कर पूरी कर रहा था चुदाई जोरो पर चल रही थी मजा ही मजा आ रहा था पर तभी मंजू ने एक लम्बी सांस ली और धम्म से मेरे ऊपर ढेर हो गयी , उसका तो काम निपट गया था मैंने फ़ौरन उसके कुलहो को थामा और तेजी से नीचे से धक्के पे धक्के लगाना शुरू कर दिया मंजू की आँखे बंद थी शरीर निढाल पड़ा था पर चूत अभी अभी फड़क रही थी
आह्ह्ह्हह्ह्ह्हह्ह कितना चोदेगा, अब छोड़ भी दे ना
मैं- बस थोड़ी देर की बात है बस दो चार मिनट और रुक जा
मंजू-अब दर्द होने लगा है छोड़ दे ना
मैं- बस बस होने ही वाला हाऐईईईईईई
मैंने पलटी खाई और मंजू को नीचे ले लिया , घास चुभने से वो गुस्सा कर रही थी पर मेरा काम होने ही वाला था तो अब कौन उसकी बात सुनता हूँमच हूँमच कर बीस पचीस धक्के और मारे मैंने अपना वीर्य उसकी चूत में ही छोड़ दिया और उसके ऊपर से पड़ गया
मंजू अपनी सलवार बाँधने लगी मैंने उसको चूमा और कहा फिर कब मिलोगी
वो- देखूंगी
मैं- जल्दी देखना
फिर वहा से नजर बचा कर हमने अपना अपना रास्ता लिया और मैं अपने घर के बाहर चबूतरे पर आकर बैठ गया चूत मारने से शरीर तो थोडा हल्का हो गया था पर दिमाग में बहुत कुछ चल रहा था , कुछ बाते थी जो मुझे बड़ा परेशान कर रही थी , तभी मैंने देखा की बिमला घास लेकर आई और मुझे देख कर हस्ते हुए चली गयी, मुझे गुस्सा तो बड़ा आया पर कर भी क्या सकते थे, इतना तो मैं समझता था की कुछ ना कुछ तो खुराफात चल रही है जरुर पर क्या वो पता नहीं चल रहा था
शाम का सा टाइम हो रहा था तो मैं ऐसे ही निकल गया तफरी मारने को गाँव के स्कूल में कुछ लड़के क्रिकेट खेल रहे थे तो उनको देखने लगा , उन्होंने कहा भी खेलने को पर जबसे चाचा ने मेरा बैट तोडा था बस दिल करता नहीं था क्रिकेट खेलने को , आजकल जिंदगी में सोच विचार भी बहुत ज्यादा चल रहा था थोड़ी देर उधर बैठने के बाद मैं प्लाट में गया पशुओ का काम करते करते अँधेरा ढले घर आया मैं , तो देखा की पिताजी किसी से बात कर रहे थे मैंने मम्मी से पूछा तो पता चला की कोई वकील है ,
अब हमारे घर में वकील का क्या काम, कुछ तो गड़बड़ है पर मेरा इतना साहस नहीं की पिताजी से पूछ सकू, मम्मी ने भी कुछ नहीं बताया मैंने चाची को ऊपर आने का इशारा किया उअर अपने कमरे में आ गया , थोड़ी देर बाद चाची भी आ गयी और बोली- क्या हुआ क्यों बुलाया
मैं उनको अपनी बाहों में भरते हुए- बस ऐसे ही
वो छुटने की कोशिश करते हुए- ऐसे ही का क्या मतलब जाने दे मुझे रसोई में बहुत काम है
मैं- एक किस तो दे दो
वो- अभी नहीं ,अभी जाने दे
ये चाची का भी अजीब सिस्टम था, पर चलो अब जो था वो सही मैंने रेडियो चलाया और बिस्तर पर लेट गया एक गाना था कुछ ऐसा की वोह लम्हे वो बाते कोई ना जाने , गाने का सुरूर चढ़ सा गया था दिमाग पर तो दिल आवारा होने लगा ,अपने जिस खालीपन से मैं भागता फिरता था वो फिर से मुझ पर छाने लगा तो मैं नीचे आ गया खाना तैयार था तो खा लिया पिताजी ने कहा की आज खेत पर चले जाना , अब साला ये तो दिक्कत थी मैंने सोचा था की रात को चाची की चूत का जुगाड़ हो जाये क्या पता पर बाप का कहना भी करना था तो चल पड़ा खेत की तरफ
पर अभी टाइम भी ज्यादा हुआ नहीं था तो मैं मंजू के बाप की दूकान पर बैठ गया टाइमपास करने को पर अपना टाइम साला अजीब ही था पास होता ही नहीं था खेत पर भी बस जाके सोना ही था तो बैठा रहा दूकान पर , धीरे धीरे लोग अपने घर जाने लगे जो भी नुक्कड़ पर बैठे थे , मैं भी बस जा ही रहा था की मैंने देखा मोहल्ले की गीता ताई दूकान पर आई और मंजू के बाप से कुछ बात करने लगी , कुछ पैसो का मामला था मैंने अपने कान लगा दिए तो पता चला की गीता ताई ने मंजू के बाप से कुछ पैसे लिए थे जिसे वो समय पर चूका नहीं पा रही थी तो और टाइम चाहती थी पर मंजू का बाप ना नुकुर कर रहा था
थोड़ी देर बाद वो हताश होकर अपने घर को चल पड़ी तो मैं भी खेत की तरफ जा रहा था की पता नहीं क्यों मैं गीता ताई के पास गया और बोला- रामराम ताई जी
वो-जीता रह बेटा
मैं- ताईजी मैंने देखा की दूकान पर आप कुछ परेशान दिख रही थी, कोई समस्या है क्या
वो- नहीं बेटा, कोई परेशानी नहीं है ,
मैं- अच्छा, वो मुझे लगा तो पूछ लिया चलो कोई बात नहीं वैसे आप रात को दूकान पर ताऊ नहीं है क्या घर पर
वो- बेटा, उसका तो सब को पता है पीकर पड़ा होगा कही पर
मैं- कोई ना , अच्छा ताईजी चलता हूँ
फिर रामरमी करके मैं खेत पर चला गया , करने को कुछ था नहीं तो अपना बिस्तर बिछाया और लेट गया पर नींद आ नहीं रही थी की मेरा ध्यान गीता ताई की तरफ चला गया , गीता कोई 42-43 साल की औरत थी , फिगर भी अच्छा था मोटे मोटे बोबे और चोडी गांड , पता नहीं क्यों मैं ऐसे ही अपने ख्यालो में उसके बारे में सोचने लगा की उसकी चूत मिल जाये तो मजा आ जाये , अब ख्यालो पर किसका बस चलता है सरकार मैं सोचने लगा की दिखती भी अच्छी है , चोदने में सच में ही मजा आ जायेगा
बस ऐसे ही ताई के बारे में गलत गलत सोचते हुए मेरा लंड खड़ा हो गया और मैं ताई के बारे में सोच कर मुठ मारने लगा , मजा ही आ गया तो मैंने उसी समय सोच लिया की कोशिश करके देखूंगा क्या पता दाल गल जाये हालाँकि मुश्किल बड़ा था , अगली सुबह मैं जल्दी ही उठ गया था आज पढने जाना था मुझे काफ़ी दिनों से छुट्टी पे चल रहा था तो नाश्ता करके अपना बैग लेकर मैं पहूँच गया शहर , नीनू मुझे देखते ही आग बबूला हो गयी और काफ़ी देर तक चिल्लाती रही तो उसको समझाने में बहुत समय चला गया
तो मैंने पिछले दिनों का पूरा घटनाक्रम विस्तार से बताया , की कैसे क्या क्या हुआ नीनू गहरी सोच में डूबी थी फिर उसने कहा की हो न हो पिताजी ने वकील को बटवारे के लिए ही बुलाया होगा,
मैं- क्या बात कर रही है यार, बंटवारा और वो भी मेरे घर का हो ही नहीं सकता
नीनू- मान चाहे मत मान पर ऐसा ही होगा तू देख लियो
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