Raj sharma stories चूतो का मेला
12-29-2018, 02:48 PM,
RE: Raj sharma stories चूतो का मेला
काली साडी में क्या खूब लग रही थी वो कितना समय बीत गया पर वो आज भी ऐसे ही लगती थी जौसे की कल ही की बात हो इठलाती हुई वो सीढ़ियों से उतरते हुए निचे आ रही थी ऐसा लग रहा था जैसे बरसो बाद दिल धड़का हो आज पता चला की तक़दीर के खेल भी निराले होते है 

उसे यु देख कर मेरे होंठो पर वो मुस्कान आ गयी जो बरसो पहले कही खो गयी थी आँखों के आगे वो तमाम मंजर घूमने लगे ,वो पल जो उसकी बाँहों में बिताये थे वो हर एक लम्हा जो उसके आँचल तले जिया था मैंने ,कभी सोचा नहीं था की तक़दीर यु उस से मिलवा देगी 


हँसते हुए, इठलाते हुए वो सीढ़ियों से उत्तर रही थी कुछ भी तो नहीं बदली थी वो इन बीते सालो में बस इतना जरूर था की थोड़ी और मोटी हो गयी थी जैसे ही वो नीचे आई मेहमानो ने घेर लिया उसको चारो तरफ जैसे उसका ही नूर था महफ़िल में हर तरफ से बधाईया, शुभकामनाएं बरस रही थी अपने दिल से भी एक खामोश दुआ निकली उसके लिए

जी तो बहुत किया की उसको अभी अपनी बाहों में भर लू ,उस से ढेरो शिकायते करू पर अब हालात बदल गए थे वो मालकिन थी मैं एक नोकर और फिर क्या पता वक़्त की रेत ने शायद मेरी यादो को धुंधला दिया हो फिर सोचा की कही उसकी नजरो में ना आ जाऊ तो वहां से जाने का सोचा 

पर दिल बेईमान आज यु उसको देख के मचल गया फंस गया लालच में की कुछ झलक और देख ले उस मरजानी की पता ही नहीं चला की कब आँखों से पानी की कुछ बूंदे टपक कर गालो को चूम गयी, बस चोर नजरो से निहारता रहा उसको जो कभी अपनी हुआ करती थी

जब दिल का दर्द हद से बढ़ गया तो एक जाम उठा लिया पर ये शराब भी कहा वफ़ा करती है दिल में तो आग लगी ही हुई थी कालेजा भी जला लिया दिलवाले को अपनी बेबसी की जंजीरो की कैद का आज पता चला था मेरे हाल से बेखबर वो मसगूल थी अपनी पार्टी में

केक कट चूका था महफ़िल सज गयी थी नाच गाना चल रहा था वो अपने दिलबर की बाँहों में थिरक रही थी सबकी नजरे बस उस पर ही थी और हो भी क्यों ना उसके लिए ही तो ये शानो शौकत ये पार्टी थी मैं खामखाँ ही अपनी नजरे बचा रहा था ये जरुरी तो नहीं था की वो मुझे पहचान ही ले वो तो आज भी पहले जैसी ही थी पर मैं बदल गया था 


दिल से एक आह निकली जो शायद उसके दिल से जा टकराई थी अचानक ही उसकी नजरे मुझ पर पड़ी और उसके थिरकते कदम रुक गए उसकी आँखे चमक उठी उस बेपरवाह ने पहचान लिया था मुझे पर मैं उसकी शाम ख़राब नहीं करना चाहता था तो अब यहाँ रुकना मुनासिब नहीं था मै बाहर को चल पड़ा

पर तभी सेठ आ गया और उसने मुझे कहा की थोडा मेहमानो का ध्यान रखना वाह री तक़दीर अपनी ही दिलरुबा की महफ़िल में जाम परोसने का काम दिया तूने ,दिलवाला मुस्कुराया और लग गया अपना काम करने में जिधर भी मैं जाऊ उधर ही उसकी निगाहे जैसे मेरा पीछा कर रही थी अब उसका ध्यान कहाँ था उस महफ़िल में बरसो पुराणी चिंगारी कहीं ना कहीं सुलग उठी थी

ये तेरा दीवानापन है या मोहब्बत का सुरूर

अब अमीरो की महफिले कहाँ जल्दी ख़त्म होती है अभी तो उसके आगे हमे और ज़लील होना था पर उसको देखकर कोई भी बता देता की तड़प उठी है वो पर सब नसीब की बाते है तो रात को करीब ढाई बजे पार्टी खत्म हुई मैं निकल ही लिया था लगभग पर एक आवाज ने मेरे कदमो को रोक दिया 

"जा रहे हो,बिना मिले"

मैं चुप रहा पलट कर देखने की हिम्मत ही नहीं हो रही थी

वो-जा रहे हो 

मैं-जी आपने मुझसे कुछ कहा 

वो- आप कब से हो गयी मैं तुम्हरे लिए

मैं-अब मालकिन को तो आप ही कहना पड़ेगा ना

वो- तुम्हारे लिए तो मैं कभी बदली ही नहीं , तेरा मेरा किसने बांटा हम तो जुड़े है सांसो की ड़ोर से 

मैं- मालकिन,आप क्या कह रहे है मैं कुछ नहीं समझ पा रहा 

वो-देख मुझे और जलील मत कर मैं जानती हु की तू नाराज़ है कई दिनों में जो मिली ही पर तू दो पल बैठ तो सही मेरे पास मेरी बात भी तो सुन


मैं-क्या सुनु जी,आप पता नहीं क्या बोल रही है मैं आपको जानता ही नहीं बल्कि मैंने तो देखा ही आज है आपको 


वो थोडे गुस्सा करते हुए-देख, एक तो इतने दिन बाद मिला है ऊपर से नोटंकी कर रहा है क्या हुआ है तुझे कैसी बाते कर रहा है देखा ऐसा मत कर वर्ना मैं रो पडूँगी 


उसकी आँखों में आंसू कैसे देख सकता था पर उसको सीने से भी तो नहीं लगा सकता था और मैं ये तो कतई नहीं चाहता था की मेरी वजह से उसकी जिंदगी में कोई दुःख आये तो अनजान बनना ही ठीक था,


मैं-मालकिन आपको शायद कुछ ग़लतफहमी हुई है आप मुझे कोई और समझ रही है आप मुझे जाने दो देर हो रही है कल काम पे भी जाना है 

ये कहकर मैं चल पड़ा उसकी रुलाई छुट पड़ी रोते हुए उसने मेरा नाम पुकारा बरसो बाद किसी ने मुझे पुकारा था कदम लड़खड़ाने लगे थे बहुत मुश्किल से खुद पे काबू कर सका मैं वो अपनी देहलीज पे खड़ी मेरा नाम पुकारती रही शुक्र था की मैं अँधेरे में था वरना वो मेरे आंसुओ को देख लेती

कितने दिनों से दिल में दर्द का एक गुबार जमा हुआ था जो आज आंसुओ के साथ बेह जाना था उसके घर से थोडा दूर आकर मैं फुट फुट के रोने लगा वो जिसके लिए कभी मैं हद सद गुजर जाया करता था आज उस से नजरे नहीं मिला पाया था 
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