Raj sharma stories चूतो का मेला
12-29-2018, 02:49 PM,
RE: Raj sharma stories चूतो का मेला
वो-ऐसे क्या देख रहे हो कभी ऐसा सीन देखा नही क्या, अरे मैं भी क्या बोलरहि हु तुम्हारे नसीब में ऐसी हॉटनेस देखना कहा चलो अब जल्दी से कंधे दबाओ मुझे मूवी भी जाना है 

मैंने अपने हाथ उसके कंधो पर रखे और कस के दबाया 

वो-आह 

मैं धीरे धीरे उसके कंधो को सहलाने लगा उसने अपनी आँखे बंद कर ली उसकी चुचियो की गहरी घाटी मे मेरी नजरे बार बार जा रही थी मेरे हाथ अब कंधो से थोडा निचे को जा चुके थे बस थोडा सा और फिर बस हलके से ही उसकी चूची को टच किया था की उसका फ़ोन बज पड़ा 


मैं कमरे से बाहर आ गया , नींद अब उड़ गयी थी मैं होटल पंहुचा तो सेठ बहुत गहरी सोच में डूबा हुआ था साथियो से पता चला की कुछ लोग सेठ को धमका के गए है कुछ पैसो का पंगा था , मैं सेठ के पास गया और पूछा


सेठ- कोई बात नहीं है अब धंधा करना है तो हर तरह के आदमियों को देखना पड़ता है मैं एडजस्ट कर लूंगा 


मैं-सेठ एडजस्ट करने की बात ही नहीं है तुम आज इनकी मांग पूरी करोगे कल वो और मांगेगा फिर फिर दोगे वो फिर मांगेगा 

सेठ-तो क्या करू मैं पहले से ही नुक्सान में चल रहा हु अब ये मुसीबत 


मैं-सेठ,तुम टेंशन ना लो बस ये बताओ की वो लोग कहाँ पाये जाते है 

सेठ- दिलवाले तुम काम पे ध्यान दो मैं इस मामले को अपने हिसाब से देखता हु 


फिर मैंने कोई बात ना की सेठ से पर अगले दिन कुछ गुंडों की लाशे एक कूड़े के ढेर में पड़ी मिली इधर मैं अपने काम मे मस्त था उधर गाज़ी खान ये सोच कर परेशान था की आखिर कौन है जो उसके आदमियो को गाजर मूली की तरह साफ़ कर रहा था इस बीच एक बात और हुई बाजार के सब दुकानदारो ने मुझे वादा दिया की अब वो आगे से गाज़ी के किसी भी आदमी को कोई वसूली नहीं देंगे 

बाजार अब पूरी तरह मेरे काबू में था दिलवाला अब लोगो के दिल जीतने लगा था ,पर अब मेरे लिए पहचान छुपाना मुश्किल होते जा रहा था और ठीक एक दिन हमारे एरिया के सर्किल ऑफिसर जो की गाज़ी का खास कुत्ता था बस्ती की जमीन को खाली करवाने आ पहुचा तो पता चला की गाज़ी यहाँ एक मॉल बनवाना चाहता है 


पुलिस बल का उपयोग करवाके उसने लोगो से जबरदस्ती कागज़ ले लिया और खदेड़ दिया मैं बेबस पुरे माजरे को देखता रहा मेरी आँखों के सामने लोग पिट ते रहे मैं खामोश रहा , मैंने देखा की कैसे व्यवस्था इन दो कौड़ी के गुंडों की जेब में पड़ी है 


होटल का काम ख़त्म करके मैं फिर से बस्ती गया तो लोग अपना दुखड़ा रोने लगे पर मैं क्या कर सकता था लोगो को तो आदत हो चली थी हर किसी को एक मसीहां की उम्मीद थी जबकि वो खुद नहीं समझते थे की अपने हिस्से की लड़ाई खुद को लड़नी पड़ती है 


यही बात मैने उनको बोली पर इतनी बड़ी बस्ती से कोई सामने नहीं आया किसी की हिम्मत न हुई तो अपने को क्या कल मरते आज मरो, अगले दिन मैं सेठ के घर गया था बड़ी मालकिन बोली- छोटी मेमसाब को कहीं जाना है तो तू साथ चला जा 


मैं समझ गया था की उसने कोई बहाना कर लिया है ताकि वो सब जान सके खैर कभी ना कभी तो उसको ये सब बताना ही था तो उसने कार निकाली और हम चल पड़े रस्ते भर हम कुछ नहीं बोले जल्दी ही हम शहर की सड़को को पार करते हुए एक बिल्डिंग में दाखिल हुए 


वो- मेरी सहेली का फ्लैट है 

हम अंदर आये अंदर आते ही वो मेरे सीने से लग पड़ी, कसम से दिल को करार आ गया मैंने उसको अपनी बाहों में कस लिया कई देर हम ऐसे ही लिपटे रहे 


वो- यहाँ तेरे मेरे बीच कोई नहीं आने वाला ,कितना तड़प रही हु तेरी बाँहों में आने को और तुझे पता नहीं क्या हुआ है जो अपनी पिस्ता की तरफ देखता भी नहीं 

मैं- तुझे सब पता हैं ना ,अब तू पराई हो चुकी किसी और की अमानत है डर लगता है की कहीं मेरी वजह से तेरे संसार में कोई मुसीबत ना हो और कभी सोचा नहीं था की इस तरह तुमसे मुलाकात होगी


वो-तू कबसे ऐसा सोचने लगा तेरा मेरा किसने बांटा तुझ पर ऐसे हज़ार घर कुर्बान और खबरदार जो कभी मुझे खुद से अलग माना, तू बेशक बदल गया होगा पर मैं आज भी वो ही हु शादी के बाद भी मैं आई थी पर तू गाँव छोड़ गया था बहुत कोशिश की तुझे तलाशने की पर फीर मेरी तक़दीर कुछ ऐसी हुई की जयपुर से यहाँ आना पड़ा


मैं-हाँ मैं भी व्ही सोच रहा था की तू यहाँ कैसे 


वो- वो हुआ यु की मेरे ससुर के मामा के औलाद नहीं थी तो मरते मरते वो सब इनके नाम कर गया यहाँ उनका होटल था और कुछ प्रॉपर्टी थी तो पूरा परिवार यहाँ आ गया पतिदेव ने भी इधर तबादला कर लिया बस फिर इधर ही हु मेरा छोड़ तू अपनी बता 


अब मैं क्या बताता की क्या बीता था मेरे साथ पर उसको बताना भी जरुरी था मैंने अपनी टी शर्ट उतार दी , बस आगे की कहानी वो खुद समझ गयी,मेरे बदन का हर ज़ख्म अपनी कहानी कह रहा था वो गोलियों के निशाँ ,वो चाकुओ के वार पे लगे टाँके,अब और क्या कहने की जरुरत थी पिस्ता की आँखों से आंसू गिरने लगे 


रोते रोते उसने मेरे ज़ख्मो को चूमा तो लगा की आज किसी ने मलहम लगलगाया है , बहुत देर तक वो मेरे सीने से लगी रोती रही फिर वो बोली-किसने किया ये तू नाम बता अगर उसके टुकड़े ना कर दिए तो मेरा नाम पिस्ता नहीं 


मैं-और कौन होगा अपनों के सिवा सब बिमला और चाचा का ही रचा षड्यंत्र है और कुछ लोग भी मिले है 

वो- तू फ़िक्र मत कर तेरे हर दर्द का हिसाब होगा जल्दी ही हम गाँव चलेंगे 


मैं-हां गाँव तो जाना ही है पर सही समय आने पे पर पहले जरा अपनी जान से थोडा प्यार तो कर लू 


आज फिर से कोई मेरा अपना मेरी बाहों में था पिस्ता मेरे सीने से लगी हुई थी उसकी साँसे मेरे सीने से टकरा रही थी वो खुशबूदार सांसे जिनसे मेरा बदन महक उठा था मैने उसके माथे पे हलके से चूमा वो मुझसे और चिपक गयी 

मेरी जान मेरी सबसे प्यारी दोस्त एक बार फिर से मेरी बाहों में मचल रही थी, पिस्ता ने अपने होंठो पर जीभ फेर कर उनको गीला किया और उनको मेरे होंठो से रगड़ने लगी मेरे होंठ पर उसने हलके से काटा तो बदन में उत्तेजना की लहर दौड़ गयी लण्ड में हरकत होने लगी 


मेरी साँसे सुलगने लगी थी मैंने उसकी साडी उतारना चालू किया उसने खुद अपना ब्लाउस और ब्रा उतार दिया वक़्त के साथ साथ पिस्ता और भी निखर आई थी उसकी चूचिया और भी मोटी, सुडोल हो गयी थी और उसके वो भूरे रंग के निप्प्ल्स जो शायद हमेशा तने हुए ही रहते थे


उसके होंठो को चूसते है मेरी उंगलिया उसके पेटीकोट के नाड़े को खोलने में लगी हुई थी,और जल्दी ही वो बस एक काली जालीदार पेंटी में खड़ी थी मैं उसके लबो को पीते हुए उसकी मोटी मदमस्त गांड को अपने हाथो से मसलने लगा पिस्ता ने धीरे से अपने होंठ खोले और अपनी जीभ को मेरे मुह में सरका दिया 


पिस्ता तो एक आग थी जिसे हर कोई नहीं झेल सकता था पर आज इस आग को मेरे आगोश में और दहकना था उसके नरम कुल्हो को मैं खूब दबा रहा था सांसे जैसे छुटने को ही थी जब हमारे होंठ अलग हुए पिस्ता बेड पर चढ़ गयी और अपनी पेंटी को उतारने लगी मैंने भी अपने कपड़ो को आजाद कर दिया 

मैं भी ऊपर आ गया और सर से पाँव तक उसको चूमने लगा आज भी उसके जिस्म का वैसा ही स्वाद था जल्दी ही वो पूरी तरह से मेरे थूक से सनी हुई थी पिस्ता ने अपने पैरो को m शेप में मोड़ लिया उसकी बिना बालो की फूली हुई योनि मेरी आँखों के सामने थी 

कॉमरस से भरी हुई उसकी योनि उस गाढ़े रस से सनी हुई थी मैंने अपने होंठो पे जीभ फेरी और अपने सर को टांगो के मध्य घुसा दिया एक भीनी भीनी सी खुशबु मेरी नाक में उतरने लगी बड़ी मासूमियत से मैंने अपने होंठ पिस्ता की चूत पर रख दिए आज भी बड़ी गर्मी थी वंहा पे

मेरे होंठो का स्पर्श पाते ही पिस्ता के बदन में सरसरहट होने लगी उसकी टाँगे अपने आप और चौड़ी होने लगी पुच की आवाज के साथ मैंने चूत पे एक चुम्बन लिया और उसके होंठो से एक कराह फुट पड़ी और मेरी जीभ चूत की दरार से टकराने लगी

पिस्ता के हाथ अपने बोबो को दबाने लगे थे और इधर् मैंने चूत को थोडा सा फैलाया और लगा चाटने तो पिस्ता के तन बदन में एक आग लगनी शुरू हो गयी मेरे मुह में वो हल्का खारा सा स्वाद भरने लगा इस रस की प्यास कभी बुझती नहीं जितना पियो उतना ही और मांगते जाओ

पिस्ता के थार्थरते चूतड़ो में कम्पन होने लगी थी उसके गले से मदमस्त आहे निकलना शुरू हो गयी थी पर वो भी जंगली खिलाड़िन थी तो वो पीछे कहा रहने वाली थी
उसने मुझे अपने ऊपर से हटाया और अब खुद 69 में होते हुए मेरे ऊपर चढ़ गयी और मेरे औज़ार से खेलने लगी 


पिस्ता की ऐसी ही कातिल आदाये तो थी जो मार जाती थी इधर हमारी शरारतें शुरू हो गयी थी पिस्ता ने धीरे से मेरे सुपाड़े की खाल को पीछे को सरकाया और अपनी मुलायम उंगलियो को उस संवेदनशील जगह पर रगड़ने लगी सम्पूर्ण बदन में जैसे एक सन्नसनाहत सी होने लगी थी अंडकोशो में एक ऊर्जा सी भरने लगी वो भारी होने लगे


और सब्र ही टूट गया जब उसने अपनी जीभ से मेरे लण्ड को छुआ 440 वाल्ट का झटका ही तो लग गया पिस्ता ने तो मार ही दिया था अपनी इस अदा से उसकी जीभ मेरे चिकने सुपाड़े पे घूमने लगी थी आज तो हमे कत्ल ही हो जाना था उसकी इन अदाओ से इधर अब जवाबी हमला भी तो करना था मैंने उसके कुल्हो को थोडा सा फैलाया 

और अपनी जीभ उस प्यारे से छेद में डालने लगा तो वो बेकाबू होने लगी उसकी चूत की फांको को मैं बीच बीच में अपने दांतो से कभी आहिस्ता तो कभी तेज काट लेता तो बस वो तड़प कर रह जाती पर वो भी तो कम नहीं थी ना

अब वो मेरे लण्ड को हिलाते हुए मेरे अन्डकोशों को अपने मुह में लिए हुए थी मस्ती चढ़ने लगी थी मेरी तरफ वो बार बार अपनी गांड को पटक रही थी उसकी चूत बार बार फैलती और सिकुड़ती मेरी जीभ का जादू उसके अंग पर इस हद तक चल रहा था पिस्ता की गर्म आहे उसकी मदहोश कर देने वाली सांसे मेरे लण्ड पर पड़ रही थी 


तन बदन में लगी आग अब दनावल बन चुकी थी पिस्ता की बेचैनी बढ़ती जा रही थी और वो अब पूरी तरह से लण्ड पर टूट चुकी थी उसके थूक से सना हुआ मेरा लण्ड बार बार उसके मुह में जाता उत्तेजना में हिलोरे लेते हुए इधर अब वो शिथिल होती जा रही थी


चूत में चिकनाई बढ़ती जा रही थी मैं तेजी से उसके छेद में जीभ चला रहा था जिस से उसकी मस्ती बढ़ती जा रही थी और फिर वो झड़ने लगी पर झडते झडते वो तेजी से लण्ड चूसते हुए मुझे भी मंमुझे भी मंजिल की और ले चल पड़ी अपने साथ सालो से जमा मेरा पानी उसके मुह में गिरने लगा आज कई दिनों बाद झड़ा था पिस्ता का पूरा मुह मेरी मलाई से भर गया था
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RE: Raj sharma stories चूतो का मेला - by sexstories - 12-29-2018, 02:49 PM

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