Raj sharma stories चूतो का मेला
12-29-2018, 02:53 PM,
RE: Raj sharma stories चूतो का मेला
नहा धोके एक दम तजा हो गया था फिर खाना वाना खाया उसके बाद मैंने राहुल से कहा की वो घर की थोड़ी सफाई करवानी है तो उसने कहा भाई आप ने कह दिया मैं अभी करवा देता हु और वो मजदुर लाने चला गया मैंने पिस्ता को आराम करने को कहा और मैं बिजली जुडवाने के लिए चला गया अपना परिचय दिया तो पता लगा की आज मैं फाइल भर दू कल तक तार लग जायेगा चलो लाइट का काम तो हुआ कुछ और काम करने थे वो किये बंक में गया अपने पुराने खातो की जानकारी ली पैसो को कोई दिक्कत नहीं थी पर वो दोलत मेरे माँ- बाप की थी तो देख रेख करना जरुरी था 

आते आते शाम घिर आई थी जब मैं वापिस घर आया तो देखा की राहुल ने काफी हद तक सफाई करवा दी थी 
राहुल- भाई कल तक पूरा साफ़ हो जायेगा पानी की सप्लाई चालू हो गयी है एक बार सफाई हो जाये फिर मरम्मत का काम चालू 

मैं- बढ़िया 

राहुल- कहा थे आप इतने दिन 

तो मैंने उसको बता दिया बस कुछ खास बाते छुपा ली , तब तक पिस्ता चाय ले आई 

मैं- यहाँ चाय 

वो- हा अब इधर ही रहना है तो मैंने रसोई का सामान खरीद लिया और गैस अपने घर से उठा लायी 

राहुल- मैं तो मन कर रहा था मेरा घर भी आपका ही है पर ये नहीं मानी 

मैं- इसका ऐसा ही है
बातो बातो में रात घिर आई थी तो राहुल खाना लेने चला गया उसका तो मन था की उसके घर ही खाए पर मैं यहाँ ही रहना चाहता था करीब घंटे भर बाद वो आया तो रतिया काका भी उसके साथ थी मैंने काका के पैर छुए, उन्होंने मुझे गले से लगा लिया आँखों से आंसू गिरने लगे 

काका- बड़ी देर लगाई बेटे आने में, हमने तो आस ही छोड़ दी थी दिल तो कहता था की तुम आओगे पर राह तकते तकते ये आँखे बूढी हो गयी 

मैं- काका देर हो गयी पर अब मैं आ गया हु 

मैं- काका गाँव के क्या हाल चाल है 

वो- समय बदल गया है बेटा, बिमला से मिले 

मैं-नहीं काका मिला नहीं और ना ही इच्छा है पर सुना है बाहुबली हो गयी है आजकल 

वो- हां बेटा, अब सरपंच है गाँव की और बड़े लोगो से उठना बैठना है हमसे तो कोई सम्बन्ध रखा नहीं उसने नाहर पर ही कोठी बना ली है उधर ही रहती है 

मैं- आती नहीं इधर 

वो- उस हादसे के थोड़े दिन बाद ही यहाँ से चली गयी थी वो 

मैं- और चाचा 

वो- उसके साथ ही रहता था पहले फिर उसने किसी मास्टरनी से शादी कर ली अब सहर में ही रहता है वो भी नहीं आता कभी भी 

मैं- चलो अच्छा है , आप सुनाओ 

वो- बस बेटे जी रहे है दोनों बच्चो के हाथ पीले कर दिए राहुल मेरे साथ ही हाथ बाटता है काम में पहले दुकान थी अब फर्म हो गयी है 

बातो बातो में रात काफी हो गयी थी तो काका बोले- अब चलता हु बेटा सुबह मिलूँगा पर जब तक यहाँ की मरम्मत नहीं हो जाती तुम उधर ही रह लेते वो भी तो तुहारा ही घर है 

मैं- क्यों शरिंदा करते हो काका , जानता हु वो भी मेरा ही घर है पर अब इतने बरस बाद आया हु तो मन है 

काका- मर्ज़ी है तुम्हारी 

उनके जाने के बाद पिस्ता नहाने चली गयी मैं छत पर बिस्तर बिछाने लगा मच्छर बहुत थे तो मैंने मच्छरदानी लगा ली पिस्ता थोड़ी देर बाद आई पतली सी ड्रेस में भीगा बदन उसका बालो से टपकता पानी उसके यौवन को और नशीला बना रहा था मैंने पिस्ता को अपनी बाँहों में भर लिया 

पिस्ता- छोड़ो ना 

मैं- ना 

वो- क्या इरादा है 

मैं- तुम्हे नहीं पता क्या 

वो- आह , मुझे तो अब पता है 

मैं- तो रोक क्यों रही हो 

वो- कहा रोक रही हु आह आराम से 

मैंने उसकी ड्रेस खोल दी अन्दर उसने कुछ नहीं पहना था वो नंगी मेरी बाँहों में सिमटने लगी मेरे हाथ उसके उभारो पर चलने लगे चारो तरफ छाई शांति को पिस्ता की मादक आहे भंग करने लगी थी वो मेरे अगले हिस्से पर अपने कुलहो को रगड़ने लगी थी कुछ एर तक मैं उके उभारो से खेलता रहा अब वो एक दम टाइट हो चुके थे तभी पिस्ता पलती उकी छतिया मेरे सीने में चुभने लगी उसने अपने सुलगते होंठ मेरे होंठो पर रख दिए और किस करने लगी मेरे हाथ उसके भारी गांड को मसलने लगी थी 

वो किसी नागिन की तरह मुझ से लिपटे हुए मेरे होंठो की प्यास अपने होंठो से बुझा रही थी मैं उसके आगोश में पिघलने लगा था दस मिनट तक बस हमारी चूमा- चाटी चलती रही उसके बाद मैंने पिस्ता को बिस्स्तर पर लिटा दिया उसने अपनी टांगो को फैलाया और अपनी मंशा बताई मैं घुटनों के बल बैठ गया और उसकी बिना बालो की मक्खन सी चूत पर अपने होंठ रख दिया बिजली सी दौड़ गयी उसके बदन में किसी तार की ताराह बदन खीच गया 

होंठो से मधुर आये निकल पड़ी आह उफ्फ्फ्फ़ ऐसे मत रगडो ना आआह्ह्ह काटो मत आराम से यार 
पर उसकी कौन सुनने वाला था उसकी चूत के अंदरूनी हिस्से से रगड़ खाती मेरी जीभ नमकीन स्वाद को चख रही थी पिस्ता की टांगो में कम्पन शुरू हो गया था चूचियो के निप्पल तन गए थे मस्ती भरी लहरें उसके शरीर से बार बार टकरा रही थी बेकाबू पिस्ता ने मेरे सर को अपनी चूत पर दबा लिया और कांपने लगी उसके बिखरे बाल लाल आँखे गरम चिकना बदन मेरा लंद्द काबू से बाहर हो रहा था इधर मैंने अपनी बीच वाली 

ऊँगली उसकी चूत में डाल दी और उसके दाने को चुमते हुइ उसकी चूत में ऊँगली अन्दर बाहर कर रहा था 
पिस्ता तो जैसे गीली हुई ही बैठी थी आज उसकी चूत से बहुत ज्यादा रस छुट रहा था इधर उत्तेजना मुझे भी उकसा रही थी पिस्ता में समा जाने को तो अब मैं वहा से हट गया पिस्ता ने अपनी टाँगे पलंग से निचे सरका ली और आधी बैठी सी हो गयी और मैंने बिना देर किये अपने उसल को थे दिया अनडर की तरफ पिस्ता ने मेरी बाहों को थाम लिया और हमारा खेल शुरू हो गया चिकनी चूत में मेरा लम्बा लंड आतंक मचाये हुए था

पिस्ता तो वैसे ही बीच तक आ चुकी थी तो वो पुरे जोश से अपनी गांड को ऊपर कर कर के चुदाई का मजा ले रही थी कुछ देर बाद मैंने पिस्ता को घोड़ी बना दिया उसके मोटे चूतडो को देखते ही बनता था क्या गजब था उसने अपनी गांड को मेरे लंड की तरफ सरकाया और मैंने भी उसको अपनी सही जगह पर पंहुचा दिया उसकी कमर पर हाथ डाला और अब चोदने लगा उसको पिस्ता ने अपनी दोनों जांधो को आपस में चिपका लिया था और चुदाई के मजे ले रही थी 

७-8 मिनट तक हम दोनों वैसे ही चुदाई करते रहे फिर पिस्ता का कोटा पूरा हो गया और वो औंधे मुह बिस्तर पर गिर गयी मैंने भी उसके ऊपर लेट गया और उसको चोदने लगा वो अभी अभी झड़ी थी तो उसका बदन हिचकोले खा रहा था एक मीठा सा अहसास अभी भी उसके बदन में दौड़ रहा था उसके हाथो पर अपने हाथ रखे मैं उसी पोजीशन में उसपे चढ़ा रहा उसके नरम कुलहो का गद्देदार अहसास अब क्या बताऊ पिस्ता लम्बी लम्बी सांसे लेते हुए चुद रही थी 

और थोड़ी देर बाद मैं भी फारिग हो गया और उसके बगल में लेट गया कब नींद आ गयी पता नहीं चला सुबह जब आँख खुली तो कुछ आवाजे आ रही थी तो मैंने देखा की घर के बाहर दो तीन जीप खड़ी थी और पिस्ता कुछ लोगो से उलझी पड़ी थी
मैने जल्दी से अपनी टी-शर्ट पहनी और निचे आया कुछ लठेत से थे पिस्ता बहस कर रही थी उनसे 

मैं- क्या हुआ 

पिस्ता- पता नहीं कौन लोग है घर से निकलने को कह रहे है 

मैं- तुम्हारे बाप का घर है क्या 

उनमे से एक- हमारी मालकिन का घर है 

मैं- ओह ओह मालकिन ने ये नहीं बताया की उसका भी कोई मालिक है जा जाके कह दियोतेरी मालकिन से की इस घर का असली हक़दार आ गया है 

वो- हमे नहीं पता आप लोग निकल जाओ यहाँ से वर्ना हमे निकालना पड़ेगा 

मैं- जरा मैं भी तो देखू की किसकी इतनी हिमत हो गयी है 

तभी रतिया काका और राहुल भी आ गए साथ ही कुछ गाँव वाले भी थे 

काका-क्या हुआ बेटा 

मैं- पता नहीं कौन लोग है फालतू का पंगा कर रहे है 

उनको शायद काका जानते थे तो वो उनसे बोले- जाके कहना की देव वापिस आ गया है वो समझ जाएगी 

उनमे से एक – पर .........

मैं- पर कुछ नहीं, अगर ५ मिनट में तुम यहाँ से नहीं निकले तो ६ति मिनट में तुम्स अब की लाश यहाँ पड़ी होगी और ये मेरा हुकम है जिसे तुम्हे मान न होगा और जाके अपनी मालकिन से कह्देना की सी घर का वारिस आ गया है मैं दहाडा

वो लोग खिसक लिए वहा से 

मैं- बिमला की तो खबर लूँगा 

काका- बेटा ये लोग थोड़े थोड़े दिन में इधर आते है देखने शायद तुमको जान नहीं पाए होंगे 

मैं- जो भी हो 

बात आई गयी हो गयी , राहुल आज और मजदुर ले आया था तो काम तेजी से हो रहा था मैं अन्दर गया और पिस्ता को बुलाया 

मैं- ये गन ले और आगे से कोई भी ऐसी बात हो थो खाली हाथ मत उलझना ये तेरी हिफाजत करेगी और ज्यादा बात हो तो सीधा गोई चला देना बाकि मन देख लूँगा 

वो- टेंशन मत लो तुम 

फिर नीनू का फ़ोन आया तो उसे पूरी बात बताई आर्यन और माधुरी से भी बात की नीनू थोड़ी टेंशन में थी उसको समझाया की फ़िक्र न करे बात करने के बाद मैंने पिस्ता से कहा की मैं थोडा घूम फिरके आता हु चलेगी तो उसने मन करते हुए कहा की वो थोडा मरम्मत का काम देखेगी और थोड़ी सफाई करेगी तो मैं अकेला ही चल पड़ा तभी मुझे किसी की याद आई तो मैं उधर ही चल पड़ा जैसे ही उसके घर की तरफ पंहुचा वो आँगन में ही थी पशुओ को नहला रही थी मैंने उसे देखा गुजरे वक़्त के साथ उस पर कोई असर नहीं पड़ा था वो और खूबसूरत हो गयी थी निखर गयी थी 


मैं अन्दर गया और बोला- और ताई कैसी हो 

उसने पल भर के लिए मुझे देखा और फिर भागते हुए मेरे पास ई और मुझे अपनी बाँहों में भर लिया बोली- तुम .....


मैं- हां मैं 

वो- कहा चले गए थे 

मैं- बस खो गया था कही पर अब आ गया हु 

वो मुझे अन्दर ले गयी चाय पिलाई और बाते करने लगी 

मैं- और मजे में हो 

वो- हां, तुमने जो जमीं दी थी उसी पर खेती करती हु अच्छी फसल होती है तो मौज है तुम बताओ इतने दिन कहा थे 

तो- मैंने उसे भी वो ही बात बता दी जो राहुल को बताई थी 

ताई-अच्छा हुआ तुम आ गए हमने तो आस ही छोड़ दी थी 

मैं- ताई तुम तो बिलकुल नहीं बदली आज भी उतनी ही गनडास हो 

वो- क्या आते ही शुरू हो गया , अब वो बात कहा अब तो बुड्ढी हो गयी हु 

मैं- तब भी ऐसा ही बोलती थी पर तब भी माल थी आज भी माल हो 

मैं झूठ नहीं कह रहा था अब ताई की उम्र ४७-४८ होगी पर मजाल की कोई कहदे पहले से जिस्म भर गया था पर मेहनत के कारण सांचे में ढला हुआ था मेरा लंड पेंट में उछालने लगा पर ताई कहा भागी जा रही थी हमारी बाते हो रही थी की मैं पुछा- ताई , ताऊ कहा है दिख न रहा तो ताई थोड़ी भावुक हो गयी और उसने बताया की दो साल पहले ताऊ का देहांत हो गया 


मैं- ये तो बुरा हुआ ताई 

वो- होनी को कौन टाल सके बेटा , तू बैठ मैं तेरे लिए खाने पिने का इंतजाम करती हु 

मैं- रहने दे ताई, पेट भरा है अभी खाके ही आया हु बस तेरी याद आ रही थी तो मिलने आ गया 

वो- हां, मेरी याद तो आनी ही थी तुमको हस्ते हुए बोली वो 

मैं- ताई अब तुम चीज़ ही ऐसी हो याद तो आनी ही थी खैर वो छोड़ो एक बात बताओ मेरे जाने के बाद बिमला ने कभी उस जमीन के बारे में कुछ कहा तुमसे 

वो- हां,जब आइने खेती करनी शुरू की तो वो आई थी पर मैंने उसको बताया की तूमने वो जमीं मुझे सँभालने को दी है तो वो चली गयी फिर देखो सात बरस गुजर गए वो इधर एक बार भी न पलट के आई वैसे वो गाँव में आती भी बहुत कम है 

मैं- कहा रहती है फिर 

वो- तुम मिल लो भाभी है तुम्हारी 

मैं- मिलूँगा जल्दी ही 

ताई- कुवे पर जा रही हु चलोगे क्या 

मैं- हाँ चलते है 

ताई ने जलदी से घर का काम निपटाया फिर हम दोनों ताला लगा कर खेत की और चल पड़े रस्ते में मेरा पूरा ध्यान ताई की गोल मटोल थिरकती गांड पर थी जो वक़्त के साथ और भी निखर आई थी ताई ने तो दुनिया देखि थी उन्होंने मेरी नजरो को पकड़ लिया था इस लिए और मटक कर चल रही थी शायद वो भी जान गयी थी की आज वो चुदने वाली थी मोसम में हलकी हलकी धुप थी पर हवा भी ठंडी चल रही थी खेतो के बीच बनी पगडण्डी पर चलते हुए हम मेरे खेतो में आ गए थे
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