Raj sharma stories चूतो का मेला
12-29-2018, 02:53 PM,
RE: Raj sharma stories चूतो का मेला
फिर कुछ देर बाद हम लोगो में कुछ बात चीत नहीं हुई वो बर्तन समेट कर चली गयी मैं सोचने लगा पर क्या सोच रहा था मैं पिस्ता का सवाल तो सही था पर मैं क्या बताता उसको की मैंने किसे देखा था पर कब तक छुपाता इस बात को कभी ना कभी तो बताना ही था , पूरा दिन गीता ताई के साथ कुश्ती की थी औ अब खाना थोडा ज्यादा खा लिया था तो आँखे भारी होने लगी थी ,बैठे बैठे ही मेरी आँख लग गयी एक झपकी सी आ गयी थी 


पता नहीं कितनी देर की थी वो झपकी पर जब अचानक से मेरी आँख खुली तो लाइट नहीं थी मोमबती जल रही थी और मेरे सामने पिस्ता बैठी थी 


मैं- सोयी नहीं 


वो- तुम इधर ही सो गए थे तो मैंने जगाया नहीं 


मैं- तू भी ना बावली ही है , चल आजा सोते है 


हम ऊपर आये और पिस्ता मेरे पास आके लेट गयी मैंने उसको अपनी बाँहों में भर लिया वो मुझ से चिपक क्र सो गयी मुझे भी उसकी बाँहों में सुकून मिला पर शायद आज की रात नींद नसीब में थी ही नहीं एक सपना सा आ रहा था तभी पिस्ता ने जगा दिया 


मैं- सोने दे न 

वो- देव, उठो देखो बाहर कोई है 


मैं तुरंत उठा, और सामने को और देखा दूर एक साया सा भागता दिखा 


मैं- कौन था 


वो- मुझे क्या पता 


मैं- मेरा मतलब तुझे कैसे देखा 


वो- सुसु करने जा रही थी तभी नीचेको नजर पड़ी तो लगा की कोई है 


मैंने घडी में टाइम देखा सुबह के तीन बज रहे थे अगर चार से ऊपर होता तो मैं सोचता की कोई टट्टी-पेशाब वाला होगा पर तीन बजे और वो फिर उसका भागना 


मैं- बैटरी ले आ , चल देखते है 


और फिर हम लोग घर से बहार आ गए सुबह की ठण्ड वातावरण में घुली हुई थी मैं और पिस्ता उस तरफ बढे जहा वो साया खड़ा था कुछ दूरी पर हमे कदमो के निशान मिल गए 


मैं- पिस्ता कोई औरत थी 

वो- कैसे 


मैं- देख पांवो के निसान जूतियो के है 


वो- पर गाँव में कई मर्द भी जूतिया पहनते है 


मैं- हो सकता है 


वो- चल देखते है निशान कहा तक है 


मैं- पर इस तरफ तो जंगल है कहा ढूंढें गे 


वो- पर कोशिस तो करनी हो होगी अगर मिल गयी मुझे तो उसकी खाल ही उतार लुंगी साला दो दिन हुए नहीं हमे आये और लोगो की गांड में दर्द हो गया 


मैं-कही कोई चोर हुआ तो 


वो- अगर आदमी हुआ तो चोर वाली बात समझ आई पर लुगाई यु रिस्क न लेगी 


मैं- बात तो सही है चल देखते है 


तो उन पांवो के निशान को देखते देखते हम लोग आगे बढ़ चले पर जल्दी ही वो निशान धुंधले होने लगे और हम जंगल के मुहाने तक आ पहुचे थे 


मैं- पिस्ता अब क्या 


वो- देखते है 


और तभी मुझे कुछ दिखा मैंने देखा तो एक हीरे का टुकड़ा था एक चैन में अब इस बियाबान जंगल में ये कहा से आया 
पिस्ता- शायद उसी है है और इस से ये कन्फर्म होता है की वो औरत ही थी उसी का गिर गया होगा 


मैं- गिरा नहीं है हमारे लिए छोड़ा है , क्योंकि गिरता तो टूटके पर ये टूटा हुआ है नहीं किसी ने जानके छोड़ा है हमारे लिए 


वो- तो उसको घर पे मिलने में कोई तकलीफ थी खामखा परेड करवाई , घर पर ही दे देता 


मैं- शायद कोई सुराग है हमारे लिए 


वो- तुम ही जानो 


घर आये तो साढ़े 4 बज गए थे फिर सोने का मतलब ही नहीं था फ्रेश वगैरा होकर आये तब तक पिस्ता ने कुछ खाने के लिए बना लिया था तो आज जल्दी ही नास्ता कर लिया मैं और पिस्ता बात कर रह थे की तभी मुझे कुछ सूझा और मैं बिमला वाले मकान में आया उसका हाल भी बुरा ही था जैसे बरसो से उसकी किसी ने सुध ना ली हो मैंने ताला तोडा और अन्दर आया और तलाशने लगा कुछ पर दो घंटो की कड़ी छानबीन के बाद भी कुछ नहीं मिला तो मैं वापिस आ गया
मजदूर लोग आ गए थे अपने समय पर उनके आने के बाद मैं और पिस्ता सहर के लिए निकल पड़े पिस्ता को कुछ कपडे खरीदने थे और कुछ सामान था हमे वही पर ही दोपहर हो गयी थी उसके बाद हमने लंच किया और घर के लिए निकल ही रहे थे की बाज़ार में एक शोरूम पर मेरी नजर पड़ी दरअसल उसके पोस्टर में बिलकुल वैसा ही हीरे वाली चैन थी जैसी की हमे मिली थी मैंने पिस्ता को इशारा किया और हम अन्दर घुस गए 


काफी बड़ा शोरूम था हम अन्दर गए पिस्ता ने खुद को बिजी कर लिया मैंने दुकान का अवलोकन किया और जैसे ही मेरी नजर काउंटर पर गयी कुछ कुछ बात मेरी समज में आने लगी ,काउंटर पर मामी बैठी थी मैं उनकी तरफ बढा मुझे देख कर उनके चेहरे पर कोई रिएक्शन नहीं आया उन्होंने मुझे इशारा किया और मैं उनके पीछे एक केबिन में आ गया 


मामी-- मुझे पता था तुम यहाँ जरुर आओगे 


मैं- अच्छा तो वो लॉकेट आपने वहा पर छोड़ा था , 


वो- मुझे पता था तुम समझ जाओगे 


मैं- क्या समझ जाऊंगा 


वो- देव, तुम्हारी जान को खतरा है 


मैं- इसमें नयी बात कहा है , वैसे तरक्की खूब कर ली है ये हीरे-जवाहरात का बिजनेस चलो अच्छा ही है 


वो-क्यों शर्मिंदा कर रहे हो 


मैं- ना, ना मैं कौन होता हु आपको शर्मिंदा करनेवाला 


वो- मुझे माफ़ कर दो देव उसे मेरा कोई कसूर नहीं था 


मैं- वो सब छोड़ो, ये बताओ तुम इस शहर में क्या कर रही हो मतलब की अपना बिजनेस तुमने अपने सहर में न शुरू कर यहाँ क्यों क्या 


वो- तुम्हारे मामा के कारण 


मैं- हम्म तो मेरा शक तब भी सही था आज भी सही है मामा ने उस दिन जानबूझ कर मुझे दारू लाने भेजा था ये सब पहले से तय था


वो-नहीं देव नहीं 


मैं- तो फिर सच क्या है तुम बताओ मुझे 


वो-तुम्हे तो पता ही है की तुम्हारे नाना और मामा में कभी नही बनती थी , दरअसल तुम्हारे मामा हमेशा ही अपनी कम कमाई की वजह से टेंशन में रहते थे और ऊपर से तुम्हारे नाना तुम्हे ले आये, तुम्हारे प्रति उनका स्नेह देख कर वो जलते थे इसी लिए वो तुमसे रुखा व्यव्हार करते थे और फिर तुम्हारा मुझसे नाता जुड़ गया एक दिन तुम्हारे मामा ने हम दोनों को देख लिया था ये बात मुझे बाद में पता चली वो एक आग जलने लगे थे देव, पर वो गलती मेरी थी जो मैंने उनके साथ बेवफाई की मैं बह गयी थी तुम्हारे साथ 


मैं- तो अपनी वफ़ा साबित करने के लिए आपने मुझ पर गोलिया चलाई 


मामी की आँखों से आंसू गिरने लगे थे “मैं मजबूर थी देव , मैं मजबूर थी ”


मैं- नहीं आप मजबूर नहीं थी बल्कि ये एक सोची समझी साजिश थी अब बता भी दो की कौन कौन शामिल था इसमें 


वो- देव, मैं तुम्हारी कसम खाके कहती हु मैं मजबूर थी देव 


मैं- चलो मान लिया तो वो कौन सी मज़बूरी थी 


वो-मजबूरी थी देव बात अगर मेरी होती मैं अपनी जान दे देती पर बात मेरे पुरे परिवार की थी अगर मैं तुम पर गोली नहीं चलाती तो मेरे पुरे परिवार को मार दिया जाता 


मैं- और ये सब तुमको मामा ने बताया होगा है ना 


वो-हां, 


मैं- और तुमने मान लिया 


वो- उनके मुह से सुनके नहीं माना पर याद है वो जो फ़ोन उनको आते थे एक दिन मैंने उनकी बाते छुप कर सूनी तब मैंने जाना की वो झूठ नहीं कह रहे थे दरअसल तुम्हारे मामा को पैसो की बहुत जरुरत थी वो उन लोगो के जाल में फस चुके थे 


मैं- इस कहानी में जरा भी दम नहीं है 


वो- बेशक तुम चाहो तो इसे झूठ मान सकते हो 


मैं- मैं बस इतना जानना चाहता हु की आखिर वो क्या वजह थी जो तुमने मुझ पर गोलिया चलायी 


वो- देव, मैं बता चुकी हु 

मैं- पर सच सुनना चाहता हु मैं 


वो- देव, मैं तुम्हारी गुनेह्गार हु मैंने वो किया जो नहीं करना चाहिए था पर मैं मजबूर थी मैं जानती हु तुम मेरा विश्वाश नहीं करोगे , देव तुम्हारी हर सजा मंजूर है मुझे 


मैं- मामा से मिलना चाहूँगा 


वो- नहीं मिल सकते 


मैं- क्यों 


वो- क्योंकि वो अब इस दुनिया में नहीं है तुम पर हुए उस हमले के बाद उनको बड़ा सदमा लगा और दो महीने बाद उनकी मौत ह गयी 
मेरा तो दिमाग ही जैसे फट गया था मामा भी मर गया था वो ही तो वो कड़ी था जो मुझे बता सकता था मेरे असली दुश्मन के बारे में 


मामी- मरने से पहले एक दिन तुम्हारे मामा ने मुझे काफी सारे रूपये दिए उनकी मौत के गम में माँ-पिताजी भी ज्यादा दिन नहीं पकड पाए और रह गयी मैं अकेली घर बार बेच कर कुछ पोलिसी थी तो खूब पैसा हो गया था तो मैंने इधर दुकान खोल ली और बिजनेस अच्छा चल पड़ा


ये एक और वज्रपात था मुझ पर नाना नानी भी नहीं रहे थे ये तक़दीर कैसे ज़ख्म दे रही थी आँखों में पानी भर आया था पर मामी के आगे मैं कमज़ोर नहीं पड़ना चाहता था 


मैं- मामी मैं लास्ट बार पूछ रहा हु की आखिर ऐसी कौन से मज़बूरी आन पड़ी थी 


वो- देव, तुम कभी नहीं समझोगे 


मैं- तो समझाती क्यों नहीं 


वो- सुनना चाहते हो तो सुनो तुम्हारे नाना तुम्हे यहाँ सिर्फ इसलिए अपने साथ नहीं ले गए थे की उनकी बेटी की एक मात्र निशानी बस तुम ही ही थे बल्कि इसलिए की अब उस दौलत के तुम ही वारिस थे देव, हर चीज़ ऐसी नही होती जैसी दिखती है तुम्हारे नाना की हसरत थी की कुछ भी करके वो दौलत तुमसे हथिया ले देव, रिश्ते नातो में प्रेम , ईमानदारी का जमाना बहुत पहले ख़तम हो चूका है क्या तुमने कभी सोचा की मामी ऐसे ही पट गयी तुमसे, ऐसे ही अपनी इज्जत तुम्हे सौंप दी माना की तुम जिस्मो के खेल के बाद खिलाडी रहे हो पर हर औरत ऐसे ही अपना जिस्म किसी को भी नहीं सौंप देती है 



ये सब तुम्हारे नाना के कहने पर किया मैं , मेरे और मेरे ससुर में अवैध सम्बन्ध थे ये बात तुम्हारे मामा को पता चल गयी थी और यही वजह थी जो उनकी अपने पिता से अनबन रहती थी देव कुछ सच ऐसे होते है जो बस छुपा लिए जाये तो बेहतर पर आज ये राज़ खुलना ही था तुम्हारे मामा का दोष बस इतना ही था की वो हालात की नजाकत को समझ नहीं पाए हां वो जलते थे तुमसे क्योंकि तुमने भी उसकी बीवी पर अधिकार कर लिया था , और फिर ना जाने कैसे तुम्हारे मामा को एक मोटी रकम का ऑफर मिला और बदले में बस इतना की उस दिन किसी तरह से तुमको घर से दूर उस जगह भेजा जाये
मैं- माना की तुम्हारी कही हर बात ठीक है पर मुझको सँभालने की जगह वो गोलिया तुमने चलायी थी मुझे इस बात का जवाब अभी तक नहीं मिला की क्यों ?


मामी- हम्म,, देव, मेरे दोनों बच्चो का किडनैप कर लिया गया था मुझे बस एक फ़ोन आया था जिसमे ये बात इंदु की सगाई से कुछ दिन पहले की ही थी , दोनों बच्चे फंक्शन के लिए चलने वाले थे सुबह ही उन्होंने फ़ोन करके मुझे बताया था की शाम तक वो आ जायेंगे , पर दोपहर को एक फ़ोन आया बस इतना कहा गया की अपने बच्चो की सलामती चाहती हो तो हमारा ये काम करना होगा मैं चिल्लाई उस पर मुझे लगा कोई मजाक कर रहा है पर जब मैंने अपने बच्चो की चीखे सूनी तो मैं घबरा गयी उन्होंने साफ़ कहा था की अगर किसी को जिक्र भी किया तो अपने बच्चो को कभी दुबारा नहीं देख पाओगी मैं बुरी तरह डर गयी थी , पूरा दिन बस गुमसुम पड़ी रही याद है जब तुमने आके मेरा हाल पुछा था ये उस दिन की बात है अब मैं तुम्हे क्या बताती की क्या कीमत मांगी गयी है अपनी औलाद की सलामती की 



मैं रोती रही बिलखती रही जूझती रही अपने मन में उठ रहे उस तूफ़ान से और फिर अगले दिन फिर से उनका फ़ोन आया की अगर तुमने देव को नहीं मारा तो तुम्हारे बच्चो की लाश भी देखने को नसीब नहीं होगी बताओ मैं क्या करती एक माँ की ममता के आगे तुम्हारी मामी हार गयी देव तुम्हारी मामी हार गयी , और फिर वो दिन आया उस शाम् मुझे फ़ोन आया की सोच लो देव चाहिए या बच्चे मैं मजबूर थी तो क्या कहती और जब मैं वहा पहुची तो देखा तुम खून से लथपथ तड़प रहे थे आधे बेहोश थे तुम और दिल पर पत्थर रख कर मैंने गोलिया दाग दी 


मैं तुम्हारी गुनेहगार हु देव, तुम जो चाहे सजा दो हर सजा मंजूर है मुझे ये कह कर वो फफक कर रो पड़ी मैंने कोई कोशिश नहीं की उन्हें चुप करवाने की 


मामी- देव, वो गोलिया मैंने तुम पर नहीं बल्कि अपने आप पर चलाई थी उस दिन से आज तक हर पल मैं मरती आई हु अपनी आत्मा पे लिए इस बोझ को कैसे जी रही हु बस मैं ही जानती हु तुम्हारे मामा चले गए सब ख़तम हो गया तो मैंने ये मुखोटा ओढ़ लिया 


मैं- तो वो फ़ोन करने वाले कौन थे 


वो- तुम्हारी कसम देव मैं बिलकुल नहीं जानती 


मैं-तो बात घूम फिर कर वही पर आ गयी 


वो- सच देव, मुझे इस बारेमे कुछ नहीं पता 


मैं- आदमी ने फ़ोन किया था या औरत ने

वो-औरत ने 

मैंने एक गहरी सांस ली और वहा रखे जग से थोडा पानी पिया 

मैं- चाचा से शादी कब की तुमने 


मामी- तुम्हे पता चल गया 

मैं- हां 

वो- तुम्हारे जाने के एक साल बाद , तुम्हारे चाचा को तुम्हारे हमले से बड़ा दुःख पंहुचा था इस खबर से जैसे टूट गए थे वो , हर हफ्ते वो आते सबसे पूछते, सुराग ढूंढते और ऐसे ही हम लोग एक दुसरे के नजदीक आ गए ऐसा नहीं था की मुझे सहारे की जरुरत थी पर एक जवान औरत का अकेला जीना बड़ा मुश्किल होता है देव तो कुछ सोच कर हमने साथ रहने का फैसला ले लिया 


मैं- अच्छा किया 


वो- मिलोगे नहीं अपने चाचा से 


मैं- वो मेरे कुछ नहीं लगते 


उसके बाद मैं खड़ा हुआ और वहा से निकल आया पिस्ता मेरा इंतजार कर रही थी 
वो-कहा चले गए थे तुम 


मैं- बस ऐसे ही तुमने पसन् किया कुछ 


वो- नहीं , वैसे भी हम यहाँ कुछ खरीदने नहीं आये थे है ना 


मैं हल्का सा मुस्कुरा दिया , हम लोग गाँव के लिए चल पड़े पर मेरे सीने में दर्द उठने लगा था सर भारी हो रहा था मैंने अपनी आँखे बंद कर ली दर्द से ध्यान भटकने की पूरी कोशिश की पर ऐसा होते रहता था मेरे साथ बड़ी मुस्किल से वो सफ़र पूरा किया डगमगाते हुए कदमो से घर की और बढ़ रहा था पसीने से तर हो गया था शरीर जैसे ही घर के बाहर चबूतरे तक पंहुचा मैं वही गिर गया आँखे जैसे दर्द से फटने को हो गयी थी मैंने अपनी शर्ट फाड़ डाली और अपनी छाती की मसलने लगा 


पिस्ता ने मुझे अपनी गोदी में लिया और मेरे सीने को सहलाने लगी मुझे तड़पता देख कर उसकी रुलाई छुट पड़ी उसके आंसू मेरे चेहरे को भिगोने लगे धीरे धीरे सब धुंधला होने लगा अँधेरा छा गया , पता नहीं उसके बाद कब होस आया देखा तो मैं अन्दर लेटा हुआ हु कुछ लोग मेरे पास बैठे थे मेरे होश में आते ही पिस्ता मुझ से लिपट गयी और जोर जोर इ रोने लगी 
मैं- कुछ नहीं हुआ पगली, ऐसा दर्द होता रहता है ये जो ज़ख्म है सब इनकी मेहरबानी है 


पिस्ता- तुम्हे कुछ हो जाता तो 


मैं- कुछ नहीं होगा पगली


मैंने उसे अपने से अलग किया और देखा की रतिया काका, राहुल , काकी सब वही थे सब के चेहरे पर टेंशन थी जब मैंने उन्हें बताया की कुछ पुराने ज़ख्मो की वजह से अक्सर ये दर्द उठता है तो उनकी फिकर थोड़ी कम हुई फिर पिस्ता ने मुझे शाम तक बिस्तर से उठने नहीं दिया वो दिन बस ऐसे ही गुजर गया अगले दिन ताई गीता मिलने आई थी उसको शायद मालूम हो गया था पिस्ता को देख कर वो चौंकी और उन्होंने पूछ ही लिया की ये मेरे साथ क्या कर रही है और मैंने भी सीधा बता दिया की ये मेरी पत्नी है ताई को बड़ा. आश्चर्य हुआ पर वो फिर बात टाल गयी 


ताई दोपहर तक रही हमारे साथ फिर वो चली गयी उसके बाद मैंने और पिस्ता ने लंच किया उसके बाद हम लोग खेतो की तरफ घुमने चल दिये पिस्ता भी बोर हो रही थी तो हम बाते करते हुए हम पहुचे 


मैं-याद है ये मेरा कुआ था और वो थोड़ी दूर तेरा और अपनी मुलाकात भी तो यही हुई थी 


वो- मैं कैसे भूल सकती हु हां बस अब इतना है की ये खेत अब मेरा नहीं रहा भाई ने इसको किसी और को दे दिया है बस हर फसल के आधे पैसे ले लेता है 


मैं- उदास क्यों होती है ये सब तेरा ही तो है तू कहे तो अभी खाली करवा लू ये खेत 

वो- ना रहने दे बस तुम हो अब किसी चीज़ की आस नहीं तुम्हे पाकर मैं पूरी हो गयी हु 


मैं- वो भी क्या दिन थे ना, याद है इसी जगह मैं बिस्तर लगाके रेडियो सुना करता था कैसे हम मिला करते थे ये धरती गवाह है हमारे प्यार की 


वो- हां
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