Raj sharma stories चूतो का मेला
12-29-2018, 03:02 PM,
RE: Raj sharma stories चूतो का मेला
नीनू-क्या लगता है 



मैं- किस बारे में 



वो – हम अभी तक सोने के बारे में ही सोच रहे है इतना कैश निकला है उसका क्या वो कैश ही है सोनी को बेच कर नहीं कमाया गया है वैसे भी करोडो के सोने को बेचना कोई आसान तो है नहीं 



मैं- क्या कहना चाहती हो 



वो –यही की नगद रकम का मामला अलग है 



मैं- भाड़ में जाए , सोना हो या रकम मुझे कोई वास्ता नहीं मुझे मेरा चैन सुकून वापिस मिल जाये और कुछ नहीं चाहिए मुझे दो पल जिंदगी आराम से जी लू वही बहुत है 



वो- उसी जिंदगी के लिए तो हम सब कर रहे है ना 



मैं- वो दिन भी क्या दिन थे ना कोई चिंता थी ना कोई फ़िक्र 



वो- तुम तब भी आवारा थे आज भी हो , याद है मैं तुम्हरे ही गाँव में तो पढने आती थी वो साइकिल चलाना कई बार रस्ते में गीत गुनगुना अब तो मोबाइल हो गए वो इशारो वाले ज़माने गए 



मैं- सही कहती हो अपने टाइम की बात ही अलग थी 



कई बार मैं जा रहा होता था तुम साइड से घंटी बजा के निकल जाया करती थी अब वो बात कहा काश कोई लौटा दे मेरे बीते दिन , वो जब तुम टिफिन में मेरे लिए आधा खाना छोड़ दिया करती थी आचार कितना अच्छा बनाती थी तुम 



वो- हां, माँ आचार सबसे बढ़िया बनाती थी मैं उंगलिया चाटने लग जाती थी पर अब कहा वो स्वाद, अब तो बात ही गयी 



मैं- बात कैसे गयी और हाँ वैसे भी इन सब टेंशन के बीच हम तुम्हरे घर जाना तो भूल ही गए एक काम करो हम भी तुम्हारे गाँव चल रहे है 



नीनू- नहीं देव, अब जो पीछे छूट गया उसका क्या फायदा उस घर के दरवाजे बरसो पहले मेरे लिए बंद हो चुके है वहाँ जाके कुछ हासिल नहीं होना सिवाय दर्द के 



मैं- नीनू, दर्द पर मरहम भी लगता है हम बस चल रहे है अभी इसी वक़्त 



वैसे भी कौन सा दूर था मेरे गाँव से अगला गाँव तो था ही करीब पन्द्रह मिनट बाद हम लोग नीनू के घर के लिए जो मोड़ जाता तह वहा थे तर्रक्की को गयी थी पक्की सड़के बन गयी थी पहले इधर बस नीनू का ही घर था पर अब तो अच्छा खासा मोहल्ला बन गया था 



नीनू- देव, गाडी वापिस मोड़ लो वहा काफी रोना पीटना होगा शायद तुम्हे भी कुछ बोल दे और वो बेइज्जती मैं बर्दाश्त नहीं कर पाऊँगी 



मैं- रे पगली, तेरे घरवाले मेरे भी घरवाले है कुछ बोल देंगे तो क्या आफत आ जानी है हम किसी गैर के घर नहीं आये है हम अपनों के घर आये है 



मैंने गाडी आगे बढाई नीनू थोड़ी नर्वस होने लगी थी पर अब जाना तो जाना ही था पांच मिनट बाद मैंने गाड़ी नीनू के आँगन में रोक दी उसके पिता वही बैठे थे हुक्का पी रहे थे हम गाड़ी से उतरे नीनू को देख कर एक पल उनकी चेहरे के भाव बदले पर वो उठे नहीं बस बैठे ही रहे हम लोग वहा गए मैंने उनके चरण स्पर्श किये तो वो कुछ नहीं बोले 
तभी नीनू की माँ भी आ गयी वो हमारी तरफ आने लगी पर फिर देहलीज पर ही रुक गयी 



मैं- नीनू बात करो 



नीनू- पापा बोली वो भराए गले से 



पापा- जब तुम चली ही गयी थी तो क्या लेने आई हो अब 



मैं- पापा, हमारी बात सुनो एक पल 



वो- तुम कौन हो 



मैं- इसका पति 



वो- अच्छा तो तू है जिसने मेरी बेटी की जिन्दगी बर्बाद कर दी 



मैं- आप हमारी बात सुनिए बेटी बरसो बाद घर आई है कम से कम झूठा ही सही मुस्कुरा तो दीजिये 



मैंने मांजी की तरफ देखा और बोला- ये तो आना नही चाहती थी पर वो क्या है ना मैंने सुना की मांजी आचार बहुत अच्छा बनाती है तो मैं खुद को रोक ना सका और दौड़ा आया 



मांजी ये सुनते ही मुस्कुरा पड़ी मैं समझ गया काम बन जायेगा 





पापा- बात तो बहुत मीठी करता है तभी मेरी बेटी को फांस लिया 



मैं- पापा आपके मन में जी इतने दिनों से नीनू की प्रति गलतफहमी है वो दूर करने आया हु ये ना तब गलत थी ना अब गलत है पर पहले थोडा पानी वानी तो पिला दो 



पापा उठे और हमे अन्दर आने का कहा नीनू की धडकनों को महसूस कर लिया मैंने , बरसो बाद वो अपने कदम रखने जा रही थी अपने घर में पानी पिया उसके बाद मैंने सारी बात बता दी उनको और साथ ही ये भी की मैं किस गाँव का हु और किस परिवार का हु 



पिताजी का नाम सुनते ही नीनू के पिताजी की आँखे चमक उठी बोले- बस बेटे और कुछ कहने की जरुरत नहीं तुम्हारे परिवार से तो बरसो से उठना बैठना था हमारा अरे तुम्हारे ताऊ और मैं फौज में साथ ही नौकरी करते थे वो थोडा पहले रिटायर हो गया था मैं थोडा बाद में पर फिर पता लगा की पूरा परिवार ही ख़तम हो गया तो बड़ा दुःख हुआ 



और ये भी पगली, इसने अगर साफ़ साफ़ बता दिया होता तो मैं खुद आगे चल कर तुम दोनों का ब्याह करवा देता इसको बता देना चाहिए था इतने दिन से चिंता थी की बेटी कैसी है किस हाल में होगी पर अब चिंता दूर , शायद इसे ही कहते है विधि का विधान अब मैं लोगो को गर्व से बताऊंगा की मेरी बेटी भाग के नहीं गयी थी बल्कि किस खानदान की बहु है 



पापा की आँखों से आंसू निकलने लगी नीनू अपने पिता के गले लग गयी फिर मा के थोडा भावुक सा माहौल हो गया था उसके घरवाले सज्जन लोग थे पल में ही सब गिले शिकवे ख़तम हो गए थे अपने को और क्या चाहिए था घरवाली खुश हो गयी थी तो अपन भी खुश थे बातो बातो में शाम हो गयी थी अब चलने का समय हो गया था पर नीनू के पापा की जिद थी की रात का खाना खाकर ही जाए तो फिर और देर हो गयी उसकी मा चाहती थी की नीनू कुछ दिन और रहे तो मैंने कहा जल्दी ही वो आ जाएगी 



उसके बाद हम अपने घर के लिए चले गाँव से बाहर आते ही नीनु ने मेरे हाथ को कस के पकड लिया मैंने गाड़ी रोक दी साइड में उसकी आँखों में आंसू थे दो पल उसने मेरी तरफ देखा और फिर अपने होंठ मेरे होंठो पर रख दिए
बहुत देर तक वो मुझे चूमती रहे दीवानों की तरह जब तक की सांसे जिस्म से बगावत ना करने लगी बस उसने बिना कहे ही सब कुछ कह दिया था उसने मेरे कंधे पर सर रख दिया मैं गाडी धीरे धीरे चलाने लगा बस जीना चाहता था उन लम्हों को दिल दिल से बाते कर रहा था हवा अचानक से खुशगवार लगने लगी थी घर कब आ गया पता ही नहीं चला बेशक उसने लफ्जों में कुछ नहीं कहा था पर फिर भी मैंने समझ लिया था की उसके दिल में क्या है घर आने के बाद वो अपने कमरे में चली गयी 



मैं बाहर ही चारपाई पर लेट गया मैं सोच रहा था अपने बारे में नीनू के बारे में हम सब के बारे में पहले सब कितना सही था पर अब हर पल पल पल जिंदगी में बस दुःख ही था अजीब सी लाइफ हो गयी थी सोने का पता दो लोगो को था फिर लोग जुड़ते गए आधा निकाला गया बाकि कोई और ले गया अब रतिया काका का चरित्र जिस तरह से निकला था उस से ये भी अंदेसा था की वो मुझसे झूठ बोल रहे हो ऐसा भी हो सकता था की उन्होंने पिताजी से पहले ही वो खजाना वहा से साफ़ कर दिया हो 



और फिर अपना वो ही शराफत का नकाब ओढ़ लिया हो ऐसा हो भी सकता था पर उनका वो एक्सीडेंट बहुत ही मुस्किल से बचे थे वो तो फिर वो ऐसा जानलेवा रिस्क नहीं लेंगे, बात यहाँ पर आके अटक गयी थी और फिर कंवर को किसने मारा वो भी तो बात उलझी हुई थी अब उसके बारे में दो बात थी या तो उसको बिमला या चाचा ने मार दिया या फिर उसकी जान भी खजाने के चक्कर में गयी दूसरी बात की सम्भावना ज्यादा थी क्यंकि उसकी लाश भी तो उसी जमीन में मिली थी दूसरी तरफ हरिया काका उसकी मौत भी शायद इसलिए हुई थी की उसको भी कुछ मालूम था पर क्या ?


बस इसी सवाल का जवाब नहीं था मेरे पास माधुरी ने सही कहा था एक बार कंवर की मौत कैसे हुई इस कड़ी को भी देखना चाहिय था पर पंगा ये था की टाइम बहुत बीत गया था तो हर कड़ी जैसे खो सी गयी थी उसकी मौत के बारे में हमे या फिर कातिल को ही पता था बिमला चाहे लाख नीच थी पर मेरे अंदर इतनी हिम्मत नहीं थी की उसको बता सकू की वो जो सिन्दूर अपनी मांग में लगाती है पोंछ दे उसे तोड़ दे उन चूडियो को जो उसकी कलाई में सजी है 



पर जो भी था इनसब के पीछे वो बहुत ही शातिर खेल खेल रहा था बिलकुल चुप था मैंने मंजू के रस्ते खजाने वाला दांव खेला तो था पर क्या होना था ये देखने वाली बात थी पैसे में बहुत शक्ति होती है और तभी मुझे याद आया की उन नकद रुपयों का क्या लेना देना है काका के अनुसार बस सोना ही था पर पिताजी के पास नकदी थी तो वो कहा से आई इस छोटे शहर में करोडो का सोना बेचना मुमकिन ही नहीं था शायद ये ऐसी ही बात थी की पिताजी ही जानते थे पर कैसे कोई तो सुराग कोई को बात होगी जिस से मुझे कुछ तो पता चले 



कंवर बिमला की कोठी से निकला पर यहाँ नहीं पंहुचा उसकी लाश मिलती है अलग जगह पर , ओह तभी मुझे ध्यान आया वो रास्ता ममता जिस से भागी थी उस चोराहे से दो रस्ते जाते थे एक बिमला की तरफ और एक रतिया काका की फर्म पर तो शायद हुआ ऐसा होगा की बिमला से झगडे के बाद कंवर घर से निकला और रास्ते में उसके साथ कुछ हुआ पर वो सीधा गाँव के रस्ते को छोड़ कर उस रस्ते क्यों गया शायद वो कातिल को जानता था पर ऐसा क्या हुआ होगा की इंसान अपना सीधा रास्ता छोड़ कर उजाड़ का रास्ता लेगा सोचने वाली बात थी 
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RE: Raj sharma stories चूतो का मेला - by sexstories - 12-29-2018, 03:02 PM

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