Raj sharma stories चूतो का मेला
12-29-2018, 03:03 PM,
RE: Raj sharma stories चूतो का मेला
मैं चाह कर भी कुछ नहीं कर पाया था अवंतिका मेरे सर से छत टूट गयी थी एक पल को मेरे पिताजी जिन्होंने हर परिस्तिथि में ढाल बन कर मेरा संरक्षण किया था पल भर में ही एक इंसान लाश बन गया था क्या नहीं था मेरे पर फिर भी मैं अपने पिता को नहीं बचा पाया था बहुत देर तक उनको अपने आप से अलगाए मैं रोता रहा एक आस थी की वो अपने बेटे से बात करेंगे पर वो जा चुकेथे सोचो जरा उस बेटे पर क्या गुरी होगी जब उसने कफ़न उठा कर अपनी माँ को देखा होगा वो मुस्कुराता चेहरा रक्त-रंजित पड़ा था सर फट गया था साइड से कोई कोई और देखता तो उलटी कर देता पर मेरी माँ थी वो 


जिसकी वजह से मैं इस दुनिया में था जिसके आँचल के तले मैंने जीना सीखा था जिसकी गोद में सर रखने भर से मैं चिंता मुक्त हो जाता था जब वो प्यार से मेरे बालो में हाथ फेरती थी तो लगता था की ज़माने भर की ख़ुशी पा ली है मैंने जब किसी गलती पे पिताजी से डांट पड़ती तो वो माँ ही थी जो मेरा पक्ष लिया करती थी समय अपनी रातर से बढ़ गया पर अवंतिका मैं आज भी उसी मोड़ पर खड़ा हु जहा उन्होंने मेरा हाथ छोड़ा था 


वो मासूम बच्चे, ताऊ-ताई सब ख़ाक हो गया और जो बचा है वो उत्महरे सामने है तुम ही बताओ इन नालायको को कैसे अपनाऊ मैं कैसे सीने से लगाऊ इन को सब डूबे है अपनी हवस में अपने काम से काम है पर ये कोई नहीं पूछता की देव कैसा है किस तकलीफ से गुजर रहा है देव 


अवंतिका ने मुझे अपनी बाहों में भर लिया पर कुछ बोली नहीं शायद वो भी जानती थी की इस दर्द से बस मुझे ही जूझना है सोचा तो था की अवंतिका को एक रात और रगड़ना है पर साला मूड सैड सैड हो गया था अब ऐसे में अपने से चूत मारी जाती रात भी काफी हो गयी थी अवंतिका ने काह की मैं यही रुक जाऊ सुबह साथ चलेंगे पर दिल टूट सा रहा था बिन पिए ही नशा सा होने लगा था अवंतिका ने बार बार कहा की मैं रुक जाऊ गाँव दूर है पर अब इसे होनी कह लो या फिर जिद अब कहा किसी की सुननी थी माननी थी 


जैसे तैसे करके गाँव तक आया मैंने गाड़ी को रतिया काका की जो पुरानी दुकान होती थी वही लगा दिया क्योंकि गली में और साधन खड़े थे शायद रिश्तेदारों के हो पेशाब आ रहा था बड़ी तेज से तो तो मैं साइड में जाके पेशाब करने लगा चारो तरफ संन्नाता था बस हवा चल रही थी टाइम पता नहीं कितना हो रहा था मूत के आ रहा था की मैंने देखा कोई औरत खेतो की तरफ जा रही थी गली की इस तरफ रौशनी थोड़ी कम थी पर मैंने उसको पहचान लिया था वो मंजू थी 


अब इतनी रात को इसको क्या चुदास लगी है ये कहा जा रही है एक पल को सोचा की शायद टट्टी जा रही होगी पर इतनी रात को किसी को साथ ले जाती कुछ गड़बड़ सी लगी और कल उसने मुझसे अलग तरीके से बात की तो मेरे मन में हुड़क लगी की ये कहा जा रही है तो मैं छुपते छुपते उसके पीछे चलने लगा , बस्ती पीछे रह गयी थी सेर सुरु हो गया था दोनों तरफ पेड़ थे खेत थे पर वो चलती जा रही थी अपनी धुन में 


ये तो हमारे कुवे पर आ गयी थी मैंने सोचा कही कुवे में कूद के जान तो ना देगी हो भी सके था मैं पास में ही चुप चाप खड़ा हो गया वो कुवे की मुंडेर पर ही बैठ गयी बस बैठी रही पांच मिनट दस मिनट खामोश शायद इंतजार था किसी का या अपने आप ही शायद वो रो रही थी मैं उसके पास गया वो मुझे देख कर चौंक गयी 


मंजू- देव, तू यहाँ क्या कर रहा है 


मैं- मेरी छोड़ तू इतनी रात गए यहाँ क्या कर रही है 


वो- दिल नहीं लग रहा था नींद नहीं आ रही थी जबसे तूने बापू के बारे में बताया कुछ भी अच्छा नहीं लगता तो सोचा इधर आके बैठ जाऊ क्या पता मन हल्का हो जाये 


मैं- देख, मंजू मैं तुझे बताना नहीं चाहता था पर मेरे पास और कोई रास्ता भी तो नहीं था अब हमे इसी सच के साथ जीना होगा 



वो- देव, ये सच हर पल मुझे तड्पाएगा जब भी बापू का ख्याल आएगा मैं क्या सोचूंगी 


मैं- मंजू, उन्होंने गलत किया था हरिया काका को मारना कहा का इन्साफ था किस लिए मारा उनको की बस शक था ,शक तो मुझे भी सब पे है तो क्या सबको मार दू काका ने पैसे के दम पे गाँव की कितनी औरतो का शोषण किया उन्होंने क्या दुआए दी होंगी तुम्हारे पिता को जिस भी औरत की तरफ देखा उसे अपने बिस्तर पर घसीट लिया चलो कोई सेटिंग हो तो अलग बात होती है पर मजलूमों का शोषण किस लिए सिर्फ अपनी भूख मिटाने के लिए और भूख भी ये जो कभी मिटती ही नहीं 


उन्होंने तो अपनी बेटी को भी नहीं छोड़ा चढ़ गया उस पर भी , गलत हम सब है तुम, मैं , राहुल भाई बहन के रिशतो की धज्जिया उड़ा डाली ये हवस हमे विरासत में मिली है मंजू हम जिए भी इसके साथ ही पर उनमे और हममे ये फरक है की हमने किसी को मजबूर नहीं किया हमने जो किया अपनी मर्ज़ी से किया 
मंजू- ये तो वो बात हुई की तुम्हारा पापा ज्यादा है मेरा कम कम 


मैं- हमाम में तो सब नंगे है मंजू 


वो- देव, तुझे क्या लगता है बापू को किसने मारा होगा 


“मैंने ” मैंने मारा है उस दुष्ट, घटिया पतित इंसान को मैंने आवाज बिलकुल मेरे पीछे से आई थी मैं मुड़ा और तभीईईई

आवाज बिलकुल मेरे पीछे से आई थी और जैसे ही मैं पीछे को मुड़ा बदन में दर्द सा हुआ आँखे जैसे बाहर को आ गयी चक्कू मेरे पेट में घुस गया था आँख से आंसू निकल पड़े इस से पहले की मैं कुछ भी समझ पता क्योंकि उसके चेहरे को देखते ही मुझे यकीन नहीं हुआ की ये जिसपे मैंने हद से ज्यादा विश्वास किया वो मेरे साथ ऐसा करेगी उसने तुरंत ही एक और वार किया खून की धारा बह निकली थी पर वो नहीं रुकी एक के बाद एक वार करती ही गयी पेट पूरा काट डाला उसने मुह ने नाक से खून बह चला मैं लहरा कर गिरा जमीन पर 


बस कुछ ही देर में उसने अपना काम कर दिया था वो हंसी जोरो से हाँ मैं देव हां मैं 
“देव, ”मंजू जोर से चीखी 


मैं- bhaaggggggggggggggggggggggggggg मंजू भाग यहाँ से 


पर वो तो जैसे जाम ही हो गयी थी , उसने मुंडेर के पास पड़ी बाल्टी दे मंजू के सर पर चीख मारते हुए वो लहरा कर गिरी निचे मैं चिल्लाया पर कोई फायदा नहीं था 


“चिल्ला ले, देव जितना चीखना है चीख ले पर आज तेरी कोई नहीं सुनने वाला कोई नहीं सुनेगा , और तू ऐसे नहीं मरेगा मरने से पहले तुझे ये जानने का पूरा हक़ है की आखिर क्यों तेरी जान जा रही है , जान जैसे तेरे बाप की गयी थी जैसे रतिया की गयी थी वैसे ही तेरी ”

तेरे लिए ये समझना मुश्किल होगा की आखिर क्यों मैंने ये सब किया जबकि तूने हद से ज्यादा मेरा भरोसा किया इतना विश्वास कोई अपनों पर नहीं करता जितना तूने मुझे किया, ये कहना झूठ होगा की तुझे मारते हुए मुझे तकलीफ नहीं होगी पर क्या करू कलेजे पर पत्थर तो रखना ही होगा य भी सच है मुझे अच्छा लगता था तू बहुत अच्छा ये कहू की शायद चाह सी होने लगी थी तेरी तो गलत नहीं होगा पर तुझे भी मरना होगा , तुझे भी मरना होगा 


“आह , तुझे मेरी जान चाहिए ना तो ले लेले अरे एक बार कह देती तुझे भी मैंने खूब चाहता क्या नहीं किया तेरे लिए पर अगर तुझे मेरे खून की प्यास है तो ठीक है मार दे मुझे पर ये बात मेरी मौत के साथ ही ख़तम हो जानी चाहिए वर्ना कल को कोई किसी पर भरोसा नहीं करेगा ”

वो- भरोसा, देव कितना अच्छा लगता है ये सुनने में भरोसा कभी मैंने भी किया था भरोसा पर क्या मिला मुझे कुछ नहीं सिवाय दर्द के उअर ये दर्द उसने दिया जिसे जिसपे मैंने भरोसा किया था तेरे बाप पे टूट की भरोसा किया था पर क्या मिला मुझे क्या मिला वो चीखीईईईईईईईईइ 


वो- ये जो हवस तुम्हे हर समय चढ़ी रहती है ना ये तुम्हे विरासत में मिली है अपने बाप से वो भी तुम्हारी ही तरह था बिलकुल ऐसे ही और उसको भी बड़ी चाह थी मेरी, जैसे तुम मेरी फ़िक्र करते हो वैसे ही वो भी करता था एक जमाना था जब मेरी जवानी जोरो पे थी जब मैं इठला के चलती थी तो ना जाने कितनो के दिल आहे भरते थे तुम्हारे पिता रोज खेत में जाते मैं आती तुम्हारे खेतो में काम करने नजरो ने नजरो को पढ़ लिया था दिल धड़क उठे थे और ना जाने कब मैंने खुद को तुम्हारे पिता को समर्पित कर दिया 


उसकी दीवानगी भी ठीक ऐसे ही थी जैसी तुम्हारी है मेरे लिए जब मेरी जिंदगी में तुम आये और जिस तरह से तुम मेरे तन मन पे छा गए मुझे ऐसा लगता की मैं आज भी तुम्हारे पिता की बाँहों में हु दिन गुजरते गए जिंदगी आगे बढ़ने लगी तुम्हारे पिता और मैं पहले की तरह नहीं मिल पाते पर उसने कभी मुझे कोई कमी नहीं होने दी 


मैं- तो फिर क्यों .......................... क्यों तुमने मारा , मेरी माँ उसका क्या दोष था और बाकि घरवाले क्यों ....
.
वो- किसी क कोई दोष नहीं था सिवाय तेरे बाप का सुन मैं बताती हु तुझे की उसका क्या दोष था सब सही चल रहा था पर मेरे पति ने अपनी गन्दी आदतों के लिए रतिया से कुछ कर्जा ले लिया जब मुझे पता चला तो खूब कलेश हुआ क्योंकि वो एक नीच आदमी था मेरा पति कहा से चुकता वो कर्जा हार कर मैंने तुम्हारे पिता से बात की उसने कहा की वो संभाल लेगा उसने मुझे पैसे भी दिए की मैं रतिया को लौटा सकू मैं पैसे देने गयी उस नीच को पर उसने मेरे पति का अंगूठा कोरे कागज़ पर लगवा लिया था 


उसने एक बहुत बड़ी रकम मांगी कहा से देती मैं , वो मेरे पिच्छे ही पड़ गया रस्ते में गली में रोक लेता मैं बहुत परेशान थी मैंने तेर बाप को बताई पर वो अपने घर की लड़ाई में बीजी था ऊपर से चुनाव आने वाले थे और फिर एक दिन उस अतिया ने अपनी नीचता दिखाई उसने कहा की वो मेरा सारा कर्जा माफ़ कर देगा अगर मैं उसकी रखैल बन जाऊ, रखैल 


सोच सकता है क्या गुजरी होगी मेरे ऊपर जब एक भेड़िया मेरी बोटी बोटी नोचने को तैयार था उस दिन मैं बहुत रोई घर आके मेरे पास बस तुम्हारे बाप का ही सहारा था मैंने उसे अपनी परेशानी बताई जैसा की मैंने कहा उसे मेरी उतनी ही फ़िक्र थी जितना तुझे है उसने रतिया से बात करने का आश्वासन दिया , पर उस नीच इन्सान को कहा किसी की परवाह थी उसे तो मैं एक माल नारज आ रही थी जसे वो अपने निचे लिटाना चाहता था तुम्हारा बाप खुद की परेशानी में ज्यादा उलझा हुआ था इधर रतिया ने मेरा जीना हराम किया हुआ और जब तुम्हरे पिता ने उस से इस बारे में बात की तो वो वो और ज्यादा परेशान करने लगा 



मैं कब तक सहती उसने तो अपने भाई जैसे दोस्त का मान भी ना रखा था और तुम्हरे पिता अपनी दोस्ती की वजह से उस पर ज्या दवाब भी नहीं दे पा रहे थे , और इर एक रात वो मेरे घर आया उसी कागज को लेकर उसने मुझसे कहा की अगर मैंने उसकी बात नहीं मानी तो वो चोरी के इल्जाम में मेरे पति को जेल में बंद करवा देगा और उस कागज़ पे मेरे पति का अंगूठा लगा है ये घर बार सब वो छीन लेगा मैं हद से ज्यादा मजबूर थी एक औअत की मज़बूरी की कीमत बहुत होती है

शिकारी शिकार के तैयार था मैंने रतिया से आधे घंटे की मोहलत मांगी और भागके तुम्हारे घर आई तेरे बाप के पास उस दिन टाइम नहीं था उसने कहा की बाद में मिलेगा अरे क्या बाद में दो मिनट नहीं थे उसके पास मेरी बात सुनने को आजतक उसका ही सहारा तो था मुझे उसके सिवा और किस दरवाजे पर जाती मैं मेरी आँखों से आंसू बह निकले हमारा नाता टूट गया उस दिन मैं रोते हुए घर आई पूरी रात उस दरिन्दे ने रौंदा मुझे उस रात मेरी आत्मा तार तार हो गयी 


जिस्म लुट जाने से ज्यादा मुझे आघात तेरे बाप ने दिया था अरे इतने बरस का उसका और मेरा साथ रहा एक मिनट मेरी बात सुनने लायक नहीं हुआ वो जिस इन्सान से आपको आ हो और वो ही आस तोड़े तो बहुत बुरा लगता है पर मैंने भी सोच लिया था की अब कभी भी तुम्हारे घर का दरवाजा नहीं देखूंगी चाहे कुछ भी हो रतिया लगातार मेरा शोषण करता रहा मैं लुटती रही मेरी आत्मा लहू लुहान होती रही पल पल मैं कोसती खुद को 


जी तो रही थी पर मर मर के और फिर मैंने तुमको देखा जब तुम लादेन को मार रहे थे मैंने उस दिन सोचा की मुझे भी अपना सहारा खुद बनना होगा और मैंने निर्णय लिया की मैं बदला लुंगी रतिया से चाहे कुछ भी करना पड़े याद है तुम्हे उस दिन जब मैं रतिया की दुकान पे थी जब तुम भी वहा आ गए थे थोड़ी देर पहले ही उसने लूटा था मुझे तुम मेरे घर आये मेरी मदद की पर जल्दी ही तुमने भी अपना रंग दिखा दिया आखिर हो भी तो उसी इन्सान के


रतिया का एक्सीडेंट मैंने करवाया पर साला बच गया तुम्हारे बाप की जान था वो उसने पूरा जोर लगा दिया ढूँढने को की किसने किया उस रात वो आया मेरे पास वो बोलता रहा मैं सुनता रहा बहुत गुस्से में था उसने हाथ उठा दिया मुझ पर, मुझ पर जिसने एक पत्नी से बढ़ कर प्यार किया उसको पर शायद यही मेरी औकात थी , मैंने बताया उसको की उसके दोस्त ने क्या किया था मेरे साथ पर जानते वो देव तुम्हारी और तुम्हरे पिता की यही एक कमी थी की वो हमेशा गलत लोगो पर भरोसा कर लेते थे 


वो ये मानने को तैयार ही नहीं था की उसका जिगरी इतनी घिनोनी हरकत कर सकता था वो भी जब की उसने खुद उसे मना किया था उसे मेरी आँखों में सच नहीं दिखा उसकी दोस्ती के आगे मेरा रिश्ता कमजोर पड़ गया मैने लाख दुहाई दी पर एक औरत की बात का कोई मोल नहीं होता जब देखो किसी खिलोने की तरह इस्तेमाल किया और फेक दिया , आज भी कुछ ऐसा ही था क्या मेरा रिश्ता इतना कच्चा था , शायद तभी तो उसने मेरी बात नहीं सूनी


तेरे बाप को उस नीच की जान की फ़िक्र थी मेरे आंसुओ की क्या कीमत थी सोच के देख मेरी हालत क्या हुई होगी उस समय वो रात क़यामत की रात थी मेरी आँखों में कुछ था तो प्रतिशोध मैंने कह दिया था की रतिया को मैं मार डालूंगी पर बीच में वो दिवार थी जिसे शायद मेरे पक्ष ममे खड़ा होना था पर चलो ये ही सही मैंने हॉस्पिटल में उसको मारना चाह पर तुम्हरे पिता उसकी ढाल बनके खड़े थे ना चाहते हुए भी उस गाड़ी के ब्रेक मैंने ही फ़ैल किये दिल बहुत रोया था मेरा पर जिस आग में मैं जल रही थी उसमे सबको झुलसना था 


जब भी मैं पिस्ता और तुमको देखती मैं तुम लोगो में खुद को और तुम्हारे पिता को देखती तुम मेरी जिंदगी में आ गए थे पर पता नहीं क्यों जब तुम मुझे हाथ लगाते तो लगता की तुमहरा बाप मुझे टच कर रहा है मैंने तुम्हारे घर को बर्बाद कर दिया था जब भी तुम मेरी नजरो के सामने आते मेरा दिल तुम्हे देख के रोता ,तुमने अपनी जमीन मुझे दी तुम्हारा अहसान था पर मेरे अंदर प्रतिशोध की जवाला कह रही थी की मैं सबको ख़तम कर दू क्यंकि तुम् भी उसका ही खून थे तुम्हारी भी चाह मेरे जिस्म की थी तुमने पैसोके जोर पे मेरे जिस्म को पाया था
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RE: Raj sharma stories चूतो का मेला - by sexstories - 12-29-2018, 03:03 PM

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