Porn Story गुरुजी के आश्रम में रश्मि के जलवे
05-01-2021, 02:22 PM,
#90
RE: Porn Story गुरुजी के आश्रम में रश्मि के जलवे
औलाद की चाह

CHAPTER 6 - पांचवा दिन

महायज्ञ की तैयारी-

‘महायज्ञ परिधान'

Update -29 part 2

पुराणों में यज्ञ महात्म्य के कुछ प्रसंग



महादानी बलि

शुक्राचार्य ने बलि से यज्ञ कराना आरम्भ किया। उस विश्वजित् यज्ञ के सम्पूर्ण होने पर,सन्तुष्ट हुए अग्नि ने प्रगट होकर ‘बलि को घोड़ों से जुता हुआ रथ’ दिव्य धनुष, त्रोण एवंअमेद्य कवच प्रदान किये। आचार्य की आज्ञा से उनको प्रणाम करके बलि उस रथ पर सवार हुएऔर उन्होंने स्वर्ग पर चढ़ाई कर दी। इस बार उनका तेज असह्य था। देवगुरु बृहस्पति के आदेश सेदेवता बिना युद्ध किये ही स्वर्ग छोड़ कर भाग गये।

कल्याण चरितांक पृष्ठ 249



सूत जी वानर वंश का वर्णन करते हुए कहते हैं—

बाली यज्ञ सहस्राणां यज्वा परम दुर्जयः।

ब्र. पुराण उपा. पा. 3 अ. 7


अर्थ—बाली ने सहस्रों यज्ञों का यजन किया ,इससे वह परम दुर्जेय बन गया।

सूत जी ऋषियों से कथा कहते हैं :—


नहुषस्य महत्मानः पितरं यं प्रचक्षते।

प तेष्ववभृथेप्वेव धर्मशीलो महीपतिः॥24॥

आयुरायभवायाग्र य मस्मिन् सत्रे नरोत्तमः।

शान्तयित्वा तु राजानं तदा ब्रह्मविदस्तथा॥25॥

सत्रमारेमिरे कर्त्तुपृथ्वीवत्सात्ममूर्त्तयाः॥

वभूव सत्रे तेषां तु ब्रह्मचर्य्य महात्मनाम॥26॥

ब्रह्माण्ड पु. पू. भा. प्र. पा. 1 अ.2


अर्थ:—राजा नहुष ने अपने पूर्वजों का अनुसरण कर अनेकों यज्ञ करके अवभृथ (यज्ञान्त) स्नानकिया यज्ञ करने से राजा में श्रेष्ठ नहुष, शान्त और ब्रह्मविद हो गया। उनकी आयु भी बढ़गयी। ब्रह्मचर्य पालन सहित किये हुए उनके यज्ञों से, पृथ्वी वैसी ही वात्सल्यमयी बन गयीजैसे बच्चों के लिये माता होती हैं।


मारकंडेय पुराण में यज्ञों सम्बन्धी अनेक विवरण और वर्णन प्राप्त होते हैं। राजा इन्द्रद्युम्न केपास इन्द्र नीलमणि द्वारा निर्मित एक बड़ी ही मूल्यवान प्रतिमा थी। इसके खो जाने परराजा को बड़ा दुख हुआ। दुखी होकर वह मृत्यु की गोद में जाने लगा तो विद्वानों ने इस दुख सेनिवृत्ति पाने के लिये एक बड़ा यज्ञ करने की सलाह दी। यज्ञ के फल स्वरूप राजा को वह खोईहुई मणि अनायास ही प्राप्त हो गई।


एक समय असुर प्रबल हो गए। पूर्ण विश्व को जीत कर स्वर्ग पर भी उन्होंने अपना अधिकारजमा लिया। दैत्यराज ने अपना राज्य स्थायी रखने की इच्छा की और इस हेतु वह इन्द्र के पासगया तथा पूछा ‘हमारा राज्य स्थिर कैसे रहे?’ इन्द्र ने सरल भाव से उन्हें यज्ञ करने का आदेशदिया। असुर यज्ञ परायण हो गए। वे यज्ञ करके शक्ति के अधिकारी बन बैठे और अजेय हो गए।विश्व में असुरों का ही राज्य दिखाई देने लगा देवता लोग निर्बल पड़ गए। स्वर्ग का राज्यउनसे छीन लिया गया।


देवों ने भगवान से प्रार्थना की। भगवान ने असुरों के पास ऐसे ऐसे दूत भेजे जो असुरों को यज्ञन करने की सलाह दें। उन छद्म दूतों ने बड़ा प्रभावशाली वेश बनाकर असुरों से कहा ‘हरे हरेतुम यह पाप क्यों करते हो। यज्ञ में हिंसा होती है। दैत्यों को यह मत उचित लगा और उन्होंनेअपना जीवन अयज्ञ मय बना लिया जिससे वे तेजहीन हो गए। देवों ने उन यज्ञहीन दैत्यों कोपराजित करके स्वर्ग का राज्य वापिस ले लिया।

स्वायम्भुव मन्वन्तर कल्प के प्रथम मन्वन्तर में देवता अनाहार से क्षीण हो रहे थे। देवों केदुर्बल होने से जगत भी नष्ट होने लगा। तीनलोक−चौदह भुवन इस अवस्था में व्याकुलता कोप्राप्त हो रहे थे।


देवों ने कृपासिन्धु से पुकार की। भगवान तो सदैव से दीनों की पुकार सुनने वाले हैं। महर्षिरुचि की पत्नी आकूति से वे प्रकट हुए। उन्होंने अग्निहोत्र की स्थापना की। उन्हीं के नाम सेअग्निहोत्र यज्ञ कहा जाने लगा। यज्ञ से देवों को भोजन प्राप्त हुआ। उन्हें शक्ति प्राप्त हुईऔर वे विजय प्राप्त करके संसार का कल्याण करने में समर्थ हो गये।

तृणावर्त्त राक्षस के निधन के उपरान्त उसके शरीर के संग श्रीकृष्ण भी मूर्च्छित पड़े थे। उसेलाकर नन्द यशोदा शिशु के प्राण रक्षार्थ यज्ञ करना आवश्यक मानकर यज्ञकर्ता को बुला लाते हैं—वे आकर आश्वासन देते हैं—

माशोकं कुरु हे नन्द हे यशोदे व्रजेश्वरी।

करिष्यामि शिशो रक्षांचिर जीवी भवेदयम्॥50॥

गर्ग संहिता गो. ख. 1 अ.14 श्लोक 50

अर्थ—हे नन्द! हे व्रजेश्वरी यशोदे! शोक मत करें, मैं शिशु की रक्षा (यज्ञ द्वारा) करूंगा, येचिरंजीवी होंगे।

इत्युक्त्वाद्विजमुख्यास्ते कुशाग्रैर्नपल्लवैः॥

पवित्रकलशैस्तोयैस्ऋग्यजुः सामाजैःस्तवैः॥51॥

परेःस्वस्त्ययनैर्यज्ञं कारयित्वा विधानतः॥

अग्निसंपूज्यविधिवद्रक्षां विदधिरेशिशोः॥52॥

—गर्ग. संहिता गो. ख. 141 श्लोक 51−52

अर्थ− ऐसा कह कर द्विज श्रेष्ठ ने कुश, नव पल्लव, पवित्र जल सहित कलशादि यज्ञ पूजनसामग्री मंगाई और ऋक्, यजुः एवं साम के मन्त्रों से हवन किया, स्वास्ति वाचन किया, इसकेउपरान्त विधिपूर्वक यज्ञ कर्म सम्पन्न करके शिशु का प्राण रक्षण किया। 51−52

बहुलाश्व के पूछने पर नारद जी सूर्यवंश के परि विख्यात राजा मरुत के सुप्रसिद्ध यज्ञ कावर्णन करते हुए कहते हैं—

ब्रह्मरुद्रादयोदेवाः सगणास्तत्रागता।

ऋषयो मुनयः सर्वेतस्य यज्ञं समाययु॥13॥

गर्ग. सं. वि. ख. अ. 1

अर्थ—ब्रह्म, रुद्रादि देवता गण समेत उस यज्ञ में पधारे थे, ऋषि मुनि सभी उस यज्ञ में आये थे।

केपिजीवास्त्रिर्क्या तु न बभूवुर्बुभुक्षिताः॥ सर्वे देवास्तु सोमेनह्यजीर्णमुपागता॥18॥

अर्थ—मरुत के उस महायज्ञ में तीनों लोक के कोई भी प्राणी भूखे नहीं रहे। देवगणों को तोसोमरस पीते−पीते अजीर्ण हो गया।

उग्रसेन जी के पूछने पर व्यास मुनि बताते हैं कि किस कर्म के करने से क्या गति मिलती है।

यज्ञ कर्त्ता शक्रलोके वसते शाश्वतीः समाः॥

दानी चान्द्रमसं लोकं व्रती सौरंव्रजत्यलम॥10॥

गर्ग संहिता वि. ख. 9 अ. 1 श्लोक 10

अर्थ—यज्ञ करने वाला इन्द्रलोक में शाश्वत काल तक निवास करता है, दानी चन्द्रलोक औरव्रती सूर्यलोक को जाता है।

अश्वमेध यज्ञ की प्रशंसा सुनकर उग्रसेनजी श्री कृष्ण भगवान के निकट जाकर कहते हैं—

देवदेव जगन्नाथ जगदीश जगन्मय॥

वासुदेव त्रिलोकेश शृणुश्य वचनं मम॥20॥

मत्युत्रेणच कंसेनबालकाश्च सहस्रशः॥

विनापराधेनहरेमारिताश्चमहासुरैः॥21॥

तस्यमुक्तश्च गोबिन्द कथं भवति पापिनः॥

कस्मिंल्लोके गतःकंसो बालघाती बदस्वमाम्॥22॥

तस्यपापेनाहमपि मीतोऽस्मिजगदीश्वर॥

पुत्रस्य पापेनपिता नरके पतति ध्रुवम्॥23॥

कथितंनारदेनाद्यतच्छृणुप्व जगत्पते॥

विप्रहाविश्वहामोध्नो हयमेधेन शुध्यति॥25॥

—गर्ग संहिता अश्व. ख. 10 अ. 7

अर्थ—उग्रसेन ने श्री कृष्णजी से कहा—हे देवों के देव! हे जगन्नाथ! हे जगदीश! हे जगन्मय! हेत्रिलोकेश! हे वासुदेव! मेरी बात सुनिये॥20॥ मेरे पुत्र महासुर कंस ने हजारों बालकों की बिनाअपराध के ही हत्या की है, हे गोविंद! उसकी मुक्ति कैसे होगी, यह मुझे कहिये और अभीबालघाती कंस मर कर किस लोक में गया है॥21-22॥ हे जगदीश्वर! उसके पापों से मैं बड़ाभयभीत हूँ, क्योंकि पुत्र के पाप से पिता को अवश्य नरक की यातना भुगतनी पड़ती है॥23॥ हेजगत्पते! नारद ने जो मुझ से कहा है सो सुनिये—उन्होंने कहा है, कि अश्वमेध यज्ञ करने से विप्रहत्यारा गौहत्यारा तथा विश्व को वध करने वाला भी शुद्ध हो जाता है।

कृष्ण के आदेश से राजा उग्रसेन ने महा यज्ञ किया।

यदा यजति यज्ञैश्च तदा शून्या वसुन्धरा।

सर्वा भवति राजानं तदा गच्छतिवै जनः॥

यश्च याति जन स्तस्य यज्ञे राज्ञो महात्मनः॥

किमिच्छकै स्तदा राज्ञा सर्वःसम्पूज्यते तदा॥


वि. ध. पु. अ. 137 श्लोक 1,2,3,4,14,15

अर्थ—जब गंधर्वों ने उपदेश दिया, तब राजा पुरूरवा, अपने नगर में जाकर, अग्नि उपासना मेंतत्पर हुए। धर्म के द्वारा प्रजा का पालन करते हुए बहुत यज्ञों द्वारा यजन किया।

सैकड़ों अश्वमेध, हजारों वाजपेय अतिरात्रि, द्वादशाह यज्ञों द्वारा बार बार यजन करकेसप्तद्वीप समुद्रों वाली पृथ्वी का चक्रवर्ती राजा हुआ, आमानुसिक बल से उसने सम्पूर्ण महीतलको जीता।

दुर्भिक्ष, अकाल मरण, व्याधि ये राजा पुरूरवा के राज्य में कहीं भी किसी को नहीं हुआ, उनकेराज्य में सभी अपने धर्म में तत्पर रहते थे सभी मनुष्य सुखी रहते थे।


जब राजा पुरूरवा यज्ञ करते, तभी शून्य वसुन्धरा सब शस्यों से युक्त हो जाती थी। और जोमनुष्य राजा के पास यज्ञ में जाते थे उनकी इच्छा को पूछकर उसे पूर्ण किया जाता था।


गंगा जी के जाह्नवी कहलाने की कथा बड़ी मनोरंजक है। पूर्व काल में कोशिनी के गर्भ में उत्पन्न सुहोत्र पुत्र ‘जह्नु’ ने सर्वमेध नामक महायज्ञ का आयोजन किया। अपना सर्वस्व उन्होंने यज्ञ में होम किया। इस महायज्ञ के पुण्य प्रताप को देखकर सभी देवता बड़े प्रभावित हुए। गंगाजी तो उन्हें पति रूप में वरण करने के लिए अधीर हो गई। ‘जह्नु’ ने गंगाजी का प्रस्ताव स्वीकार नहीं किया। इस पर जह्नु और गंगा जी में मनोमालिन्य पैदा हो गया।देवताओं ने इस मनो मालिन्य को अशोभनीय समझ कर दोनों में यह समझौता करा दिया कि गंगाजी जह्नु के घर में पुत्री के रूप में जन्म लें। ऐसा ही हुआ। तभी से जह्नु पुत्री होने के कारण गंगा जी का नाम जाह्नवी पड़ा।


जिस प्रकार सीता जी की प्राप्ति जनक द्वारा यज्ञ के लिए भूमि शोधन करते समय हुई थी,उसी प्रकार वृषभानु की भी राधिका पुत्री की प्राप्ति, यज्ञ के लिए भूमि शोधन करते समय हुई। यह कथा पद्म पुराण में आती है।

वृषभानोर्यज्ञभूमौजातासाराधिकादिवा॥

यज्ञार्थशोधितायांचदृष्टासादिव्यरूपिणी॥ —पद्मपुराण चतुर्थ खंड 41

यज्ञ के लिए शोध की हुई भूमि से वृषभानु को राधिका की प्राप्ति हुई।

बलि ने जब शुक्राचार्य जी से पूछा कि इन्द्र को किस प्रकार जीता जाय।

तेनोक्तं बलये राजञ्जय स्पनन्दन लब्धये।

महायज्ञं कुरुष्वाद्य तेन ते विजयो भवेत्॥

स्क. पु. माहे. खं. अ. 17 श्लोक 280



अर्थ—तो शुक्राचार्य जी ने बलि से कहा, विजयी रथ की प्राप्ति के लिए आज महायज्ञ करो।उस महायज्ञ के करने से तुम्हारी विजय होगी।

इन्द्रद्युम्न ने सहस्र यज्ञ किये और वह इन यज्ञों के साथ−साथ परम पुनीत दिव्यता को प्राप्तकरता गया।

श्लोक:—ततः साहस्रिके यज्ञे वाजिमेधे महीपतिः॥

दिने दिने दिव्य गतिवभूव नृपतिस्तदा॥

स्क. पु. वै. खं. 2 ,प्र. म. 2 अ. 17 श्लो. 101

जब राजा का अन्तिम सहस्रवाँ यज्ञ पूर्ण हुआ तो राजा इंद्रद्युम्न दिन−दिन दिव्यावस्था कोप्राप्त होने लगे।

पराशर मुनि ध्रुव भक्त की कथा कहते जा रहे हैं, उसी क्रम में पुलह मुनि ध्रुव को उपदेश करते हैं।

यो यज्ञ पुरुषो यज्ञो योगेशः परमः पुमान्। तस्मिन्तुष्टे यदप्राप्यं किं तदस्ति जनार्दने॥48॥


अर्थ− जो परमपुरुष यज्ञपुरुष, यज्ञ और यज्ञेश्वर हैं, उन जनार्दन के सन्तुष्ट होने पर ऐसा कौनवस्तु है, जो प्राप्त न हो सकती हो।

ऋषिगण राजा वेणु को यज्ञ करने के लिए समझा रहे हैं। उसने अहंकारवश अपने को ही यज्ञ पुरुषघोषित कर यज्ञादि कर्म बन्द करा दिया है।


दीर्घ सत्रेण देवेश सर्व यज्ञेश्वरं हरिम्।

पूजयिष्यामभद्रन्ते तस्यांशस्ते भविष्यति॥17॥


वि.पु.प्र.अश अध्याय 13

अर्थ—तुम्हारा कल्याण हो, देखो, हम बड़े बड़े, यज्ञों द्वारा जो सर्वयज्ञेश्वर देवाधिपतिभगवान् हरि का पूजन करेंगे उसके फल में से तुमको भी (छठा) भाग मिलेगा।

यज्ञेन यज्ञग्रुषो विष्णुः संप्रीणितो नृप।

अस्माभिर्भवतः कामान्सर्वानेवप्रदास्यति॥18॥

श्री वि.पु.प्र.अं.13

अर्थ—हे नृप? इस प्रकार यज्ञों के द्वारा यज्ञ पुरुष भगवान् विष्णु प्रसन्न होकर हम लोगों केसाथ तुम्हारी भी सकल कामनायें पूर्ण करेंगे।

यज्ञैर्यज्ञेश्वरो येषाँ राष्ट्रे सपूज्यते हरिः।

तेषा सर्वोप्सतावाप्तिं ददाति नृप भू भृताम्॥18॥

श्री वि.पु.अ.13

अर्थ—हे राजन जिन राजाओं के राज्य में यज्ञेश्वर भगवान् हरि का यज्ञों द्वारा पूजन कियाजाता है, वे उनकी सभी कामनाओं को पूर्ण कर देते हैं।

ऋषियों ने राजा वेन से कहा

देह्यनुज्ञां महाराज माधर्मोयातु संक्षयम्।

हविषाँ परिणामोऽयं यदेतदखिलं जगत्॥25॥

श्री वि.पु.प्र.अं.अ. 13

अर्थ—हे महाराज! आप ऐसी आज्ञा दीजिए, जिससे धर्म का क्षय न हो। देखिये, यह सारा जगतहवि (यज्ञो में हवन की हुई सामग्री) का ही परिणाम है।

पराशर जी मैत्रेय से कथा कहते जा रहे हैं।

प्राचीनबर्हिर्भगवान्महानासीत्प्रजापतिः।

हविधानाव्महामान येन खंबर्धिताः प्रजाः॥3॥

श्री वि.पु.प्र.अं.अ. 14

अर्थ—हे महभाग! हविर्धन से उत्पन्न हुए भगवान् प्राचीनवर्हि एक महान प्रजापति थे,जिन्होंने यज्ञ के द्वारा अपनी प्रजा की बहुत वृद्धि की।

राजा सगर ने और्वमुनि से विष्णु भगवान की उपासना का उपाय और−फल पूछा था, उत्तर मेंऔर्व मुनि कहते हैं।

॥और्व उवाच॥

यजन्यज्ञान्यजत्येनं जपत्येन जपन्नृप।

निघ्नन्नन्यान्दिनस्त्येनं सर्वमूतोयतोहरिः॥10॥

श्री वि.पु.तृ.अं. अ. 8॥

अर्थ—हे नृप यज्ञों का यजन करने वाला पुरुष उन (विष्णु) ही का यजन करता है, जप करनेवाला उन्हीं का जप करता है और (दूसरों की हिंसा करने वाला उन्हीं की हिंसा करता हैक्योंकि भगवान हरि सर्वभूतमय हैं।

इन्द्र पूजा की तैयारी होते देख कृष्ण भगवान अपने बड़े बूढ़ों से पूछते हैं, उत्तर में नन्द जी कहते हैं।

भौममेतत्पयो दुग्धं गोभिः सूर्यस्य वारिदैः।

पर्जन्यस्सर्व लोकस्योद्भवाय भुवि वर्षति॥23॥

तस्मात्प्रावृष राजानस्सर्वे शक्रं मुदायुताः।

मखैस्सुरेश मचीन्ति वयमन्ये च मानवाः॥24॥

श्री वि.पु.पं. अं. अ.10

अर्थ—यह पर्जन्यदेव (इन्द्र) पृथिवी के जल को सूर्य किरणों द्वारा खींच कर सम्पूर्ण प्राणियोंकी वृद्धि के लिये उसे मेघों द्वारा पृथिवी पर बरसाते हैं।

इसलिए वर्षा ऋतु में समस्त राजा लोग, हम और अन्य मनुष्यगण देवराज इन्द्र की यज्ञों द्वाराप्रसन्नता पूर्वक पूजा किया करते हैं।

पराशर जी केशिध्वज और खाण्डिक्य की कथा कहते जा रहे हैं उसी क्रम में—

इयाजसोऽपि सुवहून्यज्ञाञ्ज्ञान व्यपाश्रयः।

ब्रह्मविद्या मघिष्ठान तर्तुं मृत्यु मविद्यया॥12॥

श्री वि.पु.षष्ठ अं.षष्ठ अ.

अर्थ—केशिध्वज ज्ञाननिष्ठ था, तो भी अविद्या (कर्म) द्वारा मृत्यु को पार करने के लियेज्ञान दृष्टि रखते हुए उसने अनेकों यज्ञों का अनुष्ठान किया।

स्कन्द पुराण में यज्ञ भगवान के अवतार का वर्णन है। जिस प्रकार भगवान ने राम, नृसिंह,वाराह, कच्छ, मच्छ आदि के अवतार लिये हैं, उसी प्रकार एक अवतार ‘यज्ञ पुरुष’ का भीलिया है। स्वायम्भुव मन्वन्तर में जब देवताओं की शक्ति क्षीण हो गई और संसार में सर्वत्र घोरअव्यवस्था फैल गई उस अव्यवस्था के फलस्वरूप, सब लोग नाना प्रकार के कष्ट पाने लगे। इसविपन्नता को दूर करने के लिए भगवान ने यज्ञ पुरुष के रूप में अवतार लेने का निश्चय कियाक्योंकि देवताओं की शक्ति वृद्धि करने के लिए यज्ञ के अतिरिक्त और कोई उपाय या मार्ग नहीं है।

महर्षि रुचि की पत्नी आकूति के गर्भ से यज्ञ भगवान ने जन्म लिया और उन्होंने संसार भर मेंअग्नि होत्र की लुप्त प्रायः प्रथा को पुनर्जीवित किया। सर्वत्र यज्ञ होने लगे। फलस्वरूपदेवताओं की शक्ति बढ़ी और संसार का समस्त संकट निवारण हो गया।



कहानी जारी रहेगी
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RE: Porn Story गुरुजी के आश्रम में रश्मि के जलवे - by deeppreeti - 05-01-2021, 02:22 PM

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