Porn Story गुरुजी के आश्रम में रश्मि के जलवे
01-17-2019, 01:57 PM,
#43
RE: Porn Story गुरुजी के आश्रम में रश्मि क...
गुरुजी – अब मैं काजल के लिए व्यक्तिगत अनुष्ठान शुरू करूँगा. माता पिता दोनों को इसमें एक एक कर भाग लेना होगा. उसके बाद मुख्य यज्ञ में सिर्फ़ काजल बेटी को ही भाग लेना होगा.

कुमार – गुरुजी, अगर आप मुझसे शुरू करें तो ….

गुरुजी – हाँ कुमार, मैं तुमको बेवजह कष्ट नहीं देना चाहता. मैं तुमसे ही शुरू करूँगा और फिर तुम आराम कर सकते हो.

कुमार – धन्यवाद गुरुजी.

नंदिनी – गुरुजी , जब कुमार का काम पूरा हो जाए तो मुझे बुला लेना.

गुरुजी ने सर हिलाकर हामी भर दी. नंदिनी और काजल पूजाघर से चले गये और समीर ने कमरे का दरवाज़ा बंद कर दिया.

कुमार फिर से मुझे घूर रहा था लेकिन मेरा ध्यान अपने पसीने पर ज़्यादा था. मेरा ब्लाउज भीग कर गीला हो गया था. मैंने अपने पल्लू से गर्दन और पीठ का पसीना पोंछ दिया. तभी पहली बार कुमार ने मुझसे बात की.

कुमार – गुरुजी , मुझे लगता है रश्मि को गर्मी लग रही है. हम ये दरवाज़ा खुला नहीं रख सकते क्या ?

मुझे हैरानी हुई की उसने सीधे मेरे नाम से मुझे संबोधित किया. मैं समझ गयी थी की वो मुझे बड़े गौर से देख रहा था की मुझे पसीना आ रहा है , इससे मुझे थोड़ी इरिटेशन हुई.

गुरुजी – नहीं कुमार. उससे ध्यान भटकेगा.

कुमार – जी. सही कहा.

गुरुजी – रश्मि , अब यज्ञ में तुम कुमार का माध्यम बनोगी.

मैं बेवकूफ की तरह पलकें झपका रही थी क्यूंकि मुझे पता ही नहीं था की माध्यम बनकर मुझे करना क्या होगा ?

गुरुजी – कुमार और रश्मि मेरी बायीं तरफ आओ. समीर तुम भोग तैयार करो.

समीर भोग तैयार करने लगा. अब मुझे कुमार को खड़े होने में मदद करने जाना पड़ा. मैं अपनी जगह से उठ कर खड़ी हो गयी . बैठने से मेरी पेटीकोट और साड़ी मेरे नितंबों में फँस गयी थी तो मुझे उन तीन मर्दों के सामने अपने हाथ पीछे ले जाकर कपड़े ठीक करने पड़े. फिर मैं सामने बैठे कुमार के पास गयी.

“गुप्ताजी आप खुद से खड़े हो जाओगे ?”

कुमार – नहीं रश्मि, मुझे तुम्हारी सहायता चाहिए.

वो फिर से सीधा मेरा नाम ले रहा था तो मेरी खीझ बढ़ रही थी लेकिन गुरुजी के सामने मैं उसे टोक भी नहीं सकती थी. मेरे कुछ करने से पहले ही उसने मेरा हाथ पकड़ लिया और दूसरे हाथ से अपनी छड़ी टेककर खड़ा होने लगा. मैंने उसका हाथ और कंधा पकड़कर उसे उठने में मदद की. चलते समय वो बहुत काँप रहा था , उसकी विकलांगता देखकर मुझे बुरा लगा. मैंने देखा था की उसने नंदिनी के कंधे का सहारा लिया हुआ था तो मैंने भी अपना कंधा आगे कर दिया. मेरे कंधे में हाथ रखकर वो थोड़ा ठीक से चलने लगा. 

गुरुजी – रश्मि इस थाली को पकड़ो और इसे अग्निदेव को चढ़ाओ. कुमार तुम रश्मि को पीछे से पकड़ो और जो मंत्र मैं बताऊंगा , उसे रश्मि के कान में धीमे से बोलो. रश्मि माध्यम के रूप में तुम्हें उस मंत्र को ज़ोर से अग्निदेव के समक्ष बोलना है. ठीक है ?

“जी गुरुजी.”

मैंने गुरुजी से थाली ले ली और अग्नि के सामने खड़ी हो गयी. अब मैं गुरुजी के ठीक सामने अग्निकुण्ड के दूसरी तरफ खड़ी थी. मैंने देखा कुमार मेरे पीछे छड़ी के सहारे खड़ा था.

गुरुजी – कुमार , छड़ी को रख दो और एक हाथ में इस किताब को पकड़ो.

मैंने तुरंत ही अपनी कमर में उसकी गरम अंगुलियों की पकड़ महसूस की. उसकी अंगुलियां थोड़ी मेरी साड़ी के ऊपर थीं और थोड़ी मेरे नंगे पेट पर. मुझे समझ आ रहा था की छड़ी हटाने के बाद उसे किसी सहारे की ज़रूरत पड़ेगी, लेकिन उसके ऐसे पकड़ने से मेरे पूरे बदन में कंपकपी दौड़ गयी. मुझे अजीब लगा और मैंने प्रश्नवाचक निगाहों से गुरुजी को देखा. शुक्र है की गुरुजी समझ गये की मैं क्या कहना चाह रही हूँ.

गुरुजी – कुमार , रश्मि का कंधा पकड़ो और किताब में जहाँ पर निशान लगा है उस मंत्र को रश्मि के कान में बोलना शुरू करो.

कुमार – जी गुरुजी.

उसने मेरी कमर से हाथ हटा लिया और मेरे कंधे को पकड़ लिया. 

गुरुजी – रश्मि तुम मंत्र को ज़ोर से अग्निदेव के समक्ष बोलोगी और मैं उसे लिंगा महाराज के समक्ष दोहराऊंगा. तुम दोनों आँखें बंद कर लो. जय लिंगा महाराज.

मैंने आँखें बंद कर ली और अपने कंधे पर कुमार की गरम साँसें महसूस की. वो मेरे कान में मंत्र बोलने लगा और मैंने ज़ोर से उस मंत्र का जाप कर दिया और फिर गुरुजी ने और ज़ोर से उसे दोहरा दिया. शुरू में कुछ देर तक ऐसे चलता रहा फिर मुझे लगा की मेरे कान में मंत्र बोलते वक़्त कुमार मेरे और नज़दीक़ आ रहा है. मैंने पहले तो उसकी विकलांगता की वजह से इस पर ध्यान नहीं दिया. मैंने उसके घुटने अपनी जांघों को छूते हुए महसूस किए फिर उसका लंड मेरे नितंबों को छूने लगा. मैंने थोड़ा आगे खिसकने की कोशिश की लेकिन आगे अग्निकुण्ड था. धीरे धीरे मैंने साफ तौर पर महसूस किया की वो मेरे सुडौल नितंबों पर अपने लंड को दबाने की कोशिश कर रहा था.

मैं मन ही मन अपने को कोसने लगी की कुछ ही मिनट पहले मैं इस आदमी की विकलांगता पर दुखी हो रही थी और अब ये अपना खड़ा लंड मेरे नितंबों में चुभो रहा है. मैं सोच रही थी की अब क्या करूँ ? क्या मैं इसको एक थप्पड़ मार दूं और सबक सीखा दूं ? लेकिन मैं वहाँ यज्ञ के दौरान कोई बखेड़ा खड़ा करना नहीं चाहती थी. इसलिए मैं चुप रही और यज्ञ में ध्यान लगाने की कोशिश करने लगी. लेकिन वो कमीना इतने में ही नहीं रुका. अब मंत्र पढ़ते समय वो मेरे कान को अपने होठों से छूने लगा. मुझे अनकंफर्टबल फील होने लगा और मैं कामोत्तेजित होने लगी क्यूंकी उसका कड़ा लंड मेरी मुलायम गांड में लगातार चुभ रहा था और उसके होंठ मेरे कान को छू रहे थे. स्वाभाविक रूप से मेरे बदन की गर्मी बढ़ने लगी.

खुशकिस्मती से कुछ मिनट बाद मंत्र पढ़ने का काम पूरा हो गया. मैंने राहत की साँस ली. लेकिन वो राहत ज़्यादा देर तक नहीं रही.

गुरुजी – धन्यवाद रश्मि. तुमने बहुत अच्छे से किया. अब ये थाली मुझे दे दो. ये कटोरा पकड़ लो और इसमें से बहुत धीरे धीरे तेल अग्नि में चढ़ाओ. कुमार तुम भी इसके साथ ही कटोरा पकड़ लो.

मैं गुरुजी से कटोरा लेने झुकी और उस चक्कर में ये भूल गयी की सहारे के लिए कुमार ने मेरे कंधे पर हाथ रखा हुआ है. मेरे आगे झुकने से उसका हाथ मेरे कंधे से छूट गया और उसका संतुलन गड़बड़ा गया.

गुरुजी – रश्मि, उसे पकड़ो.

गुरुजी एकदम से चिल्लाए. मुझे अपनी ग़लती का एहसास हुआ और मैं तुरंत पीछे मुड़ने को हुई. लेकिन मैं पूरी तरह पीछे मुड़ कर उसे पकड़ पाती उससे पहले ही वो मेरी पीठ में गिर गया. मैंने उसे चलते समय काँपते हुए देखा था इसलिए मुझे सावधान रहना चाहिए था. कुमार मेरे जवान बदन के ऊपर झुक गया और उसका चेहरा मेरी गर्दन के पास आ गिरा. गिरने से बचने के लिए उसने मुझे पीछे से आलिंगन कर लिया.

“आउच…….”

जब वो मेरे ऊपर गिरा तो मेरे मुँह से खुद ही आउच निकल गया. वैसे देखने वाले को ये लगेगा की वो मेरे ऊपर गिर गया और अब सहारे के लिए मेरी कमर पकड़े हुए है लेकिन असलियत मुझे मालूम पड़ रही थी. कुछ देर से मैं उसका घूरना और उसकी छेड़छाड़ सहन कर रही थी पर इस बार तो उसने सारी हदें पार कर दी. मेरी पीठ में ब्लाउज के U कट के ऊपर उसकी जीभ और होंठ मुझे महसूस हुए और उसकी नाक मेरी गर्दन के निचले हिस्से पर छू रही थी. जब सहारे के लिए उसने मुझे पकड़ लिया तो उसके दाएं हाथ ने मेरी बाँह पकड़ ली लेकिन उसके बाएं हाथ ने मुझे पीछे से आलिंगन करके मेरी पैंटी के पास पकड़ लिया. मैं जल्दी से कुछ ही सेकेंड्स में संभल गयी लेकिन तब तक मैंने साड़ी के ऊपर से अपनी पैंटी के अंदर चूत पर उसके हाथ का दबाव महसूस किया और मेरे ब्लाउज के ऊपर नंगी पीठ को उसने अपनी जीभ से चाट लिया. 

कुमार – सॉरी रश्मि. तुम अचानक झुक गयी और मैं संतुलन खो बैठा.

मुझे उसके व्यवहार से बहुत इरिटेशन हो रही थी फिर भी मुझे माफी माँगनी पड़ी. वो इतनी बड़ी उमर का था और ऊपर से विकलांग भी था और ऐसा अशिष्ट व्यवहार कर रहा था. मैं गुरुजी की वजह से कुछ बोल नहीं पाई वरना मन तो कर रहा था इस कमीने को कस के झापड़ लगा दूं.

गुरुजी – कुमार तुम ठीक हो ?

कुमार – हाँ गुरुजी. मैंने सही समय पर रश्मि को पकड़ लिया था.

गुरुजी – चलो कोई बात नहीं. रश्मि, मैं मंत्र पढूंगा और तुम तेल चढ़ाना. काजल की पढ़ाई के लिए हम पहले अग्निदेव की पूजा करेंगे और फिर लिंगा महाराज की.

हमने हामी भर दी और कुमार फिर से मेरे नज़दीक़ आ गया और मेरे पीछे से कटोरा पकड़ लिया. इस बार उसके पूरे बदन का भार मेरे ऊपर पड़ रहा था और उसकी अंगुलियां मेरी अंगुलियों को छू रही थीं. गुरुजी ने ज़ोर ज़ोर से मंत्र पढ़ने शुरू किए और मैं कटोरे से यज्ञ की अग्नि में तेल चढ़ाने लगी. . मुझे साफ महसूस हो रहा था की अब कुमार बिना किसी रुकावट के पीछे से मेरे पूरे बदन को महसूस कर रहा है. मेरे सुडौल नितंबों पर वो हल्के से धक्के भी लगा रहा था. उस कमीने की इन हरकतों से मैं कामोत्तेजित होने लगी थी.

जब मैं अग्निकुण्ड में तेल डालने लगी तो उसमे तेज लपटें उठने लगी इसलिए मुझे थोड़ा सा पीछे को खिसकना पड़ा. इससे कुमार के और भी मज़े आ गये और वो मेरी साड़ी के बाहर से अपना सख़्त लंड चुभाने लगा. उसने मेरे पीछे से कटोरा पकड़ा हुआ था तो उसकी कोहनियां मुझे साइड्स से दबा रही थी, एक तरह से उसने मुझे पीछे से आलिंगन करके कटोरा पकड़ा हुआ था और उसका सारा वज़न मुझ पर पड़ रहा था. गुरुजी मंत्र पढ़ते रहे और मैं बहुत धीरे से अग्नि में तेल डालती रही. तेल चढ़ाने का ये काम लंबा खिंच रहा था.

मौका देखकर कुमार ने कटोरे में अपनी अंगुलियों को मेरी अंगुलियों पर इतनी ज़ोर से कस लिया की मुझे थोड़ा पीछे मुड़ के गुस्से से उसको घूरना पड़ा. वो कमीनेपन से मुस्कुराया और मेरी खीझ और भी बढ़ गयी जबकि वास्तव में मर्दाने टच से मुझे कामानंद मिल रहा था. मैंने गुरुजी को देखा पर वो आँख बंद कर मंत्र पढ़ रहे थे और समीर एक कोने में भोग बना रहा था इस तरह किसी का ध्यान हम पर नहीं था. तभी वो मेरे कान में फुसफुसाया……

कुमार – रश्मि , मैं कटोरे से एक हाथ हटा रहा हूँ. मुझे खुजली लग रही है.

मुझे क्या मालूम की उसे कहाँ पर खुजली लग रही है. उसने अपना दांया हाथ कटोरे से हटा लिया और अपने लंड को खुज़लाने लगा. मुझे ये बात जानने के लिए पीछे मुड़ के देखने की ज़रूरत नहीं थी क्यूंकी उसका हाथ मुझे अपने नितंबों और उसके लंड के बीच महसूस हो रहा था. वो बेशरम बुड्ढा अपने लंड पर खुज़ला रहा था और अब मैं समझ गयी थी की उसे कहाँ खुजली लगी थी. खुज़लाने के बाद वो अपना हाथ कटोरे पर वापस नहीं लाया और अपने हाथ को मेरे बड़े नितंबों पर फिराने लगा.

उसने मेरे सुडौल नितंबों को अपने हाथ में पकड़कर दबाया तो मेरे निपल तनकर कड़क हो गये. मेरी चूचियां ब्रा में तन गयीं. मैंने दोनों हाथों से तेल का कटोरा पकड़ा हुआ था , उसकी इस अश्लील हरकत को बंद करवाने के लिए मुझे पीछे मूड कर गुस्से से उसे घूरना पड़ा. उसने तुरंत अपना हाथ मेरे नितंबों से हटा लिया और फिर से कटोरा पकड़ लिया. उसके एक दो मिनट बाद तेल चढ़ाने का वो काम खत्म हो गया. यज्ञ की अग्नि के साथ साथ कुमार की मेरे बदन से छेड़छाड़ से अब मुझे बहुत पसीना आने लगा था.

गुरुजी – अग्निदेव की पूजा पूरी हो चुकी है. अब हम लिंगा महाराज की पूजा करेंगे. जय लिंगा महाराज.
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