Porn Story गुरुजी के आश्रम में रश्मि के जलवे
01-17-2019, 01:57 PM,
#44
RE: Porn Story गुरुजी के आश्रम में रश्मि क...
गुरुजी – अग्निदेव की पूजा पूरी हो चुकी है. अब हम लिंगा महाराज की पूजा करेंगे. जय लिंगा महाराज.

कुमार (गुप्ताजी) और मैंने भी जय लिंगा महाराज बोला. गुरुजी मंत्र पढ़ते हुए विभिन्न प्रकार की यज्ञ सामग्री को अग्निकुण्ड में चढ़ाने लगे. करीब 5 मिनट तक ऐसा चलता रहा. समीर अभी भी भोग को तैयार करने में व्यस्त था.

गुरुजी – रश्मि, मैं जानता हूँ की यज्ञ का ये भाग तुम्हें थोड़ा अजीब लगेगा लेकिन एक माध्यम को ये कष्ट उठाना ही पड़ता है. तुम्हें कुमार के लिए लिंगा महाराज की पूजा करनी होगी.

मुझे गुरुजी की बात समझ में नहीं आई की पूजा करने में अजीब क्यूँ लगेगा ? गुरुजी ने कष्ट की बात क्यूँ की ? मैंने गुरुजी की तरफ संशय से देखा.

गुरुजी – माध्यम के रूप में तुम कुमार को साथ लेकर फर्श पर लेटकर लिंगा महाराज को प्रणाम करोगी. तुम्हारी नाभि और घुटने फर्श को छूने चाहिए.

मैंने हामी भर दी जबकि मुझे अभी भी ठीक से बात समझ नहीं आई थी. मैंने कुमार को छड़ी दे दी और अब वो छड़ी के सहारे था. गुरुजी ने गंगा जल से मेरे हाथ धुलाए और मुझे वो जगह बताई जहाँ पर मुझे प्रणाम करना था. मैं वहाँ पर गयी और घुटनों के बल बैठ गयी. फिर मैं पेट के बल फर्श पर लेट गयी.

गुरुजी - प्रणाम के लिए अपने हाथ सर के आगे लंबे करो. तुम्हारी नाभि फर्श को छू रही है ? मैं देखता हूँ.

गुरुजी ने मुझे कुछ कहने का मौका ही नहीं दिया और मेरे पेट से साड़ी हटाकर वहाँ अपनी एक अंगुली डालकर देखने लगे की मेरी नाभि फर्श को छू रही है या नहीं ? मैंने अपने नितंबों को थोड़ा सा ऊपर को उठाया ताकि गुरुजी मेरे पेट के नीचे अंगुली से चेक कर सकें. उनकी अंगुली मेरी नाभि पर लगी तो मुझे गुदगुदी होने लगी लेकिन मैंने जैसे तैसे अपने को काबू में रखा.

गुरुजी – हाँ, ठीक है.

ऐसा कहते हुए उन्होने मेरे पेट के नीचे से अंगुली निकाल ली और मेरे नितंबों पर थपथपा दिया. मैंने उनका इशारा समझकर अपने नितंब नीचे कर लिए. मैंने दोनों हाथ प्रणाम की मुद्रा में सर के आगे लंबे किए हुए थे. उन मर्दों के सामने मुझे ऐसे उल्टे लेटना भद्दा लग रहा था. फिर मैंने देखा गुरुजी कुमार को मेरे पास आने में मदद कर रहे थे. 

गुरुजी – रश्मि अब तुम कुमार की पूजा को लिंगा महाराज तक ले जाओगी.

“कैसे गुरुजी ?”

मुझे समझ नहीं आ रहा था की मुझे करना क्या है ? मैंने देखा गुरुजी कुमार को मेरे पास बैठने में मदद कर रहे हैं.

गुरुजी – रश्मि , मैंने तुम्हें बताया तो था. तुम्हें कुमार को साथ लेकर पूजा करनी है.

गुरुजी को दुबारा बताना पड़ा इसलिए वो थोड़े चिड़चिड़ा से गये थे लेकिन मैं उलझन में थी की करना क्या है ? साथ लेकर मतलब ? 

गुरुजी – कुमार तुम रश्मि की पीठ पर लेट जाओ और इस किताब में से रश्मि के कान में मंत्र पढ़ो.

कुमार – जी गुरुजी.

हे भगवान ! अब तो मुझे कुछ न कुछ कहना ही था. गुरुजी इस आदमी को मेरी पीठ में लेटने को कह रहे थे. ये ऐसा ही था जैसे मैं बेड पर उल्टी लेटी हूँ और मेरे पति मेरे ऊपर लेटकर मुझसे मज़ा ले रहे हों.

“गुरुजी, लेकिन ये…..”

गुरुजी - रश्मि, ये यज्ञ का नियम है और माध्यम को इसे ऐसे ही करना होता है.

“लेकिन गुरुजी, एक अंजान आदमी को इस तरह………....”

गुरुजी – रश्मि , जैसा मैं कह रहा हूँ वैसा ही करो.

गुरुजी तेज आवाज़ में आदेश देते हुए बोले. एकदम से उनके बोलने का अंदाज़ बदल गया था. अब कुछ और बोलने का साहस मुझमें नहीं था और मैंने चुपचाप जो हो रहा था उसे होने दिया.

गुरुजी – कुमार तुम किसका इंतज़ार कर रहे हो ? समय बर्बाद मत करो. काजल के यज्ञ के लिए शुभ समय मध्यरात्रि तक ही है.

मुझे अपनी पीठ पर कुमार चढते हुए महसूस हुआ. मैं बहुत शर्मिंदगी महसूस कर रही थी. गुरुजी ने उसको मेरे जवान बदन के ऊपर लेटने में मदद की. कितनी शरम की बात थी वो. मैं सोचने लगी अगर मेरे पति ये दृश्य देख लेते तो ज़रूर बेहोश हो जाते. मैंने साफ तौर पर महसूस किया की कुमार अपने लंड को मेरी गांड की दरार में फिट करने के लिए एडजस्ट कर रहा है. फिर मैंने उसके हाथ अपने कंधों को पकड़ते हुए महसूस किए , उसके पूरे बदन का भार मेरे ऊपर था. एक जवान शादीशुदा औरत के ऊपर ऐसे लेटने में उसे बहुत मज़ा आ रहा होगा.

गुरुजी - जय लिंगा महाराज. कुमार अब शुरू करो. रश्मि तुम ध्यान से मंत्र सुनो और ज़ोर से लिंगा महाराज के सामने बोलना.

मैंने देखा गुरुजी ने अपनी आँखें बंद कर ली. अब कुमार ने मेरे कान में मंत्र पढ़ना शुरू किया. लेकिन मैं ध्यान नहीं लगा पा रही थी. कौन औरत ध्यान लगा पाएगी जब ऐसे उसके ऊपर कोई आदमी लेटा हो. मेरे ऊपर लेटने से कुमार के तो मज़े हो गये , उसने तुरंत मेरी उस हालत का फायदा उठाना शुरू कर दिया. अब वो मेरे मुलायम नितंबों पर ज़्यादा ज़ोर डाल रहा था और अपने लंड को मेरी गांड की दरार में दबा रहा था. शुक्र था की मैंने पैंटी पहनी हुई थी जिससे उसका लंड दरार में ज़्यादा अंदर नहीं जा पा रहा था.

मेरे कान में मंत्र पढ़ते हुए उसकी आवाज़ काँप रही थी क्यूंकी वो धीरे से मेरी गांड पर धक्के लगा रहा था जैसे की मुझे चोद रहा हो. मुझे ज़ोर से मंत्र दोहराने पड़ रहे थे इसलिए मैंने अपनी आवाज़ को काबू में रखने की कोशिश की. गुरुजी ने अपनी आँखें बंद कर रखी थी और समीर हमारी तरफ पीठ करके भोग तैयार कर रहा था इसलिए उस विकलांग आदमी की मौज आ रखी थी. उसका लकड़ी वाला पैर मुझे अपने पैरों के ऊपर महसूस हो रहा था. पर उसको छोड़कर उस बुड्ढे में कोई कमी नहीं थी. धक्के लगाने की उसकी स्पीड बढ़ने लगी थी और उसके लंड का कड़कपन भी. 

अब मंत्र पढ़ने के बीच में गैप के दौरान कुमार मेरे कान और गालों पर अपनी जीभ और होंठ लगा रहा था. मैं जानती थी की मुझे उसे ये सब नहीं करने देना चाहिए लेकिन जिस तरह से गुरुजी ने थोड़ी देर पहले तेज आवाज़ में बोला था, उससे अनुष्ठान में बाधा डालने की मेरी हिम्मत नहीं हो रही थी. अब मैं गहरी साँसें ले रही थी और कुमार तो हाँफने लगा था. इस उमर में इतना आनंद उसके लिए काफ़ी था. तभी उसने कुछ ऐसा किया की मेरे दिल की धड़कनें रुक गयीं.

मैं अपनी बाँहें सर के आगे किए हुए प्रणाम की मुद्रा में लेटी हुई थी. मेरी चूचियाँ ब्लाउज के अंदर फर्श में दबी हुई थी. कुमार मेरे ऊपर लेटा हुआ था और उसने एक हाथ में किताब और दूसरे हाथ से मेरा कंधा पकड़ा हुआ था. कुमार ने देखा की गुरुजी की आँखें बंद हैं. अब उसने किताब फर्श में रख दी और अपने हाथ मेरे कंधे से हटाकर मेरे अगल बगल फर्श में रख दिए. अब उसके बदन का कुछ भार उसके हाथों पर पड़ने लगा , इससे मुझे थोड़ी राहत हुई क्यूंकी पहले उसका पूरा भार मेरे ऊपर पड़ रहा था. लेकिन ये राहत कुछ ही पल टिकी. कुछ ही पल बाद उसने अपने हाथों को अंदर की तरफ खिसकाया और मेरे ब्लाउज के बाहर से मेरी चूचियों को छुआ.

शरम, गुस्से और कामोत्तेजना से मैंने अपनी आँखें बंद कर लीं. जबसे यज्ञ शुरू हुआ था तबसे कुमार मेरे बदन से छेड़छाड़ कर रहा था और अब तक मैं भी कामोत्तेजित हो चुकी थी इसलिए उसके इस दुस्साहस का मैंने विरोध नहीं किया और मंत्र पढ़ने में व्यस्त होने का दिखावा किया. पहले तो वो हल्के से मेरी चूचियों को छू रहा था लेकिन जब उसने देखा की मैंने कोई रिएक्शन नहीं दिया और ज़ोर से मंत्र पढ़ने में व्यस्त हूँ तो उसकी हिम्मत बढ़ गयी.

उसके बदन के भार से वैसे ही मेरी चूचियाँ फर्श में दबी हुई थी अब उसने दोनों हाथों से उन्हें दबाना शुरू किया. कहीं ना कहीं मेरे मन के किसी कोने में मैं भी यही चाहती थी क्यूंकी अब मैं भी कामोत्तेजना महसूस कर रही थी. उसने मेरे बदन के ऊपरी हिस्से में अपने वजन को अपने हाथों पर डालकर मेरे ऊपर भार थोड़ा कम किया मैंने जैसे ही राहत के लिए अपना बदन थोड़ा ढीला किया उसने दोनों हाथों से साइड्स से मेरी बड़ी चूचियाँ दबोच लीं और उनकी सुडौलता और गोलाई का अंदाज़ा करने लगा. 

उस समय मुझे ऐसा महसूस हो रहा था की मेरा पति राजेश मेरे ऊपर लेटा हुआ है और मेरी जवान चूचियों को निचोड़ रहा है. घर पे राजेश अक्सर मेरे साथ ऐसा करता था और मुझे भी उसके ऐसे प्यार करने में बड़ा मज़ा आता था. राजेश दोनों हाथों को मेरे बदन के नीचे घुसा लेता था और फिर मेरी चूचियों को दोनों हथेलियों में दबोच लेता था और मेरे निपल्स को तब तक मरोड़ते रहता था जब तक की मैं नीचे से पूरी गीली ना हो जाऊँ.

शुक्र था की गुप्ताजी ने उतनी हिम्मत नहीं दिखाई शायद इसलिए क्यूंकी मैं किसी दूसरे की पत्नी थी. लेकिन साइड्स से मेरी चूचियों को दबाकर उसने अपने तो पूरे मज़े ले ही लिए. अब तो उत्तेजना से मेरी आवाज़ भी काँपने लगी थी और मुझे खुद ही नहीं मालूम था की मैं क्या जाप कर रही हूँ.

गुरुजी – जय लिंगा महाराज.

गुरुजी जैसे नींद से जागे हों और कुमार ने जल्दी से मेरी चूचियों से हाथ हटा लिए. उसकी गरम साँसें मेरी गर्दन, कंधे और कान में महसूस हो रही थी और मुझे और ज़्यादा कामोत्तेजित कर दे रही थीं. तभी मुझे एहसास हुआ की अब मंत्र पढ़ने का कार्य पूरा हो चुका है.

गुरुजी - कुमार ऐसे ही लेटे रहो और जो तुम काजल के लिए चाहते हो उसे एक लाइन में रश्मि के कान में बोलो.

कुमार – गुरुजी मैं बस ये चाहता हूँ की काजल 12 वीं के एग्जाम्स में पास हो जाए.

गुरुजी - ठीक है. रश्मि के कान में इसे पाँच बार बोलो और रश्मि तुम लिंगा महाराज के सामने दोहरा देना. तुम्हारे बाद मैं भी काजल के लिए प्रार्थना करूँगा और फिर मेरे बाद तुम बोलना. आया समझ में ?

मैंने और गुप्ताजी ने सहमति में सर हिला दिया.

गुरुजी - सब आँखें बंद कर लो और प्रार्थना करो.

ऐसा बोलकर गुरुजी ने आँखें बंद कर ली और फिर मैंने भी अपनी आँखें बंद कर ली.

कुमार – लिंगा महाराज, काजल 12 वीं के एग्जाम्स में पास हो जाए.

गुप्ताजी ने मेरे कान में ऐसा फुसफुसा के कह दिया. उसने ये बात कहते हुए अपने होंठ मेरे कान और गर्दन से छुआ दिए और मेरे सुडौल नितंबों को अपने बदन से दबा दिया. उसकी इस हरकत से लग रहा था की वो मुझसे कुछ और भी चाहता था. मैं समझ रही थी की उसको अब और क्या चाहिए , उसको मेरी चूचियाँ चाहिए थी. मैं तब तक बहुत गरम हो चुकी थी. मैंने अपनी बाँहों को थोड़ा अंदर को खींचा और कोहनी के बल थोड़ा सा उठी ताकि कुमार मेरी चूचियों को पकड़ सके. मैं काजल के लिए प्रार्थना को ज़ोर से बोल रही थी और गुरुजी उस प्रार्थना के साथ कुछ मंत्र पढ़ रहे थे.

मेरी आँखें बंद थी और तभी कुमार ने दोनों हाथों से मेरी चूचियाँ दबा दी. वो गहरी साँसें ले रहा था और पीछे से ऐसे धक्के लगा रहा था जैसे मुझे चोद रहा हो. मेरी उभरी हुई गांड में लगते हर धक्के से मेरी पैंटी गीली होती जा रही थी. मैंने ख्याल किया जब हम दोनों चुप होते थे और गुरुजी मंत्र पढ़ रहे होते थे उस समय कुमार के हाथ मेरे ब्लाउज में चूचियों को दबा रहे होते थे. मैं भी उसकी इस छेड़छाड़ का जवाब देने लगी थी और धीरे से अपने नितंबों को हिलाकर उसके लंड को महसूस कर रही थी.

जल्दी ही पाँच बार काजल के लिए प्रार्थना पूरी हो गयी . मैं सोच रही थी की अब क्या होने वाला है ?

गुरुजी – जय लिंगा महाराज.

गुप्ताजी ने मेरी गांड को चोदना बंद कर दिया और मेरे ऊपर चुपचाप लेटे रहा. मुझे अपनी गांड में उसका लंड साफ महसूस हो रहा था और अब तो मेरा मन हो रहा था की मैं पैंटी उतार दूँ क्यूंकी पैंटी की वजह से उसका लंड मेरी गांड की दरार में अंदर नहीं जा पा रहा था और इससे मुझे पूरा मज़ा नहीं मिल पा रहा था.

गुरुजी - ठीक है. अब थोड़ा विराम लेते हैं. फिर उसके बाद अंतिम भाग में काजल बेटी के लिए ध्यान लगाना होगा.

अब मुझे अपनी ब्रा और ब्लाउज ठीक करनी पड़ी क्यूंकी गुप्ताजी ने मेरी चूचियों को ऐसे दबाया था की मेरी चूचियाँ ब्रा के अंदर कड़क हो गयी थीं. मैं अपनी पैंटी उतारकर गुप्ताजी के कड़े लंड को अपनी गांड में पूरी तरह महसूस करने को भी बेताब हो रखी थी , तो मुझे एक तरीका सूझा.

“गुरुजी , क्या मैं एक बार बाथरूम जा सकती हूँ?”

गुरुजी मुस्कुराए और सर हिलाकर हामी भर दी. उनकी मुस्कुराहट ऐसी थी की जैसे उन्हें सब मालूम हो. जैसे उस कमरे में सबको मालूम हो की मैं बाथरूम क्यूँ जा रही हूँ. मैंने अपनी नज़रें झुका ली और कमरे से बाहर चली आई. लेकिन बाहर आकर मुझे ध्यान आया की बाथरूम कहाँ है ये तो मुझे मालूम ही नहीं है.

“समीर , बाथरूम किधर है ?”

उसी समय गुप्ताजी ने भी गुरुजी से बाथरूम जाने की इच्छा जताई.

गुरुजी – कुमार, तुम रश्मि को भी बाथरूम का रास्ता दिखा दो.

वो थोड़ा रुके फिर बोले…..

गुरुजी – ओह्ह…...तुम्हें तो वहाँ किसी की सहायता की ज़रूरत पड़ेगी. रश्मि तुम इसकी मदद कर दोगी ?
मैं इसके लिए तैयार नहीं थी और हकलाने लगी.

“पर………..वो………..ठीक है गुरुजी.”

मैं फिर से कमरे के अंदर गयी और कुमार को खड़े होने में मदद की. इस बार उसने मुझे अपनी बीवी की तरह पकड़ लिया और दूसरे हाथ में उसने छड़ी का सहारा लिया हुआ था.

कुमार – यहाँ को रश्मि.

उसने अपनी छड़ी से इशारा करके मुझे रास्ता बताया.
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