Porn Story गुरुजी के आश्रम में रश्मि के जलवे
01-17-2019, 02:10 PM,
#54
RE: Porn Story गुरुजी के आश्रम में रश्मि क...
असल में शुक्रवार के दिन हमारी पीटी क्लास होती थी और मैं पीटी ड्रेस पहनकर स्कूल जाती थी. पीटी ड्रेस और दिनों की तरह ही थी , स्कर्ट और टॉप , पर एक अंतर ये था की स्कूल स्कर्ट घुटनों से नीचे तक थी पर पीटी स्कर्ट छोटी होती थी और घुटनों तक ही थी. चूँकि मैं गर्ल्स स्कूल में पढ़ती थी इसलिए स्कूल में कोई परेशानी नहीं थी लेकिन आते जाते समय रास्ते में ध्यान रखना पड़ता था. क्यूंकी पीटी स्कर्ट का कपड़ा भी थोड़ा हल्का था , कभी तेज हवा चल रही होती थी तो स्कर्ट उठ जाने से पैंटी दिख जाती थी. मेरी मम्मी शुक्रवार को हमेशा मुझे कहा करती थी की रश्मि, अपनी ड्रेस का ध्यान रखना. मेरी कुछ फ्रेंड्स को-एड स्कूल में पढ़ती थीं लेकिन उनकी पीटी ड्रेस छोटी नहीं थी . शायद हमारा गर्ल्स स्कूल होने की वजह से मैनेजमेंट ने इस ओर ध्यान नहीं दिया.

इसीलिए मैं नटवर को स्कूल बैग नहीं देती थी क्यूंकी रिक्शा में बैठने के बाद स्कर्ट मेरी जांघों तक ऊपर उठ जाती थी. लेकिन बारिश के मौसम में एक दिन मैं उसको बैग के लिए मना नहीं कर पायी. उस दिन तक तो उसको बारिश की वजह से रिक्शा में मुझसे सटकर बैठने का अवसर ही मिल पाता था लेकिन उस दिन पहली बार उसे छेड़छाड़ का मौका मिल गया.

वो फ्राइडे का दिन था और जब मैं स्कूल से बाहर निकली तो बहुत तेज बारिश हो रही थी. मैं छाता लेकर रिक्शा के पास आई. रिक्शा की सीट पर नटवर पहले से ही बैठा हुआ था. मुझे रिक्शा में चढ़ते समय छाता पकड़े होने की वजह से अपना बैग उसको देना पड़ा. उसने मेरा बैग पकड़ा और हाथ देकर मुझे रिक्शा में चढ़ा लिया. मेरे बैठते ही रिक्शा वाले ने पॉलिथीन कवर को फैला दिया. आज तेज बारिश हो रही थी तो नटवर ने उससे कहा की साइड्स से भी कवर कर दे. अब मैं हमारे नौकर के साथ उस चारो तरफ से बंद रिक्शा में बैठी थी और बारिश की बूंदे पॉलिथीन कवर में पड़ने से तेज आवाज़ हो रही थी और बाहर का कुछ भी सुनाई नहीं दे रहा था.

“नटवर भैय्या , मैं बैग रख लेती हूँ. तुम तकलीफ मत करो.”

नटवर – नहीं नहीं बेबी. आज मैं ही रख लेता हूँ. ये भीग गया है तो थोड़ा भारी भी हो गया है.

नटवर मुझे बेबी कह कर बुलाता था. मैंने सोचा सच ही कह रहा होगा क्यूंकी मेरा बैग वास्तव में भीग गया था.

“ठीक है नटवर भैय्या, आज तुम ही रख लो.”

मैं मुस्कुरायी और मैंने देखा की उसने अजीब ढंग से मेरा बैग पकड़ा हुआ है. उसने अपनी गोद में बैग जांघों पर ना लिटाकर खड़ा करके रखा हुआ था और बैग के बाहर से छाती पर हाथ फोल्ड किए हुए थे. मुझे मन ही मन हँसी आई की इसने ऐसे बैग पकड़ा हुआ है. थोड़ी देर बाद पॉलिथीन कवर की दोनों तरफ की साइड्स से बारिश की बूंदे आने लगीं तो मुझे सीट पर नटवर की तरफ खिसकना पड़ा और वो भी थोड़ा मेरी तरफ खिसक गया. नतीजा ये हुआ की अब उसकी फोल्ड की हुई बायीं बाँह की अँगुलियाँ मेरी चूची को छूने लगी. रिक्शा को लगते हर झटके के साथ उसके बाएं हाथ की अँगुलियाँ मेरी बायीं चूची को छूने लगी . वो मेरी बायीं तरफ बैठा था और मुझे लगा सटकर बैठने की वजह से ऐसा हो रहा है.

फिर रिक्शा मेन रोड को छोड़कर गली में आ गया और रास्ता अच्छा ना होने से झटके ज़्यादा लगने लगे और बारिश की वजह से गली में पानी भर गया था तो स्पीड भी हल्की हो गयी थी. मैंने दाएं हाथ से रिक्शा को पकड़ा हुआ था और बाएं हाथ को पीटी स्कर्ट के ऊपर जाँघ पर रखा हुआ था. रास्ते भर नटवर की अँगुलियाँ मेरी बायीं चूची को छूते रहीं. जब मैं घर पहुँची तो मुझे कुछ अजीब सा महसूस हो रहा था. मम्मी को चिंता हो रही थी की कहीं इतनी तेज बारिश से मैं भीग तो नहीं गयी लेकिन मेरा ध्यान अपनी चूचियों पर था क्यूंकी ब्रा के अंदर निप्पल एकदम कड़क होकर तन गये थे. 

वो तो बस शुरुवात थी और बारिश के दिनों में नटवर का यही रुटीन हो गया. धूप के दिन वो ऐसे नॉर्मल तरीके से व्यवहार करता था की मैं उसके बारे में कुछ भी ग़लत नहीं सोच पाती थी. फिर एक बारिश के दिन वो मेरी बायीं तरफ बैठा था. रिक्शा की साइड्स से बारिश की बूंदे आने लगीं तो मुझे उसकी तरफ खिसकना पड़ा. उस दिन स्कूल बैग मेरी गोद में ही रखा हुआ था. अब उसने अपना दायां हाथ मेरे पीछे सीट के ऊपर रख दिया. थोड़ी देर तक कुछ नहीं हुआ फिर रिक्शा को एक झटका लगा तो मैं उसकी तरफ झुक गयी , उसने अपने दाएं हाथ से मेरे कंधे को पकड़ लिया. फिर मैं सीधी हो गयी पर उसने अपना हाथ नहीं हटाया.

बारिश की वजह से मुझे उससे सटकर बैठना पड़ रहा था और उसका हाथ मेरे दाएं कंधे पर था. फिर एक झटका लगा तो उसका हाथ मेरे कंधे से खिसकर मेरी बाँह पर आ गया और अगले झटके में और नीचे खिसककर मेरी कमर पर आ गया. उस दिन जब मैं रिक्शा से उतरने लगी तो उसने मेरे नितंबों को अपनी हथेली से पकड़ा जैसे मुझे नीचे उतरने में मदद कर रहा हो. तब तक तो मैं सहन ही करती थी और उसके छूने को इग्नोर कर देती थी और कभी कभी जब उसका हाथ मुझे ज़्यादा ही महसूस होता था तब मुझे थोड़ा एंबरेसमेंट हो जाती थी . लेकिन जैसे जैसे दिन गुज़रते गये मुझे समझ आने लगा की ये नौकर बारिश की वजह से मेरी सटकर बैठने की मजबूरी का फायदा उठा रहा है और जानबूझकर मेरे बदन को छूने की कोशिश करता है. 

फिर लगातार दो दिनों तक कुछ ऐसा हुआ की मैं बहुत ही परेशान हो गयी और फिर मैंने रिक्शा में बैठना ही छोड़ दिया.

मुझे याद है की उस दिन थर्सडे था और मानसून की तेज बारिश हो रही थी.
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