Porn Story गुरुजी के आश्रम में रश्मि के जलवे
01-17-2019, 02:13 PM,
#67
RE: Porn Story गुरुजी के आश्रम में रश्मि क...
गुरुजी – रश्मि, अब तुम अपने उपचार के आखिरी पड़ाव में पहुँच गयी हो. आराम करो और महायज्ञ के लिए अपने को मानसिक रूप से तैयार करो. लंच के बाद मेरे कमरे में आना फिर मैं विस्तार से बताऊँगा.

“ठीक है गुरुजी.”

मैं अपने कमरे में चली गयी और नाश्ता किया. फिर दवाई ली और नहाने के बाद बेड में लेट गयी. बेड में लेटे हुए सोचने लगी , अब क्या होनेवाला है ? गुरुजी ने कहा था महायज्ञ उपचार का आखिरी पड़ाव है. यही सब सोचते हुए ना जाने कब मेरी आँख लग गयी. नींद में मुझे एक मज़ेदार सपना आया. मैं अपने पति राजेश के साथ एक सुंदर पहाड़ी जगह पर छुट्टियाँ बिता रही हूँ. हम दोनों एक दूसरे के ऊपर बर्फ के टुकड़े फेंक रहे थे और तभी मैं बर्फ में फिसल गयी. राजेश ने जल्दी से मुझे पकड़ लिया और मेरा चुंबन लेने लगे तभी……

“खट खट …..”

किसी ने दरवाज़ा खटखटा दिया. मुझे बड़ी निराशा हुई , इतना अच्छा सपना देख रही थी , ठीक टाइम पर डिस्टर्ब कर दिया. दरवाज़े पे परिमल लंच लेकर आया था.

मैं नींद से सुस्ती महसूस कर रही थी और परिमल से टेबल पर लंच रख देने को कहा क्यूंकी अभी मेरा खाने का मन नहीं था. मैंने ख्याल किया ठिगना परिमल मुझे घूर रहा है , कुछ पल बाद मुझे समझ आ गया की ऐसा क्यूँ. मैंने जब दरवाज़ा खोला तो नींद से उठी थी और अपने कपड़ों पर ध्यान नहीं दिया. मैं नाइटी पहने हुए थी और अंदर से अंतर्वस्त्र नहीं पहने थे. परिमल की नजरें मेरे निपल्स पर थी. मैं थोड़ी देर और आराम करने के मूड में थी इसलिए उससे जाने को कह दिया. निराश मुँह बनाकर परिमल चला गया. मैं बाथरूम में गयी और शीशे के सामने अपने को देखने लगी.

“हे भगवान ..”

मेरे दोनों निपल्स तने हुए थे और नाइटी के कपड़े में उनकी शेप साफ दिख रही थी. ये देखकर मैं शरमा गयी और समझ गयी की परिमल घूर क्यूँ रहा था. मैंने अपनी चूचियों के ऊपर नाइटी के कपड़े को खींचा ताकि निपल्स की शेप ना दिखे लेकिन जैसे ही कपड़ा वापस अपनी जगह पर आया, मेरे तने हुए निपल्स फिर से दिखने लगे. वास्तव में मैं ऐसे बहुत सेक्सी और लुभावनी लग रही थी. ये जरूर उस सपने की वजह से हुआ होगा. बाथरूम से बाहर आते हुए मैं राजेश के चुंबन को याद करके मुस्कुरा रही थी. मैं फिर से बेड में लेट गयी और अपनी जांघों के बीच तकिया दबाकर दुबारा से सपने को याद करने लगी. लेकिन बहुत कोशिश करने पर भी ठीक से सपना याद नहीं आया ना ही दुबारा नींद आई. निराश होकर कुछ देर बाद मैं उठ गयी और लंच किया.

फिर मैंने नयी ब्रा पैंटी के साथ नयी साड़ी, पेटीकोट और ब्लाउज पहन लिए और गुरुजी के कमरे में जाने के लिए तैयार हो गयी थी. तभी किसी ने दरवाज़ा खटखटा दिया. दरवाज़े पे परिमल था.

परिमल – मैडम, अगर आपने लंच कर लिया है तो गुरुजी बुला रहे हैं.

“हाँ ….”

उसने मेरी बात काट दी.

परिमल – अरे , आप तो तैयार हो. मैडम, समीर ने पूछा है की धोने के लिए कुछ है ?

“हाँ , लेकिन…”

मेरे कल के कपड़े धोने थे लेकिन मैं परिमल को वो कपड़े देना नहीं चाहती थी क्यूंकी ना सिर्फ साड़ी बल्कि ब्लाउज, पेटीकोट और ब्रा पैंटी भी थे.

परिमल – लेकिन क्या मैडम ?

मैंने सोचा कुछ बहाना बना देती हूँ ताकि कपड़े इसे ना देने पड़े.

“असल में मैंने पहले ही समीर को धोने के लिए दे दिए थे.”

परिमल – लेकिन मैडम, मैंने तो चेक किया था वहाँ तो सिर्फ मंजू के कपड़े हैं.

अब मैं फँस गयी थी, क्या जवाब दूँ ?

परिमल – आज तो समीर की जगह वहाँ मैं काम कर रहा हूँ.

मेरा झूठ परिमल ने पकड़ लिया था. पर मुझे कुछ तो कहना ही था.

“अरे हाँ. तुम ठीक कह रहे हो. मैंने आज नहीं दिए , कल दिए थे. मुझे याद नहीं रहा.

परिमल मुस्कुराया और मुझे भी जबरदस्ती मुस्कुराना पड़ा.

परिमल – मैडम, आप मुझे बता दो कहाँ रखे हैं , मैं उठा लूँगा. आपको पुराने कपड़े छूने नहीं पड़ेंगे.

मुझे कुछ जवाब नहीं सूझा और उसकी बात माननी पड़ी.

“धन्यवाद. बाथरूम में रखे हैं, दायीं तरफ.”

परिमल मुस्कुराया और मेरे बाथरूम में चला गया. मैं भी उसके पीछे चली गयी वैसे इसकी जरूरत नहीं थी. जो कपड़े मैंने कल गुप्ताजी के घर जाने के लिए पहने हुए थे वो बाथरूम के एक कोने में पड़े हुए थे. परिमल ने फर्श से मेरी साड़ी उठाई और अपने दाएं कंधे में रख ली और मेरा पेटीकोट उठाकर बाएं कंधे में रख लिया. मैं बाथरूम के दरवाज़े में खड़ी होकर उसे देख रही थी. अब फर्श में ब्लाउज के साथ मेरी सफेद ब्रा और पैंटी लिपटे हुए पड़े थे. मुझे बहुत अटपटा महसूस हो रहा था की अब परिमल उन्हें उठाएगा. परिमल झुका और उन कपड़ों को उठाकर मेरी तरफ घूम गया. मैं इसके लिए तैयार नहीं थी और मुझे बहुत इरिटेशन हुई जब मैंने देखा की मेरे अंतर्वस्त्रों को देखकर उसके दाँत बाहर निकल आए हैं. मेरी तरफ मुँह करके वो ब्लाउज से लिपटी हुई ब्रा को अलग करने की कोशिश करने लगा.

इतना बदमाश. उसको ये सब मेरे ही सामने करना था. 

मैंने देखा मेरी ब्रा का स्ट्रैप ब्लाउज के हुक में फँसा हुआ है . परिमल को ये नहीं दिखा और वो ब्रा को खींचकर अलग करने की कोशिश कर रहा था.

“अरे ….क्या कर रहे हो ? हुक टूट जाएगा.”

परिमल ने मुस्कुराते हुए मुझे देखा जबकि मुझे बिल्कुल हँसी नहीं आ रही थी. अब उसने हुक से स्ट्रैप निकाला.

परिमल – मैडम, मुझे पता नहीं चला की आपकी ब्रा ब्लाउज के हुक में फँसी है. आपने सही समय पर बता दिया वरना मैंने ग़लती से आपके ब्लाउज का हुक तोड़ दिया होता.

ऐसा कहते हुए उसने अपने एक हाथ में ब्रा और दूसरे में ब्लाउज पकड़ लिया जैसे की मुझे दिखा रहा हो की देखो मैंने बिना हुक तोड़े अलग अलग कर दिए हैं. ब्लाउज से ब्रा अलग करने में मेरी पैंटी फर्श में गिर गयी.

परिमल – ओह…..सॉरी मैडम.

पैंटी के गिरते ही मैं अपनेआप ही झुक गयी और पैंटी उठाने लगी. मेरी मुड़ी तुड़ी पैंटी फर्श से उठाकर उसको देने में बड़ा अजीब लग रहा था. आश्रम आने से पहले कभी किसी मर्द को अपने अंतर्वस्त्र देने की जरूरत नहीं पड़ी. अपने घर में मैं अपने अंतर्वस्त्र खुद धोती थी. इसलिए कभी धोबी को देने की जरूरत नहीं पड़ी. मैंने तो कभी अपने पति से भी नहीं कहा की अलमारी से मेरी ब्रा पैंटी निकाल कर दे दो. मुझे याद है की जब मैं आश्रम आई थी तो पहले ही दिन मुझे अपने अंतर्वस्त्र समीर को देने पड़े थे. वो तो फिर भी चलेगा लेकिन इस बौने की हरकतों से मुझे इरिटेशन हो रही थी.

परिमल अब मेरी पैंटी को गौर से देखने लगा. असल में वो एक रस्सी की तरह मुड़कर उलझ गयी थी. नहाने के बाद मैंने उसे सीधा नहीं किया था. 

परिमल – मैडम, ये तो घूम गयी है.

मेरे पास इस बेहूदी बात का कोई जवाब नहीं था और मैंने नजरें झुका ली और शरम से अपने होंठ काटने लगी.

परिमल – मैडम , मैं इसको सीधा करता हूँ , नहीं तो ठीक से धुल नहीं पाएगी. आप इनको पकड़ लो.

एक मर्द मुझसे मेरी ब्रा और ब्लाउज को पकड़ने के लिए कह रहा था और खुद मेरी पैंटी को सीधा करना चाहता था. मुझे तो कुछ कहना ही नहीं आया. मैंने अपनी ब्रा और ब्लाउज पकड़ लिए. परिमल दोनों हाथों से मेरी घूमी हुई पैंटी को सीधा करने लगा. वो देखकर मैं शरम से मरी जा रही थी.

मुझे बहुत एंबरेस करके आखिरकार परिमल बाथरूम से बाहर आया. 

परिमल – मैडम अब आप गुरुजी के पास जाओ. उन्होंने लंच ले लिया है.

अपने हाथों में मेरे अंतर्वस्त्र पकड़कर दाँत दिखाते हुए परिमल चला गया. उसकी मुस्कुराहट पर इरिटेट होते हुए मैं भी गुरुजी के कमरे की तरफ चल दी.

“गुरुजी, मैं आ जाऊँ ?”

गुरुजी एक सोफे में बैठे हुए थे और समीर भी वहाँ था.

गुरुजी – आओ रश्मि. मैं तुम्हारा ही इंतज़ार कर रहा था.

मैं अंदर आकर कालीन में बैठ गयी. समीर भी वहीं पर बैठा हुआ था. वो एक कॉपी में कुछ हिसाब लिख रहा था. मैंने गुरुजी को प्रणाम किया और उन्होंने जय लिंगा महाराज कहकर आशीर्वाद दिया.

गुरुजी – रश्मि , मुझे कुछ देर बाद भक्तों से मिलना है इसलिए मैं सीधे काम की बात पे आता हूँ. जैसा की मैंने तुम्हें बताया है की महायज्ञ तुम्हारे गर्भधारण में आने वाली सभी बाधाओं से मुक्ति का आखिरी उपाय है. ये एक कठिन प्रक्रिया है और इसको पूरा करने में तुम्हें कई चुनौतियों का सामना करना पड़ेगा. सिर्फ तुम्हारी लगन ही तुम्हें पार ले जा सकती है. तुम्हें सिर्फ उस वरदानी फल का ध्यान करना है जो महायज्ञ के उपरांत तुम अपने गर्भ में धारण करोगी.

मैं उनकी बातों से मंत्रमुग्ध हो गयी. गुरुजी की ओजस्वी वाणी से मुझे कॉन्फिडेन्स भी आ रहा था. मैंने सर हिलाया.

गुरुजी – महायज्ञ का पाठ किसी भी औरत के लिए कठिन है लेकिन अंत में जो सुखद फल प्राप्त होगा , उसकी इच्छा से तुम अपनेआप को तैयार करो. महायज्ञ में कुछ चरण हैं और हर चरण को पूरा करने के बाद तुम अपने लक्ष्य के करीब आती जाओगी. ये तुम्हारे मन, शरीर और धैर्य की कड़ी परीक्षा होगी. अगर तुम्हें मुझमें और लिंगा महाराज में विश्वास है तो तुम अपनी मंज़िल तक जरूर पहुँचोगी.

“गुरुजी , मैं जरूर पूरा करूँगी. किसी भी कीमत पर मैं माँ बनना…….”

मेरी आवाज गले में रुंध गयी क्यूंकी संतान ना हो पाने का दुख मेरे मन पर हावी हो गया.

गुरुजी – मैं तुम्हारा दुख समझता हूँ रश्मि. अभी तक तुमने सफलतापूर्वक उपचार की प्रक्रिया पूरी की है और लिंगा महाराज के आशीर्वाद से तुम जरूर महायज्ञ को सफलतापूर्वक पूरा करोगी.

गुरुजी कुछ पल के लिए रुके फिर ….
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