Porn Story गुरुजी के आश्रम में रश्मि के जलवे
01-17-2019, 02:13 PM,
#68
RE: Porn Story गुरुजी के आश्रम में रश्मि क...
गुरुजी – मैं तुम्हारा दुख समझता हूँ रश्मि. अभी तक तुमने सफलतापूर्वक उपचार की प्रक्रिया पूरी की है और लिंगा महाराज के आशीर्वाद से तुम जरूर महायज्ञ को सफलतापूर्वक पूरा करोगी.

गुरुजी कुछ पल के लिए रुके फिर ….

गुरुजी – मैं जानता हूँ की तुम्हारी जैसी शादीशुदा औरत के लिए किसी पराए मर्द को अपना बदन छूने देने के लिए राज़ी होना बहुत कठिन है. लेकिन मेरे उपचार का तरीका ऐसा है की तुम्हें इन चीज़ों को स्वीकार करना ही पड़ेगा. संतान पैदा होना ‘यौन अंगों’ से संबंधित है , है की नहीं रश्मि ? इसलिए मैं उपचार के दौरान उन्हें बायपास कैसे कर सकता हूँ ? अगर मुझे तुम्हारे स्खलन की मात्रा ज्ञात नहीं होगी, अगर मुझे ये मालूम नहीं होगा की तुम्हारे योनीमार्ग में कोई रुकावट है या नहीं तो मैं उपचार का अगला चरण कैसे तय कर पाऊँगा ?

मैंने एक आज्ञाकारी शिष्य की तरह गुरुजी की बात पर सर हिला दिया. 

गुरुजी – इसीलिए मैंने पहले ही दिन तुमसे कहा था की अपना सारा संकोच और शरम को भूल जाओ. और आज जब तुम अपने उपचार के आखिरी पड़ाव पर हो, मैं तुमसे कहूँगा की महायज्ञ के दौरान कोई संकोच , कोई शरम अपने मन में मत रखना.

गुरुजी – मेरा मतलब है की मानसिक तौर पर किसी भी स्थिति के लिए तैयार रहना. वैसे तो तुमने पिछले कुछ दिनों में उपचार की प्रक्रिया ठीक से पूरी की है लेकिन महायज्ञ में हो सकता है की तुम्हें और भी ज़्यादा बेशरम बनना पड़े. असल में जो तुम्हारे लिए बेशरम कृत्य है , वो हमारे लिए साधारण कृत्य है. जैसे उदाहरण के लिए कल कुमार के घर में मुझे नग्न होकर काजल के साथ संभोग करते हुए देखकर तुमने जरूर मेरे बारे में ग़लत सोचा होगा लेकिन तांत्रिक क्रियाएँ ऐसे ही की जाती हैं, यही विधान है. 

स्वाभाविक शरम से मैंने गुरुजी से आँखें मिलने से परहेज किया. मेरे चेहरे की लाली बढ़ने लगी थी.

गुरुजी – जब मैंने अपने गुरु से तांत्रिक दीक्षा ली थी , तब हम पाँच शिष्य थे और उनमें से दो औरतें थीं. उन दिनों पूरी प्रक्रिया के दौरान नग्न रहना जरूरी होता था. इसलिए तुम समझ सकती हो……

मैंने फिर से गुरुजी से नजरें नहीं मिलाई और मेरी साँसें थोड़ी भारी हो गयी थीं. गुरुजी सीधे मेरी आँखों में देखकर बात कर रहे थे.

गुरुजी – रश्मि, मैं फिर से इस बात पर ज़ोर दूँगा की अपनी शारीरिक स्थिति पर ध्यान देने की बजाय जो प्रक्रिया चल रही है उस पर ध्यान देना. तभी तुम्हें लक्ष्य की प्राप्ति होगी. समझ गयीं ?

“जी गुरुजी.”

गुरुजी – जैसा की मैंने तुम्हें पहले भी बताया था महायज्ञ दो रातों तक चलेगा. आज रात 10 बजे से शुरू होगा. कल दिन में तुम आराम करना और कल रात को महायज्ञ का दूसरा चरण होगा. महायज्ञ में क्या क्या होगा इसके बारे में मैं अभी बात नहीं करूँगा, यज्ञ के दौरान ही तुम्हें पता चलते रहेगा. ठीक है ?

मैंने फिर से सर हिला दिया.

गुरुजी – ठीक है फिर. समीर जरा देखो की सभी भक्त आ गये हैं या नहीं. वरना मुझे जाना होगा.

समीर – जी गुरुजी.

समीर ने अपनी कॉपी बंद की और कमरे से बाहर चला गया. अब मैं गुरुजी के साथ अकेली थी.

गुरुजी – रश्मि , महायज्ञ और तंत्र दर्शन कोई आज के दिनों के नहीं हैं. ये प्राचीन काल से चले आ रहे हैं और इस प्रक्रिया में भक्तों को अपने शुद्ध रूप यानी की नग्न रूप में रहना होता है. लेकिन आज के दौर में शहरों में रहने वाले स्त्री - पुरुष भी इसका लाभ प्राप्त करने आते हैं , अब आज के समय को देखते हुए हम उन्हें नग्न रूप में पूजा के लिए नहीं कहते बल्कि ‘महायज्ञ परिधान’ पहनना होता है. एक बात मैं साफ बता देना चाहता हूँ की पहले के समय में भक्त और यज्ञ करवाने वाले दोनों को ही नग्न रूप में रहना होता था.

गुरुजी थोड़ा रुके शायद मेरा रिएक्शन देखने के लिए. मैं अंदाज़ा लगाने की कोशिश कर रही थी की मुझे क्या पहनना होगा ? मैं गुरुजी से पूछना चाह रही थी की ‘महायज्ञ परिधान’ होता क्या है ? इस परिधान के बारे में अंदाज़ा लगाते हुए मेरा गला सूखने लगा था. गुरुजी ने जैसे मेरे मन की बात जान ली.

गुरुजी – रश्मि, मैं इस बात से सहमत हूँ की ‘महायज्ञ परिधान’ एक औरत के लिए पर्याप्त नहीं है पर मैं इस बारे में कुछ नहीं कर सकता. लेकिन जैसा की मैंने कई बार कहा है तुम्हारा ध्यान लक्ष्य पर होना चाहिए ना की और बातों पर.

“लेकिन फिर भी गुरुजी…”

गुरुजी – मैं जानता हूँ रश्मि की तुम्हें उत्सुकता हो रही होगी. लेकिन तुम्हारा ध्यान लिंगा महाराज की पूजा पर होना चाहिए. बाकी सब मुझ पर छोड़ दो.

ऐसा कहते हुए वो मुस्कुराए और उठने को हुए. सच कहूँ तो उस समय तक मुझे इस ‘महायज्ञ परिधान’ को लेकर फिक्र होने लगी थी.

गुरुजी – अब मुझे जाना है. मुझे उम्मीद है की तुम्हें गोपाल टेलर को कपड़े की नाप देने में कोई आपत्ति नहीं होगी.

गोपाल टेलर ? हे भगवान ! मुझे तुरंत याद आया की उसकी दुकान में ब्लाउज की नाप देते समय गोपालजी और उसके भाई मंगल ने मेरे साथ क्या किया था. मेरा मुँह शरम से लाल हो गया.

“लेकिन गुरुजी , क्या मैं कहीं और से …”

गुरुजी – रश्मि, ‘महायज्ञ परिधान’ एक खास तरह का वस्त्र है जो उच्चकोटि के कपास (कॉटन) से बनता है. ये बाजार में नहीं मिलता की तुम गये और खरीद कर ले आए. 

गुरुजी खीझ गये. मैं अपने उपचार के आखिरी पड़ाव में गुरुजी को नाराज नहीं करना चाहती थी.

“माफ़ कीजिए गुरुजी. मुझे ये समझ लेना चाहिए था.”

गुरुजी – तुम्हें ये जानकार आश्चर्य होगा की गोपाल टेलर आज ही तुम्हारा परिधान सिल देगा और वो भी रात 10 बजे से पहले. तुम यज्ञ के लिए अपने को मानसिक रूप से तैयार करो और उसका काम उसे करने दो. वो तुम्हारे कमरे में दोपहर 2 बजे आ जाएगा.

मैंने सहमति में सर हिलाया और कालीन से उठ खड़ी हुई. मेरे दिमाग़ में परिधान को लेकर बहुत से प्रश्न थे लेकिन गुरुजी से पूछने की मेरी हिम्मत नहीं हुई.

गुरुजी – अब तुम जाओ.

मैं अपने कमरे में चली आई. लेकिन मेरी उत्सुकता बढ़ते जा रही थी की आखिर ये परिधान होता कैसा है ? गुरुजी ने मुझे इसके बारे में कुछ भी नहीं बताया था. मैंने अपने मन में याद करने की कोशिश की गुरुजी ने क्या कहा था ? मुझे याद आया की उन्होंने कहा था की ये परिधान एक औरत के लिए पर्याप्त नहीं है. इसका क्या मतलब हुआ ? ये कोई साड़ी या सलवार कमीज जैसी पूरे बदन को ढकने वाली ड्रेस तो नहीं होगी लेकिन कुछ छोटी होगी.

तभी मेरे दिमाग़ में ख्याल आया की मुझे कौन बता सकता है. वो थी मंजू. मैं आश्रम के किसी मर्द से ये बात पूछने में बहुत असहज महसूस करती पर मंजू जरूर मुझे इसके बारे में बता सकती थी.

“मंजू….”

मंजू अपने कमरे में थी और मुझे अंदर आने को कहा. वो अपने बेड में बैठी हुई कुछ सिल रही थी. मैं भी उसके साथ बेड में बैठ गयी.

मंजू – गुप्ताजी के घर की सैर कैसी रही ?

“ठीक रही. असल में मैं तुमसे कुछ पूछने आई थी.”

वो मुस्कुरायी और प्रश्नवाचक निगाहों से मुझे देखा.

“तुम्हें मालूम ही होगा की गुरुजी मेरे लिए महायज्ञ करने वाले हैं और ….”

मंजू – हाँ , मुझे मालूम है.

“उन्होंने अभी मुझे इसके बारे में बताया.”

मंजू – कोई समस्या ?

“मेरा मतलब वो …..असल में गुरुजी कुछ ‘महायज्ञ परिधान’ की बात कर रहे थे.

मंजू - तो ?

“असल में मैं जाना चाहती थी की ये कैसी ड्रेस होती है ?”

मंजू – ओह …..तुम इसके लिए बहुत चिंतित लग रही हो.

“हाँ, तुम्हें मालूम होगा की यज्ञ के दौरान मुझे उसी ड्रेस में रहना होगा, इसलिए…”

मंजू – सच बात है रश्मि. ये हम औरतों के लिए समस्या है. मर्द तो दिन भर एक कच्छा पहनकर घूम सकते हैं लेकिन हम औरतें नहीं.

मुझे लगा आखिर कोई तो मिला जो औरत होने के नाते मेरी शरम को समझता हो.

मंजू – रश्मि, मैं तुम्हें कोई दिलासा नहीं दे सकती क्यूंकी महायज्ञ में पूर्ण भक्ति और शरीर की शुद्धि की जरूरत होती है.

“हाँ, गुरुजी भी कुछ ऐसा ही कह रहे थे.”

मंजू – फिर भी मैं तुम्हें ये भरोसा दिला सकती हूँ की ये दो हिस्से ढके रहेंगे.

ऐसा कहते हुए उसने अपने हाथ से अपनी चूचियों और चूत की तरफ इशारा किया और शरारत से मुस्कुराने लगी. ये सुनकर सचमुच मुझे राहत मिली और मैं भी मुस्कुरा दी लेकिन मैं अभी भी चिंतित थी. ये देखकर उसने अपना सिलाई का कपड़ा एक तरफ रख दिया और मेरी तरफ झुककर अपनी अंगुलियों से मेरा दायां गाल पकड़कर हिलाया.

मंजू – चिंता मत करो रश्मि. परिधान के बारे में रहस्य को बने रहने दो.

वो ज़ोर से हंस पड़ी और उसके व्यवहार को देखकर मैं भी मुस्कुरा रही थी.

मंजू – ये बताओ , तुम्हारी शादी को कितने साल हो गये ?

“चार साल…”

मंजू – हे भगवान . तब तो तुम्हारे पति ने तुमसे 400 बार मज़े लिए होंगे , है ना ?

वो हँसे जा रही थी और उसके चिढ़ाने से मेरा चेहरा लाल होने लगा था.

मंजू – तुममें अब भी शरम बाकी है ? कहाँ रखती हो उसे ?

उसकी बात पर हम दोनों खिलखिलाकर हंस पड़े और बेड पे लोटपोट हो गये.

मंजू – मैं सोच रही हूँ की गुरुजी से कहूँ की तंत्र के नियमों के अनुसार महायज्ञ के लिए शादीशुदा औरतों को कोई वस्त्र पहनने की अनुमति ना दें.

हम अभी भी हंस रहे थे और मंजू की इस बात पर मैंने उसे चिकोटी काट दी. और सच कहूँ तो अब मेरी चिंता काफ़ी कम हो चुकी थी.

मंजू – रश्मि, मज़ाक अलग है लेकिन तुम बिल्कुल फिक्र मत करो.

वो थोड़ा रुकी और हम फिर से बेड पे ठीक से बैठ गये. ब्लाउज के ऊपर से उसका पल्लू गिर गया था और उसकी बड़ी क्लीवेज दिख रही थी ख़ासकर इसलिए क्यूंकी उसके ब्लाउज का ऊपरी हुक खुला हुआ था. उसके साथ ही मैंने भी अपना पल्लू ठीक कर लिया.

मंजू – रश्मि, इन छोटी मोटी बातों पर ध्यान मत दो और बस लिंगा महाराज की पूजा करो ताकि तुम्हें इच्छित फल की प्राप्ति हो.

“तुम ठीक कह रही हो मंजू. मुझे सिर्फ उस पर ही ध्यान लगाना चाहिए. सिर्फ मैं ही जानती हूँ की कितनी रातों को मैं अकेले में चुपचाप रोई हूँ…..”

हम दोनों कुछ पल के लिए चुप रहे फिर कुछ इधर उधर की बातें करके मैं वापस अपने कमरे मैं चली आई. अब 2 बजने में आधा घंटा ही बचा था और गोपाल टेलर को मेरे कमरे में आना था.
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