Porn Story गुरुजी के आश्रम में रश्मि के जलवे
01-17-2019, 02:14 PM,
#75
RE: Porn Story गुरुजी के आश्रम में रश्मि क...
दीपू – लेकिन मुँह से सांस देते समय छाती को भी पंप करते रहना. मामी को भी ऐसा ही करते थे.

गोपालजी – अच्छा, ठीक है.

अब तो जैसे उस 60 बरस के आदमी के मन की मुराद पूरी हो गयी. कुछ ही पलों में उसके ठंडे होठों ने मेरे होठों को छुआ. वो उत्तेजना से कांप रहा था और उसके दिल की धड़कनें तेज हो गयी थीं. गोपालजी ने अपने हाथ से मेरे मुँह को खोला और मुँह में हवा देने के बहाने मेरे निचले होंठ को अपने होठों के बीच दबाकर महसूस किया. फिर उसने मेरा चुंबन लेना शुरू किया और उसकी गरम जीभ मैंने अपने मुँह के अंदर घूमती हुई महसूस की. उसकी लार मेरी लार से मिल गयी और मैंने भी चुंबन में उसका साथ दिया. कुछ पलों बाद गोपालजी ने मेरी चूचियाँ पकड़ लीं और उन्हें निचोड़ने लगा. जिस तरह से वो उन्हें मसल रहा था उससे मुझे लगा की इस बार तो मेरे ब्लाउज के हुक टूट ही जाएँगे. मेरे होठों को चूमने के साथ साथ वो मेरी बड़ी चूचियों को मनमर्ज़ी से दबोच रहा था और उनके बीच तने हुए कड़क निपल्स को अपने अंगूठे से महसूस कर रहा था.

अब चीजें हद से पार और मेरे नियंत्रण से बाहर जा चुकी थीं. मेरा पूरा बदन जल रहा था और मेरी साँसें उखड़ गयी थीं. मुझे यकीन था की दीपू को मेरी टाँगें स्थिर रखने में मुश्किल हो रही होगी क्यूंकी उत्तेजना से वो अपनेआप अलग हो जा रही थीं. क्या उसे अंदाज हो गया होगा की मैं नाटक कर रही हूँ ? नहीं ऐसा नहीं था, क्यूंकी उसने ज़रूर कुछ कहा होता. मैंने अपने बदन को कम से कम हिलाने डुलाने की कोशिश की लेकिन मेरे चेहरे पर गोपालजी की भारी साँसों, उसके दातों का मेरे नरम होठों को काटना और मेरे मुँह में घूमती उसकी जीभ मुझे बहुत कामोत्तेजित कर दे रहे थे. मैं तकिया पे सर रखे बिस्तर पर सिर्फ़ ब्लाउज और पेटीकोट में आँखें बंद किए लेटी थी और मुझे ऐसा लग रहा था जैसे मेरे पति के साथ मेरी कामक्रीड़ा चल रही है.

दीपू – जी , मैडम में कोई फ़र्क पड़ा ?

गोपालजी – हाँ …दीपू. ये हल्का हल्का रेस्पॉन्स दे रही है.

दीपू – मुझे भी इसकी टाँगें हिलती हुई महसूस हो रही हैं.

गोपालजी – लेकिन ये अभी पूरी तरह से होश में नहीं आई है.

गोपालजी जब बोल रहा था तो उसके होंठ मेरे होठों को छू रहे थे और इससे मुझे ऐसी सेक्सी फीलिंग आ रही थी की मैं बयान नहीं कर सकती. अब गोपालजी ने मेरे चेहरे से अपना चेहरा हटा लिया और मेरी चूचियों से अपने हाथ भी हटा लिए. गोपालजी ने ब्रा और ब्लाउज के बाहर से मेरी चूचियों को इतना मसला था की वो अब दर्द करने लगी थीं.

दीपू – जी , एक और उपाय है जो गांव में मैंने देखा है , कोई भी दुर्गंध वाली चीज़ सुंघाते थे.

दुर्गंध वाली चीज़ , क्या होगी मैं सोचने लगी लेकिन मैं अनुमान लगा ही नहीं सकती थी की उस चालाक बुड्ढे के मन में क्या है.

गोपालजी – आहा….ये तो बहुत बढ़िया उपाय है. ये मेरे दिमाग़ में पहले क्यूँ नहीं आया ?

अब मुझे ऐसा लगा की दीपू जो की मेरे पैरों के पास बैठा था अब खड़ा हो गया है.

दीपू – जी, मेरी मामी जब हल्का सा होश में आने लगती थी तो उसको कुछ सुंघाते थे.

गोपालजी – क्या सुंघाते थे ?

दीपू – कोई भी चीज़ जिससे तेज दुर्गंध आए. अक्सर चप्पल सुंघाते थे.

गोपालजी – अपनी चप्पल दो.

छी.. छी.. छी …..अब मुझे इसकी चप्पल सूंघनी होंगी. एक बार तो मेरा मन किया की नाटकबाजी छोड़कर उठ जाऊँ ताकि इसकी चप्पल ना सूंघनी पड़े लेकिन गोपालजी ने उठने का कोई इशारा नहीं किया था इसलिए मैं वैसे ही लेटी रही.

गोपालजी – चलो , ये भी करके देखते हैं.

वो दीपू की चप्पल को मेरी नाक के पास लाया. शुक्र था की उसने मेरी नाक से छुआया नहीं. मैंने बदबू सहन कर ली और आँखें नहीं खोली.

दीपू – जी, कुछ ऐसी चीज़ चाहिए जिससे दुर्गंध आए.

गोपालजी – मेरे पास एक उपाय है, पर वो शालीन नहीं लगेगा.

दीपू – क्या उपाय ?

गोपालजी – रहने दो.

दीपू – जी, अभी शालीनता की फिकर करने का समय नहीं है. मैडम को कैसे भी जल्दी से होश में लाना है.

गोपालजी – रूको फिर.

फिर मुझे कोई आवाज़ नहीं आई और मुझे उत्सुकता होने लगी की हो क्या रहा है. लेकिन आँखें बंद होने से मुझे कुछ पता नहीं लग पा रहा था. गोपालजी मुझे क्या सुंघाने वाला है ?

अचानक मुझे दीपू के हंसने की आवाज़ सुनाई दी.

दीपू – हा..हा..हा……ये सही सोचा आपने.

गोपालजी – मैं चार दिन से इस बनियान (बंडी) को पहने हूँ, इसलिए इसमें ……

वाक….जैसे ही गोपालजी अपनी बनियान को मेरी नाक के पास लाया उसकी बदबू से मेरा सांस लेना मुश्किल हो गया. उससे पसीने की तेज बदबू आ रही थी पर मैंने आँखें नहीं खोली. लेकिन मैंने मन बना लिया की अब बहुत हो गया और अब जो भी चीज़ ये दोनों मुझे सुंघाएँगे मैं नाटक बंद कर होश में आ जाऊँगी.

दीपू – नहीं….इससे भी कुछ नहीं हुआ.

गोपालजी – एक बार देखो तो दरवाज़े पे कुण्डी लगी है ?

दीपू – जी क्यूँ ?

गोपालजी – जो कह रहा हूँ वो करो.

दीपू की तरह मेरे मन में भी ये सवाल आया की गोपालजी ऐसा क्यूँ कह रहा है लेकिन मैंने ये सोचा की अगर दरवाज़ा बंद है तो ये तो मेरे लिए अच्छा है वरना अगर कोई आ जाए तो सिर्फ़ ब्लाउज और पेटीकोट में दो मर्दों के सामने ऐसे आँखें बंद किए हुए लेटी देखकर मेरे बारे में क्या सोचेगा . ये तो मेरे लिए बदनामी वाली बात होगी.

दीपू – जी दरवाज़े पे कुण्डी लगी है.

गोपालजी – ठीक है फिर. अब आखिरी उपाय है. लेकिन मुझे पूरा यकीन है की इसको सूँघकर मैडम होश में आ जाएगी.

वो हल्के से हंसा लेकिन मेरी आँखें बंद होने से मैं अंदाज़ा नहीं लगा पाई की क्यूँ हंसा. फिर मुझे दीपू के भी हँसने की आवाज़ आई. अब मुझे बड़ी उत्सुकता होने लगी की ये ठरकी बुड्ढा करने क्या वाला है ?

दीपू – हाँ, ये तो मैडम को होश में ला देगा.

मुझे कुछ अजीब गंध सी आई पर क्या था पता नहीं चला लेकिन गंध कुछ पहचानी सी भी लग रही थी.

गोपालजी – दीपू बेटा, हर शादीशुदा औरत इसकी गंध पहचानती है.

दीपू – वो कैसे ?

गोपालजी – बेटा, जब तुम्हारी शादी हो जाएगी तुम्हें पता चल जाएगा. एक बार अपनी घरवाली को चुसाओगे तो याद रखेगी.

हे भगवान. ये दोनों क्या बातें कर रहे हैं. अब मेरी नाक में कुछ सख़्त चीज़ महसूस हुई और हो ना हो ये गोपालजी का लंड था. गोपालजी के लंड की गंध अपनी नाक में महसूस करके पहले तो मैंने गिल्टी फील किया लेकिन उस समय तक मेरा बदन पूरी तरह उत्तेजित हो रखा था इसलिए जल्दी ही उस गिल्टी फीलिंग को भूलकर मैं उसके लंड की गंध को सूंघने लगी.

मैं अब अपनी आँखें खोल सकती थी लेकिन एक मर्द के लंड को अपने इतने नज़दीक पाकर मंत्रमुग्ध हो गयी. उसके सुपाड़े से निकलते प्री-कम का गीलापन मेरी नाक में महसूस हो रहा था.

उम्म्म्मम…..उसके लंड की गंध और उसकी छुअन से मैं और भी ज़्यादा कामोत्तेजित हो गयी. ये बात सही है की मुझे अपनी पति का लंड चूसना पसंद नहीं था पर अभी गोपालजी ने मुझे कामोत्तेजित करके इतना तड़पा दिया था की कैसा भी लंड मेरे लिए स्वागतयोग्य था. गोपालजी शायद मेरी मनोदशा समझ गया और अपने तने हुए लंड को मेरी नाक और गालों में दबाने लगा. मैं भी अपना चेहरा हिला रही थी पर अभी भी आँखें बंद ही थी.

दीपू – अरे……आपने बिल्कुल सही कहा था. मैडम रेस्पॉन्स दे रही है.

शायद गोपालजी भी अपने ऊपर नियंत्रण खो रहा था और उसकी उमर को देखते हुए इतना ज़्यादा फोरप्ले करने के बाद उसके लिए अपना पानी रोकना मुश्किल हो गया होगा. गोपालजी ने अपनी अंगुलियों से मेरे होंठ खोल दिए और अपना खड़ा लंड मेरे मुँह में घुसा दिया. मुझे एहसास था की ये तो ज़्यादा ही हो गया और मैं बेशर्मी की सभी हदें आज पार कर चुकी हूँ लेकिन एक मर्द के लंड को चूसने का अवसर मैं गवाना नहीं चाहती थी और वैसे भी इस पूरे घटनाक्रम के दौरान मैंने अपनी आँखें बंद ही रखी थी तो सच ये था की मुझे ज़्यादा शरम भी महसूस नहीं हो रही थी.

गोपालजी – आह….आह……आअहह…..चूस … चूस…..और चूस साली.

गोपालजी मेरे मुँह में अपना लंड वैसे ही अंदर बाहर कर रहा था जैसा मेरे पति चुदाई करते समय मेरी चूत में करते थे. मैंने उसका पूरा लंड अपने मुँह में ले लिया और पूरे जोश से चूस रही थी. उसका लंड मेरे पति से पतला और छोटा था. लेकिन मुझे ओर्गास्म दिलाने के लिए काफ़ी था. मुझे एहसास हुआ की उत्तेजना से मैं अपनी बड़ी गांड हवा में ऐसे उठा रही हूँ जैसे की चुद रही हूँ. लेकिन सच कहूँ तो उस समय मुझे शालीनता की बिल्कुल भी परवाह नहीं थी और मेरा पूरा ध्यान मज़े लेने पर था. मैं सिसकियाँ ले रही थी और मेरी पैंटी चूतरस से पूरी गीली हो चुकी थी. और ऐसा लग रहा था की मेरी चिकनी जांघों में भी रस बहने लगा था. मुझे ओर्गास्म आ गया और मैं काम संतुष्ट हो गयी. दीपू के सामने कुछ देर तक मेरा मुख चोदन चलता रहा और फिर गोपालजी ने मेरा मुँह अपने वीर्य से भर दिया. असल में मैं इसके लिए तैयार नहीं थी और वीर्य को मुँह से बाहर उगल दिया पर इसके बावजूद उसका थोड़ा सा गरम वीर्य मुझे निगलना भी पड़ा.

अब मैं और ज़्यादा बर्दाश्त नहीं कर पायी और अब मुझे विरोध करना ही था. मैंने अपनी जीभ से गोपालजी के लंड को मुँह से बाहर धकेला और आँखें खोल दी. जैसे ही मैंने आँखें खोली तो मुझे वास्तविकता का एहसास हुआ. मुझे कुछ समझ नहीं आ रहा था की क्या करूँ , कैसे रियेक्ट करूँ. गोपालजी मेरे मुँह के पास अपना लंड हाथ में लिए खड़ा था और उसकी लुँगी फर्श में पड़ी थी. मैं तुरंत बेड में बैठ गयी.

दीपू – ओह मैडम, आपको होश आ गया. बहुत बढ़िया.

मैं उन दोनों मर्दों के सामने हक्की बक्की बैठी थी. मैंने अपने ब्लाउज को देखा उसमें मेरी गोल चूचियाँ आधी बाहर निकली हुई थीं . मैंने अपनी ब्रा और ब्लाउज को एडजस्ट करके अपनी जवानी को छुपाने की कोशिश की और वो दोनों मर्द बेशर्मी से मुझे ऐसा करते देखते रहे. मेरे चेहरे में टेलर का वीर्य लगा हुआ था.

दीपू – मैडम , जब आप अचानक बेहोश हो गयी तो हम डर ही गये थे. बड़ी मुश्किल से आपको होश में लाए हैं.

“हम्म्म….…”

गोपालजी – दीपू बेटा, मैडम को मुँह पोछने के लिए कोई कपड़ा दो. मैं भी अपने को बाथरूम जाकर साफ करता हूँ.

मुझे भी तुरंत बाथरूम जाकर अपने को धोना था, मेरे चेहरे को, मेरी चूत को और मेरी गीली पैंटी को भी बदलना था.

“गोपालजी, पहले मैं जाऊँ ?”

गोपालजी – मैडम , आपको तो समय लगेगा. मैं बस पेशाब करूँगा और एक मिनट में आ जाऊँगा.

मैं अनिच्छा से राज़ी हो गयी पर मुझे भी ज़ोर की पेशाब लगी थी.

दीपू – मैं भी पेशाब करूँगा.

गोपालजी – हम साथ चले जाते हैं. मैडम , आप एक मिनट रुकिए.

वो दोनों बाथरूम चले गये और दरवाज़ा बंद करने की ज़हमत भी नहीं उठाई. उनके पेशाब करने की आवाज़ मुझे सुनाई दे रही थी. मुझे एहसास हुआ की हालात मेरे काबू से बाहर जा चुके हैं और अब शालीन दिखने का कोई मतलब नहीं. थोड़ी देर में वो दोनों बाथरूम से वापस आ गये.

गोपालजी – मैडम, अब आप जाओ.

जब तक वो दोनों बाथरूम में थे तब तक मैंने अपने चेहरे और मुँह से वीर्य को पोंछ दिया था और नॉर्मल दिखने की कोशिश की. लेकिन अभी भी मेरे दिल की धड़कनें तेज हो रखी थी. जैसे ही मैंने बेड से उठने की कोशिश की…..

दीपू – मैडम, मैडम, ये क्या कर रही हो ?

“क्यूँ ? क्या हुआ ?”
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