RE: Indian Sex Story बदसूरत
सुहानी और समीर ये भाई बहन वाला रोल प्ले शुरू किया....सुहानी को पहले तो बहोत अजीब लगा पर बाद में उसे मजा आने लगा...वो अपने भाई को इमेजिन करने लगी थी....और ये सिलसिला जो शुरू हुआ तो रुका ही नहीं....अब सुहानी खुद इन्सेस्ट में इंटरेस्ट लेने लगी थी। वो खुद समीर को रोज अलग अलग तरीके इन्सेस्ट प्ले करने का सुझाव देने लगी थी।*
घर पे जब वो उसके भाई या पापा को देखती तो उसे समीर के साथ किये हुए प्ले याद आने लगते और वो शरमा जाती। वो अब अपने भाई और पापा और बाकि रिश्तोदारो में सिर्फ एक मर्द ...सिर्फ एक लंड दीखता...अब वो अपनी चूत में सचमुच में एक लंड लेने के लिए उतावली हो गयी थी।
सुहानी हर पल सिर्फ चुदाई के बारे में सोचने लगी थी। लेकिन मन में हमेशा डर लगा रहता था तो ठीक से अप्रोच नही कर पाती।
ऐसेही सुहानी और समीर को मिले हुए दो हफ्ते हो गए थे। सुहानी और समीर अब फ़ोन पे भी बाते करने लगे थे। समीर जो की एक बहोत बड़ा कमीना था लेकिन उसके मन में सुहानी के लिये एक अलग जगह बन चुकी थी।
एक दिन समीर ने फिर से सुहानी को अपना चेहरा दिखाने को कहा...लेकिन हर बार की तरह सुहानी। ने मना कर दिया...लेकिन समीर जिद्द पे अड़ गया और उसने सुहानी से कह दिया की अब जब तक वो सुहानी को देख नहीं लेता तब तक उससे बात नहीं करेगा। वो उससे मिलना चाहता था। उसने कहा की वो उसे एक तस्वीर भेज दे और कल उसे मिलने आये। उसने उसे एक होटल का नाम बताया और कहा की वो सन्डे को वो उसका इंतजार करेगा।*
सुहानी असमंजस थी की क्या करे...आखिर उसने फैसला किया की वो अब समीर को अपना चेहरा दिखा देगी। और फिर सन्डे को सुबह सुहानी ने समीर को अपनी एक तस्वीर भेज दी....सुहानी बेचैन थी की क्या करे...उसका मन कही भी नहीं लग रहा था। वो समीर के फ़ोन का इंतजार करने लगी। लेकिन समीर का फ़ोन नहीं आया...सुहानी ने कई बार उसे फ़ोन करने के लिए फ़ोन उठाया पर हिम्मत नहीं जुटा पायी....सुहानी के मन में अजीब अजीब खयाल आने लगे....उसे लगा की समीर जो इतनी बड़ी बड़ी बाते कर रहा था वो भी औरो की तरह ही निकला...लेकिन फिर भी सुहानी ने उसककी बताई जगह जाने का फैसला किया....वो उस होटल में पहुंची....लेकिन समीर वहा नहीं आया था....वो उसका इंतजार करने लगी। 3 घंटे तक वो समीर का इन्तजार करति रही पर समीर नहीं आया। *वो उसका फ़ोन ट्राय करती रही पर वो स्विच ऑफ आ रहा था। वो समझ गयी की समीर अब नहीं आने वाला....उसे बहोत ग़ुस्सा आया...बहोत दुःख हुआ।
वो घर आ गयी...रात को वो स्काइप पे भी ट्राय किया मगर समीर वहा भी ऑनलाइन नहीं था। सुहानी ने फ़ोन किया लेकिन अभी भी उसका फ़ोन स्विच ऑफ ही था। सुहानी रोने लगी। बहोत देर तक रोती रही।*
फिर उसका मन ग़ुस्से से भर गया..."ये लोग समजते क्या है खुद को...इतना भी क्या गुरुर है इन सबको...समीर मेरा भाई...पापा...और बाकि लोग....मैं ऐसी हु तो क्या ये मेरी गलती है? भगवान ने मुझे ऐसा बनाया तो मैं क्या करू? क्या मैं इंसान नहीं हु? मेरे अंदर कोई फीलिंग नहीं है? मैं इनसब को इनकी गलती का अहसास करवा के रहूंगी.,.बदसूरती सिर्फ बाहरी होती है...मैं लोगो की ये सोच बदल के रहूंगी...चाहे मुझे इसके लिए कुछ भी क्यू ना करना पड़े...जो आजतक मेरी बदसूरती की वजह से मुझसे दूर भागते आ रहे है उन्हें अगर मैंने अपने पीछे पीछे नहीं घुमाया तो मेरा नाम सुहानी नहीं"
पता नहीं सुहानी के दिमाग में क्या चल रहा था....पर एक बात तो थी अब वो ऐसा कुछ कर गुजरने वाली थी जो किसीने सोचा भी नहीं होगा...........
सुहानी ने शाम को ऑफिस खत्म हो जाने के बाद उसकी मम्मी को पहिने करके बताया की वो आज थोडा लेट हो जायेगी.....
करीब 9 बजे वो घर पहूंची। जब वो अंदर आयी तो सब ने देखा की वो ढेर सारे बैग्स लेके आयीं थी....सुहानी ऑफिस के बाद सीधा एक मॉल में गयी और बहोत सारी शौपिंग की....सब ब्रांडेड और लेटेस्ट फैशन के कपडे उसने ख़रीदे थे। और भी बहोत शॉपिंग की ....
उसने सारी बैग्स वही हॉल में रख दी लेकिन कुछ बैग्स वो अपने साथ अपीने रूम में ले गयी।
सुहानी के पापा और सोहन उसका भाई वही हॉल में बैठ के टीवी देख रहे थे। सुहानी फ्रेश होकर चेंज करके वापस आयीं और अपनी माँ को एक एक करके सब दिखने लगी। सभी बहोत ही अच्छे कपडे थे। उसने मम्मी के लिए भी 4 साड़ी लेके आयी थी। लेकिन भाई और पापा के लिए कुछ भी नहीं लिया था।
वो दोनों बस सुहानी को देखे जा रहे थे...और जब उनको ये समझ आया की सुहानी। ने सिर्फ खुद के लिए और मम्मी के लिए ही शॉपिंग की तो वो जलभुन के राख हो गए। सोहन तो आँखे फाड़ फाड़ के सर उन कपड़ो के प्राइस टैग देख रहा था। पापा को ये बात बिलकुल पसंद नहीं आयी थी किंसुहानि ने सोहन के लिए कुछ भी नहीं ख़रीदा था।
पापा:- इतना महंगे कपडे लेने क्या जरुरत थी? और भाई के लिए कुछ क्यू नहीं लायी...उसके पापा ने हमेशा किबतरह थोडा ग़ुस्से में पूछा।
सुहानी:- मैं देड लाख रूपए महीने का कमाती हु...क्या खुद के लिए इतना भी खर्च नहीं कर सकक्ति?? और सोहन के लिए आप और मम्मी लेके आईये मैं क्यू लाऊ...और वैसे भी अपनी पहली सैलरी से मैंने सबके लिए गिफ्ट लिए थे...क्या किसीने मुझे प्यार से थैंक यू कहा था??
सुहानी के पापा और सोहन को ये बिलकुल भी एक्सपेक्ट नहीं था। उनको यकीन नहीं हो रहा था की सुहानी पलट के जवाब दे रही थी।
(दोस्तों मैं सुहानी ककी मम्मी और पापा का नाम बताना भूल गया था जो अब बता रहा हु ताकि संभाषण में लिखते वक़्त आसानी हो
सुहानी के पापा:- अविनाश
सुहानी की मम्मी:- नीता)
सोहन:- मुझे नहीं चाहिए कुछ...मेरे पास बहोत है...और इनसे कही अच्छे।
सुहानी ने उसकी बात को अनसुना कर दिया और एक वन पीस उठा के दिखाते हुए अपने मम्मी से कहा..."मम्मी ये देखो ये बरबेरी का है पुरे 20 हजार का है...
ये सुनके सोहन की आँखे खुली की खुली रह गयी।
यही हाल अविनाश का था। वो ग़ुस्से से उठ के चले गए। सोहन भी आग बबूला हो गया और अपने कमरे में चला गया। उन दोनों का बेहवियर देख सुहानी को अलग ही ख़ुशी मिल रही थी।
नीता:- सुहानी सच कहु तो इतने पैसे खर्च करने की जरुरत नहीं थी...और दोनों के लिए भी कुछ लेके आ जाती...
सुहानी:- मम्मी प्लीज...मेरा मन। नहीं हुआ उनके लिए कुछ लेने का तो नहीं लायी...जब होगा तब ले आउंगी...
नीता:- ठीक है...जैसी तेरी मर्जी...चल अब खाना खा ले...
नीता हमेशा इस टॉपिक को जादा नहीं खिंचती थी क्यू की उसे पता था सुहानी के पूछे सवालो का उसके पास कोई जवाब नहीं होता था।
"इग्नोरंस"
जो आजतक सुहानी झेलते हुए आयी थी आज पहली बार अविनाश और सोहन को झेलना पड़ा था। सुहानी का पहला ही शॉट बॉउंड्री के पार चला गया था। उसका तीर सीधा निशाने पे लगा था। आज उन दोनों को ये फिल कराके सुहानी ने उन तक ये मेसेज पहुचने कोशिस की थी की ऐसा जब होता है तब कैसा लगता है ये खुद फील करो।
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