RE: Nangi Sex Kahani एक अनोखा बंधन
[b]पर किस्मत को कुछ और ही मंजूर था, अचानक भाभी को किसी के आने की आहात सुनाई दी और उन्होंने जोर लगा के मुझे अपने से अलग कर दिया| भाभी मुझसे अलग हो अपने कपडे ठीक करने लगीं और मैं तो जैसे हैरानी से अपने साथ हो रहे इस अत्याचार के लिए उन्हें दोषी मान रहा था| इससे पहले की मैं उनसे इस अत्याचार का कारण पूछता मेरे कानों मेरीन मेरे मझिले दादा के लड़के पंकज की आवाज आई| भाभी सामने पड़ी चारपाई पर बैठ गई, और मेरे भाई मेरे पास आके बैठ गया और मेरा हाल-चाल पूछने लगा| मेरा मन किया की उसे जी भर के गालियां दूँ पर अपने पिताजी के शिष्टाचार ने मेरे मुंह पर टला लगा दिया| मैंने ताने मारते हुए उसे बस इतना ही कहा :
"आपको भी अभी आना था!!!"
पंकज : क्यों भाई क्या हुआ?
मैं : कुछ नहीं...
पंकज : और बताओ क्या हाल-चाल हैं दिल्ली के?
इस तरह उसने सवालों का टोकरा नीचे पटका और मैं उसके सवालों का जवाब बेमन से देने लगा|
दिल्ली के हाल-चाल तो ऐसे पूछ रहा था जैसे इसे बड़ी चिंता है दिल्ली की| मैंने आँखें चुराके भाभी की तरफ देखा तो उनके चेहरे पर उदासी साफ़ दिख रही थी| वो उठीं और बहार चलीं गई|
मुझे इतना गुस्सा आया की पूछो मत दोस्तों| पर मन में एक आशा की किरण थी की आज नहीं तो कल सही| कल तो मैं भाभी के बहुत प्यार करूँगा और आज की रही-सही सारी कसार पूरी कर दूँगा|
पर हाय रे मेरी किस्मत!!! एक बार फिर मुझे धोका दे गई!
अगले ही दिन भाभी का भाई उन्हें मायके लेजाने आया था क्योंकि उनके मायके में हवन था| सच मानो मेरे दिल पे जैसे लाखों छुरियाँ चल गईं| आँखों में जैसे खून उत्तर आया| मन किया की भाभी को ले कर कहीं भाग जाऊं| पर समाजिक नियमों से जकड़ा होने के कारण में कुछ नहीं कर पाया| जो एक रौशनी की किरण मेरे दिल मैं बची थी उसे किसी तूफ़ान ने बुझा दिया था| में बबस खड़ा उन्हें जाते हुए देखता रहा पर दिल में कहीं न कहीं आस थी की भाभी जल्दी आ जाएगी| ऐसा लगा की जैसे मैं इसी आस के सहारे जिंदा हूँ| मुझे इतना समय भी नहीं मिला की मैं उन्हें एक गुडबाय किस दे सकूँ या काम से काम इतना ही पूछ सकूँ की आप कब लौटोगी| दिन बीतते गए पर वो नहीं आईं, मेरी जिंदगी बिलकुल नीरस हो गई| मैं किसी से बात नहीं करता था बस घर में चारपाई पर लेटा रहता| मेरा मन ये नहीं समझ पा रहा था की इसमें गलती किसकी है? पर दिमाग तो भाभी को दोषी करार दे चूका था| खेर मेरे भाव ज्यादा दिन मेरी माँ से नहीं छुप पाये, उन्होंने मेरी उदासी का कारण जैसे भाँप ही लिया|
माँ ने पिताजी से कहा की लड़के का मन अब यहाँ नहीं लग रहा| अपनी बड़ी भौजी के साथ सारा दिन बात करता था अब तो वो मायके गई है और जो नई बहु आईं हैं उनसे तो शर्म के मारे बात तक नहीं करता तो ऐसा करते हैं की शहर वापस चलते हैं| पिताजी ने कहा की मैं बात करता हूँ उससे :
पिताजी: हाँ भाई लाड-साहब क्या बात है?
मैं : जी? कुछ भी तो नहीं...
पिताजी: कुछ नहीं है तो सारा दिन यहाँ पलंग क्यों तोड़ता रहता है| जाके अपनी भाभियों से बात कर, बच्चों के साथ खेल|
मैं : नहीं पिताजी अब मन नहीं लगता यहाँ, बोर हो रहा हूँ| दिल्ली चलते हैं!
पिताजी: मैं जानता हूँ तो अपनी बड़ी भौजी को याद कर रहा है| बीटा उनके घर में हवन है इसलिए वो अपने मायके गई है, जल्द ही आ जाएगी|
मैं: नहीं पिताजी मुझे शहर जाना है, और रही बात भौजी की तो मैं उनसे कभी बात नहीं करूँगा|
पिताजी: (गरजते हुए) क्यों? क्या वो अपने मायके नहीं जा सकती, क्योंकि लाड-साहब के पास टाइम पास करने के लिए और कोई नहीं है|
मैंने कोई जवाब नहीं दिया| वे गुस्से में बहार निकल गए और अपने बड़े भाई को सारी बात बता दी| मेरे बड़के दादा और बड़की अम्मा मुझे समझाने आये:
बड़के दादा: अरे मुन्ना कोई बात नहीं, अगर तुम्हारी बड़की बहूजी नहीं है तो क्या हुआ हम सब तो हैं|
बड़की अम्मा: मुन्ना मेरी बात सुनो, तुम्हारी केवल एक भौजी थोड़े ही हैं, दो नई-नई जो आईं हैं उनसे भी बात करो...हंसी-ठिठोली करो....
मैं: (बात घुमाते हुए)… अम्मा बात ये है की गर्मियों की छुटियों का काम मिला है स्कूल से वो भी पूरा करना है|
माँ ने मेरा पक्ष लेते हुए कहा की:
"हाँ, अब केवल एक महीने ही रह गया है इसकी छुटियाँ खत्म होने में|"
स्कूल की बात सुनके अब पिताजी के पास बहस करने के लिए कुछ नहीं था| उन्होंने फैसला सुनाते हुए कहा:
"ठीक है हम कल ही निकलेंगे, ट्रैन की टिकट तो इतनी जल्दी मिलेगी नहीं इसलिए बस से जायंगे|" उनके इस फैसले से मेरे बेकरार मन को चैन नहीं मिला क्योंकि दिल को अब भी लग रहा था की कल भौजी अपने मायके से जर्रूर लौट आएगी और तब मैं पिताजी को फिर से मना लूँगा| रात्रि भोज के बाद सोते समय मैं फिर से भौजी की यादों में डूब गया और मन ही मन ये प्रार्थना कर रहा था की भौजी कल लौट आएं|
सुबह हुई और चन्दर भैया को ना जाने क्या सूझी उन्होंने भाभी के मायके ये खबर पहुँचा दी की मानु आज शहर वापस जा रहा है और भाभी ने ये कहला भेजा की वो हमें रास्ते में मिलेंगी| जब मुझे इस बात का पता चला तो मेरे तन बदन में न जाने क्यों आग लग गई| मैंने पिताजी से कहा :
"पिताजी हम रास्ते में कहीं नहीं रुकेंगे, सीधा बस अड्डे जायेंगे|"
पिताजी मेरी नाराजगी समझ गए और उन्होंने मुझे समझते हुए कहा :
“बेटा, इतनी नाराजगी ठीक नहीं और भाभी का मायका बिलकुल रास्ते में पड़ता है अब हम घूमके तो नहीं जा सकते| और अगर हम रास्ते में उनके घर पर नहीं रुकेंगे तो अच्छे थोड़े ही लगेगा|"
अब मरते क्या न करते हम चल दिए और पिताजी ने रिक्शा किया मैंने सारा सामान रिक्शा पे लाद दिया| पर मैंने अपने मन में दृढ़ निश्चय कर लिया की चाहे कुछ भी हो जाए मैं रिक्शा से नहीं उतरूंगा| भाभी का मायका नज़दीक आ रहा था और में तिरछी नज़र से भाभी को दरवाजे पे खड़ा देख रहा था| उनके हाथ में एक लोटा था जिसमें गुड की लस्सी थी जो वो मेरे लिए लाइ थीं, क्योंकि उन्हें पता था की मुझे लस्सी बहुत पसंद है| माँ ने मुझे कोहनी मारते हुए रिक्शा से उतरने का इशारा किया पर मैं अपनी अकड़ी हुई गर्दन ले कर रिक्शा से नीचे नहीं उतरा| मेरा गुस्सा अभी भी भौजी और मेरे बीच में आग की दिवार के रूप में दाहक रहा था| भौजी ने पहले पिताजी और माँ के पाँव छुए और माँ ने उन्हें मेरी तरफ इशारा करते हुए कहा:
"मानु बहुत नाराज है तुमसे इसीलिए रिक्क्षे से नहीं उतर रहा, जाओ उसे लस्सी दो तो शांत हो जायेगा!"[/b]
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