RE: Kamukta kahani हरामी साहूकार
लाला के बारे में तो उसने अपनी सहेलियो से सिर्फ़ सुना ही था पर यहाँ तो उसके बेटे ने उसे छूकर वो सारी बाते सच ही कर दी थी जो उसकी उम्र की औरतें उसे सुनाया करती थी की इस उम्र में भी उन्हे सैक्स करने में कितना मज़ा आता है...
बरसो बाद उसकी बंजर ज़मीन पर फिर से पानी रिसना शुरू हो चुका था...
इसलिए वो चाहकर भी अपने बेटे को अपने खेतो की जुताई करने से नही रोक पा रही थी.
नंदू की भूख बढ़ती जा रही थी,
उसने एक एक अपनी चारो उंगलियां अपनी माँ की चूत में उतार दी..
वहां की चिकनाई उसे ऐसा करने में मदद कर रही थी...
शरीर पहाड़ जैसा था उसका पर उसकी अक्ल में इतनी बात नही घुस पा रही थी की औरत की चूत जब पानी छोड़े तो इसका मतलब वो जाग ही रही है,
पर उसके हिसाब से तो वो गहरी नींद में ही थी अब तक..
उसने उस रस से भीगे हाथ को बाहर निकाला और चाट लिया,
और जब स्वाद उसके मुँह लगा तो हर उंगली को कुल्फी की भाँति चूसने लगा...
उसकी चूसने की आवाज़े सुनकर उसकी माँ का शरीर काँप रहा था की कैसे उसी चूत से निकला उसका बेटा वहां के जूस को भी चूस रहा है...
अब उससे सब्र करना मुश्किल सा हो रहा था इसलिए उसने करवट बदलने के बहाने अपने शरीर को सीधा कर लिया...
नंदू तुरंत किसी लक्कड़बग्घे की तरह रेंगकर अपने बिस्तर में घुस गया.
भले ही अपनी माँ के साथ आज वो इतना आगे निकल चुका था पर उनकी डांट का डर अभी तक उसके दिलो दिमाग में था, इसलिए वो किसी भी कीमत पर पकड़ा नही जाना चाहता था...
पहले उपर वो निशि के साथ कुछ करते-2 रह गया और अब नीचे अपनी माँ के साथ भी...
भले ही दोनो तरफ आज की रात वो असफल रहा था पर ये तो पहले दिन की शुरूवात थी,
जो आगे चलकर और भी गुल खिलाने वाली थी.
अगली सुबह लाला हमेशा की तरह अपनी दुकान खोलकर गली में इधर से उधर जा रही औरतों और लड़कियों की गांड देखकर अपना लंड मसल रहा था..
और बुदबुदा भी रहा था : "साली.... मेरी दुकान के सामने से निकलते हुए इनके कूल्हे कुछ ज़्यादा ही मटकने लग जाते है.... पूरे गाँव को अपने खेतो में लिटाकर चोद डालूँगा एक दिन, तब पता चलेगा इन छिनालो को...''
हालाँकि उसे चुतों की कमी नही थी, पर फिर भी ऐसी कोई चिड़िया जो उसके चुंगल में आज तक नही फँस पाई थी, उन्हे देखकर उसके मुँह से ऐसा निकल ही जाता था.
दोपहर होने को थी, उसकी पसंदीदा चूते यानी पिंकी और निशि, जिन्हे वो अभी तक चोद नही पाया था पर वो किसी भी वक़्त उसके रामलाल से चुद सकती थी, वो इस वक़्त स्कूल में थी, वरना आज वो पूरे मूड में था उनमें से किसी एक की चूत का उद्घाटन करने के लिए..
नाज़िया भी उनके साथ स्कूल में ही होगी, वरना उसे एक बार और पेलकर वो उसके संकरेपन को थोड़ा और खोल देता आज..
अंत में उसके पास दो ही विकल्प रह गये, पिंकी की माँ सीमा और नाज़िया की अम्मी शबाना...
शबाना को भी वो कई सालों से चोदता आ रहा था इसलिए उसका मन सीमा की तरफ ही घूम रहा था, इसलिए वो झत्ट से उठा और सीमा के घर जाने के लिए तैयार होने लगा...
लेकिन जैसे ही वो दुकान का शटर गिराने लगा, सामने से उसे शबाना आती हुई दिखाई दे गयी..
वो करीब आई और अपनी मनमोहक मुस्कान के साथ बोली : "लगता है लालाजी किसी मिशन पर निकलने वाले हो...कहो तो मैं आपकी कोई मदद कर दूँ ...''
अब उसके कहने का तरीका ही इतना सैक्सी था की एक पल में ही लाला के लंड ने उसके लिए हां कर दी...
लाला के हिसाब से तो लंड - 2 पर लिखा होता है चुदने वाली का नाम...
और आज ये चुदाई के नाम की पर्ची शबाना के नाम की निकली थी,
जो उसने खुद ही खोलकर उनके सामने रख दी थी..
लाला ने मुस्कुराते हुए कहा : "अररी शबाना...तेरे होते हुए भला मैं कौन से मिशन पर जाऊंगा भला...तू आ गयी है तो चल अंदर गोडाउन में ...एक पुराने चावल का कट्टा खोला था कल...चल तुझे दिखता हूँ वो..''
शबाना : "हाय लाला जी...आप तो अंतर्यामी निकले...आपको कैसे पता की मैं चावल लेने ही आई थी...वो क्या हुआ ना, नाज़िया आने ही वाली है, पर देखा तो घर में चावल ही नही है...तो सोचा की मैं आपसे आकर ले जाऊ ...''
लाला : "अररी, जो भी सोचा तूने, सही सोचा...नाज़िया के लिए तो लाला के चावल तो क्या, सब कुछ पेशे खिदमत है...''
इतना कहते हुए उसने बड़ी ही बेशर्मी से अपने खड़े हुए लंड को उसके सामने ही मसल दिया...
शबाना मुस्कुराते हुए अंदर की तरफ दौड़ गयी और उसके पीछे -2 लाला अपनी दुकान का आधा शटर गिराकर अंदर आ गया..
वो पहले से ही उछल कर एक बोरी पर चढ़ी बैठी थी...
लाला के आने से पहले ही उसने अपने ब्लाउस के हुक आगे की तरफ से खोल दिए और उसके आते ही उन्हे अपने नर्म मुम्मो से लिपटा लिया...
लाला को हमेशा से उसकी यही बात अच्छी लगती थी...
सैक्स करने के लिए अपनी तरफ से वो हमेशा पहल करती थी, बिना कोई वक़्त गँवाए..
वो भी उसके लटक रहे खरबूजों को अपने मुँह में लेकर जोरों से चूसने लगा...
उससे पंगे लेने के लिए वो बोला : "अब तेरे में वो बात नही रही शबाना... अब ये लटक चुके है .. पहले जैसे कड़क नही रहे अब ये...''
वो भी लाला के चेहरे को अपनी छाती पर रगड़ते हुए कसमसाई : "ओह्ह्ह .. लाला...अब तुझे ये क्यों अच्छे लगने लगे...नाज़िया के नन्हे अमरूद चूस्कर उनके कड़कपन का मुकाबला कर रहा है ना तू इनसे... पर कसम से, अपनी जवानी में मैं भी उतनी ही कड़क थी...''
लाला को इस बात की सबसे ज़्यादा खुशी थी की उसी के सामने उसकी बेटी को पेलने के बाद अब वो उसके बारे में इतना खुलकर शबाना से बात कर सकता है...
एक माँ के सामने उसी की बेटी के हुस्न की तारीफ करके उसे सच में काफ़ी मज़ा मिल रहा था.
ऐसे में शबाना को अपनी बेटी से ज़्यादा अच्छा दिखने के लिए लाला को कुछ ज़्यादा ही खुश करने की एनर्जी मिली...
भले ही वो उसकी माँ थी पर थी तो वो एक औरत ही ना,
अपने सामने भला वो किसी और की बड़ाई कैसे सुनती.
इसलिए उसने एक पल भी नही लगाया अपने सारे कपड़े निकालने में ...
गोडाउन की नमी में उसका शरीर काँप कर रह गया जब वो पूरी नंगी होकर लाला के सामने खड़ी हुई..
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