Kamukta kahani हरामी साहूकार
03-19-2019, 12:26 PM,
#73
RE: Kamukta kahani हरामी साहूकार
रास्ता तोड़ा लंबा था, और नंदू को भी आज जल्दी नही थी क्योंकि इस तरह से निशि को बिठाकर उसने कभी भी साइकल नही चलाई थी..
उपर से उसके शरीर को छूने से उसमें जो उर्जा का संचार हो रहा था वो भी कुछ अलग ही था...
आख़िर जवान जिस्म का स्पर्श अपने आप में एक ताज़गी लिए होता है.

वहीं दूसरी तरफ निशि भी अपनी गांड पर पड़ रहे भाई के ठुड्डे महसूस करके अंदर ही अंदर कराह रही थी...
मन तो उसका कर रहा था की उसका भाई उसे नंगा करके उसकी गांड पर ज़ोर-2 से थप्पड़ मारे ताकि उसकी ये जो उत्तेजना अंदर से निकल रही है वो और भी बढ़ जाए..



तभी नंदू ने अपनी गर्म साँसे उसके कानों में छोड़ते हुए पूछा : "एक बात तो बता , कल रात तुझे मज़ा आया था क्या, जब मैने तेरी टाँगो की मालिश की थी...''

निशि समझ गयी की उसके ठरकी भाई के दिमाग़ में क्या चल रहा है...

वो बोली : "भाई..बोला तो था मैने कल भी...मज़ा भी आया था और कुछ अजीब सा फील भी हुआ था...''

नंदू ने इस बार अपने होंठो से उसके कानो को छू लिया और फुसफुसाया : "कैसा फील हुआ था ...गंदा वाला या अच्छा वाला...''

नंदू के गीले होंठो को अपने कानो पर महसूस करके उसके मुँह से एक हुंकार सी निकल गयी....
अगर ये हरकत उसने बंद कमरे में की होती तो इसका हर्जाना उसे अपना लंड चुस्वाकार चुकाना पड़ता कसम से...
पर गनीमत थी की वो गाँव के बीचो बीच से निकल रहे थे, ऐसे में वो कोई हरकत नही कर सकती थी..

वो फुसफुसाई : "आह....भाई...ये गुदगुदी तो ना करो ना...और मज़ा मिला था इसका मतलब अच्छी वाली फीलिंग ही होगी ना...''

नंदू मुस्कुराया और बोला : "पहले कभी ऐसा मज़ा मिला है क्या...''

वो आवेश में बोल गयी : "हाँ ..बहुत बार...''

और ये बोलते के साथ ही उसने अपनी जीभ दांतो तले दबा दी...
ये क्या बोल गयी पगली..

नंदू ने चौंकते हुए उसके चेहरे को देखा और साइकल रोक दी.. और बोला : "मतलब...?''

अब वो अपनी बात से पलट नही सकती थी....
उसका दिमाग़ जोरो से चलने लगा...
अब वो लाला का नाम तो ले नही सकती थी की उसने पहले भी उसे इस तरह के काफ़ी मज़े दिए है उपर से...
इसलिए उसने ना चाहते हुए भी पिंकी का नाम ले दिया

निशि : "वो...वो भाई..... पिंकी और मैं अक्सर एक दूसरे के साथ ऐसे खेल खेला करते है... तब भी ऐसा ही फील होता है...''

नंदू के तो रोंगटे खड़े हो गये ये सुनते ही...
यानी बंद कमरे में ये दोनो यही किया करती थी....
गुस्सा तो उसे बहुत आया ये सुनकर पर अगले ही पल उसके दिमाग़ में पिंकी का जवान और नंगा जिस्म कौंध गया...



एक दम पका हुआ फल था वो...
उसके बारे में पहले उसने कई बार सोच-सोचकर मुट्ठ मारी थी...
वो भी उसे प्यार भरी नज़रों से देखा करती थी...
पर पिताजी की मृत्यु के बाद वो सब कहां गायब हो गया ये उसे भी पता नही चला...
आज निशि ने जब पिंकी के साथ उस तरह की हरकत करने की बातें कही तो उसे वो सारी बातें याद आती चली गयी..

उसकी बहन तो अपनी तरफ से पहले ही लाइन दे रही थी...
अब पिंकी का ये राज जानकार नंदू के दिमाग़ में उसे पाने का एक फूल प्रूफ प्लान बनना शुरू हो चुका था..

और इसलिए लिए उसे पहले निशि को अपने जाल में फँसना पड़ेगा..
और यही करने तो वो घर जा रहा था..

इसलिए वो बड़े प्यार से बोला : "ओह्ह ...पिंकी के साथ ना...वो तो घर वाली बात है... उसके साथ आए या मेरे साथ..मज़ा मिलना चाहिए बस...आज भी वैसा ही मज़ा दूँगा घर चलकर...''

वो भी खुश हो गयी...
और खुशी के मारे उसकी छातिया थोड़ी और बाहर निकल आई...
जिन्हे देखकर नंदू का लंड स्टील का डंडा बनकर निशि की पीठ में चुभ रहा था...

खैर, किसी तरह से वो घर पहुँचे..
निशि उछलकर साइकल से उतरी और उपर वाले कमरे में भागती चली गयी...
एक बार फिर से नंदू उसके हिलते हुए चूतड़ देखकर अपना लंड अड्जस्ट करने लगा..

निशि लगभग भागती हुई सी अपने कमरे में गयी और वहां से सीधा बाथरूम में.

पूरे रास्ते अपने भाई के ठुड्ड अपने कुल्हो पर खाने की वजह से उसकी गांड लाल हो चुकी थी...
और उसकी वजह से उसकी चूत में जो रक्त संचार हुआ था उससे वो भी एकदम गीली और लाल हुई पड़ी थी...



उसने अपनी सलवार और कच्छी निकाल फेंकी और तौलिये से अपनी गीली चूत को अच्छी तरह से सॉफ किया...
पर वो जितना भी सॉफ करती उतना ही गीलापन अंदर से बाहर निकल आता...
आख़िर में थक हारकर उसने दूसरी कच्छी उठाकर पहन ली और उपर से उसने वही कल रात वाली स्कर्ट पहन ली, उपर की कमीज़ उतारकर एक ढीला सा टॉप पहन लिया..

तब तक नंदू भी उपर आ गया...और आवाज़ देकर उसने निशि को बाहर आने को कहा..

वो तो पहले से ही तैयार थी...
सकुचाते हुए वो बाथरूम से ऐसे निकली जैसे कोई दुल्हन अपनी सेज की तरफ जाती है..

नंदू का लंड अभी तक खड़ा था और आज तो उसने उसे बिठाने और छुपाने की भी कोई चेष्टा नही की,
वो चाहता था की उसके उभार को उसकी बहन देखे और जैसे वो तड़प रहा है वो भी तडपे..

और हुआ भी ऐसा ही...
बाथरूम से निकलकर , आँखे झुका कर जब वो नंदू के करीब पहुँची तो उसकी झुकी नज़रें सीधा अपने भाई के उभार पर ही गयी..जो उसकी धोती में खड़ा हुआ, बँधा हुआ, अपने कड़कपन का एहसास दे रहा था..

उसे देखते ही उसके तन बदन में एक लहर सी दौड़ गयी..
चूत गिचगिचा गयी और उसमें से गाड़ा रस एक बार फिर से रिसने लगा..

नंदू ने उसे पकड़ कर उसके बेड पर लिटा दिया और बोला : "चल अब उल्टी होकर लेट जा ...मैं तेरी टाँगो की मालिश कर देता हूँ ...''

वो बिना कुछ कहे, उसकी बात मानकर , अपनी गांड उचका कर बेड पर लेट गयी...
कल रात के मुक़ाबले आज वो कुछ ज़्यादा ही उत्तेजित थी, शायद इसलिए क्योंकि आज उन्हे रोकने और टोकने वाला कोई नही था...
पूरे घर पर वो दोनो जवान जिस्म अकेले ही थे.

नंदू ने तेल की शीशी उठाई और काँपते हाथो से उसकी लंबी स्कर्ट को उठा कर वो तेल उसकी नंगी टाँगो पर डाल कर उन्हे मसलने लगा..

एक चिर परिचित सा एहसास निशि को फिर से गुनगुना गया...
वो अपनी पतली और सुरीली आवाज़ में कराह उठी.

''आआआआआअहह भैयययययययययययययया''



और आज तो नंदू कल की तरह झिझक भी नही रहा था...
उसके हाथ धीरे-2 उपर आते गये जहां उसकी जाँघो का माँस और भी ज़्यादा होता चला जा रहा था...
नंदू की उंगलियां उसके गोरे माँस में धंसकर एक लाल निशान बना रही थी.

नंदू ने निशि की स्कर्ट थोड़ी और उपर की तो उसे उसकी शहद में भीगी कच्छी दिखाई दे गयी...
शक तो उसे पहले से था की वो भीग रही होगी नीचे से पर उसके गीलेपन को देखकर उसे पूरा यकीन हो गया की वो पूरी तरह से इस खेल का मज़ा ले रही थी.



नंदू ने उसकी स्कर्ट के हुक्स को खोलते हुए कहा : "ये उतार दे..बेकार में तेल लगने से खराब हो जाएगी ..''

उसने मासूम बने रहने का नाटक करते हुए उस ढीली सी स्कर्ट को नीचे सरका दिया...

अब वो सिर्फ़ एक पेंटी में उसके सामने उल्टी होकर लेटी थी...

और कल की तरह उसने एक बार फिर से उसकी कच्छी के लास्टिक को दोनो तरफ से पकड़ा और उसे नीचे करके उतार दिया...
इस बार तो उसने कल की तरह ओपचारिकता करके बोलने की भी ज़रूरत नही समझी...

और निशि ने भी अपने भाई के सामने पूरी तरह से समर्पण करते हुए अपनी कमर उठा कर अपनी गीली कच्छी उतार दी और नंदू को एक बार फिर से अपने भरे हुए तरबूजों के दर्शन करवा दिए...




इस बार तो उन्हे नंदू ने जी भरकर देखा...
अपनी उंगलियों से उन्हे अच्छी तरह से दबाया...
उसकी उंगलियां बड़े ही डेंजर तरीके से उसकी चूत के इर्द गिर्द धूम रही थी...
पर वो उन्हे अंदर की तरफ नही धकेल रहा था...
शायद अपनी बहन को सताने का उसे एक अच्छा उपाय मिल चुका था...

उसने तेल की धार इस बार सीधी उसकी सुबक रही चूत पर गिराई , जिसे महसूस करके वो ऐसे छटपटाने लगी जैसे उसकी ठरक को बड़ाने वाला कोई बटन दबा दिया हो उसने..

''ओह भाई.........सस्स्स्स्स्स्स्स्स्स्स्स्सस्स...... उम्म्म्मममममममममममम..... ये क्या कर रहे हो.....अहह''

पर उसने उसकी बात का जवाब देने की कोई ज़रूरत नही समझी और एक बार फिर से उसकी गांड का आटा गूंधने लगा...
और इस बार भी उसने उसकी चूत को अनदेखा ही किया, जिसपर उसकी उंगलियाँ महसूस करने के लिए वो अब और ज़ोर से तड़पने लगी थी..

गोर करने वाली बात ये थी की यहाँ तो पैरों में लगी उस मोच की मालिश चल रही थी जो कभी लगी ही नही थी..
और लगी भी थी तो वो काफ़ी नीचे थी...
यहां उपर आकर नंदू किस करह की मालिश में मशगूल हो चुका था ये शायद उसे भी पता नही चल सका था..

निशि के होंठ फड़फड़ा रहे थे....
वो सिसकारी मारते हुए बोली : "आह्ह्ह .... भैययय्या......... वहां करो ना..... जहाँ तेल गिराया था.....अहह''

नंदू ने बड़ी मुश्किल से अपनी हँसी पर काबू किया क्योंकि वो उसकी हालत को अच्छे से समझ पा रहा था..

वो बोला : "हाँ निशि ..वहीं तो कर रहा हूँ ....तेरी गांड की अच्छे से मालिश कर रहा हूँ ...''

एक ही बार में उसने वो सारी हदें पार कर दी जिन्हे बनने में सालो का समय लगा था...
ना चूतड़ बोला ना हिप्स...
सीधा गांड बोलकर नंदू ने दोनो के बीच की शर्म की दीवार को पस्त कर दिया..

निशि सीसीया उठी : "आअहह......गांड पर नही....वहां ....व .वो......वो .....मेरी.... पुसी....पर''

नंदू ने अंजान बनने का नाटक किया : "क्या ?....कहां पर....पुस्सी.....ये का होत है...''

निशि भी जानती थी की उस अनपड़ को भला पुसी का क्या पता...
वो तो ठेठ देहाती था...
उसे तो यही गांड चूत वाली बात समझ आनी थी...

और वैसे भी, नंदू ने खुद ही उस तरह की भाषा का इस्तेमाल करके ये जता दिया था की उनमें अब भाई बहन जैसा कुछ नही रहा है...

निशि : "भाई....वो...वो...मेरी चूत पर...वहां की मालिश करो ना....''

नंदू का लंड एकदम बौरा सा गया ये सुनते ही...
उसकी खुद की सग़ी बहन जो उसके सामने नंगी होकर उल्टी लेटी हुई थी..

और फिर उसने भी अपने काँपते हुए हाथो से ढेर सारा तेल अपनी उंगली में समेटा और उसे धीरे से लेजाकर उसकी कराहती हुई चूत पर रख कर धीरे से दबा दिया.

पक्क की आवाज़ के साथ वो तेल से भीगी उंगली उसकी चूत के अंदर फिसलती चली गयी और पूरी अंदर घुसकर ही मानी...

''आआआआआआआआआअहह ओह भेययय्याआआआआ..... उम्म्म्मममममममममम''



ऐसे मौके पर उसे भी भैय्या कहने में एक अलग ही तरह की उत्तेजना महसूस हो रही थी..

अब तो उनके बीच की रही सही शर्म की दीवार भी गिर चुकी थी...
इसलिए नंदू ने अपने दूसरे हाथ से अपनी धोती की गाँठ खोल कर अपने हुंकारते हुए शेर को बाहर निकाल लिया और अपनी धोती एक तरफ फेंकते हुए वो अपने खड़े हुए लंड को लेकर सीधा अपनी फूल सी बहन के उपर लेट गया...

''अहह भाईईईईईईईईईईईईईईईईईईईईईईईईईईईई सस्स्स्स्स्स्स्स्स्स्स्स्स्स्स्सस्स''

उसकी गांड के चीरे पर उपर से नीचे तक एक डंडे की भाँति वो धँस कर रह गया...
निशि को ऐसा लगा जैसे उसकी गांड पर कोई लंबा सा डंडा फँसा कर रख दिया हो...
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RE: Kamukta kahani हरामी साहूकार - by sexstories - 03-19-2019, 12:26 PM

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