Kamukta kahani हरामी साहूकार
03-19-2019, 12:26 PM,
#77
RE: Kamukta kahani हरामी साहूकार
''ओह लाला जी........... अहह क्या लॅंड है आपका..... कसम से...... मन करता है की पूरी जिंदगी आपसे चुदवाती रहु.....अहह....''

उसकी माँ शबाना ने मन में सोचा की अभी से इसके ये जलवे है तो बड़ी होकर पता नही क्या कहर ढाएगी...
सच ही निकला था उसके मुँह से कुछ देर पहले की चुदाई के ये तरीके उसके अंदर से ही निकले है जो उसकी बेटी ने सीख लिए है...

लाला भी अपना सारा पानी निकाल कर अपने आप को थोड़ा हल्का महसूस कर रहा था...



नाज़िया का नम सा शरीर उसके उपर गिरा और वो उसके गुलाबी होंठो को चूसते हुए लंड की पिचकारियों का अंत तक मज़ा लेता रहा...

और इसी बीच शबाना सरककर उन दोनो की टाँगो के बीच पहुँच गयी और चूत और लंड के मिलन स्थल से निकल रही मलाई को चाटकार सॉफ करने लगी...
और करती भी क्यो नही आख़िर खुद की गरज जो थी उसे...
लाला के लंड को लेने की.

दूसरी तरफ निशि भुनभुनाती हुई पिंकी के घर पहुँच गयी...
और उसने एक ही साँस में रास्ते से लेकर लंड चुसाई तक की बात उसे सुना डाली और ये भी बताया की आख़िर में झड़ते हुए नंदू ने किस अंदाज में अपनी माँ का नाम लिया था...

पिंकी भी ये सब सुनकर गहरी सोच में डूब गयी...
मामला पहले से ज़्यादा गंभीर और पेचीदा हो चुका था...
पर अंदर ही अंदर वो जानती थी की अंत में इस खेल में कितना मज़ा आने वाला है...

पिंकी के चेहरे पर पहले तो चिंता के भाव थे..
पर फिर धीरे-2 वो मुस्कुराने लगी
और ऐसे मुस्कुराइ जैसे निशि की बात सुनने के बाद उसे अपनी अगली चाल के लिए कोई आइडिया मिल गया हो.

निशि : "अब कुछ बोलेगी भी...मेरी हालत खराब हुई पड़ी है और तू मुस्कुराए जा रही है...कुछ तो बोल...''

पिंकी : "अब हमे कुछ करने की ज़रूरत नही है...करेगा तो अब नंदू और वो भी जैसा हम कहेंगे वैसा ...''

निशि : "मतलब ??''

पिंकी : "मतलब ये मेरी जान की अब तेरी चूत को ज़्यादा इंतजार नही करना पड़ेगा...तेरा भाई नंदू उसे बुरी तरह रोंदेगा, चोदेगा और अपना लंड अंदर डालकर इसमें अपना पानी भी निकालेगा...''

निशि का चेहरा चमक उठा, उसे पूरा विश्वास था की पिंकी जैसा कह रही है वैसा ज़रूर होगा..

पर कैसे ??

ये पूछने पर पिंकी ने उसे शरारती आवाज़ में कहा : "तू आम गिन ना, पेड़ गिनने से क्या मतलब...?? अब तू सब कुछ मुझपर छोड़ दे...''

पिंकी को तो खुली आँखो से ही नंदू दिखाई दे रहा था...
और वो भी निशि की चुदाई करता हुआ...



फिर उसने अपनी आगे की योजना निशि को सुनाई...
पूरी तो नही पर उतनी ज़रूर बताई जिससे निशि को अंदाज़ा हो गया की उस चतुराई की दुकान पिंकी के दिमाग में क्या चाल चल रही है...

दूसरी तरफ नंदू साइकल लेकर वापिस खेतो की तरफ चल दिया और जाते हुए उसके दिमाग़ की सारी नसें फूल कर फटने को हो रही थी...
आज ही के दिन उसके साथ जो कुछ भी घटा था वो किसी सुखद सपने के साकार होने जैसा ही था पर लास्ट में आकर जो चुतियपन्ति उससे हो गयी थी वो भी किसी डरावने सपने से कम नही थी.

उसने तो सोचा भी नही था की अपनी खुद की बहन निशि के साथ वो इस हद्द तक आगे बढ़ जाएगा...
पर एक बात तो उसने भी नोट की थी की निशि उससे ज़्यादा इस काम को करने को लालायित थी..
यानी जैसा वो आज तक अपनी माँ के बारे में सोचता आया था वैसा ही कुछ उसकी बहन उसके बारे में सोच रही थी...
तभी तो इतनी आसानी से वो उसका लंड चूसने को तैयार हो गयी....

अपनी माँ का ख़याल आते ही उसे अपनी वो बेवकूफी भी याद आ गयी जो उससे निशि के सामने हो गयी थी...
अच्छा भला वो उसका लंड चूस रही थी...
शायद बाद में वो उसे अपनी चूत भी दे देती..
पर उसकी नासमझी की वजह से सारा खेल बिगड़ गया था...
निशि तो हाथ से गयी ही गयी उपर से निशि को ये भी पता चल चुका था की नंदू के मन में अपनी माँ के लिए कैसे विचार है...

सब उसी की ग़लती है....
उसे अपनी माँ और बहन के विचारो को आपस में मिलाना नही चाहिए था...
दोनो को अलग ही रखना था उसे..

रास्ते भर उसे ये भी विचार आते रहे की कहीं निशि अपनी माँ से वो सब ना कह दे...

पर वो ऐसा करेगी नही...

क्योंकि उसके लंड को चूसते हुए जिस तरह के एक्सप्रेशन्स वो दे रही थी उससे सॉफ जाहिर था की वो भी उस खेल को कितना एंजाय कर रही है...
ऐसे में वो अपनी माँ को वो सारी बाते बता कर अपना ही भांडा नही फुड़वाना चाहेगी..
और ना ही आगे मिलने वाले मज़े को खोना चाहेगी...

यही सब सोचते-2 नंदू खेतो में पहुँच गया...
जहाँ उसे उसकी माँ एक बार फिर से घोड़ी बनकर झुकी हुई दिखाई दे गयी...

और एक ही पल में नंदू अभी तक की सारी बातें भूलकर फिर से अपनी माँ की भरंवा गांड को घूरने लगा..
साला एक नंबर का हरामी था वो..
इतना कुछ होने के बावजूद भी उसके लंड को एक मिनट भी नही लगा फिर से पहले जैसा कड़क होने में.

वो धीरे से बुदबुदाया : "निशि का तो पता नही पर माँ की इस गांड में अपना लंड एक दिन ज़रूर पेलुँगा....अहह''

इतना कहते हुए वो बड़ी ही बेशर्मी से अपने लंड को धोती के उपर से ही मसलने लगा..

उधर नंदू की माँ भी अपना काम लगभग निपटा ही चुकी थी...
उसे नंदू के आने का ज़रा भी आभास नही था..
वो उठी और खेतो के दूसरी तरफ बने ट्यूबवेल्ल वाले झोपडे की तरफ चल दी..

ये देखकर नंदू की आँखे चमक उठी,
उसे पता था की उसकी माँ घर जाने से पहले अपने हाथ पैर और चेहरा अच्छी तरह से सॉफ करती है ट्यूबवेल्ल के पानी से...और कभी मौका मिले तो नहा भी लेती है...
आज वो अपनी माँ के साथ नही था इसलिए शायद वो फिर से नहा ले...
और ऐसा मौका नंदू छोड़ना नही चाहता था..
इसलिए पेड़ो के पीछे छिपता छिपाता वो भी दूसरी तरफ बने उस झोपडे की तरफ चल दिया.

अंधेरा होने को था, आस पास के खेतो में काम करने वाले लोग भी अपने घर जा चुके थे...
नंदू की माँ भी जल्द से जल्द हाथ मुँह सॉफ करके घर जाना चाहती थी,घर जाकर उसे खाना भी पकाना था..

अंदर झोपड़ी के एक कोने में ईंटो और सीमेंट से एक छोटी सी पानी की होद्दी बना रखी थी उन्होने,
जिसके पीछे लगे ट्यूबवेल से पानी निकलकर उसमें जाता और वहां से निकलकर दो नालियों से होता हुआ खेतो के दोनो हिस्सो की तरफ मुड जाता..
आराम करने के लिए उन्होने एक खटिया भी डाल रखी थी झोपड़ी में..

नंदू की माँ अंदर आई और अपनी साड़ी निकालकर खटिया पर डाल दी और होद्दी से पानी लेकर अपने चेहरे और हाथो को सॉफ करने लगी..

इसी बीच नंदू भी दूसरी तरफ से घूमकर वहां पहुँच गया और झोपड़ी के पीछे की तरफ से छुपकर अंदर झाँकने लगा..
जहाँ से वो देख पा रहा था उसे अपनी माँ बिल्कुल सामने की तरफ झुकी हुई दिखाई दे रही थी, और झुके होने की वजह से उसके मोटे स्तन लटक कर उनके ब्लाउस से बाहर आने के लिए मचल से रहे थे...
पानी गिरने की वजह से माँ का ब्लाउस पारदर्शी हो चुका था और अंदर की ब्रा भी गीली होकर चमक रही थी...
ठंडे पानी ने नंदू की माँ के निप्पल खड़े कर दिए थे..

नंदू का खड़ा हुआ लंड झोपड़ी की दीवार से टकरा कर ठोकरे मारने लगा...
उफफफफ्फ़ ...इतना सैक्सी दृशय देखने के बाद तो उससे रुका भी नही जा रहा था...
मन तो उसका कर रहा था की पीछे से जाकर अपनी माँ का पेटीकोट घूँघट की तरह उठाए और अपना मोटा केला अंदर पेलकर उनका वही के वही कांड कर दे...
मानेगी तो मानेगी वरना रेप ही सही.

जीतने गंदे विचार उसके मन में आते जा रहे थे उतनी ही तेज़ी से उसके हाथ अपने लंड पर चल रहे थे...
अपनी बहन को इतनी आसानी से पाने के बाद उसे अब माँ को भी अपने अंटी में लेने में ज़्यादा मुश्किल आती दिखाई नही दे रही थी..

वो ये सोच ही रहा था की कुछ ऐसा हुआ जिसकी उसने कल्पना भी नही की थी,
उसकी माँ ने झोपडे के दरवाजे को अंदर से बंद करने वाली डोरी को एक लकड़ी में लपेटकर दरवाजे को अंदर से बंद किया और एक ही झटके में उन्होने अपना ब्लाउस और ब्रा निकाल कर खटिया पर फेंक दी...



जिस माँ को नंगा देखने के लिए वो मरा जा रहा था वो उसके सामने टॉपलेस थी...
माँ के कसावट से भरे मुम्मे ब्लाउस से निकलने के बाद ऐसे झूम रहे थे जैसे बरसो की कैद से निकले हो..
दोनो एक दूसरे से टकरा कर अपनी खुशी का इज़हार भी कर रहे थे...
और उनपर लगे वो मोटे-2 काले निप्पल तो उनकी सुंदरता में चार चाँद लगा रहे थे, माँ ने उन्हे अपनी उंगलियो से उमेठा और पानी लेकर उनपर डाला और उन्हे अच्छे से रगड़ने लगी...

उफफफ्फ़.....
नंदू का लंड तो फटने जैसा हो गया...
और फिर माँ ने अपना पेटीकोट भी उतार कर खटिया पर रख दिया और नंगी होकर खड़ी हो गयी...



फिर वो किसी हिरनी की तरह उछलकर पानी की छोटी सी होद्दी में बैठ गयी और रगड़ -2 कर अपने अंगो से मिट्टी सॉफ करने लगी...

ये तो नंदू के लिए किसी जैकपॉट जैसा ही था...

उसकी माँ तो यही सोचकर नहा रही थी की आज घर का काम यही पर निपटा लेती है,
घर जाएगी , फिर नहाएगी ।।
अभी नंदू नही था इसलिए वो आराम से यहीं नहाकर काम निपटा लेना चाहती थी.

अब उसे क्या पता था की जिस नंदू को वो घर गया हुआ समझ रही थी वो उसकी नंगी जवानी के दर्शन करने के लिए वापिस आ चुका था..
और इस वक़्त उसे नंगा नहाते हुए देख रहा था...

नहाते हुए जब भी उसके हाथ अपने निप्पल्स पर जाते तो एक अजीब सी झंनझनाहट पूरे शरीर में दौड़ जाती और ना चाहते हुए भी उसे अपने बेटे की रात वाली हरकत और आज दिन में लंड हिलाने की हरकत याद आने लगी...

और ऐसा सोचते हुए उनके चेहरे पर जो मुस्कान आई उसका तो कोई मुकाबला ही नही था...
और मुस्कुराते हुए जब उनके हाथ खुद ब खुद चूत की तरफ जाने लगे तो उन उंगलियो को एक पल भी नही लगा उस चूत की परतों को खोलने में जो कल रात से ही एक जबरदस्त रगड़ाई के लिए मचल रही थी...

नंदू देख तो नही पाया पर अपनी माँ की बाहो की हरकत से उसे सॉफ पता चल रहा था की पानी के अंदर वो क्या रगड़ रही है...

उसकी 40 की उम्र की माँ इस वक़्त नंगी होकर पानी में बैठी मुठ मार रही थी...
ये बात उसे अंदर तक उत्तेजित कर रही थी...
अब तो उसका फ़र्ज़ बन जाना था ये की वो अपनी माँ की चूत को हाथो के बदले अपने लंड की रगड़ाई प्रदान करे ताकि वो इस तरह से छुप छुपकर अपनी एनर्जी बेकार ना करे...

और अपनी माँ की चूत में अपना लंड डालने की कल्पना मात्र से ही उसके लंड से एक बार फिर से बर्फानी सफेद पिचकारियां निकलनी शुरू हो गयी...
जो सीधा झोपडे की घांस और सरकंडो से टकरा कर उसमें विलीन हो गयी.

इधर नंदू के लंड से पानी निकला और वहां से उसकी माँ की चूत ने दूध की धार बाहर निकाल फेंकी...
जो उस पानी के साथ मिलकर उसके खेतो में जाकर विलीन होने लगी...

नंदू का मन तो कर रहा था की बाहर निकल रहे उस शराब समान पानी को पीकर अपनी जन्मो-2 की प्यास बुझा ले पर तब तक उसकी माँ छलाँग लगाकर बाहर कूद आई थी...
शायद अंधेरा होने से पहले वो भी घर जाना चाहती थी, इसलिए..



अपनी माँ का पानी से भीगा बदन देखकर उसके लंड ने एक बार फिर से उठने की कोशिश की पर बेचारा उठ नही पाया...
इतना जबरदस्त ऑर्गॅज़म आने के बाद उसकी भी हालत खराब हो रही थी.

नंदू की माँ ने जल्दी -2 गीले बदन से पानी को पोंछा और अपने कपड़े पहन लिए...
नंदू भी भागकर वापिस अपनी साइकल तक पहुँच गया और उसे लेकर थोड़ी दूर जाकर खड़ा हो गया और जब उसे अपनी माँ खेतो से बाहर आती दिखाई दी तो साइकल लेकर वो उनकी तरफ चल दिया...

अपने बेटे को अपने लिए वापिस आया देखकर नंदू की माँ भी खुश हो गयी और खुशी-2 उसके साथ वापिस घर की तरफ चल दी.

भले ही नंदू इस वक़्त अपनी माँ के शरीर की भीनी खुश्बू सूँघकर एक अलग ही दुनिया में खोया हुआ था पर वो इस बात से अंजान था की मास्टरमाइंड पिंकी ने उसके लिए क्या प्लानिंग कर रखी है.
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RE: Kamukta kahani हरामी साहूकार - by sexstories - 03-19-2019, 12:26 PM

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