RE: Kamukta kahani हरामी साहूकार
निशि की बात सुनकर पिंकी ने मुस्कुराते हुए उनकी तरफ देखा , और अपने जिस्म पर पानी को रगड़ते हुए वैसे ही खड़ी होकर नहाती रही, जैसे उसके आने से उसपर कोई फ़र्क ही नहीं पड़ रहा था..
निशि ने नंदू की तरफ मुँह किया और बोली : "तू यहाँ क्यो आया है नंदू...दिखता नही की हम दोनो नहा रहे है...''
नंदू : "हाँ दिख रहा है, और ये भी दिख रहा है की तुम दोनो क्या कर रहे थे...''
उसकी बात सुनकर निशि तो सकपका गयी पर पिंकी ने उसका जवाब दिया : "जब देख ही लिया था की क्या चल रहा है तो यहां आने की ज़रूरत क्या थी...निकल जाना था ना वापिस...या वहीं बैठकर देखते रहते...''
निशि ने आश्चर्य से पिंकी की तरफ देखा, जो अपना सीना चौड़ा करके उसके भाई से बाते कर रही थी...
निशि ने ये भी नोट किया की बात करते हुए नंदू की नजरें पिंकी के कड़क मुम्मों पर ही थी, होती भी क्यों नहीं , उसके गोर मुम्में और गुलाबी निप्पल थे ही इतने दिलकश की जो उन्हें एक बार देख ले तो अपनी नजरें हटा ही नहीं पाए
पिंकी की बाते सुनकर नंदू को भी थोड़ा तैश आ गया , वो बोला : "तुम दोनो को क्या लगता है, तुम जो भी करोगे, वो देखकर मैं चुप बैठा रहूँगा ...बहन है ये मेरी...और ये ग़लत काम करेगी तो मेरा फ़र्ज़ है इसे रोकने का...''
पिंकी ने कटाक्ष भरे स्वर मे कहा : "अच्छा ..बहन है ये तेरी...तभी कल इसे कल चोदने की तैय्यारी कर रहे थे तुम ...''
नंदू जानता तो था की निशि ने पिंकी को तो वो सब बता ही दिया होगा, पर वो इस तरह से उससे सवाल करेगी और वो भी अपनी बहन के सामने, ये उसने नही सोचा था..
पिंकी वहीं नही रुकी, उसने एक ही बार में उसका कच्चा चिट्ठा सामने रख दिया
वो आगे बोली : "चलो, वहां तक तो ठीक था, पर अपनी बहन के साथ मज़े लेते हुए तुम अपनी माँ के बारे में सोच रहे थे, वो ग़लत नही था क्या...तुम्हारी इन सब बातों के सामने जो हम कर रहे है वो तो कुछ भी नही है....''
नंदू बेचारा शर्म से गड़े जा रहा था....
अभी तक उसका लंड जो उत्तेजना के मारे कुतुब मीनार बनकर खड़ा था, अब अंडरग्राउंड सुरंग बन चुका था...
उसका लंड सिकुड़कर एक इंच का ही रह गया था अब...
निशि ने गुस्से भरी नज़रों से पिंकी को देखा की ये सब करके वो भला नंदू का मूड क्यो खराब कर रही है, पर पिंकी भी जानती थी की वो ऐसा क्यो कर रही है, नंदू को भी इस बात का ज्ञान करना ज़रूरी था की उसने भी कितने ग़लत काम किए है, ताकि चोर-2 मोसेरे भाई बनकर रह सके...
नंदू के शर्मिंदगी से भरे चेहरे को देखकर पिंकी को जब ये विश्वास हो गया की वो उनके सामने डर गया है तो उसने फ्लिप मारा...
और बोली : "निशि कितनी खुश थी, पिछले कुछ दिनों से वो तुम्हे अलग ही नज़रों से देख रही थी, मैने भी सोचा की भले ही तुम उसके सगे भाई हो पर हो तो एक जवान मर्द ही ना...अपनी बहन को चोदकर तुम इसे सच में एक सच्चा सुख दे सकते थे....मैं भी इसके लिए उतनी ही खुश थी जितना की ये....पर तुमने वो अपनी माँ की बात बीच में करके सब कुछ गड़बड़ कर दिया...''
बेचारा अब भी कुछ बोल नही पा रहा था..
पिंकी ने एक और गियर चेंज किया, और बोली : "मैं जानती हूँ की तुम अपनी माँ के बारे में निशि से पहले ही सोचा करते थे, और सोचो भी क्यो नही, गौरी मौसी है ही इतनी खूबसूरत की आज भी गाँव का हर मर्द उन्हे खा जाने वाली नज़रो से देखता है...और तुम तो दिन रात उनके साथ खेतो में ही काम करते हो, शायद वहीं रहकर तुम उनके प्रति आकर्षित होते चले गये....ये सब तो नॉर्मल बातें है....पर तुम्हे अपनी माँ और बहन के जज्बातों को अलग ही रखना चाहिए था, उन्हे एक दूसरे के साथ मिलाकर तुमने सही नही किया....''
नंदू की आँखे आश्चर्य से फैलती चली गयी ये सुनकर...
नंदू : "यानी....इसमें ...तुम्हे...यानी..... तुम दोनो को कुछ ग़लत नही लगा....''
और इस बार काफ़ी देर तक चुप खड़ी निशि बोली : " इसमें मुझे क्या परेशानी हो सकती थी भाई....जैसी मेरी ज़रूरते है , वैसी ही माँ की भी तो है...पर मुझे सिर्फ़ इस बात का बुरा लगा की मेरे साथ होते हुए भी तुम्हे माँ याद आ रही थी....''
ये सुनते ही वो गिड़गिड़ाता हुआ सा बोला : "ओह्ह्ह ...सॉरी...सॉरी.....ये सब मेरी ही ग़लती है....मुझे ऐसा नही करना चाहिए था....अब से ऐसा नही होगा...कभी नही होगा....''
निशि ने एक सैक्सी हँसी हंसते हुए कहा : "कसम खाओ.......''
नंदू ने झट से अपने गले पर चूंटी काटकर कहा : "माँ कसम, आगे से ऐसा नही होगा...''
ये सुनते ही दोनो एक बार फिर से हँसने लगी...
कसम भी खायी तो अपनी माँ की.
नंदू बेचारे को अपनी ग़लती का एक बार फिर से एहसास हुआ पर अब वो समझ चुका था की निशि को इस बात से बुरा नही लगेगा...
ये एहसास होते ही उसकी सुरंग का सिपाही सिर से मैदानी इलाक़े की तरफ आने लगा, और उसका लंड धीरे-2 अपने आकार में आ गया..
अब उसने मन में इतना निश्चय तो कर ही लिया था की वो निशि और अपनी माँ के जज्बातों को अलग-2 ही रखेगा...
क्योंकि ऐसी ही डिमांड थी शायद निशि और पिंकी की तरफ से...
और वैसे भी, ये साली लड़कियां अपना नंगा जिस्म दिखाकर ऐसे मौके पर तो लड़को से कुछ भी करवा सकती है, और हरामी लोंडे वो सब मानने को तैयार भी हो जाते है...
आख़िर चूत है ही ऐसी चीज़.
अंत में पिंकी ने एक और इन्सेंटिव जोड़ दिया इस अग्रीमेंट में..
वो बोली : "अगर तुम निशि के साथ सिर्फ़ उसके ही बनकर उसे प्यार करोगे तो शायद हम दोनो तुम्हारी हैल्प कर सके...तुम्हारी माँ के साथ कुछ करवाने में..''
ये सुनकर तो नंदू को अपने कानो पर विश्वास ही नही हुआ...
ये तो वही बात हुई, एक के साथ एक फ्री....
उसने तुरंत गर्दन हिला कर अपनी रज़ामंदी दे डाली...
और लालच में आकर उसके मुँह से ये भी निकल गया : "और....तुम...तुम्हारे लिए मुझे क्या करना होगा...''
ये सुनते ही पिंकी के नंगे शरीर पर हज़ारों चींटियां रेंगने लगी...
और वो मुस्कुरा कर बोली : "अभी इतनी जल्दी क्या है नंदू जी....पहले अपने घर की मलाई तो खा लो, बाद में ये खीर भी मिल ही जाएगी...''
इतना कहते हुए उसने नंदू के पायजामे का नाडा खींच दिया और वो किसी कटे पेड़ की तरह उसके कदमो में आ गिरा...
नंदू ने उसके बाद खुद ही अपना कुर्ता निकालकर एक तरफ फेंक दिया और अब वो उस सुनसान जंगल में अब वो नंगा होकर अपना बलिष्ट शरीर लिए अपनी बहन और उसकी सहेली के सामने खड़ा था
यानी नंदू को नंगा करके पिंकी ने इस खेल का शुभारंभ कर दिया था...
निशि ने जैसे ही इस सिग्नल को देखा, वो उछलकर नंदू की गोद में चढ़ गयी और उसे बेतहाशा चूमने लगी...
नंदू ने भी उसके नंगे कूल्हों पर हाथ रखकर उसे अपने अंदर समेटा और उसे जोरों से स्मूच करने लगा...
उसका नंगा और गीला बदन इस वक़्त किसी नशे की तरह लग रहा था, जिसे वो आज पूरी तरह से महसूस कर लेना चाहता था.
वो उसे लेकर झरने के नीचे तक गया और उपर से गिर रहे पानी से अपने और निशि के जिस्म की आग को बुझाने का प्रयत्न करने लगा..
पिंकी उन्हे देखकर वहीँ पानी में बैठकर अपनी चूत मसलने लगी....
अगर उसपर लाला के लंड से चुदाई करवाने की बंदिशे नही होती तो वो भी आज ही अपनी चूत का उद्घाटन करवा लेती..
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