RE: Maa Chudai Kahani आखिर मा चुद ही गई
माँ........तुम्हारे बेटे के लिए ऐसी कठिनाइयँ कोई मायने नहीं रखती बस मुझे अगर दुःख था तोह यह था के तुम मेरे पास नहीं थी" इस बार विशाल अपनी कुरसी से उठता है और अपनी माँ के चेहरे पर झुककर उसका चेहरा ऊपर को उठाता है. फिर वो अपने होंठ उसके चेहरे की और बढाता है. अंजलि अपना चेहरा हल्का सा झुककर अपना माथा उसके सामने करती है मगर वो दांग रह जाती है क्योंके विशाल के होंठ उसके माथे को नहीं बल्कि उसके गाल को छूते है. उसके हलके से नम्म होंठ जैसे ही अंजलि के गाल को छूते हैं वो सेहर उठती है. विशाल भी अपनी माँ के जिस्म में कुछ तनाव को महसूस करता है. उसे लगता है के शायद उसे यह नहीं करना चाहिए था. मगर जब चूमने के बाद वो अपना चेहरा ऊपर उठता है तो अंजलि को मुस्कराते हुए देखता है. वो राहत की गहरी सांस लेता है.
"मगर अब में बहुत खुश हु......जब वो वक़त गुज़र चुका है मैं........जब तुम्हारा बेटा तुम्हारे साथ रहेग.....हमेशा..." विशाल चुम्बन के बाद कुरसी पर वापस बैठता हूए बोलता है.
"हा बेटा...........में बहुत खुश हुन के तुम लौट आये हो.........तुम्हारे बिना यह घर घर नहीं था, तुम लौटे हो तो इस घर में खुशियां लौटी हैं........." अंजलि के चेहरे पर फिर से मुस्कराहट लौट आई थी.
"मैं भी बहुत खुश हुन मैं........सच में मैं........यहा आकर दिल को कितनी ख़ुशी मिली है में तुम्हे बता नहीं सकता........" विशाल कुरसी पर आगे को थोड़ा सा झुक कर अपनी माँ के हाथ अपने चेहरे पर लगता है.
"ईसिलिये अभी एक हफ्ता और लेट आना चाहता था?...........इतने सालों बाद जब मुझसे एक पल के इंतज़ार नहीं होता था तू पूरे एक हफ्ते के लिए मुझे तड़पाना चाहता था.........." अंजलि अपना रोष झाड़ती है.
"उफ्फ मा..........वहाँ एक फेस्टिवल था १४ जुलाई को........मेरे कॉलेज के सभी दोस्तोँ ने मुझे इनवाइट किया था........वो बहुत ज़ोर दे रहे थे........." विशाल ऑंखे झुकाए शर्मिंदगी से केहता है
"यह तो दोस्तों का इतना ख्याल था और में जो यहाँ तड़प रही थी उसका कुछ नही........."
"मा अब छोड़ न ग़ुस्से को........जब देख आ तो गया हु तेरे पास.........." विशाल अपनी माँ के हाथों को चूमता है.
"हा, जब्ब मैंने गुस्सा किया तो आया था.......खेर छोड़........कोंसे फेस्टिवल था.......यूनिवर्सिटी की और से था क्या?.........."
"नही माँ, वहा के लोग मनाते हैं........एक दूसरे को इनवाइट करते हैं.............बस थोड़ी पार्टी होती है.......मौज़, मस्ति, खाना वगैरेह"
"नाम काया है फेस्टिवल का?..........." अंजलि पूछ बैठती है.
"अब छोडो भी माँ फेस्टिवल को...........तुम कहीं जा रही थी क्या?............." विशाल बात बदलता है.
"हम..... नहीं तो क्यों?"
"तुम इतनी सजी सँवरी हो........मुझे लग शायद किसी पार्टी वग़ैरह या फिर शॉपिंग पे जा रही हो.........".
"चल हट.......मा को छेडता है.....कया सजी साँवरी हुन..........मैने तोह कुछ मेकअप भी नहीं किया.........और यह साड़ी तुमारे पिताजी ने दी थी...........तीन साल पहले........" अंजलि कुछ शरमाती सी कहती ही.
"मगर देखने में कितनी सुन्दर लगती है.......मा तुम पर बहुत जंचती है...........एकदम मधुरी की तरह दीखती हो........." विशाल मुस्कुराता कह उठता है.
"बस कर.........बातें न बना.........." अंजलि बेटे को झिड़कती है मगर उसका चेहरा खील उठा था. "तु बता तुझे तोह कहीं जाना नहीं है ना..........."
"जाना है माँ......कुच दोस्तों को फ़ोन किया था......शाम को मिलने का प्लान है.........."
"थीक है.....जाकर घूम फिर आओ......मगर मेरी एक बात याद रखना, घर से खाना खाकर जाना है और घर पर लौटकर ही खाना है......बाहर से खाया तोह तुम्हारी खैर नही......." अंजलि बेटे को चेताती है.
"मा वो तोह में वैसे भी नहीं खानेवाला जो स्वाद तुम्हारे हाथों में है... वो दुनिया में और कहा.........."
"हम्म तोह ठीक है.........तुम आराम करो.........मुझे लंच की तयारी करनी है.......तुम्हारे पिताजी भी आज खाना खाने घर आ रहे है......." अंजलि कुरसी से उठने के लिए आगे को झुकति है तोह छोटे और ऊपर से तंग ब्लाउज में कसे हुए उसके भारी मम्मे विशाल की आँखों के सामने लहरा उठते है. विशाल का दिल नजाने क्यों धड़क उठता है. मम्मो का आकार और ब्लाउज का छोटा होना एक वजह थी मगर असल वजह थी जिससे अंजलि के मम्मे और भी बड़े और उभरे हुए दिख रहे थे वो थी उसकी सपाट और पतली सी कमर. उसकी २८ की कमर पर वो मोठे मोठे मम्मे क़यामत का रूप बने हुए थे. उसका ब्लाउज वाकई में काफी छोटा था. लगभग पूरा पेट् नंगा था.
अंजलि बेटे से रुख्सत लेने के लिए खड़ी होती है।
आंजलि उठ कर अपने बालों में हाथ फेरती है। विशाल अपनी माँ की सुंदरता में खोता जा रहा था। अंजलि मूढ़ती है और दरवाजे की और बढ़ती है। विशाल उसकी पीथ देखता है। उसकी पीथ केबेहद्द छोटे से हिस्से को उसके ब्लाउज ने धका हुआ था बाकि सारी पीथ नंगी थी। दुध जैसी रंगत और उसके ऊपर लहराते स्याह काले बाल।
"मा.........." अचानक विशाल अंजलि को पीछे से पुकारता है।
"हुँह?" अंजलि दरवाजे को खोल कर बाहर निकलने वाली थी। वो रुक कर बेटे की और सवालिया नज़रों से देखति है।
"मा तुम बहोत सुन्दर हो.....बहुत....बहुत ज्यादा सुन्दर.....मुझ मालूम ही नहीं था मेरी माँ इतनी सुन्दर है।" विशाल सम्मोहित सा कह उठता है।
"बुद्धु कहीं का....." अंजलि मुस्कराती हुयी बाहर निकल जाती है। सीढ़ियां उतारते हुए उसका चेहरा हज़ार वाट के बल्ब की तेरह चमक रहा था।
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