RE: Maa Chudai Kahani आखिर मा चुद ही गई
“बदमाश”......" अंजलि हँसते हुए सीधी होती है और सिंक की और बढ़ती है.
अंजलि झूठे बर्तन उठा उठा कर सिंक में भरने लगती है. मेहमानो के यूज़ के लिए उन्होनो स्टोर से काफी सारे बर्तन निकाले थे जिनका किचन के एक कोने में अम्बार सा लगा था. सभी बर्तन एक साथ सिंक में समां नहीं सकते थे इसलिए अंजलि ने तीन भाग बनाकर बर्तन धोने का निश्चय किया. सिंक में से कप्स, गिलास और प्लेट्स को विशाल गीला करके अंजलि को पकडाने लगा और वो डिशवाशर लिक्विड लगा लगा कर वापस सिंक में रखने लगी. माँ बेटे के बिच अजब तालमेल था. बिना कुछ भी बोले दोनों माँ बेटा एक दूसरे के मन की बात समज जाते थे. दोनों बेहद्द उत्साहित और जोश में थे. माँ बेटे के बिच इस अनोखे समन्वय के कारन काम बेहद्द तेज़ी से होने लगा. और काम की रफ़्तार के साथ साथ विशाल की शरारतें भी रफ़्तार पकडने लगी.
अंजलि और विशाल दोनों सिंक के सामने खड़े थे और दोनों के जिस्म साइड से जुड़े हुए थे. विशाल जब भी मौका मिलता अपने जिस्म को ज़ोर से अंजलि के जिस्म के साथ दबा देता. कभी वो अपने पैरो से माँ के पैरों को दबाता तोह कभी पंजे की उँगलियों से बेहद उत्तेजक तरीके से अंजलि की गोरी मुलायम टांग को सहलाता. उसके पैरो की उँगलियाँ अपनी माँ के घुटने से लेकर एड़ी तक फिसलती. मख्खन सी मुलायम त्वचा पर विशाल का खुरदरा पैर अंजलि के जिसम में अलग ही सनसनी भर देता. जब अंजलि का ध्यान थोड़ा हट जाता तो वो शरारती बेटा अपनी कुहनी से अंजलि के गोल मटोल भारी मम्मे को टोहता. एक बार ऐसे ही जब अंजलि धुले हुए बर्तन उठाकर एक तरफ रख रही थी तो विशाल ने कुहनी से माँ के मम्मे को अंदर उसके निप्पल के ऊपर दबाया.
"मा देखो ना यह गिलास साफ़ नहीं हो रहा. इसकी तली में कुछ काला सा लगा हुआ है...." विशाल अंजलि के मम्मे को ज़ोर से दबाता गिलास के अंदर झाँकता यूँ दिखावा करता है जैसे उसे खबर ही नहीं थी के वो अपनी माँ के मम्मे को दबा रहा है.
"अन्दर तक घूसा कर रगड़ो बेटा. ऐसे नहीं साफ़ होगा यह......" अंजलि भी कहाँ कम थी वो अपने हाथ से विशाल के पेट को सहलाती है. अंजलि के हाथ और विशाल के लंड में नाममात्र का फरक था. माँ के हाथ का स्पर्श पाकर विशाल अपनी कमर को कुछ ऊँचा उठाता है मगर अंजलि पूरा ध्यान रखती है की विशाल का लंड उसके हाथ को टच न करे. "पूरा अंदर ड़ालना पडेगा.....जड़ तक पहुंचा कर आच्छे से रगडना पड़ेगा तभी काम बनेगा" अंजलि विशाल के कानो में सिसकारती हुयी बोलती है. अंजलि की हरकत के कारन विशाल का लंड कुछ और सख्त हो गया था.
एक घंटे से भी पहले सभी बर्तन धोये जा चुके थे. अंजलि किचन में जरूरी बर्तनो को रखकर बाकि सभी स्टोर में रखवा देती है. काउंटर और फर्श को साफ़ करके अंजलि सिंक पर हाथ धोती है तोह विशाल भी उसके पास आ जाता है.
"लो किचन का काम तोह खतम. अब फर्नीचर को वापस सही जगह रखकर पूरे घर का झाड़ पोंछा करना है. और लास्ट में कपडे धोने है" हाथ धोने के पश्चात सिंक से कुल्हे लगाए अंजलि अपने हाथ पोंछती है जबकी विशाल हाथ धो रहा था.
"चलो माँ, देर किस बात की" विशाल हाथों में पाणी भरता है.
"इतनी भी क्या जल्दी है" अंजलि विशाल को आंख मारकर कहती है.
"जल्दी तो है ना माँ. घर का काम करना है फिर तेरा काम भी करना है”......... “और तेरा काम करने के लिए तोह खूब टाइम चहिये" विशाल भी अंजलि को आंख मारकर निचे अपने लंड की और इशारा करता है. अंजलि कोई जवाब नहीं देती और हँसति हुयी किचन के दरवाजे की और बढ़ती है के तभी विशाल पीछे से दोनों हाथों में पाणी भर कर सीधा अंजलि के नितम्बो पर फ़ेंकता है. गर्मी की भरी दोपहर में ठण्डा पाणी गण्ड पर पढते ही अंजलि चिहुंक पड़ती है.
"बेदमाश.."अंजली विशाल को मारने के लिए वापस मूडती है और उसकी और बढ़ती है कि तभी विशाल फिर से दोनों हाथो में पाणी भरकर सीधा अंजलि के सीने पर मारता है. अंजलि के मोठे दूधिया मम्मे पाणी से नहा उठते है.
" लुच्चा कहीं का.....कमिना....." गलियां देती अंजलि घूमकर किचन से बाहर की और भागति है. विशाल ज़ोर से हँसता हुआ अपनी माँ के पीछे लिविंग रूम में आता है. अंजलि के चेहरे पर गुस्सा देखकर विशाल की हँसी और भी तेज़ हो जाती है.
"ज्यादा दांत मत निकालो........अभी काम की जल्दी नहीं है" अंजलि भी बेटे की शरारतों का खूब आनंद ले रही थी. बल्कि वो खुद कोशिश कर रही थी के किस तरह वह विशाल को उकसाएं, उसे अपने नज़्दीक आने के लिए बेबस करदे. मगर हक़ीक़त यह थी के अंजलि को कुछ करने की जरूरत ही नहीं थी. उसका नंगा जिस्म उसके बेटे को वासना की आग में जला रहा था. उसके भीगे हुए मम्मो से पाणी की धाराये निचे बहति हुयी उसकी चुत तक्क पहुँच गयी थी. चुत के ऊपर बेहद्द छोटे छोटे रेश्मी बाल भिगने से चमक उठे थे अंजलि के सीधी खड़ी होने के कारन विशाल केवल उसकी चुत का उपरी हिस्सा ही ही देख सकता था. चुत के उपरी हिस्से पर उभरे हुए मोठे होंठ आपस में भिंचे हुए थे और फिर निचे को दोनों जांघो के बिच की और घूमते हुए नज़रो से ओझिल हो रहे थे.
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