RE: mastram kahani प्यार - ( गम या खुशी )
अपडेट - 16
आदमी 1.... हम ( 4 लोग थे ) जरा नीचे जा रहे है यह बच्चा मेरा सो रहा है प्लीज् इसका ध्यान रखयेगा । मुझे क्या करना था मैं तो खुद अपनी इस चेतना से नॉर्मल होने की कोशिश कर रहा था । मैंने उसे देखने की हामी भरते हुए उन्हें जाने के लिए बोला ।
फिर चारों नीचे उतर गए । ट्रेन जंक्शन पर खड़ी थी और अभी सिग्नल भी नहीं हुए थे मैं उदास तन्हा अकेला बैठा था ।
मेरे फ़ोन की घंटी बजी मैने उठाया कॉल दिया का था । वो मुझसे बात करने लगी आज वो भी बहुत इमोशनल थी पहली बार जो मैं उससे दूर जा रहा था , दिया मुझे मिस कर रही थीं ।
हमारी बातें यू ही चलती रही पर मैं अपने दर्द से बाहर नहीं निकल पा रहा था इसीलिए मैंने दिया को बाद में बात करने को कहा ।
अभी मैंने कॉल कट ही किया था कि 4,5 लोग ट्रेन के कंपार्टमेंट में अंदर आये सब के सब 5'8 से 6 फ़ीट के थे । देखने में फिट और किसी पहलवान की तरह । वो मेरी बर्थ के पास आये वहाँ का माहौल देखा , पर मैं अब भी अपनी चेतनाओं में डूबा हुआ था कोई मतलब नहीं । कि तभी एक आदमी ने उस बच्चे को उठा लिया । मुझे थोड़ा अटपटा लगा तो मैंने उन्हें टोक दिया ।
" हेल्लो सर लाल को कहाँ ले जा रहे हो "
उनमें से एक आदमी आगे आया मुझे गौर से देखा ( दोस्तो बताना चाहूंगा कि अभी मेरी फिजिकल कंडीशन ऐसी थी कि कोई भी देख कर या तो पागल या फकीर समझता )
जो मुझे घूर रहा था अब सवाल पूछते हुए ।
आदमी 1 ... क्या यह लाल तुम्हारे साथ है ।
मैं... नहीं ।
आदमी 1.... तो क्यों पूछ रहा है ?
मैं... क्योंकि इसकी जिम्मेदारी कुछ लोग मुझे सौप कर गए है।
आदमी2... कोन से लोग ।
मैं.... अभी आएंगे तो उन्ही से पूछ लेना ( मेरा व्याकुल मन अब थोड़ा भी उनसे बात करने का नहीं कर रहा था )
उसने मुझे फिर देखा आस पास बात की और वही बैठ गया । पर लाल अभी भी अचेत अवस्था में था । उसे उनलोगों ने काफी जगाने की कोशिश की पर उठा नहीं । मैं अपनी बर्थ पर लेटा सब देख रहा था इतने में ट्रेन ने हॉर्न देना शुरू किया । अब ट्रेन चल दी पर यह क्या वो चारो तो ट्रेन में बैठे ही नहीं । अब मुझे क्या कोई आये या जाए ,पर अब मुझे इन सब से ज्यादा प्यार लूट जाने की चिंता हो रही थीं । फिर मैंने सोचा अभी 10मि मे दिल्ली आ जायेगा लाल को यदि कोई लेने आया तो ठीक वरना मैं इसे पुलिस को दे दूँगा ।
मैं इन्हीं सब सोच में लगा कि तबतक दिल्ली भी आ गया ।
चारों जो लाल को घेरे बैठे थे अब गेट पर खड़े थे । स्टेशन पर ट्रेन रुकते ही में लाल को उठाने लगा पर शायद वो बेहोश था इस वजह से नहीं उठ रहा था । मैंने किसी तरह अपने कंधे का सहारा दे उसे बाहर लाया । पर बाहर आते ही मुझे कुछ cops और कुछ रोते बिलखते लोगों ने घेर लिया ।
लेकिन मुझे अब भी इस सब से कोई हैरानी नहीं हुई क्योंकि मेरा अपना ही गम था और मैं उसमें खोया हुआ था । तो दोस्तो यह मामला किडनैपिंग का है जिसमें अब मैं शक के घेरे में था । सब ने बच्चे को मुझ से अलग किआ । बच्चे को उसके परिवार को सौंप दिया। और मुझे वहीं पास के थाने ले जाया गया ।
आप सब यही सोच रहे होंगे क्या बकवास है पर सच तो यही है जो प्यार का गम होता हैं इसमें जीना एक सजा के बराबर होता हैं और मौत वो खूबसूरत तोहफा हैं जो हँसके कबूल किया जाता हैं। तभी तो लोग प्यार में आत्महत्या कर लेते है खुद को इतनी तकलीफ देते है पर उफ तक नहीं करते ।
खैर वापस कहानी पर आते है पुलिस स्टेशन में...
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मेरे गाल पर थप्पड़ पड़ रहे थे और कानों में एक सवाल
..
" बता तेरे साथ और कौन कौन है कबूल कर "
पर मैं तो जैसे उसका थप्पड़ तोहफे की तरह कबूल करता । आज तो जैसे यह लोग मेरा दर्द पर मरहम लगा रहे हो । 3र्ड डिग्री के लिए भी गया उधर मेरे ऊपर डंडे पर डंडे पड़ते गए और मैं बिना कुछ कहे उस सवाल पर मुस्कुरा देता । उनका गुस्सा इधर भड़क जाता और मैं राहत महसूस करता ।
फाइनली मैं बेहोश हो गया कितनी देर पता नहीं । यही करीब 8 बजे मेरी नींद खुली तो मैं किसी आलीशान बुगलौ मैं था......
कहानी जारी रहेगी.....
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