RE: mastram kahani प्यार - ( गम या खुशी )
अपडेट - 41
अब फाइनली विदा ली दिल्ली और परिधि दोनों से और साथ छोड़ आया अपना दिल जो अब अपना नहीं था ।
सपरिवार हम पहुंचे चंडीगढ़ और साथ मे आयी मस्सी की बिटिया सुनैना ।
सब कुछ वही था , घर भी वही , परदे , चादर और तकिये भी वही , लोग भी वही पर जाने क्यों सब नया नया लग रहा था ।
बेहरहल हम सब 2 बजे तक पहुँच गए चण्डीगढ़, सफ़र की थकावट सब पर भरी थी इसलिए सब चले गए सोने पर न तो मैं थका था और न ही नींद आ रही थी तभी एक मोबाइल पर मैसेज आया और दिल खुश हो गया।
ये परिधि का मैसेज था....
"कुछ भी अच्छा नहीं लगता एक बार बात करना" ।
एक छन को तो ऐसा लगा की परिधि मेरे कानों में कह रही हो अपने मार्मिक स्वरों में। खैर मैं अपने सपनो की कल्पनाओं से निकलते हुए चल कुछ रियल का काम हो जाए ।
यही सोच कर मैंने ऋषभ को फ़ोन लगया....
ऋषभ.... हाँ गुरु आ गया वपस ।
मैं.... हाँ तू कहाँ है अभी ।
ऋषभ.... कंही नहीं बस अपने अड्डे पर ।
मैं..... रुक अभी आया ।
चाहता तो था की मैं अपने बाइक से ही जाऊ पर ऋषभ कार के बारे में बताना था इसलिए मैंने कार निकली और पहुँच गया अड्डे पर।
अड्डे पर जाने से पहले आइये इसकी कुछ जानकारियां ले ले ।
ये अडडा सहर के हाई प्रोफाइल एरिया नूतन अपार्टमेंट के पार्किंग के साइड में है जंहा की एक आम टी स्टाल है,आम इसलिए की ये बांकियों की शॉप की तरह ही-फी नहीं थी।
अवैध रूप से 30 फ़िट कब्ज़ा किया हुआ जिसके निचे मामूली फ्लोर और ऊपर अलवेस्टर्स की छत ।
यहाँ हमारी महफ़िल जमती थी। हम सभी यारों का अड्डा । इस अड्डे की खास बात ये थी की यूँ तो सब लोगों का अपना अपना ग्रुप था किसी के 4 का तो किसी का कम तो किसी का ज्यादा । पर लगातार आते आते सब लोगों की एक दूसरे से गहरी पहचान हो चुकी थी।
इस अड्डे पर हम कॉमन मिलने वाले जो फ्रेंड्स थे--मैं , ऋषभ, कुणाल , और असिस ।
अब चलते हैं कहानी में....
मै जब पहुंचा तो मुझे वंहा तीनों त्रिमूर्तियाँ ऋषभ , कुणाल और असीस सिगरेट सुलगाए दिख गए । मैं कार से उतरा और तीनों के पास पहुंच ।
कुणाल... भाई मस्त कार है, किसकी है ।
मै....मेरी है पर्सोनाल ।
तीनो एक साथ पर्सोनाल।
ऋषभ.... हाँ साले तेरे बाप ने कहा होगा की अले ले चल बेटा तुझे मैं कार दिला देता हू , साला आज कल ये भी फेंक ने लगा है।
मैं.... मादरचोद ये देख रजिस्ट्रेशन, फिर मैंने रजिस्ट्रेशन कार्ड दिखाते हुए अब विस्वास हुआ। साले इतने बड़े हरामी हो, दोस्त के साथ कुछ अच्छा होता है तो उल्टा बधाई देने के बदले कन्फर्म करने लगते हो।
ऋषभ.... भाई ग़लती हुई पर ये बता अंकल माने कैसे ?
फिर मैंने दिल्ली की कहानी बतायी की कैसे मुझे ये कार मिली ।
कुणाल.... भाई पार्टी तो बनती है ।
मैं... आज नहीं दोस्तों आज ही लौटा हूँ ।
आसीस.... मादरचोद कभी तो पैसा निकलने के नाम पर हाँ कर दिया कर कंजुस साला उस दिन भी...
ऋषभ बीच में टोकते हुए.... साले दुखी आत्मा जब देखो तब फ्लश बैक मैं चला जाता है तू चूप, मुझे इंडीकेट करते हुए तू दे रहा है पार्टी तो बता नहीं तो साफ़ मना कर दे ये कल वल न बताया कर ।
कुणाल... पैसे की दिक्कत है तो मैं फाइनेंस कर देता हू ।
आसिस कुणाल से.. मादरचोद अभी तो सिगरेट के लिए बोला पर्स घर भूल आया ।
कुणाल... अरे हम सब मिलकर कर देंगे ।
मैं.... चल भाई कंहा चलना है किसी को कुछ करने की जरूरत नहीं।
चारों निकले वंहा से, सबसे पहले वाइन शॉप गए 2- 2 बियर घटकने के बाद डकार लेते हुए...
ऋषभ... चल भाई अब तम्मना रेस्टोरेंट ।
मै.... अबे बियर पीने के बाद काहे का रेस्टूरेंट चल कंही और चलते हैं।
ऋषभ... नहीं मुझे वंही जाना है तू चल रहा है या मैं खुद जाऊ ।
मैं... तू जो काहे मेरे भाई कार मे बैठ मैं पेसाब कर के अभी आया और पीछे से कुणाल का हाँथ पकड़ के इशारा किया चल मेरे साथ ।
मै कुणाल से... ये इसको क्या हुआ बियर कब से चढ़ने लगी ।
कुणाल... भाई बहुत बड़ा सीन हो गया हमारे साथ उस रेस्टूरेंट में । तो जब कभी भी थोड़ा सा होश खोता है तो ध्यान वंही चला जाता है।
मैं.... क्यों क्या हुआ था ।
कुणाल..... तू जिस दिन दिल्ली गया था उसके 1 दिन बाद की बात है हम तीनों और आकाश
(क्लासमेट , बहुत ही छिछोरा और लड़कियों को गंदे तरीके से घूर्ण)
इतने में मैं टॉकटे हुए.... वो चुतिया क्या कर रहा था वो होगा तो कांड होगा ही न।
कुणाल.... हम सब पहुंचे रेस्टूरेंट और इस मादरचोद आकाश ने एक को देखना शुरू किया और वो रेस्टूरेंट के मालिक की बेटी थी फिर क्या था विवाद बढ़ता गया और..
मैं.... और क्या तुम चारों की खूब कुटाई हुई ।
कुणाल.... नहीं भाई हम चारों के कपड़े उतरवा के रख लिए और चड्डी में वापस भेजा ।
मैं तो चकित रह गया और गुस्सा अपने पुरे उफान पर लेकिन अभी सही वक़्त नहीं था कोई भी एक्शन के लिए इसलिए खून के घूँट पीना पड़े ।
मै आया ऋषभ के पास आते ही गले लग गया मैं अपने यार के। आँखों मैं तो आंशू पता नहीं कब आ गए थे ।
अब एक तमाचा मारते हुए....
"मादर्चोद मैं तुझे अपनी हर बात बताता हूँ और तूने मुझसे इतनी बड़ी बात छिपायी"
ऋषभ समझ चुका था की कुणाल ने सब बता दिया है मुझे। उसके आँखों मैं भी आंशू थे घोर अपमान के आंशु ।
ऋषभ..... भाई जब तू दिल्ली में था दो दिन तक कोई कांटेक्ट नहीं था फिर जब तू फ़ोन किया तो बहुत खुश लग रहा था और मैं बोल न सका । मांफ कर दे भाई ।
हम दोनों के आंखों से आँशु बहते चले जा रहे थे । हम दोनों खुद को नार्मल किया फिर...
मैं.. चल भाई जरा हम भी उसकी सक्ल देख ले आज ।
ऋषभ.... छोड़ यार कंही और चलते है ।
मै.... अपनी पूरी अवाज़ मैं चिल्लाते हुए.... तुझे मेरी बात समझ में नहीं आती क्या?
ऋषभ, कुणाल और असीस तीनों मेरा गुस्सा देख मुझे शांत करवाने में लग गए ।
तू तू मैं मैं होते होते मैंने कहा..... देख मैं अभी कुछ नहीं कहूंगा बस मुझे 1 बार उस लड़की और उसके बाप को देखना है।
ऋषभ.... भाई तुझे मेरी कसम अभी कोई सीन मत करना ।
मैं.... साले फट्टू सब चुप हो जाओ, कुछ नहीं करूँगा चल पहले चल कर बियर पिटे है फिर चलते है रेस्टूरेंट ।
हमलोग वापस 1 - 1 बोतल बियर की और ली। गुस्सा से तो पूरा बदन में आग लगी थी पर अभी कुछ भी करने का सही समय नहीं था क्योंकि मुझे उसे मारना नहीं बल्कि बदला लेना था । अपने दोस्त के बेज्जती का बदला ।
हमलोग पहुंचे रेस्टूरेंट तो कुणाल ने मुझे आँखों के इशारे किया वही है ओनर लेकिन मैंने ऊँगली से इशारा कर दिया वही है क्या?
मैने जान भुझ कर ऊँगली की थी, इस से उनका ध्यान मेरी तरफ खिंचा और इस बात को देखते हुए मैंने किसी 1 टेबल के खाने की प्लेट को गिरा दी और क्लियर व्यू था की मैंने ये जान भुझ कर किया है।
मामला बिगड़ते देख तीनों मुझे चलने के लिए बोलने लगे लेकिन मैंने उन्हें 2 मिनट वंही रुकने के लिए बोला ।
ओनर और उसके 4 चमचे मेरे पास आते हुए....
"तुम्हारी ये मजाल, तुम सब गुण्डागर्दी करने आये हो"
मै बिलकुल दोनों हाथों को जोड़े और सर झुकना कर...
"अरे अंकल मुझे माफ़ कर दो ग़लती से हुए" और अगले ही पल सीना चौड़ा करते हुए उसके मुँह पर ₹ 5,000 फेंकते हुए "ये ले उठा लेना एक प्लेट के ₹ 5,000 बहुत होते है" ।
वो बस मुझे घूरते ही रहे, मेरे दिल को कुछ तो सुकून जरूर मिला था, और मन में......., जबतक उस ज़िल्लत का बदला पूरा नहीं होता तुझे मै रोज रोज नए करतब जरूर दिखाउंगा।
कुछ न कुछ तो सुकून जरूर मिला सबको। ऋषभ कुछ बोला नहीं बस गले लग गया और आंखों में आंसू थे उसके ।
फिर हम सब उस दिन रात तक साथ रहे उस दौरान हमने काफी मस्ती की। ऐसा लग रहा था की कब के बिछड़े मिले हो ।
रात के 9 बजे मैं घर पहुंचा और सिमरन को बोलते हुए की मैं ऋषभ के साथ खाना खा चुका हू , अपने कमरे मैं चला जा रहा था तभी सिमरन.....
"बेटू मेरे पास आना"
मै उनकी तरफ मुड़ा स्माइल की और चल दिया अपने रूम। दीदी भी समझ गयी मैं ड्रिंक कर के आया हूँ इसलिए कुछ न कहा बस जाने दिया।
मै अपने रूम मैं पहुंचा तो ख्याल आया की परिधि को अबतक फ़ोन नहीं किया बेचारी ने कब कहा था की कॉल करना ।
मैने परिधि को कॉल लगया....
तिरिंग-तिरिंग, तिरिंग-तिरिंग
परिधि.... जी सर अब फूर्सत हुए।
मैं.... नहीं यार, वो बहुत दिनों बाद सब दोस्तों से मिला तो उसी के साथ था (और जब दोस्तों की बात चली तो एक बार फिर सब याद आ गया)।
परिधि.... सब ठीक तो है ना।
मैं.... हा, तुमने खाना खा लिया क्या?
परिधि..... सच सच बताओ वंहा क्या हुआ।
मैं.... कुछ भी तो नहीं ।
परिधि...... कोई बात नहीं तुम आराम करो मैं कल बात करती हू ।
एक छोटी सी चिट चाट के बाद मैं भी अब आराम करना चाहता था । एक तो अभी भी पैरो में थोड़ी सूजन थी उसके ऊपर 8 घन्टे का सफर, और फिर बियर कुल मिलकर मुझे बिस्तर की तरफ खिंच रहे थे । और गहरी नींद ने मुझे अपने आग़ोश मैं ले लिया।
कहानी जारी रहेगी.....
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