RE: mastram kahani प्यार - ( गम या खुशी )
अपडेट ...48
आज रात आज रात मुझपर बहुत भारी पडने वली थी क्योकि परिधि ही परिधि मात्र खयालो मे थी।
"बीते लम्हों की गुजारिश है , मेरा जीवन तेरे नाम का हो
गुजरे वक्त ने जो हमें मिलाया, उस अहसास का आयाम तो हो।
यु तो मर मिटे तुझपर, तुम्हारी हर अदा और नजर पर
मोहोब्बत की जिस मुकाम पर है, प्यार का ijhar-e-जाम तो हो।
हम खोये रहेते ख्यालो में है , इस प्यार की गहराइयो में
अब है इस दिल की इजहार-e-मोहब्बत कर दू फिर चाहे अंजाम जो हो।
प्यार हो जाता हैँ, दिल हार के गम लेता है
यूं तो तुम्हारी चाहतो में मै ही सुमार हू, पर ये इजहारे -e-मोहब्बत करने की सोच से ही दिल दिल घबरा जाता है।
कल तेरा खयाल तो मुझे पागल सा किये जाती है, तुम ना हो तो तुम ही तुम नजर आती हो।
मैं......... चुप कर पगले रुलायेगा क्या?
ऋषभ.......अपने आंशु पोछते हुए,भाई तू नहीं जानता तू ने क्या की है,मै तो अंदर ही अंदर मर रहा था| पर तूने मेरे बेचैन मन को शांत किया है| उस माँ......द को सबक सीखा कर, थैंक्स यार
मैं........कमीने अब ये क्या हैं,तेरे लिए कुछभी पर थैंक्स बोल कर क्या कहना चाहता है|
फिर दोनों यार गले मिले और अपनी खुसिया{ मुझे परिधि को पाने की तो ऋषभ को रेस्टोरेंट वाले का} जताते हुये गराउंड पर मस्ती के साथ एक्सेरसिज कर रहे थे|
आज ग्राउंड पर किरण नहीं आई थी क्यों की कल उसे अपना टेस्ट देना था सो वो रेस्ट कर रही थी पर रूहीग्राउंड जरूर आई थी अपने समय 5.30 सुबह पर |
रूही सीधे मेरे पास आई और हम दोनों ने गूडमॉर्निंग विश किया.ऋषभ को मैंने रूही से इंट्रोडयूस करवाया पर "man s after all man" ऐसी कातिल हसीना से बात करके दिल भाई का भी डोल गया जिसे हम दोनों मैं और रूही दोनों ही समझ चुके थे
रूही...... {मुझ से}एक व्यग्य भरे शब्दों में, ये तुम्हार हि दोस्त हो सकता है
मैं......हा ये मेरा ही दोस्त है और तुम भी |
बेचारी रूही को अपने व्यंग का जवाब इस तरह से मिलेगा सायद उम्मीद थी फिर वो अपने रस्ते और हम दोनों दोस्त फिर उसी रस्ते धामा चौकडी मचते हुए एक्सेरसिज का लुत्फ़ उठाते हुये |
सुबह 7 बजे मैं घर पहुचा ,घर पर अस उसवल अलिश दी हॉल मे मिली मै अपनी खुसी मे चूर दीदी के पीछे से गले लग गया।
दीदी ......बेटू आज ग्रांड पार्टी बनती हैं, आज मै शॉपिंग करुँगी और तु पार्टी भी दे रहा है। हे भगवान अब ये क्या हैं, मैं आज परिधि को प्रोपोज़ करने वाला हूँ,कहि पेपर मे तो नहीं आ गया,या इसे सपना तो नही आया था।
मै...... क्या दीदी आपको कैसे पता चला,अब तक तो मैंने किसी को नहीं बताया।
दीदी -मुझे आगे करते हुये मेरा माथे को चुमती हुए बोली....."भाई इस न्यूज पेपेर मे तुम ही तुम छाए हुये हो"
क्या? सच मुच मे तो नहीं छप गई, अलीशा की खुसी देखकर तो लगता हैं जरूर छपी होगी।मै हड़बड़ी मे पेपर देखि और जोर से गले लग गया अलीशा के ,आज एक बार फिर मै अपने जिले का टॉपर था और 1th रैंक इन 12th एग्जाम।
पर ये ख़ुशी भी उस खुशी के मुकाबले भुत ही कम थी,यू कहा जा सकता है न के बराबर।
अलीशा....बेटू तू सच सच बता की तू खुस क्यो था मुझे लगा की तुने एक बार फिर टॉप किया हैं इस लिए इतना खुश था पर तुझे देखकर लग रहा है की तुम्हें अभी अभी न्यूज़ पता चली है 12th टॉपर हों।
अब अलिशा से क्या छिपाना, मै अलिशा को सब सच सच बता दिया अब तो हम दोनों भाई बहन की खुशी दोगोनि हो चुकी थी।
वैसे भी मैं अलिशा को सब सच ही बताने वाला था,क्योंकि उसी ने तो मुझे आगे का रास्ते को तय करने में मदद की थी।
अलिशा....."बेटू तेरा प्लान क्या हैं कैसे प्रोपोज़ करने वाला हैं परीधि को"
मैं...... दीदी मै अभी 10.30am पर dhehli की फ्लाइट लूंगा और परिधि का इंतजार,यदि वो मुझसे मिलने आई तो मै उसे परपोज़ कर दूंगा और नही आयगी तो मै इसे एक तरफा मान कर उसका प्यार दिल मे समेटे हुये अपनी राहों में बढ जाऊंगा। पर वो न आये ऐसा कभी नहीं होगा उसे आना ही हैं मेरे पास।
अलिशा .....चुटकी लेते हुये, हाँ हाँ! फोन पर किसी को इन्फॉर्म कर दो, तो वो क्यों न बताये पते पर पहुँचे।
मैं.... नहीं दीदी मैंने कल शाम से ही फोन स्विच ऑफ कर दिया हैं, उसे तो पता भी नहीं मै देहली जा रहा हूँ।
अलिशा .....पर बेटू वो तुझे देहली मे कहाँ ढूंढेगी,प्लीज् ऐसा मत कर मुझे डर लग रहा हैं तू उसे बता क्यों नहीं देता।
मैं...... नहीं दीदी ये मेरे विश्वास और उसके प्यार का इम्तिहान हैं प्लीज़,और हाँ आप परेशान न हो क्योंकि सच्चे प्यार की हार नही होति और जो हार गया वो प्यार सच्चा नहीं होता।
मेरी बातें सुन के दीदी मुझे गले लगाते हुये प्यार से....मेरा कितनी बड़ी बातें बोल रहा हैं,सुन अब हमें भूल मत जाना।
मैं....... क्या दीदी आप भी न ये अलग हैं और वो अलग। आप को क्यों लगता है मैं भूल जाऊंगा आप लोगों को,ऐशा तो इस जीवन मे सम्भव ही नहीं। चलो अब मुझे छोड़ो आपके साथ यु ही बातों मे उलझा रहा तो मैं यही रह जाऊंगा।और हा आप सबको मैनेज कर लेना मै शाम तक वापस आ जाऊंगा।
अलिशा .....हाँ जा मैं तैयार हूँ शूली पर लटकने के लिये,बेटू ध्यान से जाना और हाँ भाई 5pm तक किसी भी हालात मे तू मुझसे कांटेक्ट करेगा नहीं तो बोल देती हूँ मैं तेरे से बहुत नाराज हो जाऊँगी और कभी नहीं बात करुँगी तेरी कसम खाती हूँ।
मैं......एक्टिंग के साथ, "ना अलिशा ना" तेरा भाई तेरी बात जरूर मानेगा।
अलिशा हँसते हुये .."अब जा तैयार हो जा और जित के आना बेस्ट ऑफ़ लक"
मैं जल्दी जल्दी फ़्रेश होकर रेडी हो गया और मै अपने प्यार का दिया प्यारा गिफ्ट पहन कर तैयार हो गया। मै जब तैयार हो के हाल के तरफ पहुचा तो मेरे घर के लोग मेरे स्वागत मे खड़े थे।मै मोम-डैड से आशिर्वाद लिया फिर सबसे बैठकर नास्ते के साथ बाते चलती रही।
मोम-डैड जहाँ मेरे फ्यूचर प्लान के बारे में पूछ रहे थे,वही मरीना और सुनैना ये जानने मे लगे हुये थे की उसका भाई उसे क्या गिफ्ट देने वाला है और इधर मेरे दिल की हालत न काबिले बयाँ थी। मन सोच रहा था की कैसे निकाला जाए यहाँ से,की तभी अलिशा ने मेरी परेसानियो को समझते होये मुझे वहाँ से निकाल,बोली...."बेटू सब बाद मे तुझे नीरज (मौसी का बेटा) से मिलान है आज, तू अभी जा जल्दी"
मै .....जी दीदी बोलते हुए उनको सवालिया निगाहों से देखा की नीरज भईया क्यों कहा यदि किसीने फोन किया रो पकडे जायेगें
दीदी को उम्मीद थी मेरी इस तरह रिएक्ट करना, इसलिये उन्होंने अपनी नजरे डाली मुझपर जैसे कह रही हो की चिंता मतकर,खैर मै तो टेंसन फ्री हो गया पर घर के लोग सब हैरान थे कि....
मै अचानक देहली क्यों जा रहा हूँ,और वो भी नीरज भैया के पास मासी के पास सब ठीक तो है ना।
पापा अलिशा से.....बेटा तुम राहुल को देहली क्यों भेज रही हो और क्या बात है? और नीरज को कोई बात थी तो मुझे क्यों नहीं बताया?
दीदी ......पापा कोई चिंता की बात नहीं है नीरज को चौहान अंकल से मिलना था अपने प्रोजेक्ट के सिलसिले में इसी लिए राहुल को बुलाया है।
पापा ने मुझे फिर कुछ पैसे दिये, फ्लाइट से ही जाने और शाम को जल्दी लौटने को बोले, अंततः मै अपने चिड़ियाघर से आजाद था और वे टू दिल्ली।
जैसे-जैसे मैं दिल्ली की और बढ़ रहा था मेरे अरमानों को पंख मिल गए हो, मेरे अरमान तो जैसे आसमान से भी ऊपर उड़ने लगे थे।
आज उफ़्फ़ परिधि से मिलने के ख्याल से ही मेरे शरीर में सीहरन पैदा हो रही थी।
मैं दिल्ली एयरपोर्ट रवाना हुआ अपने उस खास कॉफी शॉप की ओर जहां हम अपने कुछ हसीन लमहे बिताए थे। खयाल रहना था कि परिधि कब मिलेगी बस उससे मिललु मेरे लिए ये खयाल ही काफी था। उसका कयामत तक इंतजार करने के लिए।
11:30 बजे तक मैं कॉफी शॉप पर पहुंच गया, लेकिन पहुंचा तो मैं बिल्कुल ही स्तब्ध रह गया, वहां केवल एक ही टेबल लगी हुई थी और जैसे ही मैं एंट्री की शॉप में तो मैं हैरान हो गया।
दो बार आंखें भी मिजी, खुद को चिमटी भी काटी पर मुझे ऐसा लग रहा था कि सामने लहंगे में मेरी आत्मा परिधि खड़ी हैं, पर न तो उसमें कोई हलचल थी और ना ही कोई भाव।
मैं हैरान खड़ा उसे देखता रहा बहुत ही मनमोहक दृश्य था, जैसे कि प्यासे को कोई झील दिखाई दी हो, जैसी तड़पती धूप से जल रही धरा पर बारिस की बूंद गिरी हो,एक निर्मल अहसास जिसका वर्णन किसी भी सब्दो में कर पाना बिल्कुल उसे छोटा साबित करने के बराबर हो।
मैं एक टक परिधि को देखता रहा और कदम बढ़ तो रहा था उसी ओर किंतु ऐसा महसूस हो रहा था मानों मै चाह कर भी कदम बढा ना पा रहा हूँ।
मुझे आज परिधि कुछ ज्यादा ही प्यारी लग रही थी, पर परिधि का यहां होना अपने आप में कल्पना थी, कल्पना ही सही मैं धीरे कदमों से पहुंचा बस लालसा से की शायद मेरी जान हो।
मैं जैसे ही उसके नजदीक पहुंच गया और जैसे ही उसे छूने की कोशिश की........
थप्पड़..... एक थप्पड़ मेरे गाल पर और मै अपनी कल्पना से बहार होते हुऐ.. आऊच!!
यह सच में मेरी जान थी जिसमें अभी अभी मुझे एक चांटा रसिद किया था, मैंने कहा,..
"आऊच!! क्या तुम कराटे प्रैक्टिस करती हो पूरा जबड़ा सुजा दिया "
परिधि ने कोई जवाब नहीं दिया बस मुझ से लिपट कर मेरी बाहों में रोने लगी। मैं उससे प्यार से उसके सर पर हाथ फेरता रहा।उसके लटों को बार बार ऊपर करते रह।अब वो चुप थी और हम दोनों शांत।
हम दोनों शांत से दूसरे की बाहों में लिपटेरहें, बस एक दूसरे को महसूस करते हुए अपने जिंदा होने का अहसास करते हुए, एक अलग ही खूमारी हमारे बिच थी। यह प्यार की ख़ुमारी थी जिसे हम एक दूसरे को महसूस के जा रहे थे।
हम दोनों इस कदर खो चुके थे की बाकि सब मिथ्या और सत्य केवल एक हमारा प्यार।कितनी देर इस एहसास के साथ लिपटे रहे पता ही नहीं पर हमारी एकाग्रता को भंग करते हुए हमारे पीछे से आवाज आई.....
"ये तुम दोनों पब्लिक प्लेस मे रोमांस करना बंद करो,कुछ तो शर्म करो बेशर्मो हमे इन्विते करके अपने मे ही लगे हुये हो।हम दोनों अपनी खुमारी सेबाहर आये मूड कर देखा तो ये शिम्मी (परिधि की दोस्त)थी।परिधि अपनी नजर नीची किये चुपचाप अपनी टेबल पर बैठ गई।तबतक..
नीलू परिधि से.....हाय!! मेरी जान..आखिर तूने इसे उड़ा ही लिया,अब तो ये तेरा है पर कभी कभी मुझसे भी शेयर कर लेना।
परिधि जो अबतक शांत थी......चुप कर ऐसा हमारे बिच कुछ भी नहीं हम शिर्फ अच्छे दोस्त हैं।
अंजलि .......तो ठीक है मेरी रानी तू इस bf मटेरियल को दोस्त बना मै इसे अभी परपोज़ करती हूँ।
परिधि के चेहरे के भाव तो जली बूझी एक्सप्रेशन दे रहे थी पर कुछ बोली न बेचारी अपनी सहेलियों को।जबतक मै शांत खड़ा उन त्रिमुरतयो को सुन रहा था।
"देवियों आप अगर कुछ देर अपनी स्वभाव के विपरीत शांत होने की चेष्टा करेँगी तो हृदय मे उठ रहें कुछ भावनाओ को मै परिधि के समक्ष प्रस्तुत करने की चेष्टा मात्र करूँ"
"तीनो एक साथ"...
"अपने पथ पर अग्रसर हो बच्चा बस ये सोच कर की हम याहा नहीं हैं"
परिधि मेरी बातों संजीदा और सरमाई हुई सी नजरे नीचि कर टेबल पर बैठी थी।
अब सिचुएशन ऐसी थी की परिधि अपने नजरें नीचे के हुए कुर्सी पर बैठी हुई है त्रिमूर्तियां हमसे 5 फिट दूर काउंटर से टिक कर नजरें हमारी ओर ही गड़ाये थी और मै परिधि के कदमों के पास आकर अपने घुटनों के बल बैठ कर अपना दायां हाथ टेबल के उपर करते हुये,धड़कते दिल और बढ़ी धड़कनों के साथ.....….......
बस उसी पोजीशन में बिना कुछ कहे बस यूं ही बैठा रहा, शांति घोर शांति छाई थी, कोई बोल निकल नहीं पा रहे थे मेरे जुबान से आधा घंटा यूं ही बैठे रहा और बैठे-बैठे निहार राह परिधि को कि अचानक परिधि ने मेरा हाथ अपने दोनों हाथों में थाम लिया। मुस्कुराते हुए होठों से आवाज आई ...... प्लीज बैठ भी जाओ
मैं परिधि के पास वाली चेयर पर बैठ गया और दोनों हाथों को थामे अब भी परिधि के दोनों हाथों में थी
परिधि..... क्या तुम मेरे अतीत के बारे में कुछ जानते हो? बड़ी मासूमियत के साथ ये सवाल किया, जैसे जानना चाह रही हो कि क्या तुम मुझसे तब भी उतना प्यार करोगे? जब तुम मेरी कहानी जान जाओगे।
मैं...... और जान कर क्या करूंगा?
परिधि..... यू इतना ना प्यार करो कि तुमसे बिछड़ने के नाम से ही जान चली जाए इसलिए पहले ही अतीत के बारे में मैं बता दूं यदि तुम्हारा इरादा बदला तो कम से कम इस ख्याल से तो जी सकूँगी की कभी किसीने मुझसे भी.....
मैं..... इससे कोई फर्क नहीं पड़ता कि तुम्हारे साथ क्या हुआ, प्यार एक विश्वास है और यदि तुम्हें मुझ पर इतना विश्वास नहीं कि तुम्हारी पिछली कोई बात जानने के बाद tumhe भूल सकता हूं तो अब मैं तुम पर छोड़ता हूं।
और अगले ही पल परिधि अपने घुटनों के बल अपने हाथ को मेरे हाथों से थमे और आंखों में आंसू लिए......" तुम मुझे ऐसा ही प्यार करते रहना, तुम्हारा पता नहीं मैं तुम से कितना प्यार करती हूं, जब तुम नहीं होते तो भी लगता है मेरे पास हो। तुम्हारे सिवा मैं कोई भी खुशी की कामना नहीं की, क्या तुम्हें मुझसे".... बस इतना ही बोली कि मैंने उसे अपनी बाहों में भर लिया, अपनी बाहों में कैद करके।
" मैं तुम्हें तुम्हारे जितना चाहता हूं कि नहीं पता नहीं पर तुम बिन मैं जी नहीं पाऊंगा झूट नहीं यूँ तो मैं जिंदा रहूंगा होंटो हाँसी भी रहेगी पर जिंदा रहना भी मेरी एक मजबूरी होगी"
हम एक दूसरे की भावनाओं में बहते चले गए, हमारे प्यार के आंसू हमारे आंखों से छलक चुके थे और दिल को एक असीम सुकून की प्राप्ति हो रही थी।
हमारी शांति को भंग करते हुए सर & मैडम हेलो mr/miss लैला & मजनूं यहां कुछ और लोग भी है जिन्हें आप इग्नोर कर रहे हो। हम एक दूसरे से अलग होते हुए मैं जी मोहतरमा कुछ आदेश करें या दो दिलों के बीच दीवाना बने।
नीलू...... ऐसा है कि राहुल जी अभी आपने परिधि का दिल जीता है, पर जब तक हम आपके प्यार का प्रपोएसल से सेटिस्फय नहीं होंगे तब तक आप के प्यार पर फाइनल मोहर नहीं लगेगी।
मैं....... तो आप देवियों आदेश करें कि मुझे क्या करना होगा?
अंजलि....... कुछ नहीं बस एक बार ऐसा प्रपोज़ करे कि हमारी बन्नो को, कि हमारा दिल खुस हो जाय। यह एहसास हो चले कि आप पर परफेक्ट हैं परिधि के लिए.....
पता नहीं इस परिधि की बच्ची को क्या सूझा हैं की इन तीनों को राहु केतु और शनि की तरह मेरी कुंडली में बिठा देती है अब इन तीनों को कैसे सेटिस्फय करूँ.....
इधर परिधि मेरी हालत जान का मंध मंध मुस्कुरा रहे थी, और आंखों से ऐसे रिएक्ट कर रही थी जैसे बोल रही हो कि..... मुझे माफ कर दो और इधर मैं.....
ये कहाँ फसा दिया जान तुमने...……......
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