RE: mastram kahani राधा का राज
"थॅंक यू डॉक्टर" उसने मेरी हालत का मज़ा लेते हुए मुस्कुरा कर कहा. मैं तो झट वहाँ से घूम कर लगभग भागती हुई कमरे से निकल गयी.
मेरा बदन पसीने से लथपथ हो रहा था. मैं हॉस्पिटल के कॉंपाउंड मे ही बने क्वॉर्टर्स मे रहती थी. मैने नर्स से तबीयत खदाब होने का बहाना किया और सीधी घर जाकर ठंडे पानी से नहाई. मेरा दिल इतनी तेज धड़क रहा था कि उसकी आवाज़ कानो तक गूँज रही थी. मैने फ्रिड्ज से एक चिल्ड पानी की बॉटल निकाल कर एक घूँट मे सारा खाली कर दिया. ठंडा पानी धीरे धीरे मेरे बदन को ठंडा करने लगा. कुछ देर बाद जब मैं कुछ नॉर्मल हुई तो वापस अपनी ड्यूटी पर लौट गयी. लेकिन वापस उस कमरे मे ना जाना परे इसका पूरा ख़याल रखा.
ड्यूटी ऑफ होने के बाद उस दिन जब मैं बिस्तर पर लेटी तो उस घटना के बारे मे सोचने लगी. पूरी घटना किसी फिल्म की तरह मेरी आँखों के सामने चलने लगी. पता नही क्यों मान मे एक गुदगुदी सी होने लगी थी. बार बार मन वही पर खींच कर ले जाता.
किसी तरह मैने अपने जज्बातों पर अंकुश लगाया. लेकिन जैसे जैसे रात बढ़ती गयी मेरा अपने उपर से कंट्रोल हटता गया. आख़िर मैं तड़प कर वापस हॉस्पिटल की ओर बढ़ चली. उस समय रात के 12.30 हो रहे थे चहल पहल काफ़ी कम हो गया था मैं स्टाफ की नज़रों से बचती हुई ओर्तोपेदिक वॉर्ड मे घुसी. अपने आप को लगभग छिपाते हुए मैं जनरल वॉर्ड मे पहुँची. ज़्यादातर पेशेंट सो गये थे. चारों ओर शांति छा रही थी. कभी कभी किसी के कराहने की आवाज़ ही सिर्फ़ महॉल को बदल दे रही थी. मैं वहाँ किसलिए आए? क्या करना चाहती थी कुछ नही पता था. कोई अगर मुझसे वहाँ की मौजूदगी के बारे मे पूछ बैठता तो जवाब देना मुश्किल हो जाता.
मैं इधर उधर देखती हुई आखरी बेड पर पहुँची. मैने उसकी तरफ देखा वो जगा हुआ था. अपनी घबराहट पर काबू पाने के लिए मैने बिस्तर के साइड मे रखा हिस्टरी कार्ड देखने लगी. नाम लिखा था राज शर्मा.
मैने घबराते हुए उसकी तरफ देखा. वो अभी भी उसी कंडीशन मे था. यानी की उसका लंड खड़ा था और वो उस पर अपना हाथ चला रहा था. लकिन उसकी चादर पर एक सूखा हुआ धब्बा बता रहा था की एक बार उसका स्खलन हो चुका था. मैं धीरे धीरे सरक्ति हुई उसके पास पहुँची और उसके बदन का टेंपरेचर देखने के बहाने उसके माथे पर अपना हाथ रखा. कुछ देर तक यूँ ही हाथ को रखे रहने के बाद मैं धीरे धीरे अपने नाज़ुक हाथों से उसके चेहरे को सहलाने लगी.
अचानक चादर के नीचे से उसका एक हाथ निकला और मेरी कलाई को सख्ती से पकड़ लिया. मैने हाथ छुड़ाने की कोशिश की मगर उसका हाथ तो लोहे की तरह मेरी कलाई को जकड़ा हुआ था. हम दोनो के मुँह से एक शब्द भी नही निकल रहा था. इस बात का ख़याल दोनो ही रख रहे थे कि हमारी हरकतों का पता बगल वाले बेड पर सो रहे आदमी को भी नही पता चले. किसी को भी खबर नहीं थी कि कमरे के एक कोने मे क्या ज़ोर मशक्कत हो रही थी.
उसने मेरे हाथ को चादर के भीतर खींच लिया. मेरे हाथ को सख्ती से थामे हुए अपने टाँगों के जोड़ तक ले गया. मेरा हाथ उसके तने हुए लंड से टकराया. पूरे शरीर मे एक सिहरन सी दौड़ गई. उसने ज़बरदस्ती मेरे हाथ को अपने लंड पर रख दिया. मैने अपना हाथ बाहर खींचने की पूरी कोशिश की लेकिन उसकी ताक़त के आगे मेरे बदन का पूरा ज़ोर भी कुछ नही कर पाया. मेरा हाथ सुन्न होने लगा. वो मेरे हाथ को छोड़ने के मूड मे नही था. आख़िर मैने हिचकते हुए उसके लंड को अपनी मुट्ठी मे ले लिया. अब वो मेरे हाथ को उसी तरह पकड़े हुए अपने लंड पर उपर नीचे चलाने लगा. मुझे लग रहा था
मानो मैने अपनी मुट्ठी मे कोई गरम लोहा पकड़ रखा हो. उसका लंड काफ़ी मोटा था. लंबाई मे कम से कम 10" होगा. मैं उसके लंड पर हाथ चलाने लगी. कुछ देर बाद उसके हाथ की पकड़ मेरे हाथ पर ढीली पड़ने लगी. जब उसने देखा की मैं खुद अब उसके लंड को मुट्ठी मे भर कर उसे सहला रही हूँ तो उसने धीरे धीरे मेरे हाथ को छोड़ दिया. मैं उसी तरह उसके लंड को मुट्ठी मे सख्ती से पकड़ कर उपर नीचे हाथ चला रही थी. कुछ देर बाद उसका शरीर तन गया और मेरे हाथों पर ढेर सारा चिपचिपा वीर्य उधेल दिया. मैने झटके से उसका लंड छोड़ दिया. मैने चादर से अपना हाथ बाहर निकाला. पूरा हाथ गाढ़े सफेद रंग के वीर्य से सना हुआ था. उसने मेरा हाथ पकड़ कर अपनी चादर से पोंच्छ दिया. मैं हाथ छुड़ा कर वहाँ से वापस भाग आई. मैं दौड़ते हुए अपने घर पहुँच कर ही सांस ली. मेरे जांघों के बीच पॅंटी गीली हो चुकी थी.
जब वापस कुछ नॉर्मल हुई तो मैने अपने हाथ को नाक के पास ले जा कर सूँघा. उसके वीर्य की सुगंध अभी तक हाथों मे बसी हुई थी. मैने मुँह खोल कर एक उंगली अपनी जीभ से छुआया. उसके वीर्य का टेस्ट अच्छा लगा. मैने पहली बार किसी मर्द के वीर्य का टेस्ट पाया था. एक अजीब सा टेस्ट था. जो मुझे भा गया. फिर तो सारी उंगलियाँ ही चाट गयी. चाटते हुए सोच रही थी कि कितना अच्छा होता अगर उसने मेरी उंगलियाँ अपनी चादर से नही पोंच्छा होता. मैने अपने हाथ को अपने होंठों पर रख कर हॉस्पिटल की ओर एक फ्लाइयिंग किस उछाल दिया.
रात भर मैं करवटें बदलती रही. जब भी झपकी आई उसका चेहरा सामने आ जाता था. सपनो मे वो मेरे बदन को मसलता रहा. रात भर बिना कुछ किए ही मैं कई बार गीली होगयि. पता नहीं उसमे ऐसा क्या था जो मेरा मन बेकाबू हो गया. जिसे जीतने के लिए अच्छे अच्छे लोग अपना सब कुछ दाँव पर लगाने को तैयार थे वो खुद आज पागल हुई जा रही थी.
जैसे तैसे सुबह हुई. मेरी आँखें नींद से भारी हो रही थी. पूरा बदन टूट रहा था. ऐसा लग रहा था मानो पिच्छली रात मेरी सुहागरात रही हो. मैं तैयार हो कर हॉस्पिटल गयी. राउंड पर निकली तो मैं राज शर्मा के बेड तक नहीं जा पाई. मैने स्टाफ को बुला कर उसके बारे मे पूछा तो पता लगा कि वो ग़रीब इंसान है. शायद उसके घर मे कोई नहीं है क्यों की उससे मिलने कभी कोई नहीं आता. किसी आक्सिडेंट मे उसकी टाँगों के जोड़ पर चोट आई थी. वो अभी ट्रॅक्षन पर था और बिस्तर से उठ भी नही सकता था.
मैं चुपचाप उठी और काउंटर पर पहुँच कर उसके लिए डेलूक्ष वॉर्ड बुक किया. वॉर्ड का खर्चा अपनी जेब से भर दिया था. वापस आकर मैने नर्स को स्लिप देते हुए राज शर्मा को डेलक्स वॉर्ड मे शिफ्ट करने का ऑर्डर दिया. नर्स तो एक बार चकित सी मुझको देखती रही. मैने काम मे व्यस्त ता दिखा कर उसकी नज़रों से अपने को बचाया.
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