RE: mastram kahani राधा का राज
"तू भी तो कम नही है. अरुण के साथ तू भी बहुत आँख मटक्का करती रहती है. दिन भर किसी ना किसी बहाने से तेरे घर की ओर भागता था और आधे घंटे से पहले वापस नही आता था. तूने क्या अपनी सहेली को अंधी समझ रखा है."
"बुदमास…..शक्की……" हम दोनो एक दूसरे से लिपटे हुए हंस रहे थे एक दूसरे को चिकोटी काट रहे थे. गुदगुदी दे रहे थे.
खैर रचना अपना सारा समान लेकर हमारे घर पर ही रहने लगी. सामने ही उसके घर का दरवाजा था. दिन मे एक आध बार अपने घर भी चली जाती थी. जिससे अरुण आए तो उसे ऐसा नही लगे कि मकान काफ़ी दिनो से बंद है. राज शर्मा तो बहुत खुश था रचना को अपने साथ पकड़. हम तीनो मिल कर एक फॅमिली की तरह ही रह रहे थे. आग और घी साथ साथ कब तक एक दूसरे को च्छुए बिना रह सकते हैं जब साथ ही उनकी आग को हवा देने के लिए मैं मौजूद थी. अक्सर हम दोनो की ड्यूटी अलग अलग शिफ्टों मे रहती थी. हम दोनो मे से एक घर पर रहता. सुबह के अलावा जब मेरी ड्यूटी शाम की या रात की होती तो राज शर्मा रचना के साथ ही रहता. जब पहली बार मेरी नाइट शिफ्ट हुई तो रचना अपने मकान मे सोने के लिए जाने लगी तो मैने ही उसे रोक दिया.
"यही सो जा ना. राज शर्मा तो अपने बेडरूम मे सोएगा. तुझे उसके साथ सोने के लिए थोड़ी कह रही हूँ. क्यों राज ? मेरी सहेली के साथ किसी तरह की छेड़ चाड तो नही करोगे ना?" मैने राज शर्मा की ओर देखा उसे भी अपनी ओर मिलाने के लिए.
"हां हां रचना तुम अपने बेटे के साथ उस बेडरूम मे सोजाना और अगर डर लगे तो अंदर से लॉक कर लेना. यहाँ रहोगी तो कभी रात मे किसी चीज़ की ज़रूरत परे तो आवाज़ तो लगा सकोगी."
हम दोनो ने अपनी दलीलों से रचना को निरुत्तर कर दिया. काफ़ी समझाइश के बाद रचना राज शर्मा के साथ मेरे आब्सेन्स मे हमारे मकान मे रात को रुकने को राज़ी हुई.
मैने दोनो ओर हवा देना चालू रखा.
"मैं जा रही हूँ ड्यूटी. रात को चुपके से दोनो बेडरूम मे मत घुस जाना. वैसे भी उसका हज़्बेंड तो पास रहता नही है. कभी उसे किसी मर्द की ज़रूरत पड़े तो मेरा शेर तो है ही."
"राधा तू पागल हो गयी है." राज शर्मा ने कहा.
"इसमे पागल होने वाली क्या बात है. तुम उसे पसंद करते हो कि नही?" मैने उसे तब तक नही चोदा जब तक उसने हामी नही भरी.
"और मैं बताती हूँ वो भी तुम्हे उतना ही पसंद करती है. तुम्हारी निकटता को तरसती रहती है. मुझ से खोद खोद कर तुम्हारे बारे मे पूछ्ती रहती है. राज शर्मा जी को क्या पसंद है…राज शर्मा जी
मेरे बारे मे क्या कहते हैं. भाई तुम्हारी आधी घरवाली तो है ही."
वो हँसने लगा. लेकिन धीरे धीरे दोनो के मन मे एक दूसरे के प्रति आग जलती जा रही थी. और मैं इस आग को खूब हवा दे रही थी. रचना अभी बच्चे को दूध पिलाती थी इसलिए ब्लाउस के नीचे ब्रा नही पहनती थी. कभी अनदेखी मे एक दो बटन्स खुले भी रह जाते थे. राज शर्मा उसके झीने ब्लाउस मे कसी चुचियों को नज़र बचा कर निहारता रहता था. मैं उसे ऐसा करते हुए पकड़ लेती तो वो खिसियानी सी हँसी हस देता.
क्रमशः...........................
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