RE: bahan sex kahani दो भाई दो बहन
रिया देख रह थी कि अजीब सी खुशी उसके छोटे भाई के चेहरे पर
छाई हुई थी.
"आज पता नही क्यो में बहोत खुश हूँ, तुम मुझसे आज कुछ भी
बाँट सकते हो, अपनी हर ख्वाइश हर ख़याल" रिया ने कहा,
"सच मे रिया आज में अपनी वो ख्वाइश पूरी करना चाहता हूँ जो पूरे
हफ्ते से में तुम्हे लेकर देख रहा हूँ."
"में कुछ समझी नही." रिया ने कहा.
"अभी समझ जाओगी." कहकर जय ने दो तकिया बिस्तर पर से उठाए
और रिया को पेट के बल लिटाते हुए वो तकिये उसके पेट के नीचे लगा
दिया. ऐसा करने से रिया की चूतड़ हवा मे उठ गये थे और उसकी
चूत और गंद का छेद सॉफ दिखाई दे रहा था.
जय उसके उपर लेट गया और धीरे से उसके कान मे कहा, "अब तुम्हे
मज़ा आएगा रिया जब तुम ये नही जानती होगी कि मेरा लंड तुम्हारी
गंद मे घुसेगा की तुम्हारी चूत मे... है ना अजीब खेल"
जय की बात सुनकर रिया के बदन मे भी एक अजीब मस्ती भर गयी. वो
सोचने लगी सही मे क्या अजीब खेल है कि उसे खुद नही मालूम होगा
की लंड कौन से छेद मे आएगा.
जय ने पहले उसकी चूत और गंद के छेद को थोड़ा सहलाया फिर अपने
लंड को उसकी चूत के द्वार पर रख कर धीर धीरे अंदर घुसाने
लगा.
"उः उईईईईई" वो सिसक पड़ी.
जय ने एक धक्का मार अपने लंड को बाहर निकाल लिया, रिया सोच मे पड़
गयी कि पता नही अब ये कौन से छेद मे घुसेगा पर जय ने वापस
अपने लंड को उसकी चूत मे घुसा दिया. उसकी चूत उत्तेजना मे बह
पड़ी, दो तीन धक्कों के बाद उसने फिर अपने लंड को बाहर खींच
लिया.
जय अब उसकी चूत से बहते रस से अपने लंड को गीला कर उसकी गंद के
छेद पर अपने लंड को रगड़ता हुआ उसके छेद को गीला कर रहा था.
रिया को लगा कि अब जय अपना लंड उसकी गंद मे डालेगा लेकिन रिया की
सोच के विपरीत उसने अपन लंड एक बार फिर उसकी चूत मे पेल दिया.
"रिया मुझे यहाँ से तो दिखाई नही देगा लेकिन तुम अपनी चुचियों
से खेलो, अपने निपल को भींचो....मेने देखना चाहता हूँ तुम्हे
अपने आपसे खेलते हुए." जय ने उसकी चूत मे धक्के मारते हुए कहा.
रिया ने खिलखिलाते हुए अपने दोनो हाथ अपनी छाती के नीचे किए और
अपने दोनो निपल को उंगलियों मे ले भींचने लगी, अब वो अपनी
चुचियों को मुठ्ठी मे भर मसल रही थी.
जय अब ज़ोर के धक्के मार रहा था. बिना रुके वो ज़ोर से और अंदर ताल
डालते हुए उसे चोद रहा था. एक नई उत्तेजना रिया के शरीर मे भरती
जा रही थी, उसका बदन अकड़ रहा था.
"ओह जय चोदो मुझे ओह हाआँ ज़ोर से और जोए से.. ओह कितना
अच्छा लग रहा है... चोडओवू और चूओड़ो
पर जय था कि आज वो रिया को पागल कर देना चाहता था, एक बार फिर
उसने अपना लंड उसकी चूत से निकाल लिया. रिया की चूत से छूटे रस
और खुद के वीर्य से भीगे अपने लंड को वो एक बार फिर रिया की गंद
पर घिसने लगा. गंद मे लंड घुसाने से वो डर रहा था...... हर
बार रिया को लगता कि वो अभी घुसाएगा... एक अजीब मस्ती उसकी चूत
और गंद मे फैली हुई थी..... उसे लगा की जय अब लंड उसकी गंद मे
घुसाएगा तो जय ने एक बार फिर अपना लंड उसकी चूत मे घुसा धक्के
मारने लगा.
लंड चूत मे घुसते हुए फिर एक नई मस्ती रिया के बदन मे दौड़
गयी. जय ने अपने हाथ रिया के बदन के नीचे किए और उसके दोनो
हाथ को पीठ पर कर पकड़ लिया. उसने रिया की हाथो को ठीक किसी
घोड़े की लगाम की तरह पकड़ रखा था. जय अब ज़ोर ज़ोर से उसकी
चूत मे धक्के मारने लगा जैसे के किसी घोड़ी की सवारी कर रहा हो.
रिया ने कई बार अपने हाथ छुड़ाने की कोशिश की पर हर बार जय ने
उसके हाथों को कस कर पकड़ लिया. रिया को पता नही क्यों ऐसा लग
रहा था कि उस पर चढ़ा इंसान उसका भाई नही कोई अजनबी है जो
बरसों से उसके सपने मे आ उसे इसी तरह चोद्ता था.
जय ने अपने लंड को एक बार फिर बाहर निकाला और उस बार उसकी गंद के
छेद पर रख ज़ोर लगाने लगा. रिया को लगा कि उसकी गंद फॅट
जाएगी....
'उउईईई माआआ" एक दर्द की सिसकारी उसके मुँह से निकली, उसे लगा
की उसकी गंद फ़ैलते हुए जय के लंड को जगह दे रही है. जय प्यार
से और धीरे धीरे अपने लंड को अपनी बेहन की गंद मे घुसा रहा
था. थोड़ी ही देर मे रिया को मज़ा आने लगा, उसे लगा कि लंड उसकी
गंद मे नही बल्कि उसकी चूत मे है.
आज उसे पता चला की गंद मराने मे भी उतना ही मज़ा आता है. जय
ने उसके हाथों को छोड़ दिया और उसके कुल्हों को पकड़ अब ज़ोर ज़ोर से
अपने लंड को उसकी गंद मे पेलने लगा.
'ओह जे हाआआं फाड़ दो मेरी गाअंड कूऊव ऑश क्या मज़ाअ आ
रहा हाईईइ ऑश हाँ और ज़ोर से ऑश फाड़ दो मेरी गंद आाज."
जय के शरीर मे उबाल आ रहा था और वो ज़ोर ज़ोर से धक्के मारने
लगा. आख़िर उसने ज़ोर का धक्का आर अपना वीर्य अपनी बेहन की गंद मे
छोड़ दिया, जय तब तक धक्के मारता गया जब तक कि उसके अंडकोषों ने
वीर्य की एक एक बूँद ना उगल दी.
दोनो थक कर अलग हो गये....
"क्या तुम्हे कभी पिताजी की याद आती है?" जय ने रिया से पूछा.
"बहोत कम....." रिया ने साफ साफ जवाब दिया, "जय वो इंसान किसी
काम का नही है... उसे याद कर अपना समय बर्बाद मत करो."
रिया को जय पर गुस्सा आ रहा था वो सोने ही जा रही थी जय ने ये
सवाल पूछ लिया था. अब उसके जेहन मे फिर उस नमकूल इंसान की
छवि रहेगी और वो चाह कर भी सो नही सकेगी. एक अंजाने भय ने
उसके ख़यालों ने घेर लिया.... उसे याद आने लगा जब वो फिर से
अपने बाप से मिली थी..........
रिया को फिर एक बार जय पर गुस्सा आ रहा था, जिन बातों को वो याद
नही करना चाहती थी, जय ने फिर वही विषय छेड़ दिया था... उसके
बाप का. वो फिर उस दिन को याद करने लगी जिस दिन घर से जाने
के बाद पहली बार उसकी अपने बाप से मुलाकात हुई थी.
रिया उन दिनो हाइवे पर बने एक छोटे रेस्टोरेंट कम शॉपिंग स्टोर
मे काम कर रही थी.
"सोचा था कभी मुझसे यहाँ मुलाकात होगी." उसके पिता ने उसे वहाँ
देख कर पूछा .
उसके पिता ने एक फेडेड जीन्स और एक प्लैइन शर्ट पहन रखी थी. वो
उसके भरे और गदराए बदन को घूर रहा था. दुकान की गुलाबी ड्रेस
मे वो बहोत ही सुन्दर दिखाई दे रही थी. उसकी कल्पनाए उसके
ख़याल ज़ोर पकड़ने लगे जो वो रिया के बचपन से जवानी की दौर मे
देखता रहा था.
"पिताजी आप यहाँ," उसकी बढ़ी हुई दाढ़ी और मूछों के पीछे से
अपने पिता को पहचानते हुए उसने कहा.
"काफ़ी बड़ी हो गयी हो?" उसके पिता ने उसकी उभरी हुई चुचियों की ओर
देखते हुए कहा.
"आप यहाँ क्या कर रहे है?" उसने पूछा.
"आज कल में एक ट्रैलोर नुमा वॅन चला रहा हूँ, इससे मेरे रहने का
खर्चा भी बच जाता है. में जानता हूँ कि ये कोई बड़ा काम नही
है फिर भिग़ुज़ारा हो जाता है. मैने तुम्हारी लिए भी कुछ बचा
रखे है."
"मेरे लिए?" उसने चौंकते हुए पूछा.
"हां, तुम हमेशा आगे पढ़ने के लिए कहा करती थी ना." उसने
जवाब दिया, "में जानता हूँ कि में कभी अच्छा बाप नही बन पाया,
पर में तुम्हारे लिए हमेशा सोचा करता था, इसलिए मेने पैसे
बचाने शुरू कर दिए."
"क्या सच मे" रिया ने अस्चर्य से कहा, उसे लगा कि जो आज तक वो इस
इंसान के बारे मे सोचती रही वो कितना ग़लत था.
"तुम्हारी शिफ्ट कब ख़तम होगी?
"करीएब 25 मिनिट के बाद." रिया ने अपनी घड़ी देखते हुए कहा.
"ठीक है फिर तुम्हारी शिफ्ट के बाद हम कुछ बात कर सकते हैं."
उसने कहा.
25 मिनिट तक वो रिया को ग्राहको से बात करते और उनके ऑर्डर का
सामान देते देखते रहा. उसे विश्वास नही हो रहा था कि उसकी बेटी
इतनी बड़ी और सुंदर हो गयी थी. उसकी नज़रें उसका ही पीछा करती,
वो उसके बदन उसकी मसल टाँगे, भरी हुई चुचियों को ही घूरे जा
रहे था.
क्रमशः..................
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