RE: bahan sex kahani दो भाई दो बहन
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गतान्क से आगे.......
रेस्टोरेंट मे आने वाले ग्राहक भी ये जानते थे कि वो रिया को कभी
पा नही सकते पर एक बड़ी टिप का ललाच दे वो उसे ज़्यादा से ज़्यादा
देर अपनी टेबल पर रोक लेते. और इस बात का फ़ायदा उठाते कभी उसकी
हाथों को तो कभी उसकी कमर को छू लेते. कुछ तो उसकी स्कर्ट के
नीचे हाथ डाल उसके चूतदों तक को सहला देते थे. एक ग्राहक ने
तो हद ही कर दी थी उसने उसे खींच कर गोद मे बिठा लिया और उसके
गालों को चूम लिया था.
ये सब देख कर आज़य रिया का पिता गरमा उठा. टेबल के नीचे पॅंट
के अंदर उसका लंड उसे तकलीफ़ देने लगा, और रिया को पाने की लालसा
उसके मन मे और जाग उठी.
रिया की ड्यूटी ख़तम हुई तो वो अपने पिता के टेबल की ओर बढ़ गयी,
उसने उसे बैठने के लिए कहा तो वो लकड़ी की बनी कुर्सी पर उसके
सामने बैठ गयी.
"में तुम्हे काम करते देख रहा था, बहोत ही आछे तरीके से काम
कर रही थी तुम." उसने कहा, "और लगता है यहाँ आने वाले सभी
कोई तुम्हे पसंद भी करते है."
"रिया अपनी आँखे घूमा सोचने लगी, "थॅंक्स, लेकिन में सुंदर तो
हूँ लेकिन अगर मेरी जगह कोई भी लड़की ऐसी यूनिफॉर्म मे काम करेगी
तो वो लोग उसे पसंद करेंगे."
"हो सकता है तुम सही कह रही हो. फिर भी मुझे तुम पर नाज़ है."
आज़य ने अपनी बेटी को घूरते हुए कहा.
उसकी बात सुनकर रिया मुस्कुरा दी पर वो शंकित नज़रों से अपने बाप
को देखने लगी. आज जिंदगी मे पहली बार उसने उसके लिए कोई अछी
बात कही थी, उसे डर लगने लगा कि यहाँ आने का उसका कोई और
मकसद तो नही है.
"सॉरी हम बात के विषय से हट गये," उसने कहा, "में तुम लोगों
को छोड़ कर चला गया ये सब के लिए अच्छा ही हुआ, हालत ही कुछ
ऐसे थे कि में तुम लोगों को गुड बाइ नही बोल पाया, तुम्हारी मा
ने माहॉल ही ऐसा बना दिया था घर का."
रिया को बड़ा अजीब लग रहा था कि वो इस इंसान से क्या कहे, जो एक
दिन अचानक ही उन्हे छोड़ कर गायब हो गया था और आज अचानक किसी
भूत की तरह उसके सामने आ खड़ा हो गया था.
रिया के मन मे इस इंसान के लिए कोई लगाव या अप्नत्व नही था और
जो कुछ इज़्ज़त उसके मन मे अपने बाप के लिए थी वो बरसो पहले
ख़तम हो चुकी थी. अगर उसके मन कुछ था तो वो था उसका गुस्सा और
डर जिसकी बदौलत वो घर के हर प्राणी पर हुकुम चलता था.
थोड़ी देर चुप रहने के बाद उसने अपने हाथ मे अपनी बेटी रिया का
चेहरा लिया और उसके होठों को हल्के से चूम लिया, "अपने उन्नीसवे
जनमदिन की बधाई हो. में जनता हूँ कि कुछ महीने लेट हूँ फिर
भी मुझे याद है... है ना."
उसे विश्वास नही हो रहा था कि ये बाप जिसने उसे कभी बेटी नही
समझा उसका जनमदिन भी याद रख सकता है. "थॅंक यू डॅडी."
"क्या तुमने कॉलेज जाना शुरू किया?" उसने पूछा.
"में यहाँ फुल टाइम जॉब कर रही हूँ और एक एक पैसा अपनी पढ़ाई
के लिए जमा कर रही हूँ." उसने जवाब दिया. "अगले साल में
दाखिला ले लूँगी, तब तक अच्छे पैसे जमा हो जाएँगे, यहा टिप
अच्छी मिलती है."
आज़य अपने सामने रखी कोफ़ी के सीप लेने लगा. उसने अपनी नज़रें
घूम कर रेस्टोरेंट मे बैठे ग्राहकों को देखने लगा, सभी उसकी
सुंदर बेटी को देख रहे थे. उसने अपनी नज़रें फिर रिया के सुंदर
चेहरे पर कर दी, और अपना हाथ टेबल के नीचे कर उसकी नंगी
जांघों पर रख धीरे धीरे सहलाने लगा.
एक अजीब सी सनसनी दौड़ गयी रिया के शरीर मे लेकिन उसने वो हाथ
हटाया नही, "इस बढ़ी हुई दाढ़ी मुछ मे आप कितने अलग अलग दीखते
है." जब आपने मुझे चूमा तो आपकी मुछ मुझे गढ़ रही थी."
"में इन्हे बढ़ाना नही चाहता था लेकिन अगर तुम सड़क पर हो तो
हालात मजबूर कर देते है," उसने जवाब दिया.
वो उसकी आँखों मे झाँकते हुए अपने हाथ को उपर की ओर बढ़ाता रहा
और जब उसके हाथों ने उसकी पॅंटी की एलास्टिक के अंदर हाथ डाला तो
वो उछल पड़ी, एक शीत लहर दौड़ गयी उसके शरीर मे. वो उसके
पॅंटी की एलास्टिक से खेलता रहा और उसकी मुलायम चॅम्डी को सहलाता
रहा.
दोनो एक दूसरे की आँखों मे देख रहे थे कि आज़य का हाथ उसकी
जांघों के बीच पहौन्च गया.
उसके हाथों ने जैसे उस पर कोई जादू कर दिया हो ना चाहते हुए
उसकी टाँगे अपने आप खुल गयी और उसकी उंगलियाँ उसकी चूत के किनारे
को छूने लगी.
उसे पता था कि जो रहा है वो ग़लत है, दिमाग़ के किसी कोने से
आवाज़ आ रही थी कि वो इसे रोक दे पर दिल था कि ना जाने किस भावना
मे बहा हुआ था. पिता की जुदाई कर दर्द अब भी उसके सीने मे था,
हर लड़की को अपने बाप का साथ चाहिए, और रिया को अपने बाप की
काफ़ी ज़रूरत थी.
"क्या आज भी तुम पापा की वही पुरानी रिया हो? उसने प्यार भरी आवाज़
मे पूछा.
"रिया का चेहरा खुशी से उछल पड़ा और होठों पर एक मीठी मुस्कान
आ गयी, आज वो अपने पिता के साथ थी एक इंसान के साथ, एक जानवर
के साथ नही जो वो कभी बन गया था. "हाँ डॅडी में आज भी
आपकी वही प्यारी रिया हूँ, आप कहाँ चले गये थे मुझे छोड़ कर?
"में बहोत प्यार करता हू तुमसे...." कहकर उसने रिया को अपनी ओर
खींचा और उसके होठों को एक बार फिर चूम लिया.
इस प्यार ने रिया के दिल मे एक अजीब सी खुशी भर दी थी. उसने रिया
को अपने से अलग किया, "चलो में तुम्हे अपना वॅन दिखाता हूँ,
यहीं पास मे है."
रिया के दिमाग़ ने एक बार फिर उसे आगाह किया कि अब भी समय है वो
पीछे हट जाए, पर दिल था की मानने को तैयार नही था. वो अपने
पिता के साथ रहना चाहती थी, उसके प्यार को पाना चाहती थी जिसके
लिए वो बरसों से तड़प रही थी.
आज़य ने टेबल पर बिल के पैसे छोड़े और रिया का हाथ पकड़
रेस्टोरेंट के बाहर आ गया. रिया उसके हाथो मे हाथ डाले चल रही
थी. वहाँ पर खड़ी कई ट्रक और कारों को पार करते हुए वे उसकी
वॅन के पास आ गये
आज़य ने पॅसेंजर साइड का दरवाज़ा खोला और रिया की वॅन मे चढ़ने मे
मदद करने लगा. रिया की छोटी ड्रेस उपर चढ़ते समय जब उपर
हुई तो उसकी नज़र रिया की भरे हुए चूतदों पर पड़ी और साथ ही
उसकी निगाह उसकी पॅंटी पर गयी जहाँ एक धब्बा सा बना हुआ था.
"ओह्ह्ह्ह कितना अछी तरह से डेकरेट किया हुआ अंदर से," रिया वॅन के
अंदर की सुंदरता देखते हुए बोली.
"हाँ ये मेरा घर ना होते हुए भी घर है, एक चलता फिरता घर."
उसने कहा.
थोड़ी देर वॅन का निरक्षण करने के बाद वो एक छोटे से पलंग या
दीवान की ओर बढ़ गयी. दीवारों पर कई तस्वीरे लगी हुई थी.
"डॅडी! ये तो सब मेरी तस्वीरे है," दीवारों पर टेप सी चिपकी
तस्वीरों को पहचानते हुए बोली.
"मेने तुमसे कहा था ना कि तुम मेरी प्यारी गुड़िया हो." उसने कहा.
आज़य की बातों ने जैसे उसके दिल को छू लिया था, जिस इंसान को वो
नफ़रत करती थी आज उसी के लिए उसके दिल मे प्यार उमड़ पड़ा, "सही
मे में हूँ?"
उसने एक तस्वीर की ओर इशारा किया जिसमे वो और रिया घुटनो तक पानी
मे समुद्र मे खड़े थे, लहरें उनके पावं को छू कर लौट जाती.
उसने एक बिकिनी पहन रखी थी और सूरज की चमकती धूप मे उसका
बदन चमक रहा था.
"हाँ ये उस समय की तस्वीर है जब आप हमे गोआ ले गये थे," उसने
याद करते हुए कहा, "मुझे बहोत मज़ा आया था वहाँ लेकिन पानी
कितना ठंडा था है.. ना."
"तुम उन छुट्टियों को लेकर कितनी खुश थी ना." आज़य ने उसे याद
दिलाते हुए कहा.
"आप बहोत बदल गये है?" रिया उसके मधुर जाल मे आसानी से
फस्ते हुए बोली.
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