RE: bahan sex kahani दो भाई दो बहन
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गतान्क से आगे.......
दोनो की साँसे तेज हो चली थी और दोनो झड़ने की कगार पर थे.
रिया नीचे झुकी और अपन चुचि को अपने पापा के मुँह मे दे दिया. आज़य
ने भी उसके निपल को मुँह मे भर चूसने लगा.
ऑश पापा हाँ खा जाइए मेरी चुचि को ऑश हां मारो मेरी चूत
ज़ोर से ऑश हाअ और अंदर तक दूऊ ऑश में तो गयी...." और उसकी
चूत ने पानी छोड़ दिया.
आज़य ने भी अपनी कमर उपर तक उठा अपने लंड को और अंदर तक
धकेलते हुए पानी छोड़ दिया. रिया की चूत से उसके पानी और पापा के
वीर्य की मिश्रित धार बह रही थी, वो उसकी छाती पर गिर गहरी
साँसे लेने लगी.
शरीर की काम अग्नि शांत हुई, दिल की चाहत ठंडी पड़ गयी और
दिमाग़ पहली बार दिल पर हावी होने लगा.
"ये मेने क्या कर डाला," उसने अपने आपसे पूछा.
"मेने इन्हे क्यों ऐसा करने दिया? वो नींद मे बड़बड़ा उठी, जय उसकी
बगल मे गहरी नींद सोया हुआ था.
"मेने इस जानवर को कैसे दुबारा अपनी जिंदगी मे दाखिल होने
दिया," उसने अपनी आँखों से बहते आँसुओं को पौंच्छा, उसे अहसास हुआ
जो कुछ उस दिन हुआ वो उसकी ग़लती नही थी. वो बकरी की खाल ओढ़े
एक भेड़िया था जिसने उसे अपनी बातों से बहका और फुसला लिया था.
आख़िर जो कुछ हुआ रिया ने उसे स्वीकार कर लिया और पक्का मन बना
लिया कि फिर वो उसे अपनी जिंदगी मे दाखिल नही होने देगी. उसने अपने
बगल मे लेटे अपने भाई जय पर निगाह घुमाई फिर अपनी आँखों से
बहते आंशुओं को पौछ सो गयी.
सुबह का सूरज उग चुका था और अपनी रोशनी चारों तरफ फैलने
लगा था. सूरज की किर्ने कमरे के पर्दों से होती हुई कमरे को उजाले
से भरने लगी जिसमे रिया और जय एक ही बिस्तर पर सो रहे थे. आज
से पहले कभी दोनो पूरी रात साथ सोकर नही गुज़ारी थी.
पीछले कई सालों मे वो एक दूसरे को अछी तरह समझ चुके थे
थे. उन्होने कभी इस बात की परवाह नही की कि उनके रिश्ते को लेकर
समझ क्या कहेगा या फिर अगर मा को पता चला तो वो क्या कहेगी.
दरवाज़े पर हुई आहट ने रिया की नींद खोल दी. उसने जल्दी से अपने
शरीर को कंबल से ढका और अपने बगल मे लेटे अपने भाई जय को
देखने लगी.
जैसे ही दरवाज़ा खुला उसकी तो जैसे सांस ही हलक मे अटक गयी.
झटके से दरवाज़ा खुला और उसकी मा हाथ मे कपड़ों के बाल्टी लिए
कमरे मे आ गयी. उसने बाल्टी को नीचे रखा और अचानक उसकी नज़र
रिया पर पड़ी.
"ये क्या है? उनकी मा अस्चर्य भरे स्वर मे कहा, "तुम यहाँ इसके
कमरे मे क्या कर रही हो?
थोड़ी ही देर मे कमरे मे बिखरे दोनो के कपड़े देख उनकी मा के
समझ मे सब आ गया. उनका चेहरा गुस्से से लाल होने लगा.
"तुम दोनो समझते क्या हो अपने आप को? कोई लाज शरम है कि नही
है, मुझे तो देख कर और सोच कर ही तुम दोनो से घृणा होने लग
रही है. " उनकी मम्मी गुस्से से बोली," तुम दोनो की आज की हरकत
देख मुझे लगता है कि तुम दोनो की इस घर मे कोई ज़रूरत नही है
निकल जाओ हमारे घर से तुम दोनो अभी की अभी और कभी लौट कर
वापस मत आना."
मम्मी की बात सुनकर रिया गुस्से से बिस्तर से उठी. "आप हमे क्या
समझती है, पहले तो पापा के साथ ऐसा व्यवहार करती रही. उन्हे
जाने से रोकने के बदले आप चुप चाप बैठी रही. आपने हमे जनम
ज़रूर दिया होगा लेकिन आप हमारी मा कभी नही बन सकी. मुझे कई
बार अपनी जिंदगी मे आपकी जारोरत पड़ी लेकिन आपको मेरे लिए समय
ही नही था. आप ने जय की मा बनने की कोशिश ज़रूर की लेकिन आप
बन ना सकी, बल्कि आपकी जगह मेने उसे मा बनकर उसका साथ दिया.
इससे पहले कि आप हमारे बारे मे कोई राई कायम करे आप अपने आप को
आईने मे देख लीजिए, ना आप पत्नी बन सकी ना ही आप अपने बच्चो
की मा बन सकी."
रिया ने ज़मीन पर बीखरे कपड़ों मे से अपने कपड़े उठाए और पहन
लिए. जय भी उठ चुका था और लेटा हुआ अपनी बेहन को और अपनी मा
को देख रहा था जो दरवाज़े पर खड़ी थी.
"जय उठो यहाँ से और अपना समान पॅक करो, अभ यहाँ पर हमारी
ज़रूरत नही है," रिया ने अपनी मम्मी की ओर देखते हुए कहा. "हम
यहाँ से कहीं दूर जाकर अपनी जिंदगी नये सीरे से शुरू करेंगे."
"में क्या कर सकती थी? उसकी मा रोते हुए बोली, "तुम्हारे पिता ने
कभी इस घर को अपना घर नही समझा, हमेशा एक अजनबी की तरह
रहे वो घर मे. उनके जानवर जैसे व्यवहार के आगे हम कर भी क्या
सकते थे?"
रिया ने अपने आँसुओं को रोकने की बहोत कोशिश की लेकिन वो रोक ना
पाई. अब भी दिल के किसी कोने से वो अपनी मा को प्यार करती थी,
लेकिन फिर भी जो कुछ हुआ उसके लिए वो अपनी मा को कभी माफ़ नही
कर सकती थी, "आख़िर तुम उन्हे रोकने की कोशिश तो कर सकती थी."
जब रिया घूम कर आल्मिराह से अपने और जय के कपड़े निकाल कर बिस्तर
पर रखने लगी तो उनकी मा वहाँ से चली गयी. जय पलंग से उठा
और वही कपड़े जो उसने रात को पहन रखे थे पहन कर तैयार हो
गया.
"जय इन सब समान को दो तीन बॅग और कार्टून मे पॅक कर लो." रिया
ने कहा.
"लेकिन हम जाएँगे कहाँ? उसने रिया से पूछा.
रिया ने अपने भाई की तरफ देखा और मुस्कुरा कर बोली, "चिंता मत
करो, सब ठीक हो जाएगा, में तुम्हारा ख्याल रखूँगी और तुम मेरा
ख्याल रखना."
थोड़ी देर बाद जय स्टोर रूम से दो बड़े कार्टून ले आया. रिया अपने
और जय के कपड़ों को अछी तरह समेटने लगी. फिर कमरे मे नज़रें
घूमाने लगी कि कहीं कुछ छूट तो नही गया.
"तुम समान पॅक करो." रिया ने कहा, "में अभी आती हूँ."
रिया अपने कमरे से निकल कर नीचे हाल आ गयी. जिस घर को उसने
बचपन से अपना समझा था पता नही क्यों आज वो एक पराए घर
जैसा लग रहा था. पुरानी यादें पुरानी बातें, इस घर मे बीताए
हुए लम्हे उसकी आँख मे फिर आँसू ले आए. उसने बहोत कोशिश की
लेकिन फिर चंद कतरे आँखेओं से बह ही गये. उसके कानो मे अपने
बाप की आवाज़ अभी गूँज रही थी.
"तुम पापा की प्यारी गुड़िया हो ना?"
रिया को लगा कि इन आवाज़ों से उसके कान फॅट जाएँगे, उसने अपने दोनो
हाथ कानो पर रख दिए और एक कुर्सी पर बैठ गयी, आँसू तर तर
उसकी आँखों से बह रहे थे.
"तुम अपने पापा से प्यार करती हो ना?"
"वो मेरी ग़लती नही थी, तुम ही वहशी जानवर बन गये थे," वो ज़ोर
से चिल्लाई जैसे की अपने कानो मे गूँजती आवाज़ को अपने से दूर
भागना चाहती हो जो चाह कर भी उसके कानो से नही जा रही थी.
"मेने कुछ पैसे तुम्हारे लिए भी बचा कर रखे है,"
"वो मेरी ग़लती नही थी," वो एक बार फिर ज़ोर से चिल्लाई. हराम जादे
वो मेरी ग़लती नही थी, तुमने मुझे इस्तामाल किया था."
अपने जज्बातों को संभाल वो वापस अपने कमरे मे आई और अपनी
आल्मिराह के लॉकर को खोल उसने वो पैसे निकाले जो वो आज तक वो जमा
करती आई थी.
"क्या तुम तैयार हो?" उसने जय को पूछा.
"हां ऐसा लगता है," जय को अब भी विश्वास नही हो रहा था कि वो
ये घर छोड़ कर जा रहे है.
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