RE: Desi Sex Kahani गदरायी मदमस्त जवानियाँ
अब पहली बार थ्रीसम करने के बाद राज की पुरानी फैंटसी जाग गयी और शायद उसने सोचा आज सुनीता रानी इतनी ज्यादा एक्साइटेड हैं की शायद मान जाए. मेरे बदन पर चढ़कर राज मेरे वक्ष चूसने लगा और मैं अपने दोनों हाथों से दोनों लडकोंके लंडोको सहलाकर खड़ा करने लगी.
राज: "मेरी जान, आज मेरी भी सालों की फैंटसी पूरी कर दे. मुझे तेरी गांड चोदने दे."
मैंने भी बेहोशी से ने अपनी आँखें मूँद ली और कहा, "ले मेरे राजा, तेरे लिए मैं कुछ भी करने को राजी हूँ. ड्रावर से वेसिलीन और कामसूत्र कंडोम निकाल. आज मेरी गांड भी चोद डाल, तेरी इच्छा पूरी करूंगी, भले ही मुझे थोड़ा दर्द सहने पड़े!"
राज ने तुरंत ड्रावर से वेसिलीन की डब्बी और कामसूत्र कंडोम का पैकेट निकाला. पंद्रह मिनट तक मैं घोड़ी बनकर रूपेश का लंड चूसती रही और पूरा समय राज मेरी गांड में वेसिलीन डालकर उसे ऊँगली से ही चोदता रहा. जैसे ही मैंने रूपेश का वीर्य निगल लिया, अपनी गर्दन तकिये पर रक्खी और अपनी गांड को और भी उठा दिया.
अब राज ने अपने लौंडेपर कामसूत्र कंडोम चढ़ाया और मेरी गांड खोलने लगा. फिर धीरे धीरे अपने लंड का सुपाड़ा उस छेद पर रगड़ने लगा. बाजुमें लेटा रूपेश आँखें फाड़ कर यह नज़ारा देख रहा था. आजतक उसने कभी भी किसी औरत की गांड चुदाई नहीं देखि थी.
राज ने धीरे धीरे अपने लंड को मेरी छेद में घुसाना शुरू किया। मैं दर्द के मारे तिलमिला उठी. राज ने और काफी सारा वेसिलीन मेरी गांड की छेद में भर कर फिर से लंड घुसाने की चेष्टा की. लम्बे के साथ काफी चौड़ा होने के कारण अंदर घुसना ज्यादा ही मुश्किल था.
पांच मिनट तक लगातार कोशिश करने के बाद मुझसे दर्द सहने की सारी शक्ति ख़त्म हो गयी.
मैंने राज से कहा, "अब बस करो, यह अंदर नहीं जा सकता. इतना चौड़ा और मोटा लौड़ा मेरी गांड के छेद में नहीं घुसेगा।"
राजने कंडोम उतारकर मेरी चुत को चोदना चाहा मगर अब दर्दके मारे मैं वहां भी बर्दाश्त न कर सकी.
मैंने कहा, "आज की रात रहने दो मेरे राजा, एक दिन लगेगा इस दर्द को काम होने में. कल रात को चुदाई कर लेना!"
मैं पीठ के बल लेट गयी. राज और रूपेश मेरी दोनों बाजू में सो गए.
मुझे बुरा लग रहा था की मेरी थ्रीसम की फैंटसी तो पूरी हुई मगर राज की गांड चुदाई की फैंटसी अधूरी ही रह गयी.
अब आगे की कहानी सुनिए सुनीता की जुबानी.
अगले सात आठ दिन हम तीनोंने थ्रीसम का भरपूर मजा लिया. छुट्टी के दिन तो पूरा दिन और पूरी रात हम सिर्फ सम्भोग का आनंद लेते रहे. खाना भी नजदीक के होटल से मंगाया. अब राज ने एक बार भी गांड चुदाई की बात नहीं छेड़ी. राज सचमुच मुझसे बहुत ज्यादा प्यार करते हैं और मेरी हर ख़ुशी का पूरा इंतज़ाम करते हैं.
जब सारिका को गाँव से वापिस लाने के लिए बात निकली तब रूपेश ने राज से खुद ही कहा, "राज भैया, आप ही छुट्टी के दिन जाकर सारिका को लेकर आ जाओ. बेकार में दो दिन दुकान बंद रखनी नहीं पड़ेगी।"
वैसे तो राज को बस से सफर करना अच्छा नहीं लगता था पर इस बार तो उसे जाना जरूरी था.
मैं और रूपेश उसे मुंबई सेंट्रल स्टेशन पर बस में बिठाकर वापिस आ रहे थे.
तभी रूपेश ने पूंछा, "सुनीता दीदी, चलो आज फिल्म देखकर बाहर अच्छे से रेस्ट्रॉन्ट में खाना खाते हैं."
यह बात सुनकर, मैं ख़ुशी से झूम उठी क्योंकि मेरी भी घर जाकर खाना बनाने में कोई दिलचस्पी नहीं थी.
मुंबई सेंट्रल स्टेशन पर आकर हमने अँधेरी की जगह चर्चगेट जानेवाली लोकल पकड़ ली. सफर के दौरान आज फिर रूपेश ने अपनी मजबूत बाहोंसे दुसरे आदमियोंके धक्कोसे बचाया. मैं भी उसे लिपट कर सुरक्षित अपने आप को महसूस कर रही थी. वो भी मुझे मन ही मन चाहने लग गया था और मैं भी उसे बहुत पसंद करने लग गयी थी. हम दोनों भी अपने अपने पार्टनर से ही सच्चा प्यार करते थे मगर पिछले कई हफ्तोँकि अदलाबदली की चुदाई के बाद स्वाभाविक रूप से हम भी एकदूसरे के निकट आ गए थे.
रूपेश ने इरॉस सिनेमा की टिकटे ली और हम दोनों ने आजु बाजू के ठेलोंपर पकोड़े, भेल और आइसक्रीम खायी. वो बड़े प्यार से मुझे देख रहा था और मैं भी उसकी आँखों में आँखे डालकर नयी नवेली दुल्हन की तरह शर्मा रही थी.
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