Muslim Sex Stories सलीम जावेद की रंगीन दुनियाँ
04-25-2019, 11:50 AM,
#2
RE: Muslim Sex Stories सलीम जावेद की रंगीन दुन�...
चौधराइन
भाग -2 बेला मालिन - गाँव का रेडियो
पण्डित वैद्यराज सदानन्द जी की चुदाई भरे इलाज से बुरी तरह थकी चौधराइन, उन के जाने के बाद सो गई तो उनकी नींद करीब साढ़े तीन बजे दोपहर में खुली । उनका बदन बुरी तरह टूट रहा था । सोचा अब तो सचमुच मालिश करवानी पड़ेगी। कमरे से बाहर आयीं नौकर को आवाज दी,
“बल्लू जा बेला मालिन को बुला ला बोलना मालकिन ने मालिश के लिए बुलाया है।”
बेला मालिन आयी और आंगन में खुलने वाले सारे दर्वाजे बन्द कर चौधराइन को धूप में बैठा आंगन में मालिश(असली वाली) करवाने लगीं। जब चौधराइन मालिश करवाती थीं तो वो सोच रही थी कि पन्डित सदानन्द की मालिश और असली मालिश में कितना फ़र्क है पन्डित सदानन्द साला थका देता है जबकी असली मालिश थकान उतारती है।”
बेला “क्या सोच रहीं हई मालकिन ।
उसी समय घर के मुख्य दरवाजे से “चाची ओ चौधराइन चाची!”
पुकारते हुए मदन अन्दर आया । चौधराइन की साड़ी घुटनों तक ऊपर उठी हुई थी और पिन्डलियाँ दोपहर की धूप की रोशनी में चमक रही थी। ये सब इतना अचानक हुआ कि ना तो चौधराइन ना ही बेला के मुंह से कुछ निकला। कुछ देर तक ऐसे ही रहने के बाद बेला को जैसे कुछ होश आया तो उसने जल्दी से चौधराइन की पिन्डलियों को साड़ी खींच कर ढक दिया। चौधराइन को जैसे होश आया वो झट से अपने पैरो को समेटते झेंप मिटाते हुए बोली,
" क्या बात है मदन, कब आया शहर से।"

अब मदन को भी अपनी गलती का अहसास हुआ और उसने अपना सर नीचे करते हुए कहा,
" दो हफ़्ते हुए, वो पिता जी ने पूछने भेजा है कि उनको चौधरी चचा से कुछ काम है कल घर पर कितने बजे तक रहेंगे ।"

इस बीच माया देवी अब अपने आप को संभाल चुकी थी। उन्होंने सहज हो मदन को देखा और बोलीं – “कल शाम चार बजे से पहले क्या ही आयेंगे तो उससे पहले तो उनसे मुलाकात होनेकी कोई उम्मीद नहीं।तू तो काफ़ी बड़ा हो गया है रे कौन सी क्लास में पहुंच गया ।” 
मदन बताने लगा कि अब वो सत्रह बरस का हो चुका है। बारहवी कि परीक्षा उसने दे दी है। परीक्षा जब खतम हुई तो शहर में रह कर क्या करता?, परीक्षा के खतम होते ही वह गांव वापस आ गया। मोना (चौधराइन की लड़की) उससे एक साल छोटे क्लास में है उसकी परीक्षा अगले महीने है। मैं यहां भी बोर होने लगा था पर गांव के कुछ बचपन के दोस्त मिल गये हैं, उनके साथ सुबह शाम क्रिकेट घुमना फिरना शुरु कर दिया है।”
मदन बता रहा था और चौधराइन देख रही थीं । मदन (मदन) पर नई-नई जवानी चढी है। शहर की हवा लग चुकी है पर पंडिताइन ने गांव से खाने पीने का ख्याल रखा है जिससे बदन खूब गठीला हो गया है।
फ़िर मदन प्रणाम कर वहां से चला गया।
बेला ने झट से उठ कर दरवाजा बंद किया और बोली,
" दरवाजा लगता है, पूरी तरह से बंद नही हुआ था, पर इतना ध्यान रखने की जरुरत तो कभी रही नही क्यों की आम तौर पर तो कोई आता नहीं ऐसे।"

"चल जाने दे जो हुआ सो हुआ अपने सदानन्द का बेटा ही तो है।"

इतना बोल कर चौधराइन चुप हो गई पर बेला एक हरामिन थी उसकी नजरें चौधराइन की नजरों ताड़ रही थी और खूब पहचान रही थीं सो उसने फिर से बाते छेड़नी शुरु कर दी,
“मालकिन अब क्या बोलु, मदन बाबू (मदन) भी कम उस्ताद नहीं है”
बेला को घूरते हुए माया देवी ने पुछा, “क्यों, क्या किया मदन ने तेरे साथ।”
“अरे मेरे साथ नहीं पर…
चौधराइन चौकन्नी हो गई
“हाँ हाँ बोल ना क्या बोलना है”
“मालकिन अपने मदन बाबू भी कम नही है, उनकी भी संगत बिगड़ गई है”
“ऐसा कैसे बोल रही है तु”
“ऐसा इसलिये बोल रही हुं क्यों की, मदन बाबू भी तालाब के चक्कर खूब लगाते है”
“ हो सकता है दोस्तों के साथ खेलने या फिर तैरने चला जाता होगा”
“खाली तैरने जाये तब तो ठीक है मालकिन मगर, मदन बाबू को तो मैंने कल तालाब किनारे वाले पेड़ पर चढ़ कर छुप कर बैठे हुए भी देखा है।”

चौधराइन और ज्यादा जानना चाहती थी, इसलिये फिर बेला को कुरेदते हुए कहा
“अब जवान भी तो हो गया है थोड़ी बहुत तो उत्सुकता सब के मन में होती है, वो भी देखने चला गया होगा इन मुए गांव के छोरो के साथ।”
“पर मालकिन मैंने तो उनको शाम में बगीचे में गुलाबो के ब्लाउज में हाथ घुसेड़ दबाते हुए भी देखा है।”
चौधराइन, “अरे अभी दो ही हफ़्ते तो हुए हैं इसे आये और इसने ये सब कर डाला।” बेला हँसती हुइ बोली “मालकिन मैं एकदम सच-सच बोल रही हूँ। झूठ बोलु तो मेरी जुबान कट के गिर जाये अरे मदन बाबू को तो कई बार मैंने गांव की औरते जिधर दिशा-मैदान करने जाती है उधर भी घुमते हुए देख है।”
“हाय दैय्या उधर क्या करने जाता है”
“बसन्ती के पीछे भी पड़े हुए है छोटे मालिक, वो भी साली खूब दिखा दिखा के नहाती है। साली को जैसे ही मदन बाबू को देखती है और ज्यादा चूतड़ मटका मटका के चलने लगती है, मदन बाबू भी पूरे लट्टु हुए बैठे है।”
“क्या जमाना आ गया है, इतना पढ़ाने लिखाने का कुछ फायदा नही हुआ, सब मिट्टी में मिला दिया, सदानन्द ने इन्ही भन्गिनो और धोबनो के पीछे घुमने के लिये इसे शहर भेजा था”
“आप भी मालकिन बेकार में नाराज हो रही हो, नया खून है थोड़ा बहुत तो उबाल मारेगा ही, फिर यहां गांव में कौन-सा उनका मन लगता होगा, मन लगाने के लिये थोड़ा बहुत इधर उधर कर लेते है”
“नही मैं सोचती थी कम से कम पन्डित सदानन्द का बेटा तो ऐसा ना होगा”
“तो आप के हिसाब से जैसे आप खुद आग में जलती रहती हो वैसे ही हर कोई जले”
बेला से नजरे छुपाते हुए चौधराइन ने कहा
“मैं कौन सी आग में जल रही हूँ री कुतिया “
“क्यों जलती नही हो क्या, क्या मुझे पता नही की मर्द के हाथों की गरमी पाये आपको ना जाने कितने साल बीत चुके है,चौधरी जाने कहाँ अपने ही में मस्त रहते हैं क्या मुझे पता नहीं है। अगर मैं आप की जगह होती तो अपने गाँव के (पन्डित सदानन्द चौधराइन के ग़ांव के हैं) रिश्ते का ऐसा चाची चाची करने वाला भतीजा कभी न छोड़ती क्योंकि किसी को कभी शक हो ही नहीं सकता वैसे मदन बाबू आपकी गोरी गोरी सुडौल गुदगुदी पिन्डलियों को चोरी चोरी देख भी रहे थे।”
“ऐसा नही है री, ये सब काम करने की भी एक उमर होती है वो अभी बच्चा है।”
“बच्चा है, आप कहती हो बच्चा है अरे मालकिन वो ना जाने कितनो को अपने बच्चे की मां बना दे ।”
“चल साली क्या बकवास करती है”
चौधराइन की दोनो टांगो को फैला कर बेला उनके बीच में बैठ गई। बेला ने मुस्कुराते हुए चौधराइन के पेटीकोट के ऊपर से उनकी पावरोटी सी फ़ूली चूत पर हाथ फ़ेरते हुए कहा- अभी आपको मेरी बाते तो बकवास ही लगेगी मगर मालकिन सच बोलु तो आपने अभी मदन बाबू का औजार नहीं देखा मदन बाबू का औजार देख के तो मेरी भी पनिया गई थी।
“दूर हट कुतिया, क्या बोल रही है बेशरम मेरे तेरे बेटे की उमर का है।”
“हंह! बेटे की उमर का है तो क्या औजार अन्दर घुसने से इन्कार कर देगा।”
बेला ने चौधराइन की पावरोटी सी फ़ूली चूत की दरार को पेटीकोट के ऊपर से सहलाते हुए कहा । चौधराइन ने अपनी जांघो को और ज्यादा फैला दिया, बेला के पास अनुभव था अपने हाथों से मर्दों और औरतों के जिस्म में जादु जगाने का। माया देवी के मुंह से बार-बार सिसकारियां फुटने लगी। बेला ने जब देखा मालकिन अब पूरे उबाल पर आ गई है तो फिर से बातों का सिलसिला शुरु कर दिया
“मेरी बात मान लो मालकिन, कुछ जुगाड़ कर लो।”
“क्या मतलब है री तेरा”
“मतलब तो बड़ा सीधा सादा है मालकिन, मालकिन आपकी चूत मांगती है लण्ड और आप हो की इसको खीरा ककडी खिला रही हो”
-बेला ने तवा गरम देख खुल के कहा
“चुप साली, अब कोई उमर रही है मेरी ये सब काम करवाने की बिना मर्द के सुख के इतने दिन बीत गये तो अब क्या, अब तो बुढिया हो गई हुँ ।”
“ आप क्या जानो गाँव के सारे जवान आप को देख आहे भरते हैं”
“चल साली क्यों चने के झाड़ पर चढ़ा रही है”

“क्या मालकिन मैं ऐसा क्यों करूँगी, मैं तो सच्चाई बता रही थी कि क्यों अपनी जवानी यूँ ही सत्यानाश करवा रही हो”
“तु क्यों मुझे बिगाडने पर क्यों तुली हुई है।”
बेला ने हँसते हुए कहा, “थोड़ा आप बिगड़ो और थोड़ा अपने मुँहबोले भतीजे को को भी बिगड़ने का मौका दो से मदन बाबू से बढ़िया मौका अब दूसरा मिलना मुश्किल है। चाची चाची कहता है किसी को कभी शक भी न होगा।”

“छी रण्डी कैसी कैसी बाते करती है! सदानन्द मेरे गाँव के हैं मैं भाई कहती हूँ उन्हें।”
“अरे छोड़िये मालकिन कौन से आपके सगे भाई भतीजे हैं। मैं आपकी जगह होती तो सबसे पहले पन्डितजी को टाँगों के बीच लाती फ़िर मदन बाबू को । एक भाई दूसरा भतीजा जी भर के मजे करो किसी साले को कभी शक हो ही नहीं सकता। 
ये सुन चौधराइन मन ही मन मुसकराई, अब वो बेला को ये कैसे बतायें कि पन्डितजी तो टाँगों के बीच रहते ही हैं।”
बेला आगे बोल रही थी –“अरे मुझे क्या है मैं तो आप के लिए परेशान हूँ वैसे भी ईमानदारी से देखा जाय तो मदन बाबू जैसे कड़ियल जवान को आप जैसी सुन्दर भरी पूरी साफ़ सुथरी औरत मिलनी चाहिये न कि गाँव की गन्दी छिछोरियाँ । इस रिश्तों की भलमनसाहत और शरम में मदन बाबू चाची चाची करते रहेंगे और आप बेटा बेटा। आप अपने जिस्म की आग खीरा, ककड़ी में बर्बाद करना, उधर आपका मुँहबोला भतीजा अपने जिस्म की आग से परेशान हो हो कर गाँव की गन्दी छिछोरियों मे अपनी कड़ियल जवानी और अपना सुन्दर जवान जिस्म बरबाद कर डालेगा। मैं तो अनपढ़ जाहिल हूँ पर क्या मुँहबोले प्यारे भतीजे की उस बरबादी की तरफ़ आप की कोई जिम्मेदारी नहीं बनती ।”
“वो कोई ऐसा काम क्यों करेगा री। वो कुछ नही करने वाला।”
“मालकिन बड़ा मस्त हथियार है मदन बाबू का, गांव की छोरियां छोड़ने वाली नही।”

ये सुनते ही चौधराइन को पण्डित सदानन्द के हलव्वी लण्ड का ख्याल आया वो मन ही मन हँसीं कि लगता है जैसा बाप वैसा ही बेटा भी है पर प्रकट में बेला को लताड़ा –“हरामजादी, छोरियों की बात छोड़ मुझे तो लगता है तु ही उसको नही छोड़ेगी, शरम कर बेटे की उमर का है।“
“यही तो मैं कह रही हूँ मदन बाबू मुझे भी घूरते रहते हैं किसी दिन पटक के चढ़ बैठे तो आपके हिस्से का ये केला मुझ नासपीटी को ना खाना पड़ जाये।”
अगर ऐसा हुआ तो मैं तेरा मुंह नोच लुँगी”
“हाय मालकिन उतना बड़ा औजार देख के तो मैं सब कुछ भुल जाती हुँ। पर इसमें मेरी कोई गलती नहीं है उसे देख किसी भी औरत का यही हाल होगा।”
इतनी देर से ये सब सुन-सुन के माया देवी के मन में भी उत्सुकता जाग उठी थी। उसने आखिर बेला से पूछ ही लिया,,,,
" कैसे देख लिया तूने मदन का। " 
बेला ने अन्जान बनते हुए पुछा, "मदन बाबू का क्या मालकिन। "

फिर बेला को चौधराइन की एक लात खानी पड़ी, फिर चौधराइन ने हँसते हुए कहा,
" कमीनी सब समझ के अन्जान बनती है। "

बेला ने भी हँसते हुए कहा,
" मालकिन मैं तो सोच रही थी कि आप अभी तक तो बेटा भतीजा कर रही थी फिर उसके औजार के बारे में थोड़े ही न पूछोगी?"

बेला की बात सुन कर चौधराइन थोड़ा शरमा गई। उसकी समझ में ही नही आ रहा था कि वो बेला को क्या जवाब दे। फिर भी उन्होंने थोड़ा झेपते हुए कहा,
" साली मैं तो ये पूछ रही थी की तूने कैसे देख लिया. '

" मैंने बताया तो था मालकिन की मदन बाबू जिधर गांव की औरतें दिशा-मैदान करने जाती है, उधर घुमते रहते है, और ये साली बसन्ती भी उनपे लट्टु हुइ बैठी है। एक दिन शाम में मैं जब पाखाना करने गई थी तो देखा झाड़ियों में खुसुर पुसुर की आवाज आ रही है। मैंने सोचा देखु तो जरा कौन है, देखा तो हक्की-बक्की रह गई क्या बताऊँ, मदन बाबू और बसन्ती दोनो खुसुर पुसुर कर रहे थे। मदन बाबू का हाथ बसन्ती की चोली में और बसन्ती का हाथ मदन बाबू की हाफ पैन्ट में घुसा हुआ था। मदन बाबू रिरयाते हुए बसन्ती से बोल रहे थे, ' एक बार अपना माल दिखा दे. ' और बसन्ती उनको मना कर रही थी।"

इतना कह कर बेला चुप हो गई तो माया देवी ने पूछा,
" फिर क्या हुआ। "
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RE: Muslim Sex Stories सलीम जावेद की रंगीन दुन�... - by sexstories - 04-25-2019, 11:50 AM

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