RE: Muslim Sex Stories सलीम जावेद की रंगीन दुन�...
चौधराइन
भाग 3 - बेला की सीख पर चौधराइन का प्लान
" फिर क्या होना था मालकिन, लाजो वहीं घास पर लेट गई और मदन बाबू उसके ऊपर, दोनो गुत्थम गुत्था हो रहे थे। कभी वो ऊपर कभी मदन बाबू ऊपर। मदन बाबू ने अपना मुंह लाजवन्ती की चोली में दे दिया और एक हाथ से उसके लहेंगे को ऊपर उठा के उसकी चूत सहलाने लगे, लाजो के हाथ में मालिक का मोटा लण्ड था और दोनो चिपक चिपक के मजा लूटने लगे। कुछ देर बाद मदन बाबू उठे और लाजो की दोनो टांगो के बीच बैठ गये। उस छिनाल ने भी अपनी साड़ी को ऊपर उठा, दोनो टांगो को फैला दिया। मदन बाबू ने अपना मुसलण्ड सीधा उसकी चूत के ऊपर रख के धक्का मार दिया। जब मदन बाबू का हलव्वी लण्ड चूत फ़ैलाता हुआ अन्दर जाने लगा तो साली चुद्दक्कड़ का इतना धाकड़ चुद्दक्कड़ भोसड़ा भी चिगुरने लगा और वो कराह उठी
“उम्म्म्ह मालिक”
इतना मोटा लण्ड घुसने से कोई कितनी भी बड़ी रण्डी हो उसकी हेकडी एक पल के लिये तो गुम हो ही जाती है। फ़िर मदन बाबू का तो अभी नया खून है, उन्होंने कोई रहम नही दिखाया, उलटा और कस कस के धक्के लगाने लगे."
" हाय मालकिन पर कुछ ही धक्कों के बाद तो साली चुद्दकड़ अपने घड़े जैसे चूतड़ ऊपर उछालने लगी और गपा गप मदन बाबू के लण्ड को निगलते हुए बोल रही थी, 'हाय मालिक मजा आ गया फ़ाड़ दो, हाय ऐसा लण्ड आज तक नही मिला, सीधा बच्चेदानी को छु रहा है, लगता है मैं ही पन्डितजी के पोते को पैदा करूँगी, मारो कस कस के॑..”
मदन बाबू भी पूरे जोश में थे, हुमच हुमच के ऐसा धक्का लगा रहे थे की क्या कहना, जैसे चूत फ़ाड़ के चूतड़ों से लण्ड निकाल देंगे, दोनों हाथ से पपीते जैसी चूचियाँ दबाते हुए पका पक लण्ड पेले जा रहे थे। लाजवन्ती साली सिसकार रही थी और बोल रही थी, ' मालिक पायल दिलवा देना फिर देखना कितना मजा करवाऊंगी, अभी तो जल्दी में चुदाई हो रही है, मारो मालिक, इतने मोटे लण्ड वाले मालिक को अब नही तरसने दूँगी, जब बुलाओगे चली आऊँगी, हाय मालिक पूरे गांव में आपके लण्ड के टक्कर का कोई नही है॑।' " इतना कह कर बेला चुप हो गई।
बेला ने जब लाजवन्ती के द्वारा कही गई ये बात की, पूरे गांव में मदन के लण्ड के टक्कर का कोई नही है सुन कर चौधराइन मानना पड़ा कि ये जरूर सच होगा क्योंकि लाजो से तो कोई लण्ड शायद ही बचा होगा।
फिर भी चौधराइन ने बेला से पूछा, " तु जो कुछ भी मुझे बता रही है वो सच है ना बना के तो नहीं बता रही? "
" हां मालकिन सौ-फीसदी सच बोल रही हूँ। माफ़ करना मालकिन छोटा मुँह बड़ी बात पर अब मैं आप से अपना सवाल दोहराती हूँ क्या अपने मुँहबोले भाई के बेटे, अपने भतीजे की उस बरबादी की तरफ़ आप की कोई जिम्मेदारी नहीं बनती ।”
चौधराइन कुछ सोचने सी लगी और उन्होंने कोई जवाब नहीं दिया
चालाक बेला समझ गई कि लोहा गरम है तो उसने आखरी चोट की-
“हाय मालकिन जब मैं रात में बिस्तर पर लेट, मदन बाबू के कसरती बदन में दबते पिसते आपके इस मांसल संगमरमरी जिस्म की कल्पना करती हूँ तो मेरी चूत पनिया जाती है”
अब चौधराइन चौंकी उन्होंने बेला से पूछा तेरी पनिया जाती है! अच्छा एक बात बता तू मुझे ये सब करने के लिए क्यों उकसा रही है इसमें तेरा क्या फ़ायदा है?
“मदन बाबू अगर आपके आकर्षण में फ़ंस यहाँ आने लगे तो इस गाँव की इन मर्दखोर हरामिनों से बच जायेंगे और कभी कभी मुझे भी आप की जूठन मिल जाया करेगी।”
अपनी बात का असर होते देख बेला झोंक में बोल गई फ़िर सकपका के बात सम्हालने कि कोशिश करने लगी –“मेरामतलब है…………
तब तक चौधराइन ने हँसते हुए लात जमायी और बेला हँसते हुए वहाँ से भाग गई।
पर बेला की बात थोड़ी बहुत चौधराइन के भेजे में भी घुस गई थी भतीजे को बचाने की चाहत और शायद दिल के किसी कोने में उसके अनोखे हथियार को देखने की उत्सुकता भी पैदा होगई थी। वो सोचने लगीं कि इतना सीधा लड़का आखिर बिगड़ कैसे गया ।
चौधराइन कुछ देर तक सोचती रही कैसे सदानन्द के बेटे अपने मुँहबोले भतीजे को अपनी पकड़ में लाया जाये। चुदक्कड़ औरत की खोपड़ी तो शैतानी थी ही। तरकीब सुझ गई। सबेरे उठ कर सीधी आम के बगीचे की ओर चल दीं।
चौधराइन जानती थीं कि उनके जितने भी बगीचे हैं, सब जगह थोड़ी बहुत चोरी तो सारे मैंनेजर करते ही हैं, पर अनदेखा करती थीं क्योंकि पर अनदेखा करती थीं क्योंकि अन्य बड़े आदमियों कि तरह वो भी सोचती थीं कि चौधरी की इतनी जमीन-जायदाद है गरीब थोड़ा बहुत चुरा भी लेंगे तो कौन सा फ़रक पड़ जायेगा । आम के बगीचे में तो कोई झांकने भी नही जाता. जब फल पक जाते तभी चौधराइन एक बार चक्कर लगाती थी।
मई महीने का पहला हफ़्ता चल रहा था। बगीचे में एक जगह खाट डाल कर मैंनेजर बैठा हुआ, दो लड़कियों की टोकरियों में अधपके और कच्चे आम गिन-गिन कर रख रहा था। चौधराइन एकदम से उसके सामने जा कर खड़ी हो गयी। मैंनेजर हडबड़ा गया और जल्दी से उठ कर खड़ा हुआ।
“क्या हो रहा है, ?,,,,,,ये अधपके आम क्यों बेच रहे हो ?,,,,,,,”
मैंनेजर की तो घिग्घी बन्ध गई, समझ में नही आ रहा था क्या बोले ?।
“ऐसे ही हर रोज एक दो टोकरी बेच देते हो क्या,,,,,,,,, ?” थोड़ा और धमकाया।
“मालकिन,,,,,,,, मालकिन,,,,,,,,,,,,वो तो ये बेचारी ऐसे ही,,,,,,,,बड़ी गरीब बच्चीयां है. अचार बनाने के लिये मांग रही थी,,,,,,,,,,"
दोनो लड़कियां तब तक भाग चुकी थी।
“खूब अचार बना रहे हो।"
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