RE: Muslim Sex Stories सलीम जावेद की रंगीन दुन�...
मैंनेजर झुक कर पैर पकड़ने लगा। चौधराइन ने अपने पैर पीछे खींच लिए, और वहाँ ज्यादा बात न कर तेजी से घर आ गयीं। घर आ कर चौधराइन ने तुरन्त मैंनेजर और रखवाले को बुलवा भेजा, खूब झाड़ लगाई और बगीचे से उनकी ड्युटी हटा दी और चौधरी को बोला कि मैंने बगीचे से मैंनेजर और रखवाले की ड्युटी हटा दी है दीनू को रखवाली के लिये बगीचे में भेज दे और सदानन्द से आग्रह करके जितने दिन उसका बेटा मदन गाँव में है तब तक अगर हो सके तो वो दीनू और बाकी रखवालों की निगरानी करे। तबतक या तो आप दूसरा मैंनेजर खोज लें नहीं तो खुद जाकर देखभाल करें।
चौधराइन ने सोचा मैंने एक तीर से तीन शिकार किये हैं एक तो गाँव की छिछोरी औरतों से पीछा छूट जायेगा दूसरे मदन बाबू के द्वारा बगीचे का काम सुधर जायेगा तीसरे सबसे बढ़कर मदन बाबू का चौधराइन के घर आना जाना बढ़ जायेगा तो फ़िर मौके और माहौ को देख उसके हिसाब से अगले कदम के बारे में सोचा जायेगा।
दोपहर को अपने सदानन्द भाई से अपनी चूत का जाप करवाते समय चौधराइन ने जब छुट्टियों भर मदन को बगीचे का काम देखने के लिए पूछा तो उनकी चूत के प्रेमरस में डूबे सदानन्द ने तुरन्त हाँ कर दी कि अच्छा है लड़का कुछ सीखेगा ही और उसका बोर होना भी खत्म हो जायेगा ।
आम के बगीचे में खलिहान के साथ जो मकान बना था वो वास्तव में चौधरी पहले की ऐशगाह थी। वहां वो रण्डियां नचवाता और मौज-मस्ती करता था। अब उमर बढ़ने के साथ साथ उसका मन इन नाच गाना हो हुल्लड़ से भर गया था अब उसकी दिलचस्पी उन्ही औरतों में थी जिनसे उसका टाँका था वो घर परिवार वाली औरते उससे बगीचे में तो मिलने आने से रहीं। उनसे वो उनके या अपने घर के अपने बाहर वाले कमरे में (जहाँ वो उठता, बैठता, दारू पीता था) मिलता था, तब से उसकी बगीचे और उस मकान में दिलचस्पी खत्म हो गई थी सो चौधरी ने वहां जाना लगभग छोड़ ही दिया था।
पर आज के चौधाराइन के आदेश से चौधरी घबड़ाया कि ऐसे तो उसकी सारी आजादी खत्म हो जायेगी सो उसने दूसरे दिन सुबह सुबह ही सदानन्द के घर जा मदन को बड़े प्यार मनुहार से बेटा बेटा कर इस काम के लिये राजी कर लिया और सब रखवालों को हिदायत कर दी कि मदन बाबू के आदेश पर काम करें और मदन कहीं इनकार न कर दे इस डर से उससे कह दिया कि वो अपने दोस्तों को क्रिकेट खेलने के लिये वहीं बुला लिया करे और गाहे बगाहे आराम के लिये बगीचे वाले मकान की चाबी भी दे दी।
अन्धा क्या चाहे दो आँखें, मदन ने चौधरी से बगीचे वाले मकान की चाबी ले ली। और तुरन्त बगिया में दीनू को बोल दिया ' तु भी चोर है बगिया मे दिखाई मत देना दिखा तो टांग तोड़ दुँगा' दीनू डर के मारे गया ही नही, और ना ही किसी से इसकी शिकायत की।
बाहर से देखने पर तो खलिहान जैसा गांव में होता है, वैसा ही दिखता था मगर अन्दर चौधरी ने उसे बड़ा खूबसुरत और आलीशान बना रखा था। दो कमरे, जो की काफी बड़े और एक कमरे में बहुत बड़ा बेड था। सुख-सुविधा के सारे सामान वहां थे।
इस बीच जैसाकि आप जानते ही हैं मदन ने गांव की लाजो भौजी (लाजवन्ती) को तो चोद ही दिया था. और उसकी ननद बसन्ती के स्तन दबाये थे, मगर चोद नही पाया था। सीलबन्ध माल थी। आजतक मदन ने कोई अनचुदी बुर नही चोदी थी. इसलिये मन में आरजु पैदा हो गई की, बसन्ती की लेते। बसन्ती, मदन बाबू को देखते ही बिदक कर भाग जाती थी। हाथ ही नही आ रही थी। उसकी शादी हो चुकी थी मगर, गौना नही हुआ था।
मदन बाबू के शैतानी दिमाग ने बताया की, बसन्ती की बुर का रास्ता लाजो भौजी की चूत से होकर गुजरता है। तो फिर उन्होंने लाजो भौजी को पटाने की ठानी। मदन जब दीनू से चौधरी से बगीचे वाले मकान की चाबी ले लौट रहे थे तो गन्ने के खेत के पास लाजो लोटा हाथ में लिये वापस आती दिखी, मदन ने आवाज दी,
"क्या भौजी, उस दिन के बाद से तो दिखना ही बन्द हो गया, तुम्हारा,,,,?"
लाजो पहले तो थोड़ा चौंकी, फिर जब देखा की आस पास कोई नही है, तब मुस्कुराती हुइ बोली,
"आप तो खुद ही गायब हो गये मदन बाबू, वादा कर के,,,,,,!"
"अरे नही रे, दो दिन से तो तुझे खोज रहा हूँ. और हम पन्डित लोग झूठ नहीं बोलते. मुझे सब याद है,"
"तो फिर लाओ मेरा इनाम,,,,,,,,,"
"ऐसे कैसे दे दूँ, भौजी !?,,,,,,,,इतनी हडबड़ी भी ना दिखाओ,,,,,'
"अच्छा, अभी मैं तेजी दिखा रही हूँ !!?,,,,,,और उस दिन खेत में लेटे समय तो बड़ी जल्दी में थे आप, छोटे मालिक,,,,,,आप सब मर्द लोग एक जैसे ही हो."
मदन ने लाजो का हाथ पकड़ कर खींचा, और कोने में ले खूब कस के गाल काट लिया। लाजो दर्द से चीखी तो उसका मुंह दबाते हूए बोला,
"क्या करती हो भौजी ?, चीखो मत, सब मिलेगा,,,,,,तेरी पायल मैं ले आया हूँ, और बसन्ती के लिये लहँगा भी।"
मदन ने चारा फेंका। लाजो चौंक गई,
"हाय मालिक, बसन्ती के लिये क्यों,,,,,,?।"
"उसको बोला था की, लहँगा दिलवा दूँगा सो ले आया ।",
कह कर लाजो को एक हाथ से, कमर के पास से पकड़, उसकी एक चूची को बायें हाथ से दबाया।
लाजो थोड़ा कसमसाती हुई, मदन के हाथ की पकड़ को ढीला करती हुई बोली,
"उस से कब बोला था, आपने ?"
"अरे जलती क्यों है ?,,,,,,उसी दिन खेत में बोला था, जब तेरी चूत मारी थी..",
और अपना हाथ चूची पर से हटा कर, चूत पर रखा और हल्के से दबाया।
"अच्छा अब समझी, तभी आप उस दिन वहां खड़ा कर के खड़े थे. मुझे देख कर वो भाग गई और आपने मेरे ऊपर हाथ साफ कर लिया ।"
"एकदम ठीक समझी रानी,,,,,,,",
और उसकी चूत को मुठ्ठी में भर कस कर दबाया। लाजो चिहुंक गई। मदन का हाथ हटाती बोली,
"छोड़ो मालिक, वो तो एकदम कच्ची कली है।"
अचानक सुबह सुबह उसके रोकने का मतलब लाजो को तुरन्त समझ में आ गया।
अरे, कहाँ की कच्ची कली ?, मेरे उमर की तो है,,,,"
"हां, पर अनचुदी है,,,,,,एकदम सीलबन्द,,,,,,,दो महीने बाद उसका गौना है.."
"धत् तेरे की, बस दो महीने की ही मेहमान है. तो फिर तो जल्दी कर भौजी कैसे भी जल्दी से दिलवा दे,,,,,,"
कह कर उसके होठों पर चुम्मा लिया।
ऊउ...हहहह छोड़ो, कोई देख लेगा !?,,,,,,,पायल तो दी नही, और अब मेरी कोरी ननद भी मांग रहे हो,,,,,,,,बड़े चालु हो, छोटे मालिक...!!!"
लाजो को पूरा अपनी तरफ घुमा कर चिपका लिया और खड़ा लण्ड साड़ी के ऊपर से चूत पर रगड़ते हुए, उसकी चूतड़ों की दरार में उँगली चला, मदन बोला,
"अरे कहाँ ना, दोनो चीज ले आया हूँ,,,,,दोनो ननद-भौजाई एक दिन आ जाना, फिर,,,,,"
"लगता है, छोटे मालिक का दिल बसन्ती पर पूरा आ गया है..."
"हां रे ,तेरी बसन्ती की जवानी है ही ऐसी,,,,,,,,बड़ी मस्त लगती है,,,,,,"
"हां मालिक, गांव के सारे लौंडे उसके दिवाने है,,,,....."
"गांव के छोरे, मां चुदाये,,,,,,,तू बस मेरे बारे में सोच,,,,,,,"
कह कर उसके होठों पर चुम्मी ले, फिर से चूची को दबा दिया।
"सीईई,,,,,,मालिक क्या बताये..??, वो मुखिया का बेटा तो ऐसा दिवाना हो गया है, की,,,,,,,,उस दिन तालाब के पास आकर पैर छुने लगा और सोने की चेन दिखा रहा था, कह रहा था की भौजी, 'एक बार बसन्ती की,,,,,,!!! ' पर, मैंने तो भगा दिया साले को. दोनो बाप-बेटे कमीने है.."
मदन समझ गया की, साली रण्डी, अपनी औकात पर आ गई है। पैंट की जेब में हाथ डाल कर पायल निकाली, और लाजो के सामने लहरा कर बोला,
"ले, बहुत पायल-पायल कर रही है ना, तो पकड़ इसको,,,,,,,,,और बता बसन्ती को कब ले कर आ रही है ?,,,,,,"
"हाय मालिक, पायल लेकर आये थे,,,,,और देखो, तब से मुझे तड़पा रहे थे,,,,,,,,"
और पायल को हाथ में ले उलट पुलट कर देखने लगी। मदन ने सोचा, जब पेशगी दे ही दी है, तो थोड़ा सा काम भी ले लिया जाये. और उसका एक हाथ पकड़ खेत में थोड़ा और अन्दर खींच लिया।
लाजो अभी भी पायल में ही खोई हुई थी। मदन ने उसके हाथ से पायल ले ली और बोला,
"ला पहना दूँ"
लाजो ने चारो तरफ देखा, तो पाया की वो खेत के और अन्दर आ गई है। किसी के देखने की सम्भावना नही है, तो चुप-चाप अपनी साड़ी को एक हाथ से पकड़ घुटनो तक उठा एक पैर आगे बढ़ा दिया। मदन ने बड़े प्यार से उसको एक-एक करके पायल पहनायी, फिर उसको खींच कर घास पर गिरा दिया और उसकी साड़ी को उठाने लगा। लाजो ने कोई विरोध नही किया। दोनो पैरों के बीच आ जब मदन लण्ड डालने वाला था, तभी लाजो ने अपने हाथ से लण्ड पकड़ लिया और बोली,
"हाय, मालिक थोड़ा खेलने दें न ।“
और लण्ड थाम अपनी चूत के होठों पर रगड़ती हुई बोली,
"वैसे छोटे मालिक, एक बात बोलुं,,,,,,,???"
"हां बोल,,,,,,,,,पर ज्यादा खेल मत कर छेद पर लगा दे, मुझ से रुका न जायेगा ।"
"सोने की चैन बहुत महेंगी आती है, क्या??"
क्रमश:………………………
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