Muslim Sex Stories सलीम जावेद की रंगीन दुनियाँ
04-25-2019, 11:51 AM,
#9
RE: Muslim Sex Stories सलीम जावेद की रंगीन दुन�...
चौधराइन
भाग 7 - चौधराइन का जलवा


अगले दिन बेला खुशी खुशी चौधराइन के घर की ओर दौड़ गई। उसके पेट मे अपनी ये सफ़लता पच नहीं रही थी। चौधराइन ने जब बेला को देखा तो, उसके चेहरे पर मुस्कान फैल गई। हँसती हुई बोली,
“क्या रे, कैसे रास्ता भुल गई ?…कहाँ गायब थी…?। थोड़ा जल्दी आती, अब तो मैंने नहा भी लिया..”

बेला बोली, -“का कहे मालकिन, घर का बहुत सारा काम …। फिर तालाब पर नहाने गई तो वहां…”

“क्यों, क्या हुआ तालाब पर…?”

“छोड़ो मालकिन, तालाब के किस्से को. आप कुर्सी पर बैठो ना, बिना तेल के ही सही थोड़ी बहुत तो सेवा कर ही दूँ ।”

“अरे कुछ नहीं, रहने दे …”

पर बेला के जोर देने पर माया देवी पर बैठ गई । बेला पास बैठ कर माया देवी के पैरों के तलवे को अपने हाथ में पकड़ हल्के हल्के मसलते हुए दबाने लगी।
महा बदमाश बेला ने माया देवी तालाब का जिक्र कर जिज्ञासा तो पैदाकर दी फ़िर मक्करी से इधर उधर की बकवास करने लगी । कुछ देर तक तो माया देवी उसकी बकवास सुनती रहीं फ़िर उनके पेट की खलबली ने उन्हें बेला से पूछने पर मजबूर कर दियाउन्होंने हँसते हुए पूछा –“ क्या हुआ तालाब पर…?”

“अरे कुछ नहीं मालकिन,,पता नही… जरा सी गलत्फ़हमी में बात कहाँसे कहाँ पहुँच जाती है । मैंने तो जो कुछ देखा उससे जो समझ में आया वो किया अब मुझे क्या पता था बात इतनी बढ़ जायेगी कि……!
“अरे कुछ बतायेगी भी या यों ही बक बक किये जायेगी……!”
चौधराइन ने डाँटा।
बेला –“ अब क्या बताऊँ मालकिन कल सुबह मैंने मदन बाबू को आम के बगीचे की तरफ से आते हुए देखा था, तो फिर…॥”

माया देवी चौंक कर बैठती हुई बोली,
“क्या मतलब है तेरा…? वो क्यों जायेगा सुबह-सुबह बगीचे में !?”

“अब मुझे क्या पता क्यों गये थे ?… मैंने तो सुबह में उधर से आते देखा, फ़िर मैंने मैंने लाजो और बसन्ती को भी आते हुए देखा ।… लाजो तो नई पायल पहन ठुमक-ठुमक कर चल रही थी …॥”
जब मैं नहाने तालाब पे गई वहाँ लाजो को देख मैंने पूछ दिया कि पायल कहाँ से आयी तो वो लड़ने लगी। बात आयी गई हो गई मैं तो शाम तक भूल भी गई थी शाम को जब मैं बगिया की तरफ़ से निकली तो मदन बाबू खड़े थे बहाने से मुझे बगिया वाले मकान में बुला ले गये और वही हुआ जिसका दर था। लगता है लाजो ने तालाब वाली बात मदन बाबू को बता दी थी ।”
“अरी! पर हुआ क्या ये तो बता न ।”
मेरी तो कहते जुबान कटती है कि मदन बाबू ने एक हाथ मेरी गरदन में डाला और एक मेरे चूतड़ों में और वहीं बिस्तर पर पटक के चोद दिया।”

बस इतना ही काफी था. माया देवी, नथुने फुला कर बोली,
“एक नंबर की छिनाल है तु,,, … हरामजादी,,,,, कुतिया, तु बाज नही आयी न … रण्डी … निकल अभी तु यहां से,,,,,,चल भाग …। दुबारा नजर मत आना..…”

माया देवी दांत पीस-पीस कर मोटी-मोटी गालियां निकाल रही थी। बेला समझ गई की अब रुकी तो खैर नही। उसने जो करना था कर दिया, बाकी चौधराइन की गालियां तो उसने कई बार खाई थी। बेला ने तुरन्त दरवाजा खोला, और भाग निकली।

बेला के जाने के बाद चौधराइन का गुस्सा थोड़ा शांत हुआ. ठन्डा पानी पी कर बिस्तर पर धम से गिर पड़ी। बेला सच ही बोल रही होगी?… उसकी आखिर मदन से क्या दुश्मनी है, जो झूठ बोलेगी। पिछली बार भी मैंने उसकी बातो पर विश्वास नही किया था।
कैसे पता चलेगा ?
दीनू को बुलाया, फिर उसे एक तरफ ले जाकर पुछा। वो घबरा कर चौधराइन के पैरो में गिर पड़ा, और गिडगिडाने लगा,
“मालकिन, मुझे माफ कर दो …। मैंने कुछ नहीं किया …मालकिन, मदन बाबू ने चाबी लेने के बाद मुझे बगीचे पर जाने से मना कर दिया ।”

माया देवी का सिर चकरा गया। एक झटके में सारी बात समझ में आ गई।

कमरे में वापस आ कर, आंखो को बन्द कर बिस्तर पर लेट गई। मदन के बारे में सोचते ही उसके दिमाग में एक नंग्धड़ंग नवजवान लड़के की तसवीर उभर आती थी. जो किसी भरी पूरी जवान औरत के ऊपर चढ़ा हुआ होता। उसकी कल्पना में मदन एक नंगे मर्द के रुप में नजर आ रहा था। माया देवी बेचैनी से करवटे बदल रही थी।

उनको सदानन्द पर गुस्सा भी आ रहा था, कि लड़के की तरफ़ ध्यान नहीं देता । लड़का इधर-उधर मुंह मारता फिर रहा है। फिर सोचती, मदन ने किसी के साथ जबरदस्ती तो की नही. अगर गांव की औरतें लड़कियाँ खुद चुदवाने के लिये तैयार है, तो वो भी अपने आप को कब तक रोकेगा । नया खून है, आखिर उसको भी गरमी चढ़ती होगी, छेद तो खोजेगा ही अगर घरेलू छेद मिल जाय तो बाहर क्यों मुंह मारेगा। आखिर सदानन्द भी तो पहले दिन में यहाँ वहाँ मुँह मारता फ़िरता था पर जब से दिन में यहाँ मेरे पास आने लगा और मेरी चूत मिलने लगी तब से दिन में यहाँ मेरी लेता है और रात में तो घर पे रह पण्डिताइन की रगड़ता ही है। पण्डिताइन बेचारी को भी आनन्द है और आदमी घर का घर में है। ऐसे ही अगर मदन का भी कुछ इन्तजाम हो जाय तो वो गाँव की बदमाश औरतों से बचा रह सकता है वो सोच रही थी कि मेरे बचपन के दोस्त का बेटा है। मुझे ही कुछ करना होगा। मुझे ही अपनी कुर्बानी देनी होगी। वैसे भी साले सदानन्द को एक दिन में दो चूतें, दोपहर में मेरी और रात में पण्डिताइन की मिलती हैं पण्डिताइन बता रही थी कि साला रात भर रगड़ता है । मैं जब जवान थी, तब भी चौधरी ज्यादा से ज्यादा रात भर में उसकी दो बार लेता था. वो भी शुरु के एक महिने तक। फिर पता नही क्या हुआ, कुछ दिन बाद तो वो भी खतम हो गया. हफ्ते में दो बार, फिर घट कर एक बार से कभी-कभार में बदल गया। और अब तो पता नही कितने दिन हो गये। जबकी अगर बेला की बातो पर विश्वास करे तो, गांव की हर औरत कम से कम दो लंडो से अपनी चूत की कुटाई करवा रही थी। मेरी ही किस्मत फूटी हुई है। कुछ रण्डियों ने तो अपने घर में ही इन्तजाम कर रखा था। यहां तो घर में भी कोई नही, ना देवर ना जेठ । मुझे साला ले दे के दोपहर में एक लण्ड सदानन्द का मिलता है ये कहाँ का न्याय है ।
मुझे एक और लण्ड मिलना ही चाहिये बेला ठीक कहती है मदन को फ़ाँस लेने से किसी को शक नहीं होगा । अपना काम भी हो जायेगा और लड़का गन्दी औरतों से भी बचा रहेगा।
इस तरह विचार कर चौधराइन ने मदन का शिकार करने का पक्का फ़ैसला कर लिया। फ़िर सोचने लगी, क्या सच में मदन का हथियार उतना बड़ा है ?, जितना बेला बता रही थी। सदानन्द के लण्ड का ख्याल कर उसे बेला की बात का विश्वास होने लगा। सदानन्द के लण्ड के बारे में सोचते ही उसकी चूत दुपदुपाने लगती है फ़िर बेला के हिसाब से मदन का लण्ड तो और भी जबर्दस्त है उसकी कल्पना कर उसके बदन में एक सिहरन सी दौड़ गई, साथ ही साथ उसके गाल भी लाल हो गये। करीब घंटा भर वो बिस्तर पर वैसे ही लेटी हुई. मदन के लण्ड, और पिछली बार बेला की सुनाई, चुदाई की कहानियों को याद करती, अपनी जांघो को भींचती करवटें बदलती रही।
माया देवी ने सदानन्द के यहाँ नौकर भेज कर मदन को बुलवाया । मदन घर लुंगी बांधे जैसा बैठा था हड़बड़ाया सा वैसे ही चला आया।
माया देवी ने मदन को लुंगी पहने हड़बड़ाया हुआ देखा तो मन ही मन मुस्कुराई और पुछा, –“ये लुंगी कैसी बांधी हुई है आम के बगीचे पर नहीं जाना क्या आज। तू जाता भी है या योंही ।
“हाँ जाता हूँ चाची । अभी आपने बुलाया इसलिए बगैर कपड़े बदले जल्दी से चला आया अभी घर जा के बदल लूँगा तब जाऊँगा ।”
“जब तू जाता है तो इतने आम कैसे चोरी हो रहे हैं ?” इसी तरह जमीन-जायदाद की देखभाल की जाती है बेटा? तुझसे अकेले नहीं सम्हलता तो नौकरों की मदद ले लेता…
“नौकर ही तो सबसे ज्यादा चोरी करवाते हैं …सब चोर है। इसीलिए तो मैं वहां अकेला ही जाता हूँ ।”
मदन को मौका मिल गया था, और उसने तपाक से बहाना बना लिया।

तभी माया देवी गम्भीरता से बोली …“तो ये बात तूने मुझे पहले क्यों नही बताई…? कोई बात नही, मगर मुझे बता देता तो कोई भरोसे का आदमी साथ कर देती…।”

“अरे नहीं चौधचाची, उसकी कोई जरुरत नही है… मैं सब सम्भाल लूँगा।”
कहते हुए मदन उठने लगा। माया देवी मदन की मजबुत बदन को घूरती हुई बोली,
“ना ना, अकेले तो जाना ही नहीं है…। मैं चलती हूँ तेरे साथ… मैं देखती हुँ चोरों को”
इस धमाके से मदन की ऊपर की साँस ऊपर और नीचे की नीचे रह गई । कुछ देर तक तो वो माया देवी का चेहरा भौचक्का सा देखता ही रह गया।
कल रात ही लाजो वादा करके गई थी, की एक नये माल को फ़ँसा कर लाऊँगी। सारा प्लान चौपट।

फिर अपने आप को सम्भालते हुए बोला,
“नहीं चौधराइन चाची, तुम वहां क्या करने जाओगी ?… मुझे अभी कपड़े भी बदलने हैं। …मैं अकेला ही…”

“नही, मैं भी चलती हुं और तेरे कपड़े ऐसे ही ठीक हैं।…बहुत टाईम हो गया…बहुत पहले गर्मीयों में कई बार चौधरी साहिब के साथ वहां पर जाती थी यहाँतक कि सोती भी थी…कई बार तो रात में ही हमने आम तोड़ के भी खाये थे…चल मैं चलती हूँ।.”

मदन विरोध नही कर पाया।

“ठहर जा, जरा टार्च तो ले लुं…”

फिर माया देवी टार्च लेकर मदन के साथ निकल पड़ी। माया देवी ने अपनी साड़ी बदल ली थी, और अपने आप को संवार लिया था। मदन ने अपनी चौधराइन चाची को नजर भर कर देखा एकदम बनी ठनी, बहुत खूबसुरत लग रही थी। मदन की नजरो को भांपते हुए वो हँसते हुए बोली,
“क्या देख रहा है…?”

हँसते समय माया देवी के गालो में गड्ढे पड़ते थे।

“ कुछ नही. मैं सोच रहा था, आपको कहीं और तो नही जाना था”

माया देवी के होठों पर मुस्कुराहट फैल गई। हँसते हुए बोली,
“ऐसा क्यों…?, मैं तो तेरे साथ बगीचे पर चल रही हूँ।”

“नहीं, तुमने साड़ी बदली हुई है, तो…”

“वो तो ऐसे ही बदल लिया…क्यों,,,अच्छा नही लग रहा…??”

“नही, बहुत अच्छा लग रहा है…आप बहुत सुंदर लग अ…”,
बोलते हुए मदन थोड़ा शरमाया तो माया देवी ने हल्के हँस दी। माया देवी के गालो में पड़ते गड्ढे देख, मदन के बदन में सिहरन दौड़ गई।
दर असल अपनी चौधराइन चाची को उस दिन मालिश देखने के दो-तीन दिन बाद तक मदन बाबू को कोई होश नही था। इधर उधर पगलाये घुमते रहते थे। हर समय दिमाग में वही चलता रहता थ। चौधरी के घर जाते तो चौधराइन से नजरे चुराने लगे थे। जब चौधराइन चाची इधर उधर देख रही होती, तो उसको निहारते। हालांकि कई बार दिमाग में आता की, अपनी चाची को देखना बड़ी गलत बात है , कच्ची उम्र के लड़के के दिमाग में ज्यादा देर ये बात टिकने वाली नही थी। मन बार-बार माया देवी के नशीले बदन को देखने के लिये ललचाता। उसको इस बात पर ताज्जुब होता की, इतने दिनो में उसकी नजर चौधराइन चाची पर कैसे नही पड़ी। फिर ये चाची ही नहीं चौधराइन भी हैं, जरा सा उंच-नीच होने पर चमड़ी उधेड के रख देगी। इसलिये ज्यादा हाथ पैर चलाने की जगह, अपने लण्ड के लिये गांव में जुगाड़ खोजना ज्यादा जरुरी है। किस्मत में होगा तो मिल जायेगा।
मदन थोड़ा धीरे चल रहा था। चौधराइन चाची के पीछे चलते हुए, उसके मस्ताने मटकते चूतड़ों पर नजर पड़ी तो, उसका मन किया की धीरे से पीछे से माया देवी को पकड़ ले, और लण्ड को चूतड़ों की दरार में लगा कर, प्यार से उसके गालो को चुसे। उसके गालो के गड्ढे में अपनी जीभ डाल कर चाट ले। पीछे से सारी उठा कर उसके अन्दर अपना सिर घुसा दे, और दोनो चूतड़ों को मुट्ठी में भर कर मसलते हुए, चूतड़ों की दरार में अपना मुंह घुसा दे।

आज तो लाजवन्ती का भी कोई चांस नही था। तभी ध्यान आया की लाजो को तो बताया ही नही। डर हुआ की, कहीं वो चौधराइन चाची के सामने आ गई तो क्या करूँगा। और वही हुआ. बगीचे पर पहुंच कर खलिहान या मकान जो भी कहिये उसका दरवाजा ही खोला था, की बगीचे की बाउन्ड्री का गेट खोलती हुई लाजो और एक ओर औरत घुसी।।
अन्धेरा तो बहुत ज्यादा था, मगर फिर भी किसी बिजली के खम्भे की रोशनी बगीचे में आ रही थी। चौधराइन ने देख लिया और चौधराइन माया देवी की आवाज गूँजी,
“कौन घुस रहा है बगीचे में,,,,,…?”

मदन ने भी पलट कर देखा, तुरन्त समझ गया कि लाजो होगी। इस से पहले की कुछ बोल पाता, कि चौधराइन की कड़कती आवाज इस बार पूरे बगीचे में गुंज गई,
“कौन है, रे ?!!!…ठहर. अभी बताती हूँ।”

इसके साथ ही माया देवी ने दौड़ लगा दी,
“ साली, आम चोर कुतिया,,,,,!। ठहर वहीं पर…!।”

भागते-भागते एक डन्डा भी हाथ में उठा लिया था। माया देवी की कड़कती आवाज जैसे ही लाजो के कानो में पड़ी, उसकी तो हवा खराब हो गई। अपने साथ लाई औरत का हाथ पकड़, घसीटती हुई बोली,
“ये तो चौधराइन…है…। चल भाग…”

दोनो औरतें बेतहाशा भागी। पीछे चौधराइन हाथ में डन्डा लिये गालियों की बौछार कर रही थी। दोनो जब बाउन्ड्री के गेट के बाहर भाग गई तो माया देवी रुक गई। गेट को ठीक से बन्द किया और वापस लौटी। मदन खलिहान के बाहर ही खड़ा था। माया देवी की सांसे फुल रही थी। डन्डे को एक तरफ फेंक कर, अन्दर जा कर धम से बिस्तर पर बैठ गई और लम्बी-लम्बी सांसे लेते हुए बोली,
“साली हरामजादियाँ,,,,,, देखो तो कितनी हिम्मत है !?? शाम होते ही आ गई चोरी करने !,,,,,अगर हाथ आ जाती तो सुअरनियों की चूतड़ों में डन्डा पेल देती…हरामखोर साली, तभी तो इस बगीचे से उतनी कमाई नही होती, जितनी पहले होती थी…। मादरचोदियां, अपनी चूत में आम भर-भर के ले जाती है…रण्डियों का चेहरा नही देख पाई…”
मदन माया देवी के मुंह से ऐसी मोटी-मोटी भद्दी गालियों को सुन कर सन्न रह गया। हालांकि वो जानता था कि चौधराइन चाची कड़क स्वभाव की है, और नौकर चाकरो को गरियाती रहती है. मगर ऐसी गन्दी-गन्दी गालियां उसके मुंह से पहली बार सुनी थी, हिम्मत करके बोला,

“अरे चौधराइन चाची, छोड़ो ना तुम भी…भगा तो दिया…अब मैं रोज इसी समय आया करूँगा ना. तो देखना इस बार अच्छी कमाई…”

“ना ना,,,,,ऐसे इनकी आदत नही छुटने वाली…जब तक पकड़ के इनकी चूत में मिर्ची ना डालोगे बेटा, तब तक ये सब भोसड़चोदीयां ऐसे ही चोरी करने आती रहेंगी…। माल किसी का, खा कोई और रहा है…”
मदन ने कभी चौधराइन चाची को ऐसे गालियां देते नही सुना था। बोल तो कुछ सकता नही था, मगर उसे अपनी वो सारी छिनाल, चुदक्कड़ औरतें याद आ गई. जो चुदवाते समय अपने सुंदर मुखड़े से जब गन्दी-गन्दी बाते करती थी, तब उसका लण्ड लोहा हो जाता था।

माया देवी के खूबसुरत चेहरे को वो एक-टक देखने लगा. भरे हुए कमानीदार होठों को बिचकाती हुई, जब माया देवी ने दो-चार और मोटी गालियां निकाली तो उनके इस छिनालपन को देख मदन का लण्ड खड़ा होने लगा। मन में आया उन भरे हुए होठों को अपने होठों में कस ले और ऐसा चुम्मा ले की होठों का सारा रस चूस ले। खड़े होते लण्ड को छुपाने के लिये जल्दी से बिस्तर पर चौधराइन चाची के सामने बैठ गया।
क्रमश:…………………
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