RE: Muslim Sex Stories सलीम जावेद की रंगीन दुन�...
चौधराइन
भाग-8 चौधराइन के आम
माया देवी की सांसे अभी काफ़ी तेज चल रही थी, और उसका आंचल नीचे उसकी गोद में गिरा हुआ था। बड़ी बड़ी छातियाँ हर सांस के साथ ऊपर नीचे हो रही थी। गोरा चिकना मांसल पेट। मदन का लण्ड पूरा खड़ा हो चुका था।
तभी माया देवी ने पैर पसार अपनी साड़ी को खींचते हुए घुटनों से थोड़ा ऊपर तक चढ़ा, एक पैर मोड़ कर, एक पैर पसार कर, अपने आंचल से माथे का पसीना पोंछती हुई बोली,
“हरामखोरो के कारण दौड़ना पड़ गया…बड़ी गरमी लग रही है. खिड़की तो खोल दे, बेटा।"
जल्दी से उठ कर खिड़की खोलने गया। लण्ड ने लुंगी के कपड़े को ऊपर उठा रखा था, और मदन के चलने के साथ हिल रहा था। माया देवी की आखों में अजीब सी चमक उभर आई थी. वो एकदम खा जाने वाली निगाहों से लुंगी के अन्दर के डोलते हुए हथियार को देख रही थी। मदन जल्दी से खिड़की खोल कर बिस्तर पर बैठ गया, बाहर से सुहानी हवा आने लगी। उठी हुई साड़ी से माया देवी की गोरी मखमली टांगे दिख रही थी।
माया देवी ने अपने गरदन के पसीने को पोंछते हुए, अपनी ब्लाउज के सबसे ऊपर वाले बटन को खोल दिया और साड़ी के पल्लु को ब्लाउज के भीतर घुसा पसीना पोंछने लगी। पसीने के कारण ब्लाउज का उपरी भाग भीग चुका था। ब्लाउज के अन्दर हाथ घुमाती बोली,
“बहुत गरमी है,,,,!! बहुत पसीना आ गया ।"
मदन मुंह फेर ब्लाउज में घुमते हाथ को देखता हुआ, भोंचक्का सा बोल पड़ा,
“हां,,,,!! अह,,, पूरा ब्लाउज भीग,,,,गया...”
“तु शर्ट खोल दे ना…बनियान तो पहन ही रखी होगी…?!।"
साड़ी को और खींचती, थोड़ा सा जांघो के ऊपर उठाती माया देवी ने अपने पैर पसारे.
“साड़ी भी खराब हो…। यहां रात में तो कोई आयेगा नही…”
“नही चाची, यहां…रात में कौन…”
“पता नही, कहीं कोई आ जाये…। किसी को बुलाया तो नही...?”
मदन ने मन ही मन सोचा, जिसको बुलाया था उसको तो तुमने भगा ही दिया, पर बोला, “नही,,,नही,,,!!…किसी को नही बुलाया...!”
“तो, मैं भी साड़ी उतार देती हुं…”
कहती हुई उठ गई और साड़ी खोलने लगी।
मदन भी गरदन हिलाता हुआ बोला,
“हां चौधराइन चाची,,,,फिर पेटिकोट और ब्लाउज…सोने में भी हल्का…”
“हां, सही है…। पर, तु यहां सोने के लिये आता है ?…सो जायेगा तो फिर रखवाली कौन करेगा…???”
“मैं, अपनी नही आपके सोने की बात कहाँ कर रहा हूँ !…आप सो जाइये…मैं रखवाली करूँगा…”
“मैं भी तेरे साथ जाग कर तुझे बताऊँगी कि रखवाली कैसे करनी है नहीं तो मेरे आने का फ़ायदा ही क्या हुआ?”
“तब तो हो गया काम…तुम तो सब के पीछे डन्डा ले कर दौड़ोगी…”
“क्यों, तु नही दौड़ता डान्डा ले कर…? मैंने तो सुना है, गांव की सारी छोरियों को अपने डन्डे से धमकाया हुआ है, तूने !!!?”
चौधराइन ने बड़े अर्थपूर्ण ढंग से उसकी तरफ़ देख मुस्कुराते हुए कहा।
मदन एकदम से झेंप गया,
“धत् चाची,,,,…क्या बात कर रही हो…?”
“इसमे शरमाने की क्या बात है ?… ठीक तो करता है. अपने आम हमें खुद खानें है…। सब चूतमरानियों को ऐसे ही धमकाया दिया कर…।”
चौधराइन ने रंग बदलते गिरगिट की तरह बात का मतलब बदल दिया।
मदन की रीड की हड्डियों में सिहरन दौड़ गई। माया देवी के मुंह से निकले इस चूत शब्द ने उसे पागल कर दिया। उत्तेजना में अपने लण्ड को जांघो के बीच जोर से दबा दिया। चौधराइन ने साड़ी खोल एक ओर फेंक दिया, और फिर पेटिकोट को फिर से घुटने के थोड़ा ऊपर तक खींच कर बैठ गई, और खिड़की के तरफ मुंह घुमा कर बोली,
“लगता है, आज बारिश होगी ।"
मदन कुछ नही बोला. उसकी नजरे तो माया देवी की गोरी-गठीली पिन्डलियों का मुआयना कर रही थी। घुमती नजरे जांघो तक पहुंच गई और वो उसी में खोया रहता, अगर अचानक माया देवी ना बोल पड़ती,
“बदन बेटा, आम खाओगे…!!?”
मदन ने चौंक कर नजर उठा कर देखा, तो उसे ब्लाउज के अन्दर कसे हुए दो आम नजर आये. इतने पास, की दिल में आया मुंह आगे कर चूचियों को मुंह में भर ले. दूसरे किसी आम के बारे में तो उसका दिमाग सोच भी नही पा रहा था. हड़बडाते हुए बोला,
“आम,,,,? कहाँ है, आम…? अभी कहाँ से…?”
माया देवी उसके और पास आ, अपनी सांसो की गरमी उसके चेहरे पर फेंकती हुई बोली,
“आम के बगीचे में बैठ कर…आम नहीं दिख रहे…!!!! बावला हो रहा है क्या?”
कह कर मुस्कुराई…...।
“पर, रात में,,,,,,आम !?”,
बोलते हुए मदन के मन में आया की गड्ढे वाले गालो को अपने मुंह में भर कर चूस ले।
धीरे से बोली,
“अरे रात में ही आम खाने में मजा आता है खा ले! खा ले! वैसे भी तेरा वो बाप सदानन्द कंजूस तो तुझे आम खिलाने से रहा।”
“नहीं चाची, पिताजी आम लाते हैं।”
चौधराइन ने मन ही मन कहा –“वो भी मेरे ही आम चूसता है रोज रात को दुखते हैं।” पर ऊपर से बोलीं –“अरे मुझे न बता वो भी मेरे ही आम से काम चलाता है। चल बाहर चलते हैं।”,
कहती हुई, मदन को एक तरफ धकेलते बिस्तर से उतरने लगी।
इतने पास से बिस्तर से उतर रही थी, की उसकी नुकिली चूचियों ने अपनी चोंच से मदन की बाहों को छु लिया। मदन का बदन गनगना गया। उठते हुए बोला,
“क्या चौधराइन चाची आपको भी इतनी रात में क्या-क्या सूझ रहा है…इतनी रात में आम कहाँ दिखेंगे?”
“ये टार्च है ना,,,,,,बारिश आने वाली है…नहीं तोड़ेंगे तो जितने भी पके हुए आम है, गिर कर खराब हो जायेंगे…।”
और टार्च उठा बाहर की ओर चल दी।
आज उनकी चाल में एक खास बात थी. मदन का ध्यान बराबर उसकी मटकती, गुदाज कमर और मांसल हिलते चूतड़ों की ओर चला गया। गांव की उनचुदी, जवान लौंडियों को चोदने के बाद भी उसको वो मजा नही आया था, जो उसे औरतों (जैसे लाजो, बेला) वगैरह ने दिया था।
इतनी कम उम्र में ही मदन को ये बात समझ में आ गई थी, की बड़ी उम्र की मांसल, गदराई हुई औरतों को चोदने में जो मजा है, वो मजा दुबली-पतली अछूती अनचुदी बुरों को चोदने में नही आता । खेली-खाई औरतें कुटेव करते हुए लण्ड डलवाती है, और उस समय जब उनकी चूत फच-फच…गच-गच अवाज निकालती है, तो फिर घंटो चोदते रहो…उनके मांसल, गदराये जिस्म को जितनी मरजी उतना रगड़ो।
एकदम गदराये-गठीले चूतड़, पेटिकोट के ऊपर से देखने से लग रहा था की हाथ लगा कर अगर पकड़े, तो मोटे मांसल चूतड़ों को रगड़ने का मजा आ जायेगा। ऐसे ठोस चूतड़ की, उसके दोनो भागों को अलग करने के लिये भी मेहनत करनी पड़ेगी। फिर उसके बीच चूतड़ों के बीच की नाली बस मजा आ जाये।
पायजामा के अन्दर लण्ड फनफाना रहा था। अगर माया देवी उसकी चौधराइन चाची नही होती तो अब तक तो वो उसे दबोच चुका होता। इतने पास से केवल पेटिकोट-ब्लाउज में पहली बार देखने का मौका मिला था। एकदम गदराई-गठीली जवानी थी। हर अंग फ़ड़फ़ड़ा रहा था। कसकती हुई जवानी थी, जिसको रगड़ते हुए बदन के हर हिस्से को चुमते हुए, दांतो से काटते हुए रस चूसने लायक था। रात में सो जाने पर साड़ी उठा के चूत देखने की कोशिश की जा सकती थी, ज्यादा परेशानी शायद ना हो, क्योंकि उसे पता था की गांव की औरतें कच्छी नही पहनती।
इसी उधेड़बुन में फ़ँसा हुआ, अपनी चौधराइन चाची के हिलते चूतड़ों और उसमें फँसे हुए पेटिकोट के कपड़े को देखता हुआ, पीछे चलते हुए आम के पेड़ों के बीच पहुंच गया। वहां माया देवी फ्लेश-लाईट (टार्च) जला कर, ऊपर की ओर देखते हुए बारी-बारी से सभी पेड़ों पर रोशनी डाल रही थी।
“इस पेड़ पर तो सारे कच्चे आम है…इस पर एक-आध ही पके हुए दिख रहे…”
“इस तरफ टार्च दिखाओ तो चौधराइन चाची,,…इस पेड़ पर …पके हुए आम…।”
“कहाँ है,,,? इस पेड़ पर भी नही है, पके हुए…तु क्या करता था, यहां पर…?? तुझे तो ये भी नही पता, किस पेड़ पर पके हुए आम है…???”
मदन ने माया देवी की ओर देखते हुए कहा,
“पता तो है, मगर उस पेड़ से तुम तोड़ने नही दोगी…!।"
“क्यों नही तोड़ने दूँगी,,?…तु बता तो सही, मैं खुद तोड़ कर खिलाऊँगी..”
फिर एक पेड़ के पास रुक गई,
“हां,,,!! देख, ये पेड़ तो एकदम लदा हुआ है पके आमों से…। चल ले, टार्च पकड़ के दिखा, मैं जरा आम तोड़ती हूँ…।”
कहते हुए माया देवी ने मदन को टार्च पकड़ा दिया। मदन ने उसे रोकते हुए कहा,
“क्या करती हो…?, कहीं गिर गई तो …? तुम रहने दो मैं तोड़ देता हुं…।”
“चल बड़ा आया…आम तोड़ने वाला…बेटा, मैं गांव में ही बड़ी हुई हुं…जब मैं छोटी थी तो अपनी सहेलियों में मुझसे ज्यादा तेज कोई नही था, पेड़ पर चढ़ने में…देख मैं कैसे चढ़ती हुं…”
“अरे, तब की बात और थी…”
पर मदन की बाते उसके मुंह में ही रह गई, और माया देवी ने अपने पेटिकोट को थोड़ा ऊपर कर अपनी कमर में खोस लिया, और पेड़ पर चढ़ना शुरु कर दिया।
मदन ने भी टार्च की रोशनी उसकी तरफ कर दी। थोड़ी ही देर में काफी ऊपर चढ़ गई, और पेर की दो डालो के ऊपर पैर जमा कर खड़ी हो गई, और टार्च की रोशनी में हाथ बढ़ा कर आम तोड़ने लगी. तभी टार्च फिसल कर मदन की हाथों से नीचे गिर गयी।
“अरे,,,,,क्या करता है तु…? ठीक से टार्च भी नही दिखा सकता क्या ?”
मदन ने जल्दी से नीचे झुक कर टार्च उठायी और फिर ऊपर की…
“ठीक से दिखा,,,इधर की तरफ…”
टार्च की रोशनी चौधराइन जहां आम तोड़ रही थी, वहां ले जाने के क्रम में ही रोशनी माया देवी के पैरो के पास पड़ी तो मदन के होश ही उड़ गये...॥
माया देवी ने अपने दोनो पैर दो डालो पर टिका के रखे हुए थे. उसका पेटिकोट दो भागो में बट गया था. और टार्च की रोशनी सीधी उसके दोनो पैरो के बीच के अन्धेरे को चीरती हुई पेटिकोट के अन्दर के माल को रोशनी से जगमगा दिया।
पेटिकोट के अन्दर के नजारे ने मदन की तो आंखो को चौंधिया दिया। टार्च की रोशनी में पेटिकोट के अन्दर कैद, चमचमाती मखमली टांगे पूरी तरह से नुमाया हो गई. रोशनी पूरी ऊपर तक चूत की काली काली झाँटों को भी दिखा रही थी। टार्च की रोशनी में कन्दली के खम्भे जैसी चिकनी मोटी जांघो और चूत की झाँटों को देख, मदन को लगा की उसका लण्ड पानी फेंक देगा. उसका गला सुख गया और हाथ-पैर कांपने लगे।
तभी माया देवी की आवाज सुनाई दी,
“अरे, कहाँ दिखा रहा है ? यहां ऊपर दिखा ना…!!।
हकलाते हुए बोला,
“हां,,,! हां,,,!, अभी दिखाता…वो टार्च गिर गयी थी…”
फिर टार्च की रोशनी चौधराइन के हाथों पर फोकस कर दी। चौधराइन ने दो आम तोड़ लिये फिर बोली,
“ले, केच कर तो जरा…”
और नीचे की तरफ फेंके, मदन ने जल्दी से टार्च को कांख में दबा, दोनो आम बारी-बारी से केच कर लिये और एक तरफ रख कर, फिर से टार्च ऊपर की तरफ दिखाने लगा…और इस बार सीधा दोनो टांगो के बीच में रोशनी फेंकी. इतनी देर में माया देवी की टांगे कुछ और फैल गई थी. पेटिकोट भी थोड़ा ऊपर उठ गया था और चूत की झाँटें और ज्यादा साफ दिख रही थी। मदन का ये भ्रम था या सच्चाई पर माया देवी के हिलने पर उसे ऐसा लगा, जैसे चूत के लाल लपलपाते होठों ने हल्का सा अपना मुंह खोला था। लण्ड तो लुंगी के अन्दर ऐसे खड़ा था, जैसे नीचे से ही चौधराइन की चूत में घुस जायेगा। नीचे अन्धेरा होने का फायदा उठाते हुए, मदन ने एक हाथ से अपना लण्ड पकड़ कर हल्के से दबाया। तभी माया देवी ने कहा,
“जरा इधर दिखा…।”
मदन ने वैसा ही किया. पर बार-बार वो मौका देख टार्च की रोशनी को उसकी टांगो के बीच में फेंक देता था। कुछ समय बाद माया देवी बोली,
“और तो कोई पका आम नही दिख रहा।…चल मैं नीचे आ जाती हुं. वैसे भी दो आम तो मिल ही गये…। तु खाली इधर उधर लाईट दिखा रहा है, ध्यान से मेरे पैरों के पास लाईट दिखाना।"
कहते हुए नीचे उतरने लगी।
मदन को अब पूरा मौका मिल गया. ठीक पेड़ की जड़ के पास नीचे खड़ा हो कर लाईट दिखाने लगा। नीचे उतरती चौधराइन के पेटिकोट के अन्दर रोशनी फेंकते हुए, मस्त चौधराइन माँसल, चिकनी जांघो को अब वो आराम से देख सकता था. क्योंकि चौधराइन का पूरा ध्यान तो नीचे उतरने पर था, हालांकि चूत की झाँटों का दिखना अब बन्द हो गया था, मगर चौधराइन का मुंह पेड़ की तरफ होने के कारण पीछे से उसके मोटे-मोटे चूतड़ों का निचला भाग पेटिकोट के अन्दर दिख रहा था। गदराई गोरी चूतड़ों के निचले भाग को देख लण्ड अपने आप हिलने लगा था।
एक हाथ से लण्ड पकड़ कस कर दबाते हुए, मदन मन ही मन बोला, “हाय ऐसे ही पेड़ पर चढी रह उफफ्फ्…क्या चूतड़ हैं ?…किसी ने आज तक नही रगड़ा होगा एकदम अछूते चूतड़ों होंगे…। हाय चौधराइन चाची…लण्ड ले कर खड़ा हूँ, जल्दी से नीचे उतर के इस पर बैठ जा ना…”
ये सोचने भर से लण्ड पनिया गया था। तभी चौधराइन का पैर फिसला और हाथ छुट गया। मदन ने हडबड़ा कर नीचे गिरती चौधराइन को कमर के पास से लपक के पकड़ लिया। मदन के दोनो हाथ अब उसकी कमर से लिपटे हुए थे और चौधराइन के दोनो पैर हवा में और मदन का लण्ड सीधा चौधराइन की मोटे गुदाज चूतड़ों को छु रहा था। हडबड़ाहट में दोनो की समझ में कुछ नही आ रहा था, कुछ पल तक मदन ने भी उसके भारी शरीर को ऐसे ही थामे रखा और माया देवी भी उसके हाथों को पकड़े अपनी चूतड़ों को उसके लण्ड पर टिकाये झुलती रही।
कुछ देर बाद, धीरे से शरमाई आवज में बोली,
“हाय,,,,, बच गई,,,,,, अभी गिर जाती. अब छोड़, ऐसे ही उठाये रखेगा क्या,,,,??”
मदन उसको जमीन पर खड़ा करता हुआ बोला
“मैंने तो पहले ही कहा था…”
माया देवी का चेहरा लाल पर गया था। हल्के से मुस्कुराती हुई, कनखियों से लुंगी में मदन के खड़े लण्ड को देखने की कोशिश कर रही थी। अन्धेरे के कारण देख नही पाई मगर अपनी चूतड़ों पर, अभी भी उसके लण्ड की चुभन का अहसास उसको हो रहा था। अपने पेट को सहलाते हुए धीरे से बोली,
“कितनी जोर से पकड़ता है तु ?,,,,लगता है, निशान पड़ गया…”
मदन तुरन्त टार्च जला कर, उसके पेट को देखते हुए बुदबुदाते हुए बोला,
“…वो अचानक ही…।”
मुस्कुराती हुई माया देवी धीरे कदमों से चलती मदन के एकदम पास पहुंच गई…इतने पास की उसकी दोनो चूचियों का अगला नुकिला भाग लगभग मदन की छातियों को टच कर रहा था, और उसकी बनियान में कसी छाती पर हल्के से हाथ मरती बोली,
“पूरा सांड़ हो गया है…तु… मैं इतनी भारी हुं…मुझे ऐसे फ़ूल सा टांग लिया…। चल आम उठा ले।"
क्रमश:………………………………
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