RE: Muslim Sex Stories सलीम जावेद की रंगीन दुन�...
चौधराइन
भाग 10 - खूब चुसे आम चौधराइन के
मदन की समझ में आ गया की माया देवी क्या चाहती है।
“आपही ने तो कहा आपके पेड़ के आम खाने को अब मैं खाना चाह रहा हूँ तो”,
इतना कहते हुए, मदन आगे बढ़ अपना एक हाथ माया देवी के पेट पर रख दिया और उसकी वासना से जलती नशीली आंखो में झांक कर देखा।
“तो खा…ना…!!। मैं तो कब से…!!।”
चाहत और अनुरोध से भरी आंखो ने मदन को हिम्मत दी, और उसने छाती पर झुक कर अपनी लम्बी गरम जुबान बाहर निकाल कर, चूचियों के ऊपर लगे आम के रस को चाट लिया।
इतनी देर से गीला ब्लाउज पहन ने के कारण माया देवी की चूचियाँ एकदम ठंडी हो चुकी थी। ठंडी चूचियों पर ब्लाउज के ऊपर मदन की गरम जीभ जब सरसराती हुई धीरे से चली, तो उसके बदन में सिहरन दौड़ गई। कसमसाती हुई अपने रसीले होठों को अपने दांतो से दबाती हुई बोली,
“चा,,,,ट कर,,,,,,सा…फ करेगा…!!?।
मदन ने कोई जवाब नही दिया।
“आम तो चूस…ने(!!) मैं तो…चुस,,,,,,वाने ही आई थी…।"
माया देवी ने सीधी बात करने का फैसला कर लिया था।
“हाय तो चूसूँ चाची!!?”
चूची चूसने की इस खुल्लम-खुल्ला आमंत्रण ने लण्ड को फनफना दिया, उत्तेजना अब सीमा पार कर रही थी।
पेट पर रखे हाथ को धीरे से पकड़ कर अपनी छाती पर रखती हुई, माया देवी मुस्कुराती हुई धीरे से बोली,
“ ले चू,,,,,,स…बहुत मीठा है…।"
मदन ने अपनी बांई हथेली में उसकी एक चूची को कस लिया और जोर से दबा दिया, माया देवी के मुंह से सिसकारी निकल गई,
“चूसने के लिये,,,बोला तो… ”
“दबा के देखने तो दे…चूसने लायक पके है,,,,, या,,,????”,
शैतानी से मुस्कुराता धीरे से बोला।
“तो धीरे से दबा…जोर से दबा के… तो,,,सारा रस,,,,निकल,,,,,,”
मदन की चालाकी पर धीरे से हँस दी।
“सच में चूसूँ चाची…??????”,
मदन ने वासना से जलती आंखो में झांकते हुए पुछा।
“और कैसे…!!! बोलूँ क्या लिख के दूँ …?”,
उत्तेजना से कांपती, गुस्से से मुंह बिचकाती बोली।
मदन को अब भी विश्वास नही हो रहा था, की ये सब इतनी आसानी से हो रहा है। कहाँ, तो वो प्लान बना रहा था, की रात में साड़ी उठा कर अन्दर का माल देखेगा…यहां तो दसो उगँलियाँ घी में और पूरा सिर कढ़ाई में घुसने जा रहा था।
गरदन नीचे झुकाते हुए, मदन ने अपना मुंह खोल भीगे ब्लाउज के ऊपर से चूची को निप्पल सहित अपने मुंह में भर लिया। हल्का सा दांत चुभाते हुए, इतनी जोर से चुसा की माया देवी के मुंह से आह भरी सिसकारी निकल गई। मगर मदन तो अब पागल हो चुका था। एक चूची को अपने हाथ से दबाते हुए, दूसरी चूची पर मुंह मार मार के चूसने, चुमने लगा। माया देवी केलिए ये नया अनुभव था, सदानन्द एक अनुभवी मर्द की तरह उससे प्यार से पेश आता था धीरे धीरे आगे बढ़कर अपनी प्रचन्ड काम शक्ति और धैर्य के साथ उसे सन्तुष्ट करता था मगर आज एक जमाने के बाद जब उसकी चूचियों को एक नव जवान के हाथ और मुंह की नोच खसोट मिली तो उसे अपनी नवजवानी के दिन याद आ गये जब वो सदानन्द और दूसरे लड़कों के साथ ऐसी नोच्खसोट करती थी । मुंह से सिसकारियां निकलने लगी, उसने अपनी जांघो को भींचते हुए , मदन के सिर को अपनी चूचियों पर भींच लिया।
गीले ब्लाउज के ऊपर से चूचियों को चूसने का बड़ा अनुठा मजा था। गरम चूचियों को गीले ब्लाउज में लपेट कर, बारी-बारी से दोनो चूचियों को चूसते हुए, वो निप्पल को अपने होठों के बीच दबाते हुए चबाने लगा। निप्पल एकदम खड़े हो चुके थे और उनको अपने होठों के बीच दबा कर खींचते हुए, जब मदन ने चुसा तो माया देवी छटपटा गई।
मदन के सिर को और जोर से अपने सीने पर भींचती सिसयायी,
“इससस्स्स्,,,,,, उफफफ्फ्,,,,,,। धीरे…आराम से, आम चु…स…”
दोनो चूचियों की चोंच को बारी-बारी से चूसते हुए, जीभ निकाल कर छाती और उसके बीच वाली घाटी को ब्लाउज के खुले बटन से चाटने लगा। फिर अपनी जीभ आगे बढ़ाते हुए, उसकी गरदन को चाटते हुए अपने होठों को उसके कानो तक ले गया, और अपने दोनो हाथों में दोनो चूचियों को थाम, फुसफुसाते हुए बोला,
“बहुत मीठा है, तेरा आम…छिलका,,,, (!!?) उतार के खाउं…??।"
माया देवी भी उसकी गरदन में बांहे डाले, अपने से चिपकाये फुसफुसाती हुई बोली,
“हाय,,,,,, छिलका…उतार के…? ”
“हां,,,,, शरम आ रही है,,,, क्या ?"
“शरमाती तो,,,,, आम हाथ में पकड़ाती…?”
“तो उतार दुं,,,,, छिलका…?”
“उतार दे, हरामी,,,,, तू बक-बक बहुत करता है ??”
मदन ने जल्दी से गीले ब्लाउज के बटन चटकाते हुए खोल दिये, ब्लाउज के दोनो भागों को दो तरफ करते हुए, उसकी काले रंग की ब्रा को खोलने के लिये अपने दोनो हाथों को चौधराइन की पीठ के नीचे घुसाया, तो उसने अपने आप को अपने चूतड़ों और गरदन के सहारे बिस्तर से थोड़ा सा ऊपर उठा लिया। चौधराइन की दोनो चूचियाँ मदन की छाती में दब गई। चूचियों के कठोर निप्पल मदन की छाती में चुभने लगे तो मदन ने पीठ पर हाथों का दबाव बढ़ा कर, चौधराइन को और जोर से अपनी छाती से चिपका लिया और उसकी कठोर चूचियों को अपनी छाती से पीसते हुए, धीरे से ब्रा के हुक को खोल दिया। कसमसाती हुई चौधराइन ने उसे थोड़ा सा पीछे धकेला और गीले ब्लाउज से निजात पाई और तकिये पर लेट मदन की ओर देखने लगी। चौधराइन की आंखे नशे में डूबी लग रही थी। मदन ने कांपते हाथों से ब्रा उतारी तो उनके बड़े बड़े दूध से सफेद उरोज ऐसे फड़फड़ाये जैसे दो बड़े बड़े सफेद कबूतरों हों । मदन ने मदन ने दोनो हाथों में थाम उन कबूतरों को काबू में किया। मदन ने देखा कि उसके हाथों मे चौधराइन के स्तन इतनी देर दबाने मसलने से लाल हो दो बड़े बड़े कटीले लंग़ड़ा आम से लग रहे हैं उन्हें हल्के से दबाते हुए धीरे से बोला,
“बड़े…मस्त आम है !”
“तो खाले न” चौधराइन की आवाज आई।
ये सुनते ही मदन ने हलके भूरे रंग का निप्पल अपने मुँह मे दबा लिया और चूसने लगा । थोड़ी ही देर में मदन की उत्तेजना काबू के बाहर होने लगी और वो पहले तो उनके निप्पलो को बदल बदलकर होंठों में दबा चुभलाने चूसने लगा। फ़िर उनके गदराये जिस्म पर जॅहा तॅहा मुंह मारने लगा। उसने चौधराइन के बगल में लेटते हुए उन्हें अपनी तरफ घुमा लिया, और उनके रस भरे होठों को अपने होठों में भर, नंगी पीठ पर हाथ फेरते हुए, अपनी बाहों के घेरे में कस जोर से चिपका लिया। करीब पांच मिनट तक दोनो मुँह बोले चाची-भतीजे एक दूसरे से चिपके हुए, एक दूसरे के मुंह में जीभ ठेल-ठेल कर चुम्मा-चाटी करते रहे। जब दोनो अलग हुए तो हांफ रहे थे ।
मदन का जोश और चूसने का तरीका चौधराइन को पागल बना रहा था। छिनाल औरतों की दी हुई ट्रेनिंग़ का पूरा फायदा उठाते हुए, मदन ने चौधराइन की चूचियों को फिर से दोनो हाथों में थाम लिया और उसके निप्पल को चुटकी में पकड़ मसलते हुए, एक चूची के निप्पल से अपनी जीभ को लड़ाने लगा। चौधराइन भी अपने एक हाथ से चूची को पकड़ मदन के मुंह में ठेलने की कोशिश करते हुए, सिसयाते हुए चूसवा रही थी। बारी-बारी से दोनो चूचियों को मसलते चूसते हुए, उसने दोनो चूचियों को चूस-चूस कर लाल कर दिया। चूचियों के निपल दांतों में दबा चूसते हुए बोला,
“चौधराइन चाची…आप,,,,ठीक कहती… थीं…तेरे पेड़ के…आम…उफफ्,,,,,पहले क्यों…अभी तक तो पूरा चूस चूस कर…सारा आम-रस पी डालता ।”
चौधराइन कभी उसके सिर के बालो को सहलाती, कभी उसकी पीठ को, कभी उसके चूतड़ों तक हाथ फेरती बोली,
“अभी…चूसने को मिला न …खूब चूस…भतीजे…।”
तभी मदन ने अपने दांतो को उसकी चूचियों पर गड़ाते हुए निप्पल को खींचा, तो दर्द से कराहती बोली,
“बदमाश…चूसने वाला…आम है,,,,,,,,,न कि खाने वाला …उन रण्डियों…का होगा,,,,,,, जिनको…उफफफ्…। धीरे से चूस…चूस कर…उफफफ्,,,.. बेटा,,,…निप्पल को…होठों के बीच दबा…के…धीरे से…नही तो छोड़…दे…”
इस बात पर मदन ने हँसते हुए चौधराइन की चूचियों पर से मुंह हटा, उसके होठों को चुम धीरे से कान में बोला,
“इतने जबरदस्त,,,,,,,आम पहले नही चखाये, उसी की सजा…”
चौधराइन भी मुस्कुराती हुई धीरे से बोली,
“कमीना…गन्दा लड़का।”
“गन्दी औरत …गन्दी चाची का गन्दा भतीजा…”,
बोलते बोलते मदन रुक गया।
गन्दी औरत बोलता है,,,,? चौधराइन ने दाँत पीसते दोनो हाथों में मदन के चेहरे को भरती हुई, उसके होठों और गालो को बेतहाशा चुमती हुई, उसके होठों पर अपने दांत गड़ा दिये. मदन सिसया कर कराह उठा। हँसती हुई बोली, “अब बोल कैसा लगा,,,,? खुद, वैसे भी तू मेरा भान्जा हुआ वो भी मुँह बोला, क्योंकि चौधरी साहब को को तेरी माँ भाई कहती है ।" मदन ने भी अपन गाल छुडा कर, उनके गुदाज संगमरमरी कंधे पर दांत गड़ा दिये और बोला, -“मैं तो शुरू से चाची ही कहता हूँ”
चल मामी कम चाची सही अपनी चाची के साथ गन्दा काम…? चौधराइन की मुस्कान और चौड़ी हो गई।
“तू भी तो अपने भान्जे कम भतीजे के साथ…।" मदन ने जवाब दिया।
दोनो अब बेशरम हो चुके थे। मदन अपना एक हाथ चूचियों पर से हटा, नीचे जांघो पर ले गया और टटोलते हुए, अपने हाथ को जांघो के बीच डाल दिया। चूत पर पेटिकोट के ऊपर से हाथ लगते ही चौधराइन ने अपनी जांघो को भींचा, तो मदन ने जबरदस्ती अपनी पूरी हथेली जांघो के बीच घुसा दी और चूत को मुठ्ठी में भर, पकड़ कर मसलते हुए बोला,
“अब तो अपना बिल दिखा ना,,,,,!!!”
पूरी चूत को मसले जाने पर कसमसा गई चौधराइन, फुसफुसाती हुई बोली,
“तू,,,,, आम…चूस…मेरा बिल …देखेगा तो तेरा मन करेगा फ़िर……चाची कम मामीचोद…बन…”
मदन समझ गया की गन्दी बाते करने में चौधराइन चाची को मजा आ रहा है।
“अगर डण्डा डालूँगा,,,,,!!। तभी,,,,,,, चाची कम मामीचोद कहलाऊँगा… मैंने तो खाली दिखानेको बोला है… तू क्या चुदवाना चाहती है!।”,
कहते हुए, चूत को पेटिकोट के ऊपर से और जोर से मसलते, उसकी पुत्तियों को चुटकी में पकड़ जोर से मसला।
“हाय…हरामी, क्या बोलता है मेरे…बिल… में डंडा…घुसायेगा ??।”
चौधराइन ने जोश में आ उसके गाल को अपने मुँह में भर लिया, और अपने हाथ को सरका, कमर के पास ले जाती लुंगी के भीतर हाथ घुसाने की कोशिश की। हाथ नहीं घुसा, मगर मदन के दोनो अंडकोश उसकी हथेली में आ गये। जोर से उसी को दबा दिया, मदन दर्द से कराह उठा। कराहते हुए बोला,
“उखाड़ लेगी,,,,,क्या,,,???… क्या चाहिये,,,!!? ”
चौधराइन ने जल्दी से अंडकोश पर पकड़ ढीली की,
“हथियार,,,(!),,, दिखा.....?”
“थोड़ा ऊपर नही पकड़ सकती थी…? पेड़ पर तो सब देख लिया था…?”
“तुझे, पता…था ?तो तू जान-बुझ के दिखा रहा था, वैसे पेड़ पर… तो तूने भी… देखा था…”
“तो तू भी…जान-बुझ कर दिखा रही थी ! …”,
कहते हुए चौधराइन का हाथ पकड़ अपनी लुंगी के भीतर डाल दिया दिया।
खड़े लण्ड पर हाथ पड़ते ही चौधराइन का बदन सिहर गया। गरम लोहे की राड की तरह तपते हुए लण्ड को मुठ्ठी में कसते ही, लगा जैसे चूत पनियाने लगी हो। मुँह से निकला –हय साल्ला! सदानन्द की औलाद का लौड़ा मारूँ!”
ये सुन मदन चुका –“ क्या मतलब चाची!”
चौधराइन –“ कहाँ की चाची किसका भाई मेरे बचपन का यार है तेरा बाप पहले भी चुदवाती थी अब भी लगभग रोज दोपहर को……?
मदन –“ तेरी माँ की आँख चाची! वाह चाची मैं तो आप को सीधा समझ रहा था”
मदन के लण्ड को हथेली में कस कर, जकड़ मरोड़ती हुई बोली,
“तो क्या सारी दुनियाँ में तू ही एक चुदक्कड़ है हम भी कुछ कम नहीं ऐसा ही वो(सदानन्द) भी है जैसा बाप वैसा बेटा । जैसे गधे का…उखाड़ कर लगा लिया हो ?”
“है, तो…तेरे भतीजे काही…मगर…गधे के…जैसा !!!”,
बोलते हुए चूत की दरार में पेटिकोट के ऊपर से उँगली चलाते हुए बोला,
“पानी…फेंक रही है…”
“चाचीकम मामीचोद बने,,,,गा,,,,,,,,क्या,,,?”
“तू,,,,भतीजे कम भांजे की … रखैल बनेगी?....”
“जल्दी कर! अब रहा नही जा रहा…”
“पर पूरी नंगी करूँगा…????”
“जो चाहे कर हां! पर जल्दी,,,,,”
क्रमश:…………………………
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