Muslim Sex Stories सलीम जावेद की रंगीन दुनियाँ
04-25-2019, 12:00 PM,
#65
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कम्मो भटियारिन की सराय

भाग 1- जान-पहचान 
आडीटर देवराज पाण्डे उर्फ़ देबू भाई अपनी आडीटर मण्ड्ली जिसमें उनके अतिरिक्त तीन पुरुष आडीटर (चन्दन चौहान उर्फ़ चन्दू, नन्दराम त्रिवेदी उर्फ़ नन्दू और राजेन्द्र यादव उर्फ़ रज्जू) और दो महिला आडीटर (हुमा सुलेमान और मोना सोलांकी) के साथ ट्रेन से तीन दिन का लम्बा सफ़र कर वीराने में बने इस बड़े पावर जनरेशन स्टेशन की आडिट करने करीब शाम के चार बजे पहुँचे। यहाँ आने के निर्णय से रज्जू इस मण्डली में सबसे अधिक उत्साहित था क्योंकि वो इसी इलाके का रहने वाला था। वहाँ के चीफ़ एकाउन्टैन्ट ने इन्हे बताया कि यहाँ बिजली बनाने वाली मशीनो के शोर शराबे की वजह से हमने गेस्ट हाउस न बना कर पास के गाँव मे स्थित सराय को गेस्ट हाउस का ठेका दिया हुआ है आप सब वहीं ठहरेंगे । ये सुनकर रज्जू बहुत खुश हुआ उसे खुश होते देख अपने आडीटर इन्चार्ज पाण्डेयजी ने नाक भौं सिकोड़ते हुए कहा –
“वहाँ गाँव की सराय में मच्छरों से जिस्म नुचवाने में इतना खुश होने की क्या बात है जो दाँत निकाल रहे हो।”
ये सुन रज्जू यादव, पाण्डेयजी को एक तरफ़ ले जाकर बोला –
“अरे पाण्डेजी, साफ़ सुथरा गाँव है समझदार जागरूक लोग हैं रोज शाम को जगह जगह नारियल के अलाव जलते हैं मच्छरों का तो सवाल ही नहीं पैदा होता। (फ़िर हुमा और मोना की तरफ़ इशारा कर बोला) घर में तो हम ये शहरी शामी कवाब, खीर पूरी, खाते ही हैं अब आफ़िस से इतनी दूर, तीन दिन का सफ़र कर आने के बाद भी क्या गाँव के आम, खरबूजों का स्वाद न लेंगे।”
पाण्डेयजी(चौंककर) –“अबे कुछ जुगाड़ है क्या रज्जू?
रज्जू तपाक से बोला–“अरे सब यहीं पूछ लेंगे । आप चलिये तो सही।”
पाण्डेयजी को रज्जू की बात में दम नजर आया कि आफ़िस मे तो आफ़िस की महिला आडीटरों, क्लर्कों की चूते मिलती ही रहती हैं क्यों न चलकर कुछ नया किया जाय यानि रज्जू के शब्दों में गाँव के आम, खरबूजों का स्वाद लिया जाय । फ़िर भी सफ़र के मजे के लिए चारो हरामी अपने साथ दो महिला आडीटर हुमा और मोना को ले के ट्रेन के फ़र्स्ट क्लास केबिन में गये थे। तीन दिन तीन रात कूपा बन्द कर चारो हरामियों ने हुमा और मोना की चूतें खूब बजाई थी । हुमा और मोना भी उस आफ़िस की मानी हुई चुदक्कड़ थी, उस फ़र्स्ट क्लास केबिन में तीन दिन तीन रात दोनों नाइटी में ही रहीं, कच्छी तो पहनी ही नहीं, लण्ड बदल बदल कर अपनी चूतों की प्यास जम के बुझवाई थी । जाहिर था कि इन तीन दिनों में आडीटर मण्डली के लण्ड और चूत एक दूसरे के लिए दाल भात हो गये थे । बस पाण्डेयजी गाँव की सराय में जाने को तैयार हो गये। उधर रज्जू ने हुमा और मोना को भी समझा दिया कि हम तो (मतलब था हमारे लण्ड) तो आप लोगों की (यानि कि चूतों की) सेवा करते ही हैं जरा गाँव के लठैतों को (मतलब लठैतों के लण्डों को) भी सेवा का मौका दीजिये । दोनों चुदक्कड़ फ़ौरन मान गईं।
ये छोटा सा गाँव पावर जनरेशन स्टेशन के पास मुख्य सड़क पर ही है इस गाँव में यही कोई 40-50 मकान बने होंगे। आस पास कोई बड़ा शहर भी नहीं है सो पावर स्टेशन में किसी काम आने वालों के लिये रात मे ठहरने के लिए इस गाँव में होटल के नाम पर कम्मो भटियारिन की सराय ही एक आसरा है। उस पे तुर्रा ये कि मुख्य सड़क पर बसा होने के बावजूद मुख्य सड़क केवल गाँव का प्रवेश द्वार ही है अर्थात मुख्य सड़क से एक दूसरी सड़क निकली थी जोकि गाँव के अन्दर गई थी। इस सड़क पर चलते हुए पूरा गाँव पार कर आखीर में एक बड़ा हाता है इसे ही कम्मो भटियारिन की सराय भी कहते हैं गाँव से होकर एक नदी भी गुजरती है। जिसके किनारे गाँव वालों ने तमाम नारियल के पेड़ लगाये हुए हैं, नारियल की पैदावार अच्छी है । नदी की तरफ के मकानों से देखा जाय तो भी कम्मो भटियारिन की सराय का हाता ही आखरी मकान है, क्योंकि उसके बाद कोई मकान नही है उसी सड़क पर आगे चलें तो थोड़ी दूर पर एक पुलिया है। पुलिया के पीछे आम का काफ़ी बड़ा बगीचा है, और उस बगीचे के पीछे से थोड़ा बहुत जंगल शुरू हो जाता है और आगे की सड़क कच्ची है । सराय के दूसरी ओर एक और रास्ता भी है जिसे पूरा गाँव पास की नदी पर जाने के लिए इस्तेमाल करता है उस नदी का घाट भी सराय से करीब 200 मीटर की दूरी पर ही है। सराय का दरवाजा या फ़ाटक सड़क से लगा हुआ है। रज्जू सबको लेके फ़ाटक पर पहुँचा्।
पाण्डेय जी –“अबे रज्जू ये तू कहाँ ले आया। देखने में तो ये किसी पुराने जमाने की गोदाम का फ़ाटक लगता है?
रज्जू –“हाँ पर चार दीवारी के अन्दर काफ़ी बड़ी सराय है।”
तभी कम्मो भटियारिन किसी काम से बाहर निकली। रज्जू को देखते ही बोली –“अरे रज्जू भैया! आओ आओ, बड़े दिनो पे सुध ली(याद किया)।”
रज्जू –“हाँ, दरअसल मेरी शहर में नौकरी लग गई इसीलिए इस तरफ़ आने का मौका नही लगा। ये हमारे बड़े आडीटर साहब श्री पाण्डेय जी हैं और ये हमारे बाकी आडीटर साथी चन्दन चौहान उर्फ़ चन्दू, नन्दराम त्रिवेदी उर्फ़ नन्दू, मिसेस हुमा सुलेमान और मोना सोलांकी हैं।
कम्मो ने सबका मुस्कुरा के स्वागत करने के बाद उसने पीछे घूम के आवाज दी –“बल्लू! बिरजू! साहब लोग का सामान उठवा के कमरों मे पहुँचवाओ।” 
फ़िर बोली –“आइये आपलोगों को आपके कमरे दिखला दूँ।”
वो सबको अपने पीछे आने का इशारा कर मुड़ के वापस चल दी।
कम्मो के रंग, रूप की छटा देख पाण्डेय जी की तो जैसे साँस ही रुकने लगी थी। मंझोला कद, मांसल गदराया बदन, बड़े बड़े बेलों जैसे ऊपर को मुँह उठाये स्तन, गोल और गहरी नाभी वाला माँसल गदराया कसा हुआ पेट, मोटी मोटी केले के तनों की जैसी माँसल जाँघो के ऊपर बाहर की ओर उठे हुए भारी चूतड़ और जब वो मुड़ के वापस जाने लगी तो उसके ज़्यादा विपरीत दिशा थिरकते चूतड़ के पाट देख कर तो अपने पाण्डेय जी इतने बदहवास हो गये कि ठोकर खा गये और गिरते गिरते बचे।

सब अन्दर पहुँचे तो देखा कि ये एक बहुत बड़ा खपरैल वाला मकान है जिसमे एक बड़े से आँगन के चारो तरफ़ वराण्डा और वराण्डे के पीछे लोगों के ठहरने के लिए कमरे हैं रज्जू ने बताया कि मकान के दाईं ओर से(हाते के अन्दर ही) मकान के पीछे चली गई गली में इस सराय के मालिक लोग (कम्मो भटियारिन और उसका परिवार) का अपना घर है।
पाण्डे जी को आश्चर्य हुआ कि सबकुछ बेहद मामूली किस्म का है पर इतना मामूली होने के बावजूद सराय मे काफ़ी चहल पहल थी जो कि इस बात को साबित कर रही थी कि सराय का कामकाज अच्छा चल रहा है।
सबको उनके उनके कमरे दिखा कर कम्मो पाण्डेजी से मुखतिब हो मुस्कुरा के बोली – ये छ: कमरे इकट्ठे एक लाइन से खाली हैं आप लोगों के लिए ठीक रहेंगे। आप लोग पहली बार आये हैं सो हमारे मेहमान हैं पर रज्जू भैया इसी इलाके के हैं और हम लोगों को अच्छी तरह जानते हैं किसी चीज की जरूरत हो तो रज्जू भैया से कहलवा दें।”

इतना कह मुस्कुराते हुए पलटकर लहराती हुई जाने लगी अपने चोदू पाण्डे जी पीछे से उसके थिरकते चूतड़ देख गश खाने लगे।
तभी रज्जू ने आवाज दी –“पाण्डे जी!”
चौंककर पाण्डे जी होश में आये और इतनी देर से कम्मो के जिस्म की गरमी और चमक से सूख रहे गले को थूक घुटक के गीला किया और धम से कुर्सी पर ढेर हो गये ताकि पैंट में सुगबुगाते लण्ड पर किसी की नजर न पड़ जाय ।
पाण्डे जी –“ यार रज्जू! सराय में तो काफ़ी चहल पहल है लगता है सराय का कामकाज अच्छा चल रहा है।
रज्जू –“ जी हाँ सराय दूर दूर तक मशहूर भी है। हालाँकि पहले ऐसा नहीं था, हफ़्ते मे चार छ: मुसाफ़िर आकर ठहर जाय तो गनीमत समझो बस यों समझो कि किसी तरह खींचतान के खर्चा चल रहा था। अब आप पूछेंगे कि फ़िर अब ऐसी क्या बात हो गई कि व्यापार न सिर्फ़ चलने लगा बल्कि सराय मशहूर भी हो गई। ये एक लम्बी और दिलचस्प कहानी है वो मैं आपको फ़िर कभी सुनाऊँगा। अभी आप लोग इस गाँव की दूसरी दिलचस्प चीजों का आनन्द लें।
तभी बल्लू और बिरजू सबका सामान ले के आ पहुँचे। उनके लम्बे चौड़े गठीले बदन देख हुमा सुलेमान और मोना सोलांकी की चूतें सिहर कर दुपदुपाने लगी।

पाण्डे जी -“रज्जू मेरा सामान यही रखवा दो और बगल वाले कमरे में तुम अपना रखवाओ जिससे मैं जब चाहूँ तुमसे आसानी से सम्पर्क कर सकूँ। बाकी सब अपने लिए कमरे पसन्द कर अपने सामान रखवा कर अपनी दैनिक क्रियाओं से निबटे फ़िर रात के खाने के लिए यहीं मेरे कमरे पर मिलें ।
जब सब फ़ारिग हो के पान्डेजी के कमरे में इकट्ठे हुए तो पाण्डे जी ने खाना अपने कमरे की मेज पर ही मंगवा लिया। सराय में इस समय काफ़ी चहल पहल थी। कमरों में इस समय खाना पहुँचाने परोसने में बल्लू और बिरजू के अलावा कम्मो भटियारिन की बेटी बेला, कम्मो की देवरानी धन्नो भटियारिन और धन्नो की बहू चम्पा भी थे । रज्जू ने सबका परिचय करवाया। धन्नो भटियारिन और रज्जू एक दूसरे को अर्थ पूर्ण ढंग से देखकर मुस्कुरा रहे थे । उधर चन्दू चौहान का चौहानी लण्ड चम्पा के लम्बे गदराये माँसल बदन को देख देख ताव खा रहा था । अपने नन्दू पण्डितजी को गोरी चिट्टी गोल मटोल सी बेला को देख, अपनी पण्डिताईन की याद आ रही थी और उनका मन उसे दबोच लेने का कर रहा था । मोना बिरजू को ऐसे घूर रही थी जैसे आँखो से ही निगल जायेगी। हुमा सुलेमान की हालत और भी खराब थी । वो तो बल्लू को देख देख सबकी नजरे बचा के टेबिल के नीचे अपनी बुरी तरह पनियाती चूत की पावरोटी सहला भी रही थीं।
खैर खाना खतम हुआ और सराय के लोग जूठे बर्तन वगैरह हटा टेबिल साफ़ कर चले गये तो पाण्डेजी ने दरवाजा अन्दर से बन्द करते हुए कहा –
“हाँ तो रज्जू! अब बताओ कहाँ हैं तुम्हारे आम, खरबूजे?” 
रज्जू- “क्यों देख के अनदेखा करते हैं पाण्डे जी, अरे! इतने सारे तो दिखला दिये। अरे ये कम्मो, धन्नो, बेला, चम्पा में से क्या कोई आम, कोई खरबू्जा आप को पसन्द नहीं आया।” 
पाण्डेजी –“अबे क्यों मजाक करता है वो तो सराय के मालिक का परिवार है।”
रज्जू- “इससे आपको क्या, आप बस इशारा करो जिसे बताओ भिजवा दूँ।”
पाण्डेजी एक मिनट तक घूरते रहे फ़िर उसे पास बुला के उसके कान में धीरे से कहा –“यार अपनी हसरत तो कम्मो को ही रगड़ डालने की है ।
रज्जू- “मँज़ूर्।”
पाण्डे जी की देखा देखी बाकियों ने भी बिरजू के कान में अपनी अपनी ख्वाहिश बता दी।
चन्दू –“यार अपन तो चम्पा से दो दो हाथ (कुश्ती) करना चाहते हैं ।
नन्दू –“इस पण्डित को तो बेला खीर से भरा कटोरा लगती है जिजमान।”
मोना –“ मुझे तो बिरजू से पैर दबवा के ही चैन पड़ेगा।” 
हुमा –“यार तुम लोगों ने ट्रेन में इतना थका डाला। बल्लू तगड़ा भी है और उसके हाथ काफ़ी बड़े बड़े हैं अब तू उसे भेज दे तो मैं बदन की मालिश करवाऊँ तो चैन पड़े।”
रज्जू-“आप सब अपने अपने कमरों में पहुँचे और जब कोई तीन बार कमरा खट खटाये तो कमरे की बत्ती बुझा के कमरा खोल दे जब आने वाला अन्दर आ जाये तो दरवाजा बन्द कर यदि चाहे तो बत्ती जला सकते हैं।” 
बस फ़िर क्या था जैसे ही रज्जू कमरे से निकला बाकी सब भी निकल निकल के अपने कमरे में चले गये।
क्रमश:……………………………
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