RE: Muslim Sex Stories सलीम जावेद की रंगीन दुन�...
भाग 2- आवभगत व कक्ष सेवा (रूम सर्विस)
पाण्डे जी अपने हाथ से अपना लण्ड सहलाते हुए इन्तजार कर रहे थे आधा घण्टा भी ना बीता होगा कि किसी ने दरवाजा खटखटाया । पाण्डे जी ने बत्ती बुझा के धड़कते दिल से दरवाजा खोला । वराण्डे की धीमी रोशनी में उन्होंने बाहर खड़ी कम्मो भटियारिन को पहचाना और उसे कमरे के अन्दर ले जल्दी से दरवाजा बन्द कर लिया । उतावले पाण्डे जी ने अन्धेरे में ही कम्मो को बाहों में भर उसके होठों पर होठ रखने की कोशिश की तो कम्मो ने मुँह घुमा लिया और पाण्डे जी के होठ उसके उभरे हुए टमाटर से गाल से टकराये। पाण्डे जी ने चुम्मा जड़ दिया ।
एक दबी दबी हँसी के साथ कसमसा के कम्मो ने खुद को छुड़ा लिया और बत्ती जला दी।”
रोशनी होते ही पाण्डे जी ने देखा कि कम्मो अपने रूप रंग की पूरी छटा लिए खड़ी मुस्कुरा रही है पाण्डे जी एक बार फ़िर उसके बदन को आँखें फ़ाड़ फ़ाड़ के देखने लगे।
कम्मो साड़ी खोल कर एक तरफ़ फ़ेकते हुए –“क्या आडीटर साहब आपको भी मैं बुढ़िया पसन्द आई उस पे इतनी उतावली?”
– “रसगुल्ले को अपना स्वाद थोड़े ही पता होता है।” कहते हुए देबू पाण्डे ने बत्ती बुझा के नाइट लैम्प जला दिया।
तबतक कम्मो जाकर बिस्तर पर लेट चुकी थी पाण्डेजी भी बगल में लेट गये और ब्लाउज के ऊपर से ही जोर जोर से उसका भरा पूरा सीना दबाने लगे। ब्लाउज ज्यादा देर पांडे जी के हाथों की ताब बरदास्त न कर सका, उन्होंने ब्लाउज में हाथ डाला तो चुटपुटिया वाले बटन खुल गये उन्होंने ब्लाउज उतार के फेंक दिया और ब्रा में से फटी पड़ रही छातियों पर टूट पड़े।
पांडेजी की हरकतों से बुरी तरह से उत्तेजित कम्मो ने अचानक करवट ले के कहा -" इनके लिए इतने उतावले हो तो हुक खोल क्यों नहीं देते। पांडेजी ने वैसा ही क्या तो कम्मो फिर से चित हो कर लेट गयी।अब तक तो पांडेजी की बर्दास्त चूक गयी इसलिए उन्होंने एक ही झटके में ब्रा नोंच कर फेंक दी।
दो बड़े बड़े ऊपर को मुँह उठाये लक्का कबूतरो जैसे सफ़ेद स्तन फ़ड़फ़ड़ा के बाहर आ गये । पाण्डे जी किसी बाज की तरह उनपर झपटे और दोनों हाथों मे दबोच उनपर मुँह मारने लगे । कम्मों ने सिसकारी ली और टाँगे समेट अपनी मोटी मोटी केले के तनों की जैसी माँसल जाँघो को उजागर कर फ़ैलाते हुए कहा- “इस्स्स्स्स्स! मैं शुरू से ही देख रही थी कि आप मुझे घूरे जा रहे थे अब निकाल लो अपने सारे अरमान।”
कहकर उसने ने पाण्डेजी की तरफ़ करवट ली और पायजामे का नारा खींच कर खोल दिया और अन्दर अपनी गुदाज कोमल हथेली डाल के उनका बुरी तरह फ़नफ़नाता करीब साढ़े सात इन्चीं लम्बा फ़ौलादी लण्ड थाम लिया और सहलाने लगी । पाण्डे जी उसके बड़े बड़े बेल जैसे स्तनों को दबा दबा के चूसे जा रहे थे । कम्मो ने लण्ड बाहर निकाला और अपनी चूत से सटा के अपनी दोनों मोटी मोटी केले के तनों की जैसी माँसल रेशमी जाँघों के बीच दबा लिया । पाण्डेजी अपनी कमर चला के अपनी चुदाई के लिए बेचैनी जाहिर कर रहे थे। इतनी देर से चूचियाँ चुसवाते और चूत से लण्ड रगड़ते रहने के कारण कम्मो की चूत भी बुरी तरह पनिया रही थी। सो उसने सुपाड़ा चूत के मुहाने से लगाया और दोनों खेले खाये माहिर चुदक्कड़ थे ही। धीरे धीरे अपनी कमर चला के पूरा लण्ड चूत के अन्दर पहुँचा दिया तो पाण्डेय जी ने आराम से कम्मो के गदराये बदन का मजा लेते हुए धीरे धीरे चुदाई शुरू की।
उधर अपने नन्दू पण्डित का लण्ड उनकी धोती के अन्दर फ़ड़फ़ड़ा रहा था वो धोती आधी खोलकर आधी पहने आधी ओढ़े लेटे थे कि दरवाजा खड़का तो बेला खीर से भरा कटोरा लिए अन्दर आयी नन्दू पण्डित ने दरवाजा बन्द किया और बत्ती जलायी अपनी शरारती आँखे नचाते हुए बोली आपने खीर का कटोरा मंगवाया था पण्डितजी! नन्दू –“हाँ मगर सिर्फ़ एक कटोरा, पता नहीं रज्जू ने दो क्यों भिजवा दीं ।
अब चौंकने की बारी बेला की थी बोली –“दो कहाँ मैं तो एक ही लाई हूँ ।
नन्दू ने झपट कर बेला का मांसल गदराया बदन दोनों हाथों में दबोच लिया और कहा –“दूसरी ये रही ।”
कहकर नन्दू बेला के मांसल गोलमटोल जिस्म पर मुँह मारने और चाटने लगा जैसे सच में खीर के मजे ले रहा हो । थोड़ी ही देर में नन्दू बेला को प्यार से बिस्तर पर लिटा के बड़े ही घरेलू मियाँ बीबी वाले अन्दाज में चोद रहा था।
इधर चम्पा ने चन्दू का दरवाजा धीरे से खटखटाया। कमरे की बत्ती बुझी दरवाजा खुला और किसी ने चम्पा को अन्दर खीच के ऐसे गोद में उठा लिया जैसे वो फ़ूल की तरह हल्की हो ये थे अपने चौहान साहब यानी चन्दू ठाकुर । चम्पाने महसूस किया कि चौहान साहब के बदन पर एक भी कपड़ा नहीं है चम्पा को गोद में उठाये उठाये ही बिस्तर तक गये । चन्दू के अभ्यस्त हाथों ने दरवाजे से बिस्तर तक पहुँचने के दौरान एक हाथ से चम्पा को दबोचे दबोचे दूसरे हाथ से उसकी साड़ी खींच कर उतार दी, फ़िर पेटीकोट का नारा खींच दिया तो वो भी नीचे सरक गया। ब्लाउज के चुट्पुटिया वाले बटनों की तो औकात ही क्या कि ठाकुर के हाथ की ताब बरदास्त कर पाते । कहने का मतलब जब चम्पाको चन्दू ठाकुर ने बिस्तर पर डाला तो उसके बदन पर मात्र ब्रा बची थी जिसे चम्पा ने हँसते हुए खुद ही उतार के चन्दू ठाकुर के गले में माला की तरह डाल दी। तभी बिस्तर पर नंगधड़ग पड़ी चम्पा की नजर चन्दू के चौहानी लण्ड पर पड़ी जो खूँटे की तरह खड़ा था। बस वो उछल कर बिस्तर पर ही खड़ी हो गयी । उसने चन्दू के गले में अपनी बायी बाँह डाल, दाहिने हाथ से उनका लण्ड पकड़ा और अपनी दाहिनी टाँग ऊँची कर लण्ड को पनियाती चूत के मुहाने से लगाया और टाँग को उनकी कमर पर लपेटते हुए बोली –“क्या ऐसे चोद सकते हो राजा ठाकुर ?”
जवाब में चन्दू ने कमर उचका कर पक से सुपाड़ा चूत के अन्दर कर दिया। चम्पा ने भी तुर्की ब तुर्की दोनो बाहें चन्दू के गले में डाल, कमर उचका उचका कर चार बार में पूरा लण्ड चूत में ले लिया फ़िर उचककर दोनों टाँगे उनकी कमर मे लपेट गोद में चढ़ गयी । चन्दू ने सहारा देने के लिए अपने दोनों हाथों से उसके घड़े जैसे मांसल चूतड़ दबोच लिये और कमर उछाल उछाल के चोदने लगा ।
अब बच रहे इसी गाँव के अपने रज्जू भय्या और उनके हिस्से में पड़ी उनकी जानी पहचानी देखी समझी धन्नो काकी सो धन्नो ने रज्जू का कमरा खटकाया रज्जू बत्ती बुझा के दरवाजा खोलते हुए फ़ुसफ़ुसाया –“आओ काकी!”
धन्नो भटियारिन ने अन्दर आ के खुद ही दरवाजा बन्द किया और पलट के रज्जू का लण्ड लुंगी के ऊपर से ही दबोच कर बोली –“काकी के बच्चे! कहाँ रहा इतने दिन।”
कहते हुए उसने रज्जू को बिस्तर पर धक्का दे दिया और अपना पेटीकोट समेटते हुए उसके ऊपर कूद कर चढ़ गयी और उसके हलव्वी लण्ड को अपनी चूत की दोनो फ़ाकों और भारी चूतड़ों के बीच रगड़ने लगी। जब लण्ड उसकी चूत के पानी से भीग गया तो धन्नो ने लण्ड का सुपाड़ा अपनी चूत के मुहाने पर लगाया और धीरे धीरे उसपर बैठते हुए पूरा लण्ड चूत मे ले लिया और वो लण्ड पर उचक उचक कर चुदवाने लगी।
थोड़ी देर तक तो ये सब धीरे धीरे बे आवाज चलता रहा फ़िर धन्नो के भटियारी खून ने जोर मारा और जोर जोर से उछल उछल कर रज्जू का अपनी चूत में ठँसवाने लगी। जिसकी फ़ट फ़ट और रज्जू और धन्नो की सासों की आवाजें दूसरे कमरों में पहुँची तो उसे सुन बाकी की तीनों भटियारिनों कम्मो चम्पा और बेला को भी जोश आ गया और अपने ऊपर चढ़े आराम से चुदाई का मजा ले रहे मर्दो से बोली –“क्यों धन्नो के सामने हमारी नाक कटवा रहे हो ।”
कहकर तीनों अपने ऊपर चढ़े मर्दो को पलट उनके ऊपर चढ़ बैठी और धन्नों की ही तरह ऊपर से लण्ड ठँसवा के जोर जोर से उछल उछल कर चुदवाने लगी । अब चुदाई भटियारिनों के हाथों थी चारो कमरों में घमासान चुदाई हुई। जैसे ही वो और उनके साथ के मर्द झड़े एक दूसरे का दरवाजा खटखटा के उन्होंने लण्ड बदल लिये। एक तो औरत बदलते ही वैसे ही मर्द का झड़ा लण्ड फ़िर से खड़ा होने लगता है ऊपर से ये भटियारिनें अपने मादक जिस्म और खूबसूरती मे एक दूसरे से बढ़चढ़ के थी सो उनकी कातिल अदाओं औए करतबों से मर्दों के लण्ड जल्दी ही फ़िर से टन्नाने लगे। बस, चारो ने फ़िर चुदाई शुरू कर दी इस तरह सारी रात लण्ड बदल बदल कर उन्होंने अपनी चूतों के कोल्हुओं मे चारो लण्डों के गन्नों को बुरी तरह पेर डाला।
मोना और हुमा की कहानी थोड़ी फ़रक है ।
हुआ यों कि बिरजू ने मोना के कमरे का दरवाजा खटखटाया । मोना ने बत्ती बुझा के दरवाजा खोला जैसे ही बिरजू अन्दर आया और मोना ने बत्ती जला दी । मोना सिर्फ़ झीनी सी नाइटी में खड़ी थी जिसमें उसका गदराया पूरा नंग़ा बदन चमचमा रहा था देख के तो बिचारा बिरजू हक्का बक्का रह गया उसका मुँह खुला का खुला रह गया ।
तभी मोना ने बिस्तर पर लेटते हुए घुड़का –“अब मुँह बाये क्या खड़ा है, मैं बहुत थक गई हूँ आ के पैर दबा तो कुछ चैन पड़े।”
बिरजू तो इसी बात के इन्तजार में था बोला –“जी मेम साहब।”
मोना पेट के बल पिन्डलियों तक नाइटी ऊपर खींच के लेट गई। और बिरजू बिस्तर के किनारे से खड़े खड़े ही उनके पैर दबाने लगा । गोरी-गोरी मांसल पिन्डलियों पर हाथ लगते ही बिरजू का लण्ड खड़ा होने लगा। बिरजू के अभ्यस्त हाथों से उनकी नाइटी धीरे धीरे सरकती हुई घुटनों से ऊपर हो गई अब उनकी गोरी-गोरी जांघों तक उसके हाथ पहुँचने लगे वो कुछ नहीं बोली तो बिरजू की हिम्मत और बढ़ गई। बिरजू ने धीरे धीरे उनकी नाइटी और ऊपर खिसकाकर उनकी केले के खम्बे जैसी जाँघे पूरी तरह नंग़ी कर दी, जिन्हें देख देख बिरजू का लण्ड टन्नाने लगा उसने डरते डरते धीरे से पूछा -“ऊपर तक दबाऊँ?
मोना- हाँ! और नही तो क्या?
बस उनकी मोटी मोटी जाँघे बिरजू के हाथों में आ गयी और अब बिरजू के हाथ पैरों से माँसल जाँघों तक पर फ़िसल रहे थे हर बार हाथ तेजी से फ़िसलते हुए जब जाँघों तक आते हाथों के झटके से नाइटी थोड़ी और ऊपर कि तरफ़ हट जाती जिससे थोड़ी ही देर मे मोना की चूत भी नंगी हो गयी।
बिरजू के हाथ तेजी से फ़िसलते हुए नाइटी की डोरी खोलने लगे कुछ ही क्षणों मे मोना का गोरा गुदाज बदन पूरी तरह नंगा हो गया । अब मोना ने थोड़ा सो मुँह घुमा कर देखा तो बिरजू डर गया पर वो मुस्कुराई तभी मोना की नजर बिरजू की पैंट के अन्दर से पैंट को तम्बू बना रहे उसके लण्ड के उभार पर पड़ी तो वो बोली- मेरी तो नंग़ी कर दी फ़िर अपना क्यो छिपा रहे हो।”
ये कहकर उसने हाथ बढ़ाकर फुर्ती से पैंट फुर्ती से पैंट खोलकर नीचे खिसका दी, जिससे उसका फ़नफ़नाता हुआ फ़ौलादी लण्ड उछलकर बाहर आ के लहराने लगा उसे देखते ही मोना की पहले से पनिया रही चूत सिहर उठी। वो बोली –“बाप रे इतना बड़ा।”
ऐसा बोलते हुए उसने झपट के उसका लण्ड थाम लिया और अपनी तरफ़ खीचा।
बिरजू लड़खड़ाया तो तो मोना पर गिरने से बचने के लिए उसने अपने हाथ आगे किये और उसके हाथ मोना की चूचियों पर पड़े । मोना के मुँह से निकला –“उफ़! खाली यहाँ वहाँ दबाता ही रहेगा या कुछ और भी करेगा?”
फ़िर क्या था बिरजू मोना की टाँगों के बीच आ गया, पर मोना के हाथ ने उसका लण्ड अपने हाथ से छूटने नही दिया । उसने टाँगे फ़ैला के बिरजू के लण्ड का हथौड़े जैसा सुपाड़ा अपनी बुरी तरह पनिया रही पावरोटी सी फ़ूली हुई चूत के मुहाने पर रखा तो उसे लगा जैसे किसी ने उस की चूत पर जलता हुआ अंगारा रख दिया हो। मोना की सिसकी निकल गई। बिरजू सुपाड़ा चूत पर रगड़ने लगा।
नाइट लैम्प की रोशनी में उसकी आसमान की तरफ़ मुँह उठाये बड़े बड़े बेलों जैसी थिरकती चूचियाँ देख बिरजू ने उत्तेजना से बुरी तरह बौखला के उन्हें दोनो हाथों में दबोच लिया और धक्का मारा। सुपाड़ा पक की आवाज के साथ चूत में घुस गया ।
“आआह!!!!!!!!!!” मोना के मुँह से निकला।
बिरजू ने चार धक्कों मे पूरा लण्ड चूत में ठाँस दिया और दोनों हाथों से मोना के गुदाज कन्धे थाम कर उसके जिस्म पर मुँह मारते और होठों का रस चूसते हुए धकापेल चोदने लगा।
उधर बल्लू के बड़े बड़े हाथों की याद कर कर के उत्तेजना के मारे हुमा की हालत ज्यादा ही पतली हो रही थी, वो ख्यालों मे बल्लू के बड़े बड़े हाथ अपने सारे जिस्म पर फ़िसलते अपनी हलव्वी चूचियाँ दबाते सहलाते हुए महसूस कर रही थी
सो उसने चुदाई के पहले शुरुआत का माहौल बनाने के लिए किये जाने वाले नाटक नखरे छोटे करने के ख्याल से बत्ती बुझा के दरवाजा की कुन्डी अन्दर से खुली ही छोड़ दी हालांकि बाहर से देखने पर दरवाजा बन्द ही नजर आ रहा था । इतना कर वो कपड़े उतार नंग़ी ही बिस्तर में चादर ओढ़ के लेट गयी । बल्लू ने दरवाजा धीरे से खटखटाया पर कोई जवाब नहीं मिला जैसे कमरे में कोई न हो। उत्सुकतावश उसने दरवाजा को धीरे से धक्का दिया तो वो खुल गया। बल्लू ने अन्दर सिर डाल के धीरे से पुकारा –“मेमसाहब।”
हुमा ने बिस्तर के अन्दर से ही धीमे सुर मे कहा –“अन्दर आ जा और दरवाजा बन्द कर ले।”
बल्लू ने अन्दर आके कुन्डी लगा ली तो हुमा ने फ़िर कहा –“बत्ती न जलाना मेज पे क्रीम रखी है उठा के ला और मालिश कर ।”
अन्धा क्या चाहे दो आँखे। बल्लू ने क्रीम उठाई और ढेर सारी दोनों हाथों मे ले के बिस्तर के पास आया और बोला –“कहाँ से शुरू करूँ मेमसाब।”
हुमा –“पैरों से।”
बल्लू ने चादर के अन्दर हाथ डाले तो हुमा की मोटी मोटी केले के तनों की जैसी माँसल नंग़ी जाँघे उसके हाथों मे आ गयी। उसका लण्ड खड़ा हो गया । बल्लू को अहसास हो गया कि मेमसाब चादर के नीचे बिलकुल नंगी हैं वो समझ गया कि ये बुरी तरह चुदासी है। बस उसके दोनों हाथ क्रीम भर भर के गोरी-गोरी मांसल पिन्डलियों से ले के केले के तनों जैसी मोटी मोटी माँसल जाँघो बड़े बड़े हुए भारी चूतड़ों से होते हुए माँसल गदराये कसे पेट पर मचलने लगे । ऐसा करते समय उसका खड़ा लण्ड हुमा की मोटी मोटी माँसल जाँघो से टकरा जाता था। अब हुमा से बिल्कुल भी रहा नहीं जा रहा था उसने बल्लू का अपने पेट पर मचलता दाहिना हाथ पकड़कर अपनी गोल गहरी नाभी तक सरकाया तो बल्लू ने नाभी में उंगली डाल दी हुमा ने सिसकारी ली –“उम्म्म्ह।”
और नाभी से उंगली निकालने के लिए बल्लू के हाथ को झटका दिया तो हाथ फ़िसल कर चूत पर आ गया । बल्लू ने अपनी बड़ी सी हथेली में उसकी बुरी तरह से पनिया रही पावरोटी सी चूत दबोच के मसल दी । हुमा ने जोर से सिसकारी ली –“आआअ आअःह्ह्ह्ह्ह्ह्ह्ह्ह्ह्ह्ह।”
और पेट पर मचलता उसका दूसरा (बायाँ) हाथ पकड़ के अपने गुब्बारे से उभरे दायें स्तन पे रख दिया और खुद बल्लू की लुंगी के अन्दर हाथ डाल के उसका फ़नफ़नाता फ़ौलादी लण्ड थाम लिया। अब तो बल्लू भी आपे से बाहर हो गया उसने एक झटके से हुमा के ऊपर से चादर खींच ली । अब उसके सामने हुमा सुलेमान का गदराया गुलाबी बदन नंग धड़ंग पड़ा था । बल्लू उनके ऊपर कूद गया और अपने दोनों हाथों से उनके बदन को दबोच कर सहलाने दबाने नोचने और मुँह मारने लगा हुमा को अपने बड़े बड़े स्तनों और सारे शरीर पर उसके बड़े बड़े हाथ जादू जगाते महसूस हो रहे थे और उसे बड़ा मजा आ रहा था। हुमा ने ढेर सारी क्रींम उसके लण्ड के सुपाड़े पर थोप दी और लण्ड का हथौड़े जैसा सुपाड़ा अपनी बुरी तरह पनिया रही पावरोटी सी फ़ूली हुई चूत के मुहाने पर जैसे ही रखा कि बल्लू ने हुमच के धक्का मारा और एक ही बार मे पूरा लण्ड ठाँस दिया हुमा की चीख निकल गई -
“उइई माँ” फ़िर बोली “शाबाश!”
बस शाबाशी मिलते ही बल्लू हुमच हुमच के चोदने लगा ।
चुदाई के बाद अपने अपने बिस्तर पर मस्त पड़ी हुमा और मोना अपनी साँसे काबू में करने की कोशिश कर रही थी तो उन्हें बाहर कुछ खटर पटर सुनाई दी । दोनों ने नाइटी डाल के धीरे से दरवाजा थोड़ा सा खोल के बाहर झाँका तो पाया कि उनके आडीटर साथियो के कमरों से चारो भटियारिने निकल कर एक दूसरे के कमरे में जा रही हैं। दोनों चुदक्कड़ समझ गई कि साले चूते बदल बदल कर चोदने जा रहे हैं। जब बाहर सन्नाटा हो गया तो दोनो अपने कमरों से लगभग साथ ही निकलीं सो आमने सामने ही पड़ गयीं ।
हुमा(फ़ुसफ़ुसाके) –“ तूने देखा।”
मोना –“हाँ साले चूते बदल बदल कर चोद रहे हैं।”
हुमा –“क्या ख्याल है हम भी लण्ड बदल लें।”
मोना –“क्यों नही मैं इसे भेजती हूँ तू उसे भेज।”
हुमा –“ठीक है”
बस फ़िर क्या था उन्होंने भी लण्ड बदल लिए और जम के मजे लिये।
क्रमश:……………………………
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