Muslim Sex Stories सलीम जावेद की रंगीन दुनियाँ
04-25-2019, 12:00 PM,
#67
RE: Muslim Sex Stories सलीम जावेद की रंगीन दुन�...
भाग 3 - किस्सा कम्मो का 1

आज आडिटर पार्टी वापस जा रही है ट्रेन के फ़र्स्ट क्लास के कूपे में पाण्डे जी और रज्जू के बीच में हुमा सुलेमान बैठी हुई है उसका ब्लाउज खुला है, पाण्डे जी और रज्जू उसका एक एक स्तन थाम कर दबा दबा के निपल चूस रहे हैं और दूसरे हाथ से हुमा सुलेमान की केले के तने सी चिकनी जाँघें सहला रहे थे । पाण्डे जी और रज्जू की पैंट की जिप खुली हुई है, हुमा एक हाथ में पाण्डे जी का और दूसरे मे रज्जू का फ़ौलादी हथौड़े जैसा लण्ड थाम सिसकारियाँ भरते हुए सहला रही है। -“आह देबू(पाण्डेजी) उई रज्जू थोड़ा धीरे से शैतानों आह!”
लगभग वैसा ही हाल उधर चन्दू और नन्दू के बीच में बैठी मोना का था। बल्कि चन्दू एक हाथ तो मोना की चूत के ऊपर पहुँच चुका था। 


पाण्डे जी (हुमा सुलेमान के बायें स्तन के निपल पर जीभ चलाते और केले के तने सी चिकनी जाँघ पर हाथ फ़ेरते हुए) –“अबे चन्दू! चार दिनों तक दोनो मुस्टण्डों(बल्लू और बिरजू) से अपनी चूत कुटवा के तो ये और खिल उठी है ।
चन्दू –“मोना का भी यही हाल है उस्ताद पहले हजार गुना ज्यादा मस्त लग रही है।
हुमा (सिसकारी भरते हुए) –“ह्म्म आ ---ह स्स्स्स्स्स्स्स्स्सईईई हाय! हमारे हिस्से में तो दो ही नये लण्ड आये तुम सालों ने तो चार नई चूतें चोदीं। पर अल्ला बचाये जाने कितने जनम के भूखे हो चार दिन इतनी सारी चूतें चोदने के बाद भी कूपे मे घुसते ही हम दोनों पर ऐसे टूट पड़े जैसे मुद्दतों से औरत जात की शकल नहीं देखी।” 
पाण्डे जी (हुमा के बायें स्तन के निपल को होठों में दबा के चुभलाते हुए) –“उम्म्ह! इसमें हमारी क्या गलती है तुम दोनो पर दिन पर दिन निखार भी तो आता जा रहा है पर यार रज्जू! भाई मान गये तुम्हें, मजा आ गया, अरे हाँ तुम कह रहे थे सराय का कामकाज पहले ऐसा अच्छा नहीं चलता था। इसकी कहानी तो दिलचस्प होगी?
रज्जू –“कहानी क्या, दरअसल इस परिवार के सभी लोगों से मेरी अच्छी पटती है सो सभी अपने जीवन में घटने वाली घटनायें मेरे साथ बाँटते हैं यदि आप कहें तो उन्हें जोड़के मैं आपके लिए कहानी का रूप देने की कोशिश करता सकता हूँ।
चन्दू (मोना को खीच के अपने लण्ड पे बैठाते हुए) –“सुना न यार। दिलचस्प घटनाओं से मिल के बनी कहानी मजेदार होगी ही और सफ़र मे मजेदार कहानी सुनने से सफ़र का मजा दूना हो जाता है।”

तब रज्जू ने जो कहानी सुनाई वो कुछ ऐसे है।

हुआ यों कि कम्मो भटियारिन के पति मनोहर लाल को काफ़ी साल पहले नदी के किनारे एक पेड़ के पीछे गाँव के कुछ लोगो ने गाँव की चौधराइन को चोदते देख लिया और मनोहर लाल को मारते हुए उसके घर ले गये, तभी उसके बाप ने उसके हाथ से सब कामकाज छीन कर कम्मो भटियारिन को सौप दिया । तभी से कम्मो भटियारिन एक ही मकान में रहते हुए भी मनोहर लाल से अलग रहने लगी । इसी बीच कम्मो भटियारिन को करीब 5 बरस के दो लावारिस बच्चे कही आवारा घूमते मिले तो वो उन्हें घर ले आयी। उनका नाम बल्लू और बिरजू रखा। बल्लू और बिरजू को पालने पोसने में कम्मो का दिल भी लगा रहता और सराय के इन्तजाम में दोनो बच्चे उसका हाथ भी बटाते । बल्लू और बिरजू गाँव के दूसरे बच्चों की देखा देखी उसे चाची कहने लगे और तो उसने भी उन्हें अपने मुँहबोले भतीजे बना लिया। धीरे धीरे बच्चे बड़े हो जवान हो गये। दोनो भाई बचपन से ही दोस्तो की तरह रहते थे जैसे जुड़वा हो दोनो हट्टे कट्टे मजबूत कद काठी के है। घर, सराय और खेतों का सारा बन्दोबस्त सम्हालते हैं। पर जैसाकि मैने बताया के सराय ज्यादा नहीं चलती थी सो दोनों को साथ ही पास के जंगल से अतिरिक्त आमदनी, सराय की रसोई और घर के लिए लकड़ियाँ भी काट कर लानी पड़ती थी। ज्यादा लकड़ियों की जरूरत होने के कारण कम्मो और धन्नो भी सुबह सुबह घर का सारा काम करके दोपहर का खाना बाँध कर बारी बारी से उनके साथ ही जंगल जाती थी फिर वहाँ उनके दोनों मुँहबोले भतीजे लकड़ियाँ काटते फ़िर भटियारिन उन लकड़ियों के तीन गट्ठर बना लेती । शाम तक ये लोग लकड़ियाँ लेकर घर आ जाते थे। एक गट्ठर वो बेच देते और बाकी के दोनों सराय की रसोई और घर के काम में लाते। कम्मो भटियारिन की एक बेटी थी बेला, जो बल्लू बिरजू से 2 साल छोटी थी, अभी तीन महीने पहले ही उसका गोना हुआ था सो अभी वह अपने ससुराल मे थी । इसी घर के दूसरे हिस्से में कम्मो भटियारिन के देवर किशन लाल और उनकी पत्नी यानिकि उसकी देवरानी धन्नो भी रहती हैं । धन्नो का एक बेटा था मदन, जिसकी शादी हो चुकी थी वह शहर मे किसी कारखाने मे मैकेनिक था और वही रहता था और उसकी बीबी चम्पा अपने सास ससुर के पास गाँव मे रहती थी वह करीब 25 साल की उमर की रही होगी। सराय का धन्धा दोनों परिवारों के साझे का है। लेकिन चूँकि शुरू से सारा काम कम्मो ही देखती है, सराय इसलिए उसी के नाम से मशहूर है।
काफ़ी पुराने समय से धन्नो भटियारिन, कम्मो की देवरानी जिठानी वाली लड़ाई चलती आई थी। जिसके चलते दोनो में आपस मे बोलचाल नही थी, कम्मो भटियारिन थोड़ी मोटी और भरे भरे बदन की एक कोई सैतिस अड़तिस साल की औरत हो चुकी थी पर उसके सीने के उभार और भारी चूतड़ों के मुक़ाबले पूरे गाँव मे किसी भी औरत के स्तन और चूतड़ न थे न हैं। हाँ धन्नो ज़रूर टक्कर की हैं लेकिन धन्नो और कम्मो में कौन 20 है कहना मुश्किल है, ये तो आप भी मानते होंगे पाण्डे जी!”
पाण्डे जी (गोद में चढ़ी बैठी मिसेस सुलेमान की केले के तने सी चिकनी जाँघ पर हाथ फ़ेरते हुए) –“बिलकुल! हुमा डार्लिंग! क्यों न अगले साल भी आडिट पर यहीं आयें।”
अपने बड़े बड़े गुदगुदे चूतड़ों के बीच की नाली से चूत तक साँप की तरह लेटे पाण्डे जी के लम्बे हलव्वी लण्ड पर अपने चूतड़ और चूत रगड़ते हुए सिसकारती हुई हुमा बोलीं –“इस्स्स आह जरूर देबू डार्लिंग! और कान खोल के सुन ले रज्जू! अगली बार तो मैं बल्लू और बिरजू से इकट्ठे चुदवाऊँगी? सो अगर मोना साथ होगी तो उसके लिए तुझे दो और लण्डों का इन्तजाम करना पड़ेगा।”
रज्जू हुमा के स्तन पर हपक के मुंह मार होठों में निपल दबा के चुभलाते हुए बोला –“फ़िकर न कर साली लण्ड खोर! किशन लाल और मनोहर लाल अगर बाहर न गये होते तो इसी बार तेरी चूत उनसे फ़ड़वा देते। दोनो बुढ़वे भी बिकट चुदक्कड़ हैं। हाँ! तो मैं आपलोगों को इन लोगों की कहानी बता रहा था । आप लोगों ने देखा ही है कि इनके घर के सामने ही हैन्ड पम्प है जो कि कई साल पहले किशन लाल और मनोहर लाल ने मिलकर लगवाया था सो औरतों की लड़ाई होने के बाद भी दोनो घर की औरते उसी से पानी भरती हैं और वही खुले मे नहा भी लेती हैं, और आसपास की कुछ औरते जिनकी पटरी या तो धन्नो या कम्मो भटियारिन से खाती है भी आकर वही नहा लेती थी। उनके सुपर हरामी मुँह बोले भतीजे बल्लू और बिरजू सुबह सराय का जो थोड़ा बहुत काम निबटाकर खाली होने पर घर के सामने लूँगी पहने कुर्सी लगाकर वही बैठकर घर के सामने से नदी की ओर जाती औरतो या हैन्ड पम्प पर नहाती औरतो को देख देख कर बस चूत लंड की बाते करते और लूँगी के ऊपर से अपना लंड मसलते रहते थे, और दोपहर होने पर कभी अपनी कम्मो चाची अथवा धन्नो काकी के साथ जंगल लकड़ी लाने चले जाते और शाम को सराय में जो दो चार ठहरने वाले होते उनका इन्तजाम निबटाकर फिर घर के सामने कुर्सी डाल कर बैठ जाते और जब रात हो जाती तो दोनो भाई पुलिया पर जाकर दारू पीने लगते और जब तक घर से कोई रात के खाने के लिए आवाज़ न लगती तबतक दोनो उठ कर घर की ओर न जाते थे ।

कहने का मतलब कभी भी खाली होने पर इन दोनो भाई का काम था घर के बाहर बैठ जाना और अपने गाँव की सारी नदी की ओर जाने वाली औरतो के मटकते चूतड़ देख देख कर अपना लंड सहलाना और जब कोई औरत नही दिखाई देती तो सारे गाँव की औरतो के गदराए अंगो की चर्चा करना इसके अलावा इन दोनो भाइयो के पास कोई बात नही थी, इस बात चीत में घर की औरतों की चर्चा भी शामिल थी क्योंकि दोनों जानते थे कि इस परिवार से उनका कोई खून का रिश्ता नहीं है । मिसाल के लिए एक दिन का वाकिया है सुबह सुबह दोनो भाई घर के बाहर बैठे बैठे थे कि बिरजू ने बात छेड़ी –
“यार बल्लू देख चम्पा भाभी लाल घाघरा चोली मे क्या मस्त लग रही, बिरजू यार इसकी चूत भी मस्त लाल होगी, मदन तो शहर मे लंड पकड़े आहे भरता रहता होगा, और यह बेचारी यहाँ लंड के लिए तरसती रहती है।” 
बल्लू –“हाँ यार बिरजू अपना लंड सहलाते हुए इसकी ही चूत मारने को मिल जाए तो हमारा भी काम बन जाएगा और इस बेचारी की चूत मे भी ठंडक पड़े । यह बेचारी तो हमे दुआए भी देगी की कोई तो इसकी चूत के बारे मे सोचता है ।”

गाँव मे सभी औरते ज़्यादातर लहंगा और चोली ही पहनती थी क्योंकि पॅंटी या ब्रा का गाँव मे रिवाज नही है, चम्पा पानी भरने के लिए हैन्ड पम्प के पास आ जाती है और दोनो भाई उसकी मोटी मोटी चूचियाँ और उसके चिकने पेट और नाभि को घूर घूर कर अपना लंड मसलने लगते है, चम्पा ने अपना घाघरा नाभि के काफ़ी नीचे बाँधा हुआ था जिससे उसकी नाभि और गदराया पेट नज़र आ रहा था उनकी कुर्सी से हैन्ड पम्प लगभग 20 मीटर की दूरी पर था ।
“यार बिरजू अगर इसको एक बार अपना ये काला और मोटा लंड निकालकर दिखा दूँ तो साली अभी पानी भरते भरते पानी पानी हो जाएगी, देख हैन्ड पम्प चलाने से क्या मस्तानी चूचियाँ ऊपर नीचे हो रही हैं।”
बल्लू (हंसते हुए) –“ बिरजू अगर इसको हम यह बता दे कि जिस हैन्ड पम्प के डंडे को इसने पकड़ रखा है वह बिल्कुल हमारे लंड की मोटाई का है तो यह डर के मारे हैन्ड पम्प का डंडा छोड़ देगी और फिर कभी पानी भरने नही आएगी।”
बिरजू हंसते हुए हा हा हा तू ठीक कहता है।
बल्लू –“इतना मोटा डंडा तो कम्मो चाची या धन्नो काकी ही पकड़ सकती है कहाँ है दोनों आज अभी तक बाहर नहीं निकलीं।”
तभी चम्पा पानी की बाल्टी लेकर अपने आँगन मे चली गई और इतने मे धन्नो काकी अपने बड़े बड़े भारी चूतड़ थिरकाते हुए बाहर बरामदे की झाड़ू लगाते हुए आई, धन्नो काकी के बड़े बड़े चूतड़ देख कर बल्लू और बिरजू का लंड झटके मारने लगा ।
“हाय कितने भारी और चौड़े चूतड़ हैं, यार बिरजू एक बार इस घोड़ी के भारी चूतड़ मिल जाए तो मुँह मार मार कर लाल कर दूँ।”
तभी धन्नो काकी उनकी ओर मुँह करके झाड़ू लगाने लगी जिससे उसके बड़े बड़े थन आधे से ज़्यादा उसकी चोली से बाहर दिखने लगे, माँसल पेट और गहरी नाभि और पेट के माँसल उठाव को देख कर दोनो भाई के हाथ उनकी पैंट की जेब के अन्दर से उनके लंडों पर तेज तेज चलने लगा।
बल्लू –“धन्नो काकी नंगी कैसी लगती होगी यार मेरा तो कहीं ये ही सोच सोच कर पानी ना निकल जाए।”
बिरजू –“चिंता मत कर बिरजू अभी थोड़ी देर मे नहाने आएगी तब आधी नंगी तो हो ही जाएगी।”
और दोनों चुपचाप अपने लंड को मसलने लगते है, थोड़ी देर बाद धन्नो काकी अपनी चोली और घाघरा लेकर हैन्ड पम्प पर आई, वह अपने घाघरे को अपने घुटनो के ऊपर करके बैठ कर कपड़े धोने लगी उसकी गदराई पिंडलियो और मोटी मोटी गोरी जाँघो को देख कर बल्लू और बिरजू के मुँह मे पानी आ रहा था, जब जब धन्नो काकी कपड़े को ब्रश से घिसती थीं तब उसकी बड़े बड़े पपीतो जैसी चूचियाँ बहुत तेज़ी से ऊपर नीचे होती थीं ।
“यार इस उमर मे भी इसका गदराया शरीर इतना शान्दार है कि देखकर लंड लूँगी फाड़ कर बाहर आया जा रहा है”

तभी धन्नो काकी ने अपनी चोली के हुक खोल, दोनो हाथ ऊपर करके चोली उतारी तो उनके पहाड़ जैसे बड़े बड़े चूचे दोनो भाई के सामने आ गये, धन्नो काकी पालथी मार कर बैठगई उनका गदराया हलका उभरा हुआ पेट, गहरी नाभि और बड़े बड़े चुचे, देख बिरजू और बल्लू के हलब्बी लंड चिपचिपाने लगे।

धन्नो काकी ने दो चार मग पानी अपने नंगे जिस्म पर डाला और फिर साबुन से अपनी चूचियाँ और पेट पर साबुन मलने लगी, जब वह अपने मोटे पपीते जैसे स्तन पर साबुन लगा कर रगड़ती तो उसके स्तन उसके हाथ मे पूरा समा नही पाते थे, और साबुन की वजह से इधर उधर छटक जाते थे।
बिरजू –“हाय बल्लू क्या मदमस्त घोड़ी है रे मेरा तो पानी छूटने के कगार पर है।”
तभी धन्नो काकी एक टांग लंबी करके अपने घाघरे को जाँघ की जड़ो तक चढ़ा लेती है उसकी जाँघे भरपूर कसी हुई माँसल और गोरी गोरी चिकनी लग रही थी ।

बल्लू –“इसकी मोटी जाँघे ही दोनों हाथों मे भी ना समायेंगी तो फिर इसके चूतड़ पकड़ने के लिए कितने हाथ लगाने पड़ेंगे, अरे बिरजू एक बात तूने देखा है कि औरत की उमर ढल जाती है पर उसके चूतड़ और जाँघो की चिकनाहट वैसी ही रहती है, क्या मस्त चोदने लायक माल है, इसे छोटा मोटा चुड़क्कड़ चोद ही ना पाए इस मस्तानी घोड़ी की चूत और चूतड़ों को तो हमारे जैसा मोटा काला लंड ही मस्त कर पाएगा।” तभी धन्नो काकी ने एक घुटने की जाँघो की जड़ो तक साबुन लगाने के बाद उस जाँघ को मोड मोड दूसरे पैर की जाँघ से भी अपना घाघरा हटा कर मोड़ कर साबुन लगाने लगी अब धन्नो काकी ऊपर से लेकर पेट और कमर तक तो नंगी थी ही साथ ही उसका घाघरा उसकी चूत और जाँघो की जड़ो तक सिमट कर रह गया था और वह अपनी दोनो जाँघो को फैलाए पत्थर से घिस रही थी।”
-“देख बिरजू ऐसे जाँघे फैला कर बैठी है जैसे कह रही हो की आके घुस जा मेरे मस्ताने भोसड़े मे।”

और फिर धन्नो दोनो पैरो के बल बैठ कर बाल्टी का पानी एक साथ अपने सर से डाल कर खड़ी हो गई और बिरजू और बल्लू की ओर अपने चूतड़ करके हैन्ड पम्प चलाने लगी, उसका पूरा घाघरा गीला होकर उसके चूतड़ से चिपक उसके भारी चूतड़ की दरार मे फँस ऐसा लगरहा था जैसे दो बड़े बड़े तरबूज लगा दिए हो।
बिरजू (पैंट के अन्दर) अपना लंड मसलते हुए –“मन तो कर रहा है जा के फँसा दूँ अपना लंड इसके भारी चूतड़ों के बीच मे, हाय रे क्या चूतड़ है रे ये काकी तो हमारी जान लेने पर तुली है, यार बल्लू इसको हमने हमेशा हर तरह से नंगी नहाते देखा है लेकिन इसकी चूत और इसके भारी चूतड़ नंगे देखने को कभी नही मिले, यार कुछ चक्कर चला। इसके भारी चूतड़ और चूत का छेद देखने का बड़ा दिल कर रहा है।

बिरजू –“एक आइडिया है मेरे दिमाग़ मे,
बल्लू –“हाँ तो बता ना यार, सुन यह रोज पुलिया के पीछे के खेत मे संडास करने जाती है बस यही एक तरीका है इसके चूतड़ देखने का वहाँ आसपास काफ़ी पेड़ भी है वही छुप कर हम इसके चूतड़ देखने कल चलते है।
-“ठीक है कल ही इसके चूतड़ का भरपूर मज़ा लेंगे।
धन्नो काकी ने अपने ऊपर अब मग से पानी डालना शुरू कर दिया और फिर अपना घाघरा ढीला करके एक दो मग पानी अपने घाघरे के अंदर चूत के ऊपर भी डाला । तभी गाँव की एक दो औरते और आ गई और वो भी वही कपड़े धोने लगी और
अपनी अपनी चोलियाँ उतार कर नहाने लगी, उनके स्तन और चूतड़ का भरपूर आनंद लेने के बाद जब हैन्ड पम्प पर कोई नही बचा तब बल्लू बोला –“बिरजू निबट गया क्या।”
बिरजू –“नही यार जब तक कम्मो चाची को नंगी न देख लूँ तब तक माल निकलता ही कहाँ है।”

क्रमशः....................
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