Antarvasna kahani नजर का खोट
04-27-2019, 12:31 PM,
#6
RE: Antarvasna kahani नजर का खोट
भाभी बाहर चली गयी मैं कुर्सी पर बैठे वो गाना सुनने लगा , अपनी बस यही दुनिया थी ये चौबारा एक पलंग एक अलमारी कुछ किताबे एक टेबल और कुर्सी और साइड में रखा डेक जो आजकल बंद ही पड़ा रहता था मौज मस्ती के नाम पर बस इतना ही था बैठे बैठे मैं सोच रहा था कौन होगी ये आयत वैसे नाम तो अच्छा था 

कुछ देर बाद मैं आया निचे कोई दिखा नहीं तो फिर मैं घुमने चला गया अब हुई रात और वापिस आ गए खेत पर , मैंने सोचा तो था की चाची से फिर से कुछ करूँगा पर पता नहीं कैसी नींद आई की सब अरमान सपनो की भेंट चढ़ गए शायद दवाइयों के असर से नींद आ गयी थी 

खैर, हर दिन अपने साथ कुछ नया लेकर आता है हमने चक्कर लगा दिया विज्ञानं संकाय का तो देखा उसे दुपट्टे को बड़े सलीके से ओढ़े हुए वो बैठी थी बस दरवाजे से ही देख लिया उसको पर हिम्मत नहीं हुई उसके आगे पर हाय ये दुस्ताख दिल अब ये किसकी मानता है पर करे भी तो क्या करे बात करे तो कैसे करे कल कोशिश तो की थी पर क्या हुआ 

तभी उसकी नजर पड़ी हमारी तरफ और हम खिसक लिए वहा से धड़कने बढ़ सी गयी थी पर दिल कह रहा था हार मत मानिये जनाब बार बार मेरी निगाह पानी की टंकी पर ही जा रही थी की अब वो आये अब आये पर इन्तहा हो गयी इंतजार की वो आई ही नहीं उसी कशमकश में छुट्टी हो गयी और मैं दौड़ा उसकी कक्षा की तरफ एक एक कर के सब लो निकल रहे थे और सबस आखिर में निकली और और चौंक गयी मुझेदेख कर वो 

“आप ” बस इतना ही कह सकी वो 

“मुझे कुछ .................... ”

“ऐसे राहो में रोकना किसी को अच्छी बात नहीं होती ”

“मेरा वो मतलब नहीं था जी ”उसने अपनी मोटी मोटी आँखों से मेरी तारा देखा और बोली “हटिये हमे देर हो रही है ” दो कदम बढ़ गयी वो आगे मैं रह गया खड़ा ये सोचते हुए की इसने तो बात सुनी ही नहीं पर जाते जाते पलती और बोली “मैं जुम्मे को पीर साहब की मजार पे जाती हु ”

एक पल समाझ नहीं आया की क्या कहके गयी पर जब समझे तो दिल झूम सा गया छोरी इशारा कर गयी थी और हम भोंदू के भोंदू पर दिल को एक तरंग सी मिल गयी थी मारा बालो पर हाथ और चल दिए घर की और अपनी खुमारी में पर देखा की चौपाल पर भीड़ जमा है तो हमने भी साइकिल रोकी अपनी और देखने लगे तो पता चला की पंचायत हो रही है 

मैं भी सुन ने लगा , मामला कुछ यु था की जुम्मन सिंह ने जमींदार रघुवीर से कुछ कर्जा लिया था जो वो समय से चूका न पाया था और अब रघुवीर ने उसकी जमीन कब्ज़ा ली थी मेरी नजर राणाजी पर पड़ी सफ़ेद धोती कुरते में कंधे पर गमछा, कड़क मूंछे चेहरे पर रौब, 

अब जुम्मन बहुत घबराया हुआ था थोड़ी सी जमीं थी उसकी और ऊपर से उसपे रघुबीर ने कब्ज़ा कर लिया था ऊपर से उसके पास कागज भी था जिसपे जुम्मन ने अंगुठा दिया हुआ था तो राणाजी भी क्या कहते उन्होंने रघुबीर से बात की पर पंचायत गंभीर हो चली थी , पंचो ने प्रस्ताव रखा की जुम्मन को कुछ समय और दे पर बात बनी नहीं क्योंकि गाँवो में तो जमींदारी व्यवस्था ही होती है 

तो जाहिर सी बात है की रघुबीर का पक्ष मजबूत था राणाजी कुछ बोल नहीं रहे थे और सबको इंतजार था फैसले का मैं भी चुपचाप खड़ा था और फिर आई घडी फैसले की चूँकि कागज़ पर अंगूठा भी था जुम्मन का तो फैसला रघुबीर के हक़ में आया जुम्मन न्याय की दुहाई देने लगा पर पंचायत न जो कह दिया वो कह दिया मुझे पहली बार लगा की राणाजी ने गलत फैसला दिया है 

और मेरे मुह से निकल गया “ये फैसला गलत है जुम्मन चाचा इस फैसले को नहीं मानेंगे ” और पंचायत में हर मोजूद हर एक शक्श की नजरे मुझ पर टिक गयी खुद ठाकुर हुकुम सिंह की भी मैंने उनकी आँखों में असीम क्रोध देखा सबकी आँखों में हैरत थी क्योंकि राणाजी का फैसला पत्थर की लकीर होता था और जिसे काटा भी तो किसने उनके अपने बेटे ने 

राणाजी ने खुद को संयंत किया और बोले “ फैसला हो चूका है छोरे और वैसे भी पंचायत में बालको का काम नहीं ”

“कैसा फैसला राणाजी, ” ये जिंदगी में पहली बार था जब मैंने बापूसा के आलावा उनको राणाजी कहा था 

“ये कैसा फैसला हुआ, सबको मालूम है सदियों से जमींदार गरीबो की जमीने ऐसे ही ह्द्पते आये है, इस अनपढ़ को तो पता भी नहीं होगा की जिस कागज़ पे अंगूठा लगवाया है उसपे लिखा क्या गया होगा और कैसा कर्जा , जो जुम्मन के बाप ने लिया था , बहुत खूब पीढ़ी दर पीढ़ी से यही चला आ रहा है बाप का कर्जा बेटा चुकाएगा पर क्यों ”

“यही नियम है समाज का ”

“तो तोड़ दीजिये ये नियम जुम्मन अपने बाप के कर्जे को चुकाने के लिए कर्जा लेगा फिर इसका बेटा इसके कर्जे को चुकाने के लिए कर्जा लेगा ये पिसते जायेंगे कर्जे में और ये जमींदार फूलते जायेंगे ये कहा का इन्सान हुआ मैं नहीं मानता इस फैसले को ”

मैंने पिता की आँखों में एक आग देखि जिसने मुझे भान करवा दिया था की ठाकुर हुकुम सिंह बहुत क्रोध में है और वो दहाड़ते हुए बोले “छोरे, एक बार बोल दिया ना फैसला हो गया है बात ख़तम ये पंचायत ख़तम हो गयी कानूनन अब जमीन रागुबिर की है ”

“;लानत है ऐसे कानूनों पर जिनका जोर खाली कमजोरो पर चलता है गरीबो का खून चूसते है ये कानून और अगर ये कानून सिर्फ जमींदारो के लिए है तो तोड़ दीजिये इन कानूनों को आखिर कब तक हम ढोते रहेंगे परम्परा के इस ढकोसले को ”

“मैं नहीं मानता उस कानून को जो गरीब से उसकी जमीन छीन लेता है वो किसान जो जमीन को अपनी माँ समझता है कोई कैसे हड़प लेगा वो जमीन उस से ”

“जमीन हमेशा जमींदार की ही होती है ”

“नहीं जमीन उस किसान की होती है जो अपनी मेहनत से अपने पसीने से सींचता है उसको जो अपने बच्चो की तरह पालता है फसल को जमीन उस किसान की होती है ”

“मत भूलो तुम ठाकुर हुकम सिंह से के सामने खड़े हो लड़के ”

“और आपके सामने ठाकुर कुंदन सिंह खड़ा है जो ये अन्याय नहीं होने देगा जमीन तो जुम्मन की ही रहेगी ”

“तडक तदाक ” मेरी बात पूरी होने से से पहले ही बापूसा का थप्पड़ मेरे गाल पर पड़ चूका था और फिर शुरू हुआ सिलसिला मार का राणाजी की बेंत और मेरा शारीर आखिर ठाकुर साहब कैसे बर्दाश्त करते की उनके सामने कोई बोल जाए

सडाक सडाक राणाजी की बेंत मेरी पीठ पर अपना पराक्रम दिखाती रही जी तो बहुत किया की प्रतिकार कर दू पर ठाकुर कुंदन सिंह कमजोर पड़ गया एक पुत्र के आगे वो पुत्र जिसे कुछ देर पहले ही हिमाकत की थी अपने पिता के फैसले को भरी पंचायत में चुनौती देने की बुर्ष्ट कब की तार-तार हो चुकी थी पीठ से मांस उधड़ने लगा था पर हमने भी दर्द को होंठो से बाहर निकलने नहीं दिया 



और ना ही राणाजी का हाथ रुका जब बेंत टूट गयी तो थप्पड़ लाते चल पड़ी पर हमने भी जिद कर ही ली थी की जमीन थो उसी की रहेगी जो उसे जोत ता है , पर पता नहीं कब प्रतिकार हार गया दर्द के आगे जब आँखे खुली तो दर्द ने बाहे फैला कर स्वागत किया 



अधखुली आँखे फैला कर देखा तो खुद को चौपाल के उसी बूढ़े बरगद के निचे पाया बरसात हो रही थी और आसपास कुछ था तो बस काला स्याह अँधेरा “आह, आई ”कराहते हुए मैंने खुद को उठाने की जदोजहद की मांसपेशिया जैसे ही फद्फदायी दर्द की एक टीस ने जान ही निकाल दी 



पथ पर हल्का सा हाथ फेरा तो अहसास हुआ की कुंदन खून अभी भी गरम है आँखों में आंसू एक बार फिर से आ गए और दर्द का सिलसिला साथ हो लिया जिस्म पर पड़ती बरसात की बूंद ऐसे लग रही थी जैसे गोलिया चल रही हो अपने लड़खड़ाते हुए कदमो से जूझते हुए मैं चल पड़ा उस जगह के लिए जिसे घर कहते थे 



पर दर्द इतना था की आँखों क आगे अँधेरा छाने लगा और पैर डगमगाने लगे फिर कुछ याद नहीं रहा क्या हुआ क्या नहीं पर जब होश आया तो मैंने खुद को अपने कमरे में पाया , धीरे से मैंने अपनी आँखों को खोला और देखा की राणाजी मेरे पास पलंग पर ही बैठे है मैंने वापिस अपनी आँखों को डर के मारे बंद कर लिया और तभी मुझे एक हाथ मेरे जख्मो पर महसूस हुआ 



राणाजी मेरे ज़ख्मो पर लेप लगा रहे थे “आह जलन के मारे मैं तड़प उटाह आःह्ह ” पर वो लेप लगाते रहे मैंने अपने हाथ पर कुछ गीला सा महसूस किया आँखों की झिर्री से देखा वो आंसू था बापूसा की आँखों में आंसू थे जो शायद मैंने अपने जीवन में पहली बार देखे थे लेप लगाने के कुछ देर तक वो मेरे पास ही बैठे रहे और फिर चले गए 
Reply


Messages In This Thread
RE: Antarvasna kahani नजर का खोट - by sexstories - 04-27-2019, 12:31 PM

Possibly Related Threads…
Thread Author Replies Views Last Post
  Raj sharma stories चूतो का मेला sexstories 201 3,474,365 02-09-2024, 12:46 PM
Last Post: lovelylover
  Mera Nikah Meri Kajin Ke Saath desiaks 61 541,483 12-09-2023, 01:46 PM
Last Post: aamirhydkhan
Thumbs Up Desi Porn Stories नेहा और उसका शैतान दिमाग desiaks 94 1,221,434 11-29-2023, 07:42 AM
Last Post: Ranu
Star Antarvasna xi - झूठी शादी और सच्ची हवस desiaks 54 923,468 11-13-2023, 03:20 PM
Last Post: Harish68
Thumbs Up Hindi Antarvasna - एक कायर भाई desiaks 134 1,638,657 11-12-2023, 02:58 PM
Last Post: Harish68
Star Maa Sex Kahani मॉम की परीक्षा में पास desiaks 133 2,068,124 10-16-2023, 02:05 AM
Last Post: Gandkadeewana
Thumbs Up Maa Sex Story आग्याकारी माँ desiaks 156 2,929,766 10-15-2023, 05:39 PM
Last Post: Gandkadeewana
Star Hindi Porn Stories हाय रे ज़ालिम sexstories 932 13,987,160 10-14-2023, 04:20 PM
Last Post: Gandkadeewana
Lightbulb Vasna Sex Kahani घरेलू चुते और मोटे लंड desiaks 112 4,005,170 10-14-2023, 04:03 PM
Last Post: Gandkadeewana
  पड़ोस वाले अंकल ने मेरे सामने मेरी कुवारी desiaks 7 282,381 10-14-2023, 03:59 PM
Last Post: Gandkadeewana



Users browsing this thread: 6 Guest(s)